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Wednesday, December 14, 2022

AKARSH GOYAL A GREAT TRAVELLER AND MOUNTENIAR - आकर्ष गोयल एक महान पर्वतारोही

AKARSH GOYAL A GREAT TRAVELLER AND MOUNTENIAR - आकर्ष गोयल एक महान पर्वतारोही

पंजाब में बठिंडा के आकर्ष गोयल ने पूर्वी नेपाल के हिमालय श्रृंखला स्थित अमा डबलाम और आइलैंड पीक/इमजा त्से नामक दो ऊंची चोटियों को फतेह किया है।इस कीर्तिमान के साथ वह ऐसा करने वाले पहले पंजाबी युवक बन गए हैं।आकर्ष पंजाब के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अभियान के दौरान दो चोटियों पर चढ़ाई पूरी की हो।




आकर्ष गोयल ने माउंट अमा डबलाम में 6812 मीटर और 22350 फीट की सीधी चढ़ाई 29 अक्टूबर 2022 को पूरी की।जबकि आइलैंड पीक/इमजा त्से में 6160 मीटर और 20210 फीट की चढ़ाई 21 अक्टूबर 2022 को पूरी की।

आकर्ष गोयल ने इस अभियान को चुनौतीपूर्वक बताते हुए कहा कि अमा डबलाम तकनीकी तौर पर काफी कठिन पर्वत है।उन्होंने कहा कि पंजाब से इस चोटी को फतेह करने वाले वह पहले व्यक्ति हैं।चढ़ाई के दौरान उनके साथ 7 लोग और 5 शेरपा गाइड की टीम थी।अभियान को काठमांडू से शुरू कर इसे पूरा करने में 1 महीने का समय लगा।आकर्ष ने दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से कामयाबी हासिल करना बताया।

आकर्ष गोयल ने इस अभियान से पहले उन्होंने 3 महीने की कठिन ट्रेनिंग की।इस टारगेट को हासिल करने से पहले अच्छा कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस, सहनशक्ति व ताकत हासिल करना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने रूटीन में रनिंग, साइकिलिंग, क्रॉसफिट, रेसिस्टेंस और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग की।जिम्नासियो(फेज 3 बठिंडा) के हैरी धनोइया ने ट्रेनिंग ली।इस दौरान एक कस्टम वर्क आउट प्लान बनाकर अलग-अलग हार्ट रेट जोन में ट्रेनिंग की।
आकर्ष गोयल ने बताया कि बेस कैंप तक पहुंचने से पहले हमने 8-10 दिनों तक ट्रैकिंग कर लगभग 100 किमी. की कठिन दूरी तय की।कैंप 1 से कैंप 2 तक का मार्ग तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण मार्ग था।पर्वतारोही मार्ग के इस हिस्से को 4.11 से 5.7-5.10 के बीच कहीं भी ग्रेड देते हैं।इसकी तुलना रॉक क्लाइम्बिंग ग्रेड से की जाती है और सभी गियर और उपकरण के साथ भारी बैग पैक रखना पड़ते हैं।कैंप 3 में पहुंचने से पहले लगातार ऊपर जाना था।इस बिंदु तक पर्वतारोही रात में 5-6 घंटे पहले ही चढ़ाई कर चुके थे।

आकर्ष ने पिरामिड के ठीक नीचे पहुंच कर शिखर डबलाम ढलान के ऊपर स्थित है।शिखर पर पहुंचने से पहले बेहद कठिन रास्ता था।उन्होंने रात 11 बजे चढ़ाई शुरू कर पूरी रात हेड लाइट का इस्तेमाल किया।फिर सुबह 10:30 बजे शिखर पर पहुंचे।अमा डबलाम का शिखर चौड़ा है।दिन साफ था और वह माउंट देख सकते थे।

शिखर पर तापमान 25 डिग्री से 35 डिग्री के आसपास और हवाएं 60 किलोमीटर प्रति घंटा तक चल रही थी।गर्माहट के लिए विशेष डाउन सूट और मोजे व दस्तानों के अलावा ताजा बर्फ पिघला कर पानी का बंदोबस्त किया।आकर्ष ने कहा कि वह भारत और पंजाब को गौरवान्वित करने के लिए भविष्य के अभियानों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।DC बठिंडा सौकत अहमद परे ने आकर्ष गोयल को बधाई देते हुए उन्हें हर संभव सहयोग का भरोसा दिया।

आकर्ष गोयल जी के हौसले को नमन।संपूर्ण सेठ समाज को आप पर गर्व है।भगवान श्री नृसिंह महाराज की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहे।

Wednesday, December 7, 2022

चुनाव चुनाव चुनाव......बार बार चुनाव...

