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Thursday, March 29, 2012

भारत में छूआछूत का कलंक मुसलमानों की देन

कुछ लोगों का मानना है कि भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुआ है. उनका यह भी कहना है की हिंदू समाज में छुआछात के कारण भारत में हिन्दुओं ने बड़ी मात्रा में इस्लाम को अपनाया. उनके शब्दों में -

"हिंदुओं के मध्‍य फैले रूढिगत जातिवाद और छूआछात के कारणवश खासतौर पर कथित पिछड़ी जातियों के लोग इस्‍लाम के साम्‍यभाव और भाईचारे की ओर आकृष्‍ट हुए और स्‍वेच्‍छापूर्वक इस्‍लाम को ग्रहण किया।"

जिन लोगों ने अंग्रेजों द्वारा लिखे गए व स्वतंत्र भारत के वामपंथी 'बुद्धिजीवियों' द्वारा दुर्भावनापूर्वक विकृत किये गए भारतीय इतिहास को पढ़कर अपनी उपर्युक्त धारणाएँ बना रखीं हैं, उन्हें इतिहास का शोधपरक अध्ययन करना चाहिए. उपर्युक्त कथन के विपरीत, सूर्य जैसा जगमगाता हुआ सच तो यह है कि भारत के लोगों का इस्लाम के साथ पहला-पहला परिचय युद्ध के मैदान में हुआ था. भारतवासियों ने पहले ही दिन से 'दीन' के बन्दों के 'ईमान' में मल्लेछ प्रवृत्ति वाले असुरों की झलक को साफ़-साफ़ देख लिया था तथा उस पहले ही दिन से भारत के लोगों ने उन क्रूर आक्रान्ताओं और बर्बर लोगों से घृणा करना शुरू कर दिया था.


अतः, इस कथन में कोई सच्चाई नहीं है कि भारत के लोगों ने इस्लाम के कथित 'साम्यभाव और भाईचारे' के दर्शन किये और उससे आकर्षित होकर स्वेच्छापूर्वक इस्लाम को ग्रहण किया.


असल में, हिंदुत्व और इस्लाम, दोनों बिलकुल भिन्न विचारधाराएँ हैं, बल्कि साफ़ कहा जाए तो दोनों एक दूसरे से पूर्णतया विपरीत मान्यताओं वाली संस्कृतियाँ हैं, जिनके मध्य सदियों पहले शुरू हुआ संघर्ष आज तक चल रहा है.


हाँ, इस्लामी आक्रमण के अनेक वर्षों बाद भारत में कुछ समय के लिए सूफियों का खूब बोलबाला रहा. सूफियों के उस 'उदारवादी' काल में निश्चित रूप से इस्लामी क्रूरता भी मंद पड़ गयी थी. परन्तु, उस काल में भी भारत के मूल हिंदू समाज ने कथित इस्लामी 'साम्यभाव' से मोहित होकर स्वेच्छापूर्वक इस्लाम को अपनाने का कोई अभियान शुरू कर दिया था, इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है.


हाँ, संघर्ष की इस लम्बी कालावधि में स्वयं समय ने ही कुछ घाव भरे और अंग्रेजों के आगमन से पहले तक दोनों समुदायों के लोगों ने परस्पर संघर्ष रहित जीवन जीने का कुछ-कुछ ढंग सीख लिया था. उस समय इस्लामिक कट्टरवाद अंततः भारतीय संस्कृति में विलीन होने लगा था.


यथार्थ में, भारत के हिन्दुओं को इस्लाम के कथित 'साम्यभाव और भाईचारे' का कभी भी परिचय नहीं मिल पाया. इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि मुसलमानों ने भारत के सनातन-हिंदू-धर्मावलम्बियों के साथ किसी दूसरे कारण से नहीं, बल्कि इस्लाम के ही नाम पर लगातार संघर्ष जारी रखा है. हिन्दुओं ने भी इस्लामी आतकवादियों के समक्ष कभी भी अपनी हार नहीं मानी और वे मुसलमानों के प्रथम आक्रमण के समय से ही उनके अमानवीय तौर-तरीकों के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करते आ रहे हैं. महमूद गज़नबी हो या तैमूरलंग, नादिरशाह हो या औरंगजेब, जिन्ना हो या जिया उल हक अथवा मुशर्रफ, कट्टरपंथी मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं का संघर्ष पिछले 1200 वर्षों से लगातार चलता आ रहा है.

जिस इस्लाम के कारण भारत देश में सदियों से चला आ रहा भीषण संघर्ष आज भी जारी हो, उसके मूल निवासियों के बारे में यह कहना कि यहाँ के लोग उसी 'इस्‍लाम के साम्‍यभाव और भाईचारे की ओर आकृष्‍ट हुए', एक निराधार कल्पना मात्र है, जोकि सत्य से कोसों दूर है. भारत के इतिहास में ऐसा एक भी प्रमाण नहीं मिलता जिसमे हिंदू समाज के लोगों ने इस्लाम में साम्यभाव देखा हो और इसके भाई चारे से आकृष्ट होकर लोगों ने सामूहिक रूप से इस्लाम को अपनाया हो.

आइये, अब हिन्दुओं के रूढ़िगत जातिवाद और छुआछूत पर भी विचार कर लें. हिन्दुओं में आदिकाल से गोत्र व्यवस्था रही है, वर्ण व्यवस्था भी थी, परन्तु जातियाँ नहीं थीं. वेद सम्मत वर्ण व्यवस्था समाज में विभिन्न कार्यों के विभाजन की दृष्टि से लागू थी. यह व्यवस्था जन्म पर आधारित न होकर सीधे-सीधे कर्म (कार्य) पर आधारित थी. कोई भी वर्ण दूसरे को ऊँचा या नीचा नहीं समझता था. उदारणार्थ- अपने प्रारंभिक जीवन में शूद्र कर्म में प्रवृत्त वाल्मीकि जी जब अपने कर्मों में परिवर्तन के बाद पूजनीय ब्राह्मणों के वर्ण में मान्यता पा गए तो वे तत्कालीन समाज में महर्षि के रूप में प्रतिष्ठित हुए. श्री राम सहित चारों भाइयों के विवाह के अवसर पर जब जनकपुर में राजा दशरथ ने चारों दुल्हनों की डोली ले जाने से पहले देश के सभी प्रतिष्ठित ब्राह्मणों को दान और उपहार देने के लिए बुलाया था, तो उन्होंने श्री वाल्मीकि जी को भी विशेष आदर के साथ आमंत्रित किया था.

संभव है, हिंदू समाज में मुसलमानों के आगमन से पहले ही जातियाँ अपने अस्तित्व में आ गयी हों, परन्तु भारत की वर्तमान जातिप्रथा में छुआछूत का जैसा घिनौना रूप अभी देखने में आता है, वह निश्चित रूप से मुस्लिम आक्रान्ताओं की ही देन है.


