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Tuesday, April 24, 2012

ईरान से इंडोनेशिया तक सारा हिन्दुस्थान

GREATER HINDUSTHAAN

प्राचीन भारत की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनैतिक आक्रमण तो कहीं नहीं किए परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के लगभग सभी देशों में मिलते हैं।

यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से भारत का विस्तार ईरान से लेकर बर्मा तक रहा था। भारत ने संभवत विश्व में सबसे अधिक सांस्कृतिक और राजनैतिक आक्रमणों का सामना किया है। इन आक्रमणों के बावजूद भारतीय संस्कृति आज भी मौजूद है। लेकिन इन आक्रमणों के कारण भारत की सीमाएं सिकुड़ती गईं। सीमाओं के इस संकुचन का संक्षिप्त इतिहास यहां प्रस्तुत है।

ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।

कम्बोडिया – प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की।

वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ।

मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।

इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दू देवी-देवताओं से यहां का जनमानस आज भी परंपराओं के माधयम से जुड़ा है।

फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं।

अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।

नेपाल – विश्व का एक मात्र हिन्दू राज्य है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों का ही अंग रहा।
भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।

तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था। भारतीय शासकों की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।

श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका
पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।

म्यांमार (बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।

पाकिस्तान - 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था।

बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया
 

By Sudesh Sharma


Friday, April 20, 2012

पांडवों की वंशावली


बड़ी ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई .. चूँकि में अभी तक इस संधर्व में अनजान था और इतिहास की वो पुस्तके जो हमने अपने विद्यालयों में पढ़ी है उन पुस्तको में इन जानकारियों का अभाव था ...!! 

महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा हैः

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir) 36 8 25
2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit) 60 0 0
3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay) 84 7 23
4 अश्वमेध (Ashwamedh ) 82 8 22
5 द्वैतीयरम (Dwateeyram ) 88 2 8
6 क्षत्रमाल (Kshatramal) 81 11 27
7 चित्ररथ (Chitrarath) 75 3 18
8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya) 75 10 24
9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain) 78 7 21
10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain) 78 7 21
11 भुवनपति (Bhuwanpati) 69 5 5
12 रणजीत (Ranjeet) 65 10 4
13 श्रक्षक (Shrakshak) 64 7 4
14 सुखदेव (Sukhdev) 62 0 24
15 नरहरिदेव (Narharidev) 51 10 2
16 शुचिरथ (Suchirath) 42 11 2
17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II) 58 10 8
18 पर्वतसेन (Parvatsain ) 55 8 10
19 मेधावी (Medhawi) 52 10 10
20 सोनचीर (Soncheer) 50 8 21
21 भीमदेव (Bheemdev) 47 9 20
22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II) 45 11 23
23 पूरनमाल (Pooranmal) 44 8 7
24 कर्दवी (Kardavi) 44 10 8
25 अलामामिक (Alamamik) 50 11 8
26 उदयपाल (Udaipal) 38 9 0
27 दुवानमल (Duwanmal) 40 10 26
28 दामात (Damaat) 32 0 0
29 भीमपाल (Bheempal) 58 5 8
30 क्षेमक (Kshemak) 48 11 21

क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 विश्व (Vishwa) 17 3 29
2 पुरसेनी (Purseni) 42 8 21
3 वीरसेनी (Veerseni) 52 10 7
4 अंगशायी (Anangshayi) 47 8 23
5 हरिजित (Harijit) 35 9 17
6 परमसेनी (Paramseni) 44 2 23
7 सुखपाताल (Sukhpatal) 30 2 21
8 काद्रुत (Kadrut) 42 9 24
9 सज्ज (Sajj) 32 2 14
10 आम्रचूड़ (Amarchud) 27 3 16
11 अमिपाल (Amipal) 22 11 25
12 दशरथ (Dashrath) 25 4 12
13 वीरसाल (Veersaal) 31 8 11
14 वीरसालसेन (Veersaalsen) 47 0 14

वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha) 35 10 8
2 अजितसिंह (Ajitsingh) 27 7 19
3 सर्वदत्त (Sarvadatta) 28 3 10
4 भुवनपति (Bhuwanpati) 15 4 10
5 वीरसेन (Veersen) 21 2 13
6 महिपाल (Mahipal) 40 8 7
7 शत्रुशाल (Shatrushaal) 26 4 3
8 संघराज (Sanghraj) 17 2 10
9 तेजपाल (Tejpal) 28 11 10
10 मानिकचंद (Manikchand) 37 7 21
11 कामसेनी (Kamseni) 42 5 10
12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan) 8 11 13
13 जीवनलोक (Jeevanlok) 28 9 17
14 हरिराव (Harirao) 26 10 29
15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II) 35 2 20
16 आदित्यकेतु (Adityaketu) 23 11 13

प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 राजा धनधर (Raja Dhandhar) 23 11 13
2 महर्षि (Maharshi) 41 2 29
3 संरछि (Sanrachhi) 50 10 19
4 महायुध (Mahayudha) 30 3 8
5 दुर्नाथ (Durnath) 28 5 25
6 जीवनराज (Jeevanraj) 45 2 5
7 रुद्रसेन (Rudrasen) 47 4 28
8 आरिलक (Aarilak) 52 10 8
9 राजपाल (Rajpal) 36 0 0

सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 समुद्रपाल (Samudrapal) 54 2 20
2 चन्द्रपाल (Chandrapal) 36 5 4
3 सहपाल (Sahaypal) 11 4 11
4 देवपाल (Devpal) 27 1 28
5 नरसिंहपाल (Narsighpal) 18 0 20
6 सामपाल (Sampal) 27 1 17
7 रघुपाल (Raghupal) 22 3 25
8 गोविन्दपाल (Govindpal) 27 1 17
9 अमृतपाल (Amratpal) 36 10 13
10 बालिपाल (Balipal) 12 5 27
11 महिपाल (Mahipal) 13 8 4
12 हरिपाल (Haripal) 14 8 4
13 सीसपाल (Seespal) 11 10 13
14 मदनपाल (Madanpal) 17 10 19
15 कर्मपाल (Karmpal) 16 2 2
16 विक्रमपाल (Vikrampal) 24 11 13

टीपः कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10
2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12
3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5
4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8
5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24
6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4
7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9
8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22
9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12
10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16
2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8
3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28
4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

महाबाहु ने सन्यास ले लिए। इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21
2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2
3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12
4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2
5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27
6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9
7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21
8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25
9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15
10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29
11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0
12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26
2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0
3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11
4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15
5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29
6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन
1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19
2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17
3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14
4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3
5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है। साभार ....जी.के. अवधिया | 
 
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SABHAR : JAI BHARAT MAA





Monday, April 2, 2012

राम : मुस्लिम रचनाकारों के नायक







WD
तुलसीदासजी ने कहा है कि 'रामहि केवल प्रेम पियारा'। राम को केवल प्रेम प्यारा लगता है और राम का प्रेम सब को वशीभूत कर लेता है। राम भारतीय शब्द है और हिन्दू कथा के नायक हैं। परंतु फारसी में भी राम मुहावरा बन गए हैं - राम करदन, यानी किसी को वशीभूत कर लेना, अपना बना लेना।

राम ने फारसी साहित्यकारों को 'राम करदन' यानी अपना बना लिया, परिणामस्वरूप अनेक रामायनें रची गईं। संभवत: पहली बार अकबर के जमाने में (1584-89) वाल्मीकि रामायण का फारसी में पद्यानुवाद हुआ। शाहजहाँ के समय 'रामायण फौजी' के नाम से गद्यानुवाद हुआ।

औरंगजेब के युग में चंद्रभान बेदिल ने फारसी में पद्यानुवाद किया। तर्जुमा-ए-रामायन एवं अन्य रामायनों की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर की गई। मगर जहाँगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने 'मसीही रामायन' नामक एक मौलिक रामायण की रचना की, पाँच हजार छंदों वाली इस रामायण को सन् 1888 में मुंशी नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित भी किया गया था।

उर्दू में 1864 ई. में जगन्नाथ खुश्तर की रामायन खुश्तर, मुंशी शंकरदयाल 'फर्हत' का रामायन मंजूम, बाँकेबिहारीलाल 'बहार' कृत 'रामायन-बहार' और सूरज नारायण 'मेह' का रामायन मेह प्रकाशित हुई। डॉ. कामिल बुल्के ने इन अनुवाद-रचनाओं को स्वतंत्र काव्य ग्रंथ कहा है। बाद के दौर में भी उर्दू लेखकों-शायरों ने इस परंपरा का निर्वाह किया। गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है 'रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।'

'रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,
हिन्दुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान'

कवि संत रहीम ने अनेक राम कविताएँ भी लिखी हैं। अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायूनी अनुदित फारसी रामायण की एक निजी हस्तलिखित प्रति रहीम के पास भी थी जिसमें चित्र उन्होंने बनवा कर शामिल किए थे। इस 50 आकर्षक चित्रों वाली रामायण के कुछ खंड 'फेअर आर्ट गैलरी वॉशिंगटन' में अब भी सुरक्षित हैं।

मुस्लिम देश इंडोनेशिया में रामकथा की सुरभि को सहज देखा जा सकता है। दरअसल राम धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण ऐतिहासिक चरित्र रहे हैं। फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्‍दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्‍दीन चिश्ती आदि कई रचनाकारों ने राम की काव्य-पूजा की है। कवि खुसरो ने भी तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम को नमन किया है।

सन् 1860 में प्रकाशित रामायण के उर्दू अनुवाद की लोकप्रियता का यह आलम रहा है कि आठ साल में उसके 16 संस्करण प्रकाशित करना पड़े। वर्तमान में भी अनेक उर्दू रचनाकार राम के व्यक्तित्व की खुशबू से प्रभावित हो अपने काव्य के जरिए उसे चारों तरफ बिखेर रहे हैं। अब्दुल रशीद खाँ, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मद्‍दीन इकबाल कादरी, पाकिस्तान के शायर जफर अली खाँ आदि प्रमुख रामभक्त रचनाकार हैं।

लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर लेखक के पत्र मित्र हैं - उन्होंने श्री रामस्तुति में लिखा है -
कंज-वदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुन्दरं।
दैत्य दमनं पाप-शमनं सिन्धु तरणं ईश्वरं।।
गीध मोक्षं शीलवन्तं देवरत्नं शंकरं।
कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरम्।।

By - डॉ. मनोहर भंडारी
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