 चुनाव चुनाव चुनाव......बार बार चुनाव...


इस हमारे प्यारे देश में शायद ही कोई सा वर्ष ऐसा जाता होगा जब चुनाव ना होते हो. किसी ना किसी राज्य में आचार संहिता लगी रहती हैं. सरकारे, अफसर शाही, पार्टिया, नेता लोग, मिडिया इसी में लगा रहता हैं. कभी कही लोकसभा, राज्यसभा, कही विधान सभा, विधान परिषद् , नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत जिला पंचायत के चुनाव चलते रहते हैं. ऐसा लगता हैं हमारा देश चुनावो का देश बन के रह गया हैं. इसके कारण से देश में विकास कार्य ठप्प पड़े रहते हैं. फ़ालतू का पैसा खर्चा होता हैं. मोदी जी ने तो एक चुनाव एक देश की परिकल्पना प्रस्तुत की थी, लेकिन हमारे विपक्ष के लोगो ने स्वार्थ वश इस परिकल्पना को नकार दिया. इसमें विपक्ष के अपने स्वार्थ हैं. उनके द्वारा इससे देश में लोगो को जाति पाति, सम्प्रदाय में बांटने में आसानी होती हैं. इस तुच्छ सोच से बचना होगा. पुरे देश में राष्ट्रपति, लोकसभा, विधानसभा के चुनाव एक साथ पांच वर्ष में होने चाहिए. यदि किसी विधायक या सांसद की मृत्यु हो जाए तो उसके स्थान पर दुसरे स्थान पर रहे व्यक्ति को निर्वाचित घोषित करना चाहिए. लोक सभा व विधान सभा ५ वर्ष के लिए निर्वाचित घोषित होनी चाहिए. उससे पहले किसी भी स्थान पर चुनाव ना हो. इसी तरह से नगरपालिका, निगम, व पंचायतो के चुनाव होने चाहिए. इस तरह से देश के पैसे के बचत भी होगी और सरकारी अधिकारी व नेता लोग देस के विकास में ध्यान देंगे. वन्देमातरम, धन्यवाद, राष्ट्रवादी प्रवीण गुप्ता

Thursday, November 4, 2021

'राम वन गमन' पथ


'राम वन गमन' पथ

ऐसे संवरेगा 'राम वन गमन' पथ:जिन रास्तों से गुजरकर प्रभु राम लंका पहुंचे थे, उसका अधिकांश हिस्सा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में; यहां अब बदल रही है तस्वीर

अयोध्या से श्रीलंका तक की 14 साल की यात्रा में लगभग 248 ऐसे प्रमुख स्थल हैं, जहां भगवान श्रीराम ने या तो विश्राम किया या फिर उनसे उनका कोई रिश्ता जुड़ा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव छत्तीसगढ़ है। 14 साल के वनवास के 10 साल यहीं गुजरे। हर राज्य अपने हिसाब से राम वन गमन पथ को विकसित कर रहे हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी काम चल रहा है। पढ़िए राम वन गमन पथ से जुड़ी पूरी यात्रा।
































Sunday, March 28, 2021

महाभारत और रामायण काल्पनिक नहीं, बल्कि इन महाग्रंथो के अस्तित्व के पुख्ता प्रमाण हैं मौजूद


महाभारत और रामायण काल्पनिक नहीं, बल्कि इन महाग्रंथो के अस्तित्व के पुख्ता प्रमाण हैं मौजूद

27 सितंबर, 1931 को लाहौर के अखबार ‘द पीपल’ में एक लेख प्रकाशित हुआ. लेख का नाम था, 'मैं नास्तिक क्यों हूं'. जेल में रहते हुए इसे लिखने वाले व्यक्ति अमर क्रांतिकारी भगत सिंह थे. अपने इस लेख के माध्यम से उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किए थे. मॉर्डन युग में भी भगत सिंह का ये लेख प्रासंगिक बना हुआ है.

भगत सिंह की तरह ही आज भी देश के कई तर्कशील युवा अक्सर हिंदू धर्म के महान ग्रंथों की सामयिक जटिलताओं के चलते इसे पूरी तरह से अपना नहीं पाते हैं. दूरदर्शन पर अक्सर महाभारत और रामायण जैसे कार्यक्रमों को देखकर लगता था कि अगर ये ऐतिहासिक पात्र काल्पनिक नहीं हैं, तो युद्ध का समय, इनके रहने और जीने का समय हज़ारों सालों में कैसे बंट सकता है.
 