कैसे? देखिए-आरम्भ से ही मुसलमानों के यहाँ पर्दा प्रथा अपने चरम पर रही है. यह भी जगजाहिर है कि मुसलमान लड़ाकों के कबीलों में पारस्परिक शत्रुता रहा करती थी. इस कारण, कबीले के सरदारों व सिपाहियों की बेगमे कभी भी अकेली कबीले से बाहर नहीं निकलती थीं. अकेले बाहर निकलने पर इन्हें दुश्मन कबीले के लोगों द्वारा उठा लिए जाने का भय रहता था. इसलिए, ये अपना शौच का काम भी घर में ही निपटाती थीं. उस काल में कबीलों में शौच के लिए जो व्यवस्था बनी हुई थी, उसके अनुसार घर के भीतर ही शौच करने के बाद उस विष्टा को हाथ से उठाकर घर से दूर कहीं बाहर फेंककर आना होता था. सरदारों ने इस काम के लिए अपने दासों को लगा रखा था. जो व्यक्ति मैला उठाने के काम के लिए नियुक्त था, उससे फिर खान-पान से सम्बंधित कोई अन्य काम नहीं करवाते थे. स्वाभाविक रूप से कबीले के सबसे निकम्मे व्यक्ति को ही विष्ठा उठाने वाले काम में लगाया जाता था. कभी-कभी दूसरे लोगों को भी यह काम सजा के तौर पर करना पड़ जाता था. इस प्रकार, वह मैला उठाने वाला आदमी इस्लामी समाज में पहले तो निकृष्ट/नीच घोषित हुआ और फिर एकमात्र विष्टा उठाने के ही काम पर लगे रहने के कारण बाद में उसे अछूत घोषित कर दिया गया.


वर्तमान में, हिंदू समाज में जाति-प्रथा और छूआछात का जो अत्यंत निंदनीय रूप देखने में आता है, वह इस समाज को मुस्लिम आक्रान्ताओं की ही देन है. आगे इसे और अधिक स्पष्ट करेंगे कि कैसे?


अपने लम्बे संघर्ष के बाद चंद जयचंदों के पाप के कारण जब इस्लाम भारत में अपनी घुसपैठ बनाने में कामयाब हो ही गया, तो बाद में कुतर्क फ़ैलाने में माहिर मुसलमान बुद्धिजीविओं ने घर में बैठकर विष्टा करने की अपनी ही घिनौनी रीत को हिंदू समाज पर थोप दिया और बाद में हिन्दुओं पर जातिवाद और छुआछात फ़ैलाने के उलटे आरोप मढ़ दिए.


यह अकाट्य सत्य है कि मुसलमानों के आने से पहले घर में शौच करने और मैला ढोने की परम्परा सनातन हिंदू समाज में थी ही नहीं. जब हिंदू शौच के लिए घर से निकल कर किसी दूर स्थान पर ही दिशा मैदान के लिए जाया करते थे, तो विष्टा उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. जब विष्टा ढोने का आधार ही समाप्त हो जाता है, तो हिंदू समाज में अछूत कहाँ से आ गया?


हिन्दुओं के शास्त्रों में इन बातों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि व्यक्ति को शौच के लिए गाँव के बाहर किस दिशा में कहाँ जाना चाहिए तथा कब, किस दिशा की ओर मुँह करके शौच के लिए बैठना चाहिए आदि-आदि.


प्रमाण-

नैऋत्यामिषुविक्षेपमतीत्याभ्यधिकमभुवः I (पाराशरo)

" यदि खुली जगह मिले तो गाँव से नैऋत्यकोण (दक्षिण और पश्चिम के बीच) की ओर कुछ दूर जाएँ."

दिवा संध्यासु कर्णस्थब्रह्मसूत्र उद्न्मुखः I

कुर्यान्मूत्रपुरीषे तु रात्रौ च दक्षिणामुखः II (याज्ञ o १ I १६, बाधूलस्मृ o ८)

"शौच के लिए बैठते समय सुबह, शाम और दिन में उत्तर की ओर मुँह करें तथा रात में दक्षिण की ओर "


(सभी प्रमाण जिस नित्यकर्म पूजाप्रकाश, गीताप्रेस गोरखपुर, संवत २०५४, चोदहवाँ संस्करण, पृष्ठ १३ से उद्धृत किये गए हैं, वह पुस्तक एक सामान्य हिंदू के घर में सहज ही उपलब्ध होती है).


इस्लाम की विश्वव्यापी आँधी के विरुद्ध सत्वगुण संपन्न हिंदू समाज के भीषण संघर्ष की गाथा बड़ी ही मार्मिक है. 'दीन' के नाम पर सोने की चिड़िया को बार-लूटने के लिए आने वाले मुसलमानों ने उदार चित्त हिन्दुओं पर बिना चेतावनी दिए ही ताबड़तोड़ हमले बोले. उन्होंने हिंदू ललनाओं के शील भंग किये, कन्याओं को उठाकर ले गए. दासों की मण्डी से आये बर्बर अत्याचारियों ने हारे हुए सभी हिंदू महिला पुरुषों को संपत्ति सहित अपनी लूट की कमाई समझा और मिल-बाँटकर भोगा. हजारों क्षत्राणियों को अपनी लाज बचाने के लिए सामूहिक रूप से जौहर करना पड़ा और वे जीवित ही विशाल अग्नि-कुण्डों में कूद गयीं. क्षत्रियों को इस्लाम अपनाने के लिए पीड़ित करते समय घोर अमानवीय यंत्रनाएँ दीं गयीं. जो लोग टूट गए, वे मुसलमान बन जाने से इनके भाई हो गए और अगली लूट के माल में हिस्सा पाने लगे. जो जिद्दी हिंदू अपने मानव धर्म पर अडिग रहे तथा जिन्हें बलात्कारी लुटेरों का साथी बनना नहीं भाया, उन्हें निर्दयता से मार गिराया गया. अपने देश में सोनिया माइनो के कई खास सिपाहसालार तथा मौके को देखकर आज भी तुरंत पाला बदल जाने वाले अनेकानेक मतान्तरित मुसलमान उन्हीं सुविधाभोगी क्षत्रियों की संतानें हैं, जो पहले कभी हिंदू ही थे तथा जिन्होंने जान बचाने के लिए अपने शाश्वत हिंदू धर्म को ठोकर मार दी. उन लोगों ने अपनी हिफाज़त के लिए अपनी बेटियों की लाज को तार-तार हो जाने दिया और उन नर भेड़ियों का साथ देना ही ज्यादा फायदेमंद समझा. बाद में ये नए-नए मुसलमान उन लुटेरों के साथ मिलकर अपने दूसरे हिंदू रिश्तेदारों की कन्याओं को उठाने लगे.


किसी कवि की दो पंक्तियाँ हैं, जो उस काल के हिंदू क्षत्रियों के चरित्र का सटीक चित्रण करती हैं-

जिनको थी आन प्यारी वो बलिदान हो गए,

जिनको थी जान प्यारी, मुसलमान हो गए I


विषय के विस्तार से बचते हुए, यहाँ, अपनी उस बात को ही और अधिक स्पष्ट करते हैं कि कैसे मुसलमानों ने ही हिन्दुओं में छुआछूत के कलंक को स्थापित किया. अल्लाह के 'दीन' को अपने 'ईमान' से दुनिया भर में पहुँचाने के अभियान पर निकले निष्ठुर कठमुल्लों ने हिंदू को अपनी राह का प्रमुख रोड़ा मान लिया था. इसलिए, उन्होंने अपने विश्वास के प्रति निष्ठावान हिंदू पर बेहिसाब जुल्म ढहाए. आततायी मुसलमान सुल्तानों के जमाने में असहाय हिंदू जनता पर कैसे-कैसे अत्याचार हुए, उन सबका अंश मात्र भी वर्णन कर पाना संभव नहीं है. मुसलमानों के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने वाले क्षत्रिय वीरों की तीन प्रकार से अलग-अलग परिणतियाँ हुईं.


