स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और
लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.
स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक
हो या सनातनी हो या जैनी ,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य
शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि संस्कार घर
के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और
स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग
किया जाता है।
हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक
का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे
का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है
तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर
हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर
बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने
का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष
चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर
हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के
अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है
कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके
नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित
दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु
की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक
का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर
के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के
सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है
और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक
अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह
हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है।
स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय
व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम
पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’
उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से
बना है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र
से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’
को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ
’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह
कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’
का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत
के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में
लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से
शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में
भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह
फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे
अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग
करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे
टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे
स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे
स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक
की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर
वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार
के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है।
काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के
लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर
की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के
प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक
का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और
दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान
ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में
और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न
रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है
साभार :भारतीय संस्कृति ही सर्व श्रेष्ट हैं, फेसबुक
अच्छी जानकारी.....जय हिंद
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छे से यह आर्टिकल में स्वास्तिक के महत्व को बताया है जो मंगलकारी होता है . इसके साथ घर के मुख्य द्वार पर कुछ चीजे बहुत शुभ होती है जो हर व्यक्ति को अपने घर के द्वार पर लगानी चाहिए .
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