भगत सिंह की तरह ही लेनिन, मार्क्स जैसी कई बड़ी हस्तियों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए ईश्वर में अपनी निष्ठा ख़त्म की, कई लोग दर्शनशास्त्र की तरफ़ भी मुड़े. कुछ आस्तिकों ने दर्शन शास्त्र को मनुष्य की दुर्बलता अथवा ज्ञान के सीमित होने के कारण उत्पन्न होने वाला परिदृश्य बताया.

लेकिन कई आस्तिक और फिलॉसॉफ़र भी महाभारत और उसके समय-काल से जुड़े अनुत्तरित सवालों के जवाब देने में सक्षम नहीं थे. ज़ाहिर है, रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथ इतिहास न होकर, पौराणिक और देव कथाओं में तब्दील होने शुरु हो चुके थे.
भारत के प्राचीन ग्रंथ, सत्य या मिथ्या?

आईआईटी मुंबई से पास आउट इतिहासकार सुनील शेरॉन की महाभारत के समय काल को लेकर बेहद दिलचस्प राय है. उनकी एक थ्योरी के अनुसार, महाभारत को गैरज़रूरी तरीके से जटिल बनाया गया है. महाभारत में इस्तेमाल हुए संस्कृत श्लोकों के द्वारा इन महान ग्रंथों के रहस्य को सुलझाया जा सकता है.
 
सुनील के मुताबिक, भारत में वैदिक गुरुओं की मौजूदगी का कारण भारत का कर्म भूमि होना था. भारत एक ऐसी जगह है, जहां करोड़ों देवी-देवताओं को पूजा जाता है. यहां सनातन धर्म का ज़बरदस्त प्रभाव था. ये एक ऐसी आध्यात्मिक और रहस्यमयी भूमि थी, जहां कर्मों के आधार पर इंसान की मोक्ष की दिशा तय होती है. वहीं दुनिया के बाकी देश भोग भूमि हैं, जहां इंसान भोग-विलास में मशगूल होकर अपनी ज़िन्दगी दिशाहीन तरीके से व्यतीत कर देता था.
  Source: Deviantart

महाभारत और रामायण के दौर में दुनिया के इन बाकी देशों के बारे में उल्लेख नहीं होने का कारण इनका भोग-भूमि होना है. कोई भी संस्कृति और सभ्यता, जो सनातन धर्म के फ्रेमवर्क और शिक्षाओं से बाहर थी, उसे महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता था. इसलिए उनके अस्तित्व पर अधिक चर्चाएं नहीं मिलती. वहीं सनातन धर्म के मुताबिक, मनुष्य का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है और भारत के ग्रंथों, पुराणों से लेकर प्राचीन साहित्य तक इस बात की कहीं न कहीं पुष्टि करते हैं.
 
महाभारत के समयकाल की सही अवधि

पिछले 2500 सालों से ज़्यादातर लोग, महाभारत और रामायण दौर को बयां करते संस्कृत श्लोकों को लेकर एक चूक करते आए हैं. 'देखन में छोटी लगे घाव करे गंभीर' जैसी कहावत की तर्ज पर ही इस गलती के गहरे असर को समझा जा सकता है.
दरअसल जिन संस्कृत श्लोकों में महाभारत और रामायण काल के युगों का उल्लेख हुआ है, उनमें इस्तेमाल होने वाले अंकों को अब तक ग़लत तरीके से समझा जा रहा था.
Source: Quora

मसलन अगर हम महाभारत के इस गद्य पर गौर फरमाएं, तो समझ आएगा कि दश वर्ष सहस्त्राणि को पारंपरिक तौर पर 10,000 साल माना जाता है, जिस पर सुनकर ही सहज विश्वास नहीं होता. हालांकि अगर यहां सहस्त्राणि की असल संख्या यानि 10 साल (सहस्त्राणि=10) इस्तेमाल की जाए और शतानी की संख्या को 1 (शताणी=1) साल माना जाए तो पुराणों के ये श्लोक कुछ इस प्रकार होंगे.
चत्वार्याहुः सहस्राणि वर्षाणां तत्कृतं युगम्।
त्रीणि वर्षसहस्राणि त्रेतायुगमिहोच्यते।
तथा वर्षसहस्रे द्वे द्वापरं परिमाणतः।
सहस्रमेकं वर्षाणां ततः कलियुगं स्मृतम्।
एतत्सहस्रपर्यन्तमहो ब्राह्ममुदाहृतम्।
इस बदलाव के अनुसार,