पहली परिणति-


जिन हिंदू वीरों को धर्म के पथ पर लड़ते-लड़ते मार गिराया गया, वे वीरगति को प्राप्त होकर धन्य हो गए. उनके लिए सीधे मोक्ष के द्वार खुल गए.


दूसरी परिणति-


जो भट्ट, पटेल, मलिक, चौधरी, धर (डार) आदि मौत से डरकर मुसलमान बन गए, उनकी चांदी हो गई. अब उन्हें किसी भी प्रकार का सामाजिक कष्ट न रहा, बल्कि उनका सामाजिक रुतबा पहले से कहीं अधिक बढ़ गया. अब उन्हें धर्म के पक्के उन जिद्दी हिन्दुओं के ऊपर ताल्लुकेदार बनाकर बिठा दिया गया, जिनके यहाँ कभी वे स्वयं चाकरी किया करते थे. उन्हें करों में ढेरों रियायतें मिलने लगीं, जजिये की तो चिंता ही शेष न रही.


तीसरी परिणति-


हज़ार वर्षों से भी अधिक चले हिंदू-मुस्लिम संघर्ष का यह सबसे अधिक मार्मिक और पीड़ाजनक अध्याय है.

यह तीसरे प्रकार की परिणति उन हिंदू क्षत्रियों की हुई, जिन्हें युद्ध में मारा नहीं गया, बल्कि कैद कर लिया गया. मुसलमानों ने उनसे इस्लाम कबूलवाने के लिए उन्हें घोर यातनाएँ दीं. चूँकि, अपने उदात्त जीवन में उन्होंने असत्य के आगे कभी झुकना नहीं सीखा था, इसलिए सब प्रकार के जुल्मों को सहकर भी उन्होंने इस्लाम नहीं कबूला. अपने सनातन हिंदू धर्म के प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें मुसलमान न बनने दिया और परिवारों का जीवन घोर संकट में था, अतः उनके लिए अकेले-अकेले मरकर मोक्ष पा जाना भी इतना सहज नहीं रह गया था.


ऐसी विकट परिस्थिति में मुसलमानों ने उन्हें जीवन दान देने के लिए उनके सामने एक घृणित प्रस्ताव रख दिया तथा इस प्रस्ताव के साथ एक शर्त भी रख दी गई. उन्हें कहा गया कि यदि वे जीना चाहते हैं, तो मुसलमानों के घरों से उनकी विष्टा (टट्टी) उठाने का काम करना पड़ेगा. उनके परिवारजनों का काम भी साफ़-सफाई करना और मैला उठाना ही होगा तथा उन्हें अपने जीवन-यापन के लिए सदा-सदा के लिए केवल यही एक काम करने कि अनुमति होगी.


१९ दिसम्बर १४२१ के लेख के अनुसार, जाफर मक्की नामक विद्वान का कहना है कि ''हिन्दुओं के इस्लाम ग्रहण करने के मुखय कारण थे, मृत्यु का भय, परिवार की गुलामी, आर्थिक लोभ (जैसे-मुसलमान होने पर पारितोषिक, पेंशन और युद्ध में मिली लूट में भाग), हिन्दू धर्म में घोर अन्ध विश्वास और अन्त में प्रभावी धर्म प्रचार।"


इस प्रकार, समय के कुचक्र के कारण अनेक स्थानों पर हजारों हिंदू वीरों को परिवार सहित जिन्दा रहने के लिए ऐसी घोर अपमानजनक शर्त स्वीकार करनी पड़ी. मुसलमानों ने पूरे हिंदू समाज पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति पर काम किया और उन्होंने वीर क्षत्रियों को ही अपना मुख्य निशाना बनाया. मुस्लिम आतंकवाद के पागल हाथी ने हिंदू धर्म के वीर योद्धाओं को परिवार सहित सब प्रकार से अपने पैरों तले रौंद डाला. सभी तरह की चल-अचल संपत्ति पहले ही छीनी जा चुकी थी. घर जला दिए गए थे. परिवार की क्षत्रिय महिलाओं और कन्याओं पर असुरों की गिद्ध-दृष्टि लगी ही रहती थी. फिर भी, अपने कर्म सिद्धांत पर दृढ़ विश्वास रखने वाले उन आस्थावान हिन्दुओं ने अपने परिवार और शेष हिंदू समुदाय के दूरगामी हितों को ध्यान में रखते हुए अपनी नियति को स्वीकार किया और पल-पल अपमान के घूँट पीते हुए अपने राम पर अटूट भरोसा रखा. उपासना स्थलों को पहले ही तोड़ दिया गया था, इसलिए उन्होंने अपने हृदय में ही राम-कृष्ण की प्रतिमाएँ स्थापित कर लीं. परस्पर अभिवादन के लिए वेद सम्मत 'नमस्ते' को तिलांजली दे डाली और 'राम-राम' बोलने का प्रचार शुरू कर दिया. समय निकला तो कभी आपस में बैठकर सत्संग भी कर लिया. छुप-छुप कर अपने सभी उत्सव मनाते रहे और सनातन धर्म की पताका को अपने हृदयाकाश में ही लहराते रहे. उनका सब कुछ खण्ड-खण्ड हो चुका था, परन्तु, उन्होंने धर्म के प्रति अपनी निष्ठा को लेशमात्र भी खंडित नहीं होने दिया. धर्म परिवर्तन न करने के दंड के रूप में मुसलमानों ने उन्हें परिवारसहित केवल मैला ढोने के एकमात्र काम की ही अनुमति दी थी, पीढ़ी-दर-पीढ़ी वही करते चले गए. कई पीढ़ियाँ बीत जाने पर अपने कर्म में ही ईश्वर का वास समझने वाले उन कर्मनिष्ठ हिन्दुओं के मनो में से नीच कर्म का अहसास करने वाली भावना ही खो गई. अब तो उन्हें अपने अपमान का भी बोध न रहा.


मुसलमानों की देखा-देखी हिन्दुओं को भी घर के भीतर ही शौच करने में अधिक सुविधा लगने लगी तथा अब वे मैला उठाने वाले लोग हिन्दुओं के घरों में से भी मैला उठाने लगे. इस प्रकार, किसी भले समय के राजे-रजवाड़े मुस्लिम आक्रमणों के कुचक्र में फंस जाने से अपने धर्म की रक्षा करने के कारण पूरे समाज के लिए ही मैला ढोने वाले अछूत और नीच बन गए.

