वीरों को जन्म देने वाली इस भारत भूमि की गाथा कौन नही जानता , इसने हमेशा ऐसे ऐसे वीर राजाओं और योद्धाओं को जन्म दिया है जिन्होंने इस मिटटी की आन बान और शान के लिए ना केवल अपना पूरा जीवन कुर्बान किया बल्कि भारत विरोधियों के लिए भी हमेशा काल के रूप बनकर रहे |
ये कहानी है ऐसे ही एक वीर कि जो अफगानी हमलावरों और उनके सैनिकों को अपने यहाँ नौकर बनाकर रखता था और हर अफगानी केवल उस वीर के नाम से ऐसे थर थर कांपता था जैसे उसने नाम नही सुना हो बल्कि साक्षात् महा काल के दर्शन कर लिए हो पर सबसे बड़ा अफ़सोस इस बात का है कि आजादी के बाद चाटुकार वामपंथियों और कांग्रेस के मिलकर इस देश से महान हिन्दू योद्धाओं का इतिहास मिटा के रख दिया ताकि हिन्दुओं को कभी सच्चाई पता ना चल सके और उनको अपने भूतकाल और इतिहास पर कभी गौरव का अनुभव ना हो यानि कि सीधे सीधे हिन्दुओं की अस्मिता को कुचल डालने का गहरा षड्यंत्र .. पर सच्चाई भी कहीं छुपती है ..
इस महान योद्धा जिनका नाम है हरी सिंह नलवा और जिसकी वीरता की ये कहानी है उनका जन्म 1791 में पंजाब के गुजरांवाला ( अब पाकिस्तान में ) में हुआ था , जब हरी सिंह नलवा बड़े हुए तो तो उन्होंने तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह जी द्वारा आयोजित एक प्रतिभा खोज कार्यकर्म में युद्ध कुशलता के ऐसे ऐसे करतब दिखाए कि स्वयं महाराज भी दंग रह गये और उन्होंने नलवा को अपनी फ़ौज में शामिल होने का न्योता दे डाला |,एक बार जंगल में महाराज रणजीतसिंह को बचाने के लिए नलवा शेर से जा भिड़े और उसको भी परास्त कर दिया तथा महाराज को आंच तक नही आने दी
समय जैसे जैसे आगे बढ़ा हरी सिंह नलवा की ख्याति बढ़ने लगी और एक दिन महाराज रणजीत सिंह ने नलवा को अपना सेनानायक नियुक्त कर दिया वे महाराज से सबसे विश्वासपात्र योद्धा बन गये अपने युद्ध कौशल पे विशवास कह लीजिये या हरी सिंह नलवा का जूनून कह लीजिये , देखते ही देखते सेना में बढ़ौतरी होती गयी और फिर एक दिन सरदार हरी सिंह नलवा ने अफगान पर चढ़ाई करने की अपनी योजना से महाराज रणजीतसिंह को अवगत कराया उनके अनुसार मुग़ल आक्रमणकारियों को सबक सिखाना अनिवार्य था |
अपने युद्ध कौशल और जबरदस्त रणनीति की बदोलत नलवा ने अटक , मुल्तान और पेशावर को जीत लिया और वे महारज रणजीतसिंह के राज्य के अधीन हो गये , ये सब युद्ध 1813 से 1824 तक चलते रहे जिसमे हरी सिंह नलवा की वीरता ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए , मुग़ल उनसे इतने घबराते थे कि उनके आने की बात सुनकर ही नमाज तक छोड़कर भाग जाते थे और थर थर कांपते थे , हो भी क्यूँ ना नलवा ने उस समय चढ़ाई करके अफगान को जीता था जब कोई अफगान की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत नही करता था |
30 अप्रेल 1837 को एक युद्ध में हरी सिंह नलवा लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हुए ये युद्ध जमरूद में हुआ था , जिसमे हरी सिंह नलवा को 2 गोली लगी थी पर बड़ी बात ये थी कि अपनी सहादत के बावजूद उन्होंने पेशावर को अपने हाथ से जाने नही दिया था , ऐसे वीर थे बहादुर सरदार हरी सिंह नलवा जी हम उनको कोटि कोटि नमन करते हैं और आपसे आग्रह करते हैं कि ये कहानियां अपने बच्चों को जरुर सुनाएँ , ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और याद रखें हिन्दुओं का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है और सदेव हर हिन्दू को इस पर गर्व करना चाहिए जय हिन्द वन्देमातरम !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-08-2016) को "कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित" (चर्चा अंक-2441) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'