40 (4*10) साल कृति युग है. वहीं 30 साल त्रेता युग, 20 साल द्वापर युग और 10 साल कलियुग को कहा गया है. वहीं 1000 साल (120 साल की एक साइकिल) को ब्रहमा डे के तौर पर माना जाएगा. ये सभी संधि के बिना इस्तेमाल किए गए है. यानि इन अंकों में 20 प्रतिशत जोड़ देने के बाद इनकी संख्या क्रमश: 48 साल, 36 साल, 24 साल और 12 साल होगी.
 
इन संख्याओं के सामने आने के बाद महाभारत से जुड़े ज़्यादातर संस्कृत श्लोकों में उल्लेख किया गया समय, अब विश्वास लायक था.
Source: Quora

इस विश्लेषण से न केवल युगों और महायुगों के चक्र-काल का सही अंदाज़ा लगाया जा सकता है, बल्कि भारत के प्राचीन इतिहास की जटिलताओं को भी आसानी से समझा जा सकता है. इससे साबित होता है कि समय की उत्पत्ति (7th मन्वन्तर) 4174 BCE में हुई.
4174 BC से लेकर 3000 BCE भगवानों औऱ देवी देवताओं का दौर था, 3000 BCE में पूरी दुनिया को बाढ़ के प्रकोप ने काफ़ी नुकसान पहुंचाया. 3000 BCE से 1299 BCE तक 59 पीढ़ियां धरती पर अपना समय व्यतीत कर चुकी थी. भगवान श्री राम इस कड़ी में 60वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
  Source: Chainimage

3000BCE के बाद ही दुनिया में आबादी ने दूर-दराज के क्षेत्रों में बसना शुरु किया. कुछ लोगों को भारत से निकाल दिया गया और कुछ ऐसे भी थे जिन्हें बाहरी दुनिया में दिलचस्पी थी. इसके तहत ही भारत से अलग होकर मिडल ईस्ट अस्तित्व में आया. मिडिल ईस्ट से निकल यूरोप का निर्माण हुआ.

 
Source: nisachar.deviantart

जहां तक महाभारत के Scientific प्रमाण की बात थी, तो इससे जुड़ा सबसे बड़ा पुरातात्विक प्रमाण प्रोफ़ेसर बी. बी. लाल ने खोज निकाला था. वे भारत सरकार के पौरातात्विक विभाग में काम करते हैं. उन्होंने 1951 में हस्तिनापुर लोकेशन की खुदाई कर एक ऐसे Flooding Zone का पता लगाया था, जिसे 700 BCE का बताया जा रहा है. Source: Quora


पुराणों में भी हस्तिनापुर में आई बाढ़ के प्रकोप का है. पुराणों मे कहा गया है कि परिक्शित की चार पुश्तों गुज़रने के बाद इस बात का ज़िक्र किया गया है. गौरतलब है कि परिक्शित युधिष्ठिर के पोते थे. इससे साफ़ है कि हस्तिनापुर में आई भयानक बाढ़ से पहले के 130-150 सालों का दौर, महाभारत युद्ध का दौर था.

 

महाभारत के युद्ध की व्याख्या को कई लोगों ने गैरज़रूरी तरीके से जटिल बनाया है. इसके मुताबिक, महाभारत का युद्ध 3000-5000 BCE के बीच लड़ा गया था जो कि अविश्वसनीय है.. दरअसल इसके पीछे महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट (499 AD) का दिमाग था. आर्यभट्ट ने ही महायुग के असली समय यानि 120 सालों को एक ऐसे आंकड़ें में बदल दिया था, जिस पर विश्वास करना आसान नहीं था. Source: youthconnect

Inspired from: mcremo

आर्यभट्ट ने 120 सालों के महायुग की अवधि को अपने आकलनों के द्वारा 4,32,0000 साल बताया, जिसे सुनने पर ही विश्वास करना मुश्किल था. आर्यभट्ट के इस विचार की उस ज़माने में सशक्त मौजूदगी थी. लोगों के दिमाग में ये बात घर कर चुकी थी. ज़ाहिर है, कई तर्कशील और लॉजिकल लोग इस तथ्य को अपनाने से इंकार करने लगे और भारत का जीता जागता इतिहास, माइथोलॉजी में तब्दील होकर रह गया.