उक्त शोधपरक लेख न तो किसी पंथ विशेष को अपमानित करने के लिए लिखा गया है और न ही दो पंथिक विचारधाराओं में तनाव खड़ा करने के लिए. केवल ऐतिहासिक भ्रांतियों को उजागर करने के लिए लिखे गये इस लेख में प्रमाण सहित घटनाओं की क्रमबद्धता प्रस्तुत की गयी है.

वर्ण और जाति में भारी अंतर है तथा यह लेख मूलतः छूआछूत के कलंक के उदगम को ढूँढने का एक प्रयास है.

मुसलमानों ने मैला ढोने वालों के प्रति अपने परम्परागत आचरण के कारण और उनके हिंदू होने पर उनके प्रति अपनी नफरत व्यक्त करने के कारण उन्हें अछूत माना तथा मुसलमान गोहत्या करते थे, इसलिए मुसलमानों से किसी भी रूप में संपर्क रखने वाले (भले ही उनका मैला ढोने वाले) लोगों को हिंदू समाज ने अछूत माना. इस प्रकार, दलित बन्धु दोनों ही समुदायों के बीच घृणा की चक्की में पिसते रहे.

इस लेख में कहीं भी हिंदू समाज को छूआछूत को बढ़ावा देने के आरोप से मुक्त नहीं किया गया है.

प्रमाण के रूप में कुछ गोत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जो समान रूप से क्षत्रियों में भी मिलते हैं और आज के अपने अनुसूचित बंधुओं में भी. genome के विद्वान् अपने परीक्षण से सहज ही यह प्रमाणित कर सकते हैं कि ये सब भाई एक ही वंशावली से जुड़े हुए हैं.

उदाहरण- चंदेल, चौहान, कटारिया, कश्यप, मालवण, नाहर, कुंगर, धालीवाल, माधवानी, मुदई, भाटी, सिसोदिया, दहिया, चोपड़ा, राठौर, सेंगर, टांक, तोमर आदि-आदि-आदि.


जरा सोचिये, हिंदू समाज पर इन कथित अछूत लोगों का कितना बड़ा ऋण है. यदि उस कठिन काल में ये लोग भी दूसरी परिणति वाले स्वार्थी हिन्दुओं कि तरह ही तब मुसलमान बन गए होते तो आज अपने देश की क्या स्थिति होती? और सोचिये, आज हिन्दुओं में जिस वर्ग को हम अनुसूचित जातियों के रूप में जानते हैं, उन आस्थावान हिन्दुओं की कितनी विशाल संख्या है, जो मुस्लिम दमन में से अपने राम को सुरक्षित निकालकर लाई है.


क्या अपने सनातन हिंदू धर्म की रक्षा में इनका पल-पल अपमानित होना कोई छोटा त्याग था? क्या इनका त्याग ऋषि दधिची के त्याग की श्रेणी में नहीं आता?

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि जब किसी एक हिंदू का मतान्तरण हो जाता है, तो न केवल एक हिंदू कम हो जाता है, बल्कि हिन्दुओं का एक शत्रु भी बढ़ जाता है

जेहाद के दो नए प्रकार : 'पत्थर जेहाद' व 'उदारवादी सेकुलर जेहाद'

जेहादी आतंकवाद के विरुद्ध भारत का अत्यंत प्राचीन काल से जो खूनी संघर्ष चला आ रहा है, उस श्रृंखला की अगली नयी कड़ी में आजकल हम जेहाद के दो और नए तौर-तरीकों से रूबरू हो रहे हैं, इनमें, पहले प्रकार के जेहाद का प्रणेता बना है- सैयद अली शाह गिलानी. इस गिलानी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए पीठ में भोंके जाने वाले अपने सब खंजर और नए गाज़िओं के उपयोग के लिए तैयार करवाई गई सभी तलवारें तो छुपाकर रख ली हैं, परन्तु उसने अपनी जेहादी फ़ौज के हाथों में पत्थर थमा दिए हैं. इस नए जेहाद का नाम है- 'पत्थर जेहाद'.

इसी वर्तमान युग में पनप रहे एक और नए प्रकार के जेहाद का नाम है- 'उदारवादी सेकुलर जेहाद'. जेहाद के अब तक के सभी ज्ञात रूपों में यह 'सेकुलर जेहाद' सबसे अधिक घिनौना और खतरनाक इसलिए है, क्योंकि यह पुराने जेहादियों के समान खुली चुनौती और तलवार के दम पर टिका हुआ न होकर इन नए जेहादी नेताओं के दोगलेपन पर आधारित है.

यह नया 'उदारवादी सेकुलर जेहाद' आजकल इस्लामिक राज्य और लोकतंत्र, व्यक्ति स्वातंत्र्य और मानवतावाद तथा संविधान और शरीयत के बीच में बुरी तरह से झोले खा रहा है. इस जेहाद के जो सूत्रधार हैं, वे नेता टाइप के कुछ ऐसे दोगले लोग हैं, जो राजनीतिक रूप से महत्त्वाकांक्षी तो बहुत हैं, परन्तु वास्तव में वे लोग किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठा सकते, क्योंकि वे लोग जन्मजात ही नाजायज़ रूप से सुविधाभोगी हैं.

संक्षेप में, इस नवोदित 'उदारवादी सेकुलर जेहाद' के साथ नए-नए प्रयोगधर्मा जेहादियों के नाम जुड़ रहे हैं तथा यह जेहाद अपने नेताओं की अवसरवादिता, उनकी निर्लज्जता, उनकी सिद्धांतहीनता, उनके विश्वासघात, उनकी नमक हरामी, हराम खोरी और पीठ में छुरा भोंकने की निपुणता व कला पर ही टिका हुआ है. कश्मीर में इस 'उदारवादी सेकुलर जेहाद' के प्रतिनिधि हैं- उमर अब्दुल्ला और रूबिया सईद (याद है न?) की बड़ी बहन महबूबा मुफ्ती.

भारतवर्ष इस्लाम के उद्भव के प्रारंभिक दिनों से अर्थात पिछले हज़ार वर्ष से भी अधिक समय से अपने ऊपर नए-नए प्रकार के जेहादी हमले झेलता आ रहा है. भारत की संतानों को इस बात पर अत्यधिक गर्व भी है कि विश्व भर में अपना भारत ही इकलौता ऐसा देश है, जिसने दुनिया में सबसे अधिक लम्बे समय तक इस्लामी जेहाद के क्रूर हमलों को झेला है. 'दारूल इस्लाम' वाले 'दीन के बन्दों' से लगातार संघर्ष करने के बाद भी अपने सनातन विश्वास से टस से मस न होने वाले हिन्दुओं ने इस्लाम को अपनाना तो दूर रहा, उलटे इसको तर्क की कसौटी पर पूर्णतया नकार दिया और इसके अपने ही सत्यशोधक सच्चे मुसलमानों को आत्मचिंतन करने और उदारवादी होने के लिए प्रेरित किया है.

विगत 1200 वर्षों तक लगातार अपना सर पटकने के बावजूद, अपनी साम-दाम-दंड-भेद वाली सभी नीतियाँ लागू करने के बावजूद भारत की शाश्वत सनातन मान्यताओं के आगे इस्लाम ने बार-बार अपने घुटने टेके हैं, वह बार-बार परास्त हुआ है

  • यह बड़े ही दुख और शर्म की बात है कि माँ दुर्गा और माँ सरस्वती का हमारा यह महान देश आज महिलाओं के लिए दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश बन चुका है, इससे पहले जो देश है वो है अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान. (15. 06. 2011 के अखबारो के अनुसार). यह भी बड़े दुख की बात है कि आज हम लोग यह भूल चुके है कि क्यों हमारे देश के लोगो ने अपनी बेटियों को मारना शुर किया और क्यों हमारा देश जो कभी वैदिक युग में दुनिया में सबसे आगे हुआ करता था वही देश आज बेईमानी, भ्रष्टाचार, अपराध और हिंसा में बहुत आगे है? इन सभी सवालों का जवाब य़ह है कि तुर्की, अफ़ग़ानिस्तान और इरान से आए क्रूर और हिंसक लोगो के 800 सालो के राज में हमारा देश में सब कुछ बदल गया. कोई भी देश बिना औरतो की आजादी के विकास नही कर सकता. वैदिक युग में हमारे देश में दरबार में राजा के साथ रानी भी बैठती थी, घूघँट नाम की कोई चीज नही थी और लोग देवियों की पूजा करते थे. लेकिन बाहर से आए ये लोग औरतो की आजादी के खिलाफ थे और औरतो को परदे से बाहर नही निकलने देते थे. हमारे देश में महिलाओं का इतना सम्मान देखकर ये लोग बहुत आग बबूला हुए और इन्होने बडे पैमाने पर महिलाओं का अपहरण और बलात्कार करना शुर कर दिया. मजबूर होकर हमारे देश के लोगो ने अपनी बेटियों को पैदा होते ही मारना शुर कर दि़या और महिलाओं को घूघँट में छिपाना शुर कर दिया. बिना महिलाओं की भागीदारी के हमारा देश बहुत पीछे रह गया और भ्रष्टाचार, अपराध और हिंसा में बहुत आगे निकल गया. यह बड़े ही दुख की बात है कि आज हम लोग ये सब बाते भूल चुके है.

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में फिल्मों में, संगीत में, राजनीति में मुस्लिम आदमी तो बहुत है लेकिन मुस्लिम औरते ना के बराबर? इसका कारण यह है कि बहुत से कटटर मुस्लिम आज भी पढ़े लिखे होने के बाद भी लड़कियों को बिलकुल आजादी नही देते और उनको चेहरा या बाल ढ़ककर रखने को कहते है लेकिन खुद ना तो दाढ़ी रखते है और ना ही टोपी और ऊँचा पाजामा पहनते है. इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि एक बिना चेहरा या बाल ढ़की हुई महिला लोगो की नजर में आकर्षण की वस्तु बन जाती है और यौन अपराध का शिकार बन जाती है. वैदिक युग में हमारे देश में घूघँट नाम की कोई चीज नही थी, दरबार में राजा के साथ रानी बैठती थी और लोग देवियों की पूजा करते थे लेकिन 800 सालो के मुगलो के राज में हमारा देश में सब कुछ बदल गया. यह बड़े ही दुख और शर्म की बात है कि आज हम लोग यह सब बाते भूल चुके है. फिल्मों पर पाकिस्तानी माफिया का कब्जा होने के कारण हिंदू लड़को को तो मौका नही मिल पाता लेकिन हिंदू लड़कियों को लगभग नंगा करके दिखाया जाता है जिससे समाज में अपराध बढ़ते है. वोट के भूखे हमारे देश के महान नेताओ ने कटटर मुस्लिमो को खुश करने के लिए अलग से कानून बना रखे है जिसके तहत एक मुस्लिम आदमी बिना अदालत गए तलाक ले सकता है और एक साथ कई शादियाँ कर सकता है. आज हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपना वोट उसी को देगें जो निम्नलिखित 5 कदम लेगा- 1 सभी लोगो के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम और एक से अधिक पतनी और दो से अधिक बच्चे होने के खिलाफ सख़्त कानून होना चाहिए. 2 चेहरा छिपाने पर प्रतिबंध होना चाहिए क्योंकि कोई भी देश महिलाओं को परदे के पीछे रखकर विकास नही कर सकता. उन मौलवियों के खिलाफ़ कङी कारवाई होनी चाहिए जो महिलाओं के खिलाफ फत़वा जारी करते है. 3 उन फिल्मों पर रोक लगाई जानी चाहिए जो पाकिस्तानी माफिया के दबाव में बन रही है और सेक्स, हिंसा और गंदी भाषा का इस्तेमाल कर रही है. 4 धारा 370 तुरंत हटनी चाहिए ताकि इस धर्मनिरपेक्ष देश में गैर मुस्लिम भी कश्मीर में रह सके. बॉर्डर की सुरक्षा बहुत सख़्त होनी चाहिए ताकि गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिम भारत ना आ सके. भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहाँ के नेता मुस्लिम वोट पाने के लिए हज्ञ पर करोडो रुपयों की सब्सिडी देते है. 5 सभी क्षेत्रो में विशेषकर परिवहन और पुलिस में अधिक से अधिक महिलाओं की भर्ती होनी चाहिए ताकि कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ सके और महिलाओं के प्रति अपराध में कमी आ सके.

इस पेज की फोटोकॉपी दूसरों को भी दे ताकि यह सोता हुआ देश जाग सके.


इसी विषय पर मैं तुलसीदास जी का नारियों के प्रति दृष्टिकोण का जिक्र भी कर ही देता हूँ ... श्रीरामचरितमानस से कुछ उदाहरण दे रहा हूँ। विद्वान मित्र स्वयं निर्णय करें -

१। बालकाण्ड में सती रामचन्द्र जी की परीक्षा लेने सीता का वेष लेकर जाती हैं। सती राम से कपट करती हैं जिसके वारे में गोस्वामी जी कहते हैः

"सती कीन्ह चह तहउँ दुराऊ। देखहु नारिसुभाउ प्रभाऊ।।"


तो नारी का सहज स्वभाव कपट का है। इसी प्रसंग में जब सती लौट कर शिव जी के पास आती हैं तो वे पूछते हैं कि कैसे परीक्षा ली। सती कहती है कि उन्होंने कोई परीक्षा नहीं ली। शिव जी ध्यान लगा कर जान लेते हैं कि सती ने क्या किया था। शिव जी अपने मन में प्रण करते हैं कि अब सती के इस शरीर से उनका कोई शारीरिक सम्पर्क नहीं होगा। आकाशवाणी के एनाउन्सर को इस प्रण का पता चल जाता है किन्तु सती तो महज़ एक स्त्री हैं, इसलिये उन्हें कुछ पता नहीं चलता। शिव जी पूछने से उत्तर नहीं देते तो गोस्वामी जी उनसे यह सोचवाते हैं:


"सती हृदय अनुमान किय सब जानेउ सर्वग्य।

कीन्ह कपटु मैं शम्भु सन नारि सहज जड़ अग्य।।"


वे स्वयं भी मानती हैं कि नारियाँ तो स्वाभाविक रूप से जड़ और अज्ञानी होती हैं।

२। अयोध्याकाण्ड में जब मन्थरा कैकेई को फुसला रही है, कैकेई पहले यूँ सोचती हैः


" काने, खोरे, कूबरे कुटिल कुचाली जानि।

तिय विसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुस्कानि।।"