प्रोफ़ेसर बी. बी. लाल के पुरातात्विक प्रमाणों और महाभारत के Double Eclipse Pair से ये आसानी से समझा जा सकता है कि महाभारत का युद्ध 827 BCE में हुआ था. सभी ग्रहों की स्थितियां जो महाभारत में दर्शाई गई थी, भी इस साल की पुष्टि करती हैं


इसी के आधार पर कहा जा सकता है कि श्री राम का जन्म 1331 BCE में हुआ था और वे 1299 BCE में अयोध्या के राजा बने थे वहीं महाभारत का युद्ध 827 BCE में लड़ा गया था.
प्रोफ़ेसर बी. बी. लाल और सुनील शेरॉन की प्रेजेंटेशन से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

  Source: 
सुनील अपनी इस थ्योरी को लेकर काफ़ी आश्वस्त हैं और देखना दिलचस्प होगा कि इस पर बाकी इतिहासकारों की क्या प्रतिक्रिया होती है.

SABHAR: gazabpost.com/The-reality-of-mahabharata-and-ramayana

HEMU VIKRAMADITYA - अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ,जो थे शौर्य और बलिदान का पर्याय

HEMU VIKRAMADITYA - अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ,जो थे शौर्य और बलिदान का पर्याय


भारतीय इतिहास शौर्य गाथाओ से सराबोर है | इन शौर्य गाथाओ के अदम्य साहस और वीरता की गाथाये आज भी प्रेरक मिसाल बनी हुयी है | ऐसे में रणबांकुरो में अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (Samrat HemChandra Vikramaditya) , जिन्हें हेमू (Hemu) के नाम से भी जाना जाता है , का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है | एक साधारण व्यापारी से विक्रमादित्य की पदवी तक का सफरनामा उनके अद्भुद साहस ,कुशाग्र बुद्धि एवं प्रेरक रणकौशल का प्रमाण है |

हेमचन्द्र विक्रमादित्य (Samrat HemChandra Vikramaditya) का जन्म आश्विन शुक्ल दशमी विक्रमी संवत 1556 (1501 ईस्वी ) में राजस्थान के अलवर जिले के अंतर्गत माछेरी नामक गाँव के एक समृद्ध धूसर भार्गव वैश्य बनिया परिवार में हुआ था | हेमू के पिता राय पूरनदास संत प्रवृति के नेक इन्सान थे | बाद में उन्होंने हरियाणा के रेवाड़ी स्तिथ क़ुतुब पुर नामक क्षेत्र में रिहायश कर यहा व्यापार शूरू किया | वह मुख्यत: तोप और बंदूक में प्रयोग किय जाने वाले पोटेशियम नाइट्रेट (शोरा) का व्यापार करते थे |

हेमू (Hemu) ने अपनी शिक्षा में संस्कृत एवं हिंदी के अलावा फारसी ,अरबी और गणित का अध्ययन भी किया था | शरीर सौष्ठव एवं कुश्ती के शौक़ीन हेमू को धर्म एवं संस्कृति विरासत में मिली थी | वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े उनके पिता वर्तमान पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र सहित प्राय: विभिन्न हिन्दू धार्मिक स्थलों का दौरा करते थे |

हेमू (Hemu) ने अपना सैनिक जीवन शेरशाह सुरी के दरबार से शुरू किया | शेरशाह के पुत्र इस्लाम शाह के दरबार में हेमू अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे | 1548 में शेरशाह सुरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह ने उत्तरी भारत का राज सम्भाला | उन्होंने हेमू के प्र्शाश्कीय कौशल ,बुद्धि ,बल और प्रतिभा को पहचान कर उन्हें निजी सलाहकार मनोनीत किया | वे हेमू से ना केवल व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में सलाह लेते थे बल्कि प्रशाश्नीय कार्यो और राजनितिक कार्यो में भी उनसे विमर्श करते थे |

यही कारण था कि उन्हें बाजार अधीक्षक जैसी महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी और बाद में उन्हें दरोगा-ए-चौकी जैसे अति महत्वपूर्ण पद से सुशोभित किया गया जिस पर वह इस्लाम शाह की मृत्यु (30 अक्टूबर 1553) तक रहे | नागरिक एवं सैन्य मामलो के मंत्री तक निरंतर पदोन्नति पाने वाले हेमू को इस्लाम शाह ने भतीजे और उत्र्रधिकारी आदिल शाह सुरी ने “विक्रमादित्य” की उपाधि प्रदान की क्योंकि उनके लिए कई लड़ाईयां लड़कर हेमू ने हुमायु के शाशनकाल में भी उसके लिए कुछ क्षेत्र सुरक्षित रखा | उत्तराधिकारियों के झगड़े की वजह से बिखरते राजवंश को कमजोर शाशक आदिल शाह के लिए हेमू ही आशा की एक किरण ,एक मजबूत स्तम्भ बना |