(रामचन्द्रप्रसाद की टीकाः जो काने, लँगड़े और कुबड़े हैं, उन्हें कुटिल और कुचाली जानना चाहिए। फिर स्त्रियाँ उनसे भी अधिक कुटिल होती हैं और दासी तो सबसे अधिक। इतना कहकर भरत जी की माता मुसकरा दीं।)

३। रामचन्द्र जी के वन चले जाने पर पुरी के लोग कैकेई की ही नहीं, सारी नारियों की निन्दा करते हुए कहते हैं:


" सत्य कहहिं कवि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ।।

निज प्रतिबिम्बु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई।।"


(कवियों का कहना ठीक ही है कि स्त्री का स्वभाव सब तरह से अग्राह्य, अथाह और भेदभरा है। अपने प्रतिबिम्ब को कोई भले ही पकड़ ले किन्तु स्त्रियों की गति नहीम जानी जाती।)

४। अरण्यकाण्ड में अनसूया सीता को नारी धर्म की शिक्षा देते हुए कहती हैं:

" सहज अपावन नारि पति सेवत शुभ गति लहइ।"

(स्त्री तो सहज ही अपावन होती है...)

५। अरण्यकाणड में शूर्पणखा के प्रणयनिवेदन की भूमिका बाँधते हुए कागभुसुण्डि जी गरुड़ से कहते हैः


"भ्राता, पिता, पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी।।

होइ विकल सक मनहिं न रोकी। जिमि रविमनि द्रव रबिहि बिलोकी।।"


(हे गरुड़, स्त्री सुन्दर पुरुष को देखते ही, चाहे वह भाई, पिता, पुत्र ही क्यों न हो, विकल हो जाती हैं और अपने मन को रोक नहीं सकती हैं जैसे सूर्य को देखकर सूर्यमणि पिघल जाती है।)


लगता है वलात्कार के सारे केस औरतें ही करती होंगी।

६। किष्किंधाकाण्ड में सीतावियोग में प्रकृतिवर्णन करते हुए रामजी कहते हैं:


"महावृष्टि चलिफूटि किंयारी। जिमि सुतंत्र भए बिगरहिं नारी।।"


(महावृष्टि से क्यारियाँ फूट गई हैं और उनसे ऐसे पानी बह रहा है जैसे स्वतंत्रता मिलने से नारियाँ बिगड़ जाती हैं।)

७। लक्ष्मणशक्ति के मौके पर राम जी विलाप करते हुए कहते हैं:


"जस अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि विसेष दुख नाहीं।"


(मैं संसार मे यश अपयश ले लेता। स्त्री की क्षति कोई खास बात नहीं है।)

८। लंकाकाण्ड में रावण मन्दोदरी की सलाह ठुकराते हुए कहता हैः


"नारि सुभाव सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।

साहस, अनृत, चपलता माया। भय अविवेक, असौच अदाया।।"


(नारी के स्वभाव के बारे में कवि सत्य ही कहते हैं कि सदा ही उनके हृदय में आठ अवगुण रहते हैं: साहस, असत्य, चपलता, माया (छल कपट), भय, अविवेक, अपवित्रता, और निर्ममता।"


हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी कुछ ऐसे सम्बन्धों की भी चर्चा की जिसे भारतीय समाज में दबी जुबान से बात की जाती है। मेरे लिये कहना मुश्किल है कि वे नारी मन को अच्छा समझ पाये कि नहीं। यह तो वही व्यक्ति कह सकता है जो स्वयं इसमें पारंगत रहा हो - मैं नहीं। पर मैं बच्चन जी के नारी विश्लेषण से सहमत नहीं हूं। ऐसा क्यों है, मैं नहीं बता सकता हूं, मैं स्वयं न तो इसे समझ पा रहा हूं और नही इसे तर्क पर रख पा रहा हूं।

बच्चन जी कहते हैं कि तुलसी दास जी ने

'एक ओर तो उन्होंने सीता के रूप में आदर्श नारी की कल्पना की और दूसरी ओर, जहॉं भी मौका मिला नारी की निंदा करते रहे, प्राय: उसकी कामुकता की ओर संकेत करते हुए।'

इसका कारण वे इस तरह से बताते हैं।


'विवाह हो गया था, पर पत्नी उनकी अनुपस्थिति में, बिना उनकी अनुमति के मायके भाग गई थी। आधी रात को तुलसीदास को पत्नी की याद सताती है ... पहुँच जाते हैं [पत्नी] के कमरे में। ... कहा तो यह जाता है कि ... [पत्नी] ने कहा कि जैसी प्रीति आपको मेरे हाड़-मांस के शरीर से है वैसी प्रीति यदि आप रघुनाथ जी से करते तो आपका जन्म-जन्मांतर सुधर जाता ... क्षमा करेंगे, इस विषय में मेरी अलग ही कल्पना है। अधिक संभावना इसकी है कि उस रात तुलसीदास ने ... [अपनी पत्नी] को किसी और के साथ देखा। उस रात उनकी मोहनिद्रा नहीं टूटी। नारी के प्रति उनका मोह भंग हुआ—‘Frailty thy name is woman’ (नारी तेरा नाम छिन्नरपन)। '

हो सकता है कि वे ठीक हों, पर मालुम नहीं क्यों मुझे यह ठीक नहीं लगता - शायद मैं कम संवेदनशील हूं या फिर महिलाओं को नजदीक से कम परखा है।

, करुणा- दया- क्षमा- शक्ति- साधना- तपस्या- ममता- शिक्षा- विद्या- मेधा- ममता- सांत्वना आदि आदि सब के सब स्त्रीवाचक शब्द हैं.

, आपका कहना सही है.यह हमारे समाज की विडंबना ही कही जायेगी कि आज भी नारी को वो इज्जत प्राप्त नहीं है जो होनी चाहिए . आज भी पुरुष का उसको देखने का नजरिया दूसरा है . जब कि नारी क्या है ?


by Cosmic Consciousnes

Wednesday, March 28, 2012

हम सब आर्य हिन्दू हैं


जो लोग हिन्दुओं को लड़वाने के लिए यह मिथ्या प्रचार करते हैं कि हिन्दू धर्म में प्राचीन समय से छुआछूत है । उनकी जानकारी के लिए हम ये प्रमाण सहित स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि बेशक हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था शुरू से रही है जो कि किसी भी समाज को व्यवस्थित ढ़ंग से चलाने के लिए जरूरी होती है पर छुआछूत 1000 वर्ष के गुलामी के काल की देन है। खासकर मुसलिम जिहादियों के गुलामी काल की।

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वर्णव्यवस्था की उत्पति के लिए दो विचार स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आते हैं
एक विचार यह है कि सभी वर्ण शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण भगवान के अंगो से बने । पैर से शूद्र, जंघा से वैश्य, भुजाओं से क्षत्रिय व सिर से ब्राह्मण। अब आप सोचो कि भगवान का कौन सा अंग अछूत हो सकता है सिर ,पैर, जंघा या भुजांयें । कोई नहीं क्योंकि जिसे हम भगवान मानते हैं उसका हर अंग हमारे लिए भगवान ही है । वैसे भी हम बड़ों व साधु संतों के पैर ही पूजते हैं। अतः किसी भी हिन्दू, वर्ण, जाति को अछूत कहना भगवान को अछूत कहने के समान है और जो यह सब जानते हुए भगवान का अपमान करता है वह नरक का भागीदार बनता है। अतः यह हम सब हिन्दुओं का कर्तव्य बनता है कि हम सब हिन्दुओं तक ये सन्देश पहुँचांए और उसे नरक का भागीदार बनने से रोकें।

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दूसरा विचार यह है कि मनु जी के चार सन्तानें हुईं । जब बच्चे बड़े होने लगे तो मनु जी के मन में यह विचार आया कि सब कामों पर एक ही ताकतवर बच्चा कब्जा न कर ले इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों को काम बांट दिए ।सबसे बड़े को सबको शिक्षा का जिसे ब्राह्मण कहा गया। उससे छोटे को सबकी रक्षा का जिसे क्षत्रिय कहा गया। तीसरे को खेतीबाड़ी कर सबके लिए भोजन पैदा करने का जिसे वैश्य कहा गया। चौथे को सबकी सेवा करने का जिसे शूद्र कहा गया ।
अब आप ही फैसला करो कि जब चारों भाईयों का पिता एक, चारों का खून एक, फिर कौन शुद्ध और कौन अशुद्ध ,कौन छूत कौन अछूत ?

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यह एक परम सत्य है कि संसार में कोई भी काम छोटा या बडा , शुद्ध या अशुद्ध नहीं होता । फिर भी हम सेवा के काम पर चर्चा करते हैं और सेवा में भी उस काम की जिसे साफ-सफाई कहा जाता है अब जरा एक हिन्दू घर की ओर ध्यान दो और सोचो कि घर में सेवा का काम कौन करता है आपको ध्यान आया की नहीं ? हाँ बिल्कुल ठीक समझे आप हर घर में साफ-सफाई का काम माँ ही करती है और बच्चे का मल कौन उठाता है ? हाँ बिल्कुल ठीक समझे आप हर घर में माँ ही मल उठाती है । मल ही क्यों गोबर भी उठाती है और रोटी कौन बनाता है वो भी माँ ही बनाती है । उस मल उठाने वाली माँ के हाथों बनाई रोटी को खाता कौन है। हम सभी खाते हैं क्यों खाते हैं वो तो गंदी है-अछूत है ?

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क्या हुआ बुरा लगा न कि जो हमें जन्म देती है पाल पोस कर बढ़ा करती है भला वो शौच उठाने से गन्दी कैसे हो सकती है ? जिस तरह माँ साफ-सफाई करने से या शौच उठाने से गंदी या अछूत नहीं हो जाती पवित्र ही रहती है।

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ठीक इसी तरह मैला ढोने से या साफ-सफाई करने से कोई हिन्दू अपवित्र नहीं हो जाता । अगर ये सब कर मां अछूत हो जाती है तो उसके बच्चे भी अछूत ही पैदा होंगे फिर तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र सभी अछूत हैं और जब सभी अछूत हैं तो भी तो सभी भाई हैं भाईयों के बीच छुआछूत कैसी ?
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कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि कोई हिन्दू न छोटा है न बढ़ा सब हिन्दू एक समान हैं कोई अछूत नहीं इसीलिए कहा गया है कि-

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न हिन्दू पतितो भवेत
कोई हिन्दू पतित नहीं होता और जो हिन्दू दूसरे हिन्दू को पतित प्रचारित करता है वो हिन्दुओं का हितैषी नहीं विरोधी है और जो हिन्दुओं का विरोधी है वो हिन्दू कैसा ?

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हमें उन बेसमझों पर बढ़ा तरस आता है जो गाय हत्या व हिन्दुओं के कत्ल के दोषियों मुसलमानों व ईसाईयों (जो न हमारे देश के न खून के न हमारी सभ्यता और संस्कृति के) को अपना भाई बताते हैं और उन को जिनका देश अपना, संस्कृति अपनी और तो और जिनका खून भी अपना, को अछूत मानकर पाप के भागीदार बनते हैं ।

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उनकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हिन्दुओं के कातिलों आक्रमणकारी मुसलमानों व ईसाईयों को भाई कहना व अपने खून के भाईयों को अछूत अपने आप में ही इस बात का सबसे बढ़ा प्रमाण है कि ये छुआछूत इन मुसलमानों व ईसाईयों की गुलामी का ही परिणाम है क्योंकि अगर हिन्दूसमाज इस तरह के भेदभाव का समर्थक होता तो सबसे ज्यादा छुआछूत इन कातिलों से होती न कि अपने ही खून के भाईयों से ।

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इस गुलामी के काल में जिस तरह हर वर्ण के कुछ जयचन्द, जैसे सैकुलर स्वार्थी हिन्दुओं ने इन साम्राज्यवादी मुसलमानों व ईसाईयों के सामने घुटने टेक कर मजबूरी या लालच में अपनी मातृभूमि व खून के भाईयों के विरूद्ध कार्य किया ठीक उसी तरह अग्निबेश जैसे हिन्दुओं ने मातृभूमि व हिन्दुओं के विरूद्ध काम करते हुए समाज के अन्दर इन दुष्टों के दबाव या लालच में आकर अनेक भ्राँतियां फैलाई छुआछूत भी उन्हीं में से एक है।

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पर इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह ने हिन्दुओं को आपस में लड़वाने के लिए इतना जहर फैलाया है कि एक पोस्टर पर बाबा भीमराव अम्बेदकर जी का नाम न छापने पर आज एक हिन्दू दूसरे हिन्दू पर इतना तगड़ा प्रहार करता है कि एक दूसरे के खून के प्यासे सगे भाईयों को देखकर रूह काँप उठती है । ये लोग यह भूल जाते हैं कि बाबा जी सब हिन्दुओं के हैं किसी एक वर्ग के नहीं ।

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ये वही बाबा भीमराव अम्बेदकर जी हैं जिन्होंने अंग्रेज ईसाईयों के हिन्दुओं को दोफाड़ करने के सब षड्यन्त्रों को असफल कर दिया था। हम जानते हैं कि धर्मांतरण के दलालों द्वारा लगाई गई आग को सिर्फ एक दो प्रमाणों से नहीं बुझाया जा सकता क्योंकि इस हिन्दुविरोधी गिरोह का मकसद सारे हिन्दू समाज को इस आग में झुलसाकर राख कर देना है ।

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यही तो इस देशद्रोही गिरोह की योजना है कि हिन्दुओं के मतभेदों को इतना उछालो कि उनमें एक दूसरे के प्रति वैमनस्य का भाव इतना तीव्र हो कि वो राष्ट्रहित हिन्दूहित में भी एक साथ न आ सकें ।