मध्ययुगीन भारतीय इतिहास में हेमू (Hemu) एकमात्र हिन्दू था जिसने दिल्ली पर राज किया | मुगल सम्राट हुमायु की अचानक मृत्यु हेमू के लिए एक देवप्रदत संयोग था | उसने ग्वालियर से अपनी सेना एकत्रित कर दिल्ली की ओर कुच किया | मुगल जनरल इस्कन्दर उजबेक खान आगरा ,इटावा ,कालपी और बयाना खाली कर दिल्ली में मुगल जनरल मिर्जातरगी बेज से जा मिला | हेमचन्द्र ने दिल्ली के निकट तुगलकाबाद में 7 अक्टूबर 1556 को मुगल सेना के छक्के छुडाये |

दिल्ली से भागकर मुगल सेना सरहिंद में एकत्रित हो गयी | हेमू (Hemu) ने दिल्ली की राजगद्दी पप्राप्त की और महाराजा विक्रमादित्य के रूप में अपना राजतिलक करवाया किन्तु पानीपत के युद्ध में उनकी पराजय निसंदेह एक दुर्घटना थी | अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि यदि हेमू युद्ध में विजयी होता तो आज भारत का इतिहास कुछ अलग ही होता | एक युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने युद्ध में पासा ही पलट दिया | हेमू की सेना अपने सेनानायक को न पाकर ह्तौत्साहित होकर बिखर गयी |

दुसरी ओर मुगल सेना में नई जान आ गयी और देखते ही देखते युद्ध का नक्शा ही बदल गया | बैरम खा के लिए यह घटना अप्रत्याक्षित थी | युद्ध में विजय के अलावा अपने बड़े शत्रु को अपने कब्जे में देखना उसके लिए असम्भव सी बात थी | बैरम खा ने अकबर से प्रार्थना की कि वे हेमू का वध करके गाजी की पदवी का हकदार बने | हेमू को मरनासन्न स्थिथि में देखकर अकबर ने इसका विरोध किया लेकिन बैरम खा ने आनन फानन में अचेत हेमू का सिर धड से अलग कर दिया |

हेमू (Hemu) की हत्या के बाद जहा उनके सिर को अफ़घान विद्रोहियों के हौसले पस्त करने के लिए काबुल भिजवाया गया , वही स्थानीय विद्रोह को कुचलने के उद्देश्य से उनके धड़ को दिल्ल्ली के पुराने किले के दरवाजे पर लटकाया गया | इतना ही नही ,हेमू वंश पर अत्याचार का कहर ढाया गया | उनके 80 वर्षीय संत पिता को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए बाध्य किया गया किन्तु उनके पिता ने जब साफ़ शब्दों में कह दिया कि मैंने पुरे 80 साल जिस धर्म के अनुसार ईश्वर की प्रार्थना की अब मौत के डर से क्या सांध्यकाल में अपना धर्म बदल लू ? उसके बाद पीर मोहम्मद के वार से उनके शरीर के टुकड़े कर दिए गये |

बैरम खा हेमू और उनके पिता तथा परिवार पर किये गये अत्याचारों से संतुष्ट नही था इसलिए उनके समस्त वंशधरो को अलवर ,रेवाड़ी ,कानोड़ , नारनौल से चुन चुन कर बंदी बनवाया गे | हेमू के विश्वासपात्र अफ्ग्गान अधिकारियों एवं सेवको को भी नही बक्शा गया | अपनी फतेह के जश्न में उसने सभी धूसर भार्गव और सैनिको के कटे हुए सिरों से एक विशाल मीनार बनवाई | हेमू के प्रेरक जीवन पर आधारित अनेक पुस्तको में उन्हें अदम्य साहस एवं वीरता का पर्याय बताया गया है | इतिहासकारों एवं लेखको ने अंतिम हिन्दू सम्राट के साथ पानीपत के मैदान में हुयी दुर्घटना को भाग्य की विडम्बना करार देते हुए एक सच्चा राष्ट्रभक्त बताया है |