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यह हम सब हिन्दुओं शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य का आज पहला कर्तव्य होना चाहिए कि गुलामी काल से पहले के हिन्दू एकता के प्रमाणों को संजोकर व वर्तमान में हिन्दूएकता के प्रमाणों को उजागर कर इस हिन्दुविरोधी षड़यन्त्र को असफल करें।
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जिहादियों व धर्मांतरण के दलालों द्वारा हिन्दुओं पर थोपे गये
इस युद्ध को निर्णायक युद्ध की तरह लड़कर अपनी ऋषियों-मुनियों मानव सभ्यता की भूमि भारत को इन पापियों से मुक्त करवाकर राम राज्य की स्थापना करें ।
अपने हिन्दूराष्ट्र भारत को विकास के पथ पर आगे बढ़ाकर गरीब से गरीब हिन्दू तक विकास का लाभ पहुँचायें व उसे शांति व निर्भीकता से जीने का अवसर प्रदान करें जो इन असुरों के रहते सम्भव नहीं। वैसे भी किसी ने क्या खूब कहा है-
मरना भला है उनका जो अपने लिए जिए।
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जीते हैं मर कर भी वो जो शहीद हो गए कौंम के लिए।।
जिस छुआछूत की बात आज कुछ बेसमझ करते हैं उसके अनुसार ब्राह्मण सबसे शुद्ध , क्षत्रिय थोड़ा कम, वैश्य उससे कम, शूद्र सबसे कम।
चलो थोड़ी देर के लिए यह मान लेते हैं कि यह व्यवस्था आदि काल से प्रचलित है। तो क्योंकि क्षत्रिय ब्राह्मण से अशुद्ध है तो फिर ब्राह्मण क्षत्रिय की पूजा नहीं कर सकते हैं पर सच्चाई इसके विपरीत है मर्यादा पुर्षोतम भगवान श्री राम क्षत्रिय हैं पर सारे ब्राह्मण अन्य वर्णों की तरह ही उन्हें भगवान मानते हैं उनकी पूजा करते हैं।
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भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण थे क्या ? जो सारे हिन्दू उनकी पूजा करते हैं। सब हिन्दू उनको भगवान मानते हैं उनकी पूजा करते हैं। ये सत्य है पर वो ब्राह्मण नहीं वैश्य वर्ण से सबन्ध रखते हैं फिर तो ब्राह्मण और क्षत्रिय उनसे शुद्ध हैं उनकी पूजा कैसे कर करते हैं ? ब्राह्मण और क्षत्रिय उनकी पूजा करते हैं ये सत्य है इसे देखा जा सकता है।
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अतः इस सारी चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वर्ण व्यवस्था एक सच्चाई है पर ये शुद्ध अशुद्ध वाली अवधारणा गलत है और आदिकाल से प्रचलित नहीं है ये गुलामी काल की देन है।
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अगर ये आदिकाल से प्रचलित होती तो मर्यादा पुर्षोतम भगवान श्री राम भीलनी को माँ कहकर न पुकारते न ही उनके जूठे बेर खाते । अतः जो भी हिन्दू इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा में विश्वास करता है वो अज्ञानी है बेसमझ है उसे सही ज्ञान देकर हिन्दू-एकता के इस सिद्धान्त को मानने के लिए प्रेरित करना हम सब जागरूक हिन्दुओं का ध्येय होना चाहिए और जो इस ध्येय से सहमत नहीं उसे राष्ट्रवादी होने का दावा नहीं करना चाहिए।
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अब जरा वर्तमान में अपने समाज में प्रचलित कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं । इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह के इतने तीव्र दुष्प्रचार व विभाजनकारी षड्यन्त्रों के बावजूद आज भी जब किसी हिन्दू के धर में शादी होती है तो सब वर्ण उसे मिलजुलकर पूरा करते हैं।
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आज भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र में से किसी के भी घर में शादी यज्ञ या अन्य कार्यक्रमों के दौरान भोजन जिस बर्तन में रखा जाता है या जिस बर्तन में भोजन किया जाता है उसे उस हिन्दू भाई द्वारा बनाया जाता है जिसे इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा के अनुसार कुछ शूद्र भी अशुद्ध मानते हैं।
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यहां तक कि अधिकतर घरों में आज भी रोटियां उसी के बनाए बर्तन में रखी जाती हैं दूल्हे की सबसे बड़ी पहचान मुकुट(सेहरा) तक शूद्र हिन्दू भाई द्वारा ही बान्धा जाता है और तो और बारात में सबसे आगे भी शूद्र ही चलते हैं यहां तक कि किसी बच्चे के दांत उल्टे आने पर शूद्र को ही विधिवत भाई बनाया जाता है ।
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अगर शूद्र को आदिकाल से ही अछूत माना जाता होता वो भी इतना अछूत कि उसकी परछांयी तक पड़ना अशुभ माना जाता होता तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सब शूद्र के बनाए बर्तन में न खाना खाते ,न शूद्र द्वारा मुकुट बांधा जाता,न बारात में शूद्र को सबसे आगे चलाया जाता और न ही शादियों में हिन्दू समाज का ये मिलाजुला स्बरूप दिखता जो इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा को पूरी तरह गलत सिद्ध करता है
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हां वर्तमान में जो हिन्दूएकता के सिद्धांत के विपरीत एक ही वर्ण में या विभिन्न वर्णों के बीच कुछ कुरीतियां दिखती हैं । उन्हें हिन्दूसमाज को यथाशीघ्र बिना कोई वक्त गवाए दूर करना है और हिन्दूएकता के इस सिद्धांत को हर घर हर जन तक पहुँचाना है। दिखाबे के लिए नहीं दिल से- मन से क्योंकि किसी भी हिन्दू को अशुद्ध कहना न केवल हिन्दुत्व की आत्मा के विरूद्ध है बल्कि भगवान का भी अपमान है ।
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काम बहुत आसान है अगर दिल से समझा जाए तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को सुपिरियोरिटी कम्पलैक्स(बड़प्पन) व शूद्र को इनफिरियोरिटी कम्पलैक्स(हीन भावना) का भाव दूर कर अपनी उत्पति को ध्यान में रख कर अपनी असलिएत को पहचाहना होगा याद रखना होगा कि हमारा खून एक है ।
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जिस तरह हमारी मां सेवा का काम कर अछूत नहीं हो सकती ठीक इसी तरह कोई शूद्र भाई भी अछूत नहीं हो सकता।
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हम सब हिन्दू एक हैं भाई-भाई हैं। एक-दूसरे का अपमान भगवान का अपमान है।
अब वक्त आ गया है कि सब हिन्दू इस हिन्दुविरोधी-देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सैकुलर गिरोह के भ्रामक दुष्प्रचार का शिकार होकर इन हिन्दूविरोधियों के हाथों तिल-तिल कर मरने के बजाए एकजुट होकर जंगे मैदान में कूदकर अपने आपको हिन्दूराष्ट्र भारत की रक्षा के लिए समर्पित कर दें ।
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वरना वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू अफगानिस्तान, बांगलादेश, पाकिस्तान की तरह वर्तमान हिन्दूराष्ट्र भारत से भी बेदखल कर दिए जांए जैसे कश्मीर घाटी से कर दिए गये और मरने व दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होंगे।

................................................................... जय महाकाल !!!
By Kuver Deepnayan Singh