शतरंज का आविष्कार भारत में ,
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दुनिया को दशमलव पद्धति,अंक पद्धति,आधारीय पद्धति का ज्यान हमने दिया..
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दुनिया को शून्य(आर्यभट्ट) को हमने दिया...
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बीजगणित(algebra),त्रिकोणमिति जिससे जिसको अँग्रेज ट्रिगोनोमेट्री(trigonometry) कहते हैं,कलन गणित जिसका अँग्रेजी में नामकरण हो गया केलकुलस(calculas)...ये सारी चीजें विश्व को भारतीयों की ही देन हैं....द्विघातीय समीकरण श्रीधराचार्य ने ११वीं सदी में ही दिया था..ग्रीक या रोम वाले सबसे बडी़ संख्या 10*6(ten to the power six) तक का ही उपयोग कर पाए थे और वर्त्तमान में भी10*12 तक का ही जिसे टेरा कहा जाता है जबकि हमलोगों ने 10*53 का उपयोग किया था,इसका भी विशेष नाम है.(पर वो विशेष नाम मुझे नहीं पता इसलिए नहीं लिखे)
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आज जिसे पाइथागोरस सिद्धांत का नाम दिया जाता है या ग्रीक गणितज्यों की देन कहा जाता है वो सारे भारत में बहुत पहले से उपयोग में लाए जा रहे थे....इसमेम कौन सी बडी़ बात है अगर ये कहा जाय कि उनलोगों ने यहाँ से नकल कर अपनी वाहवाही लूट ली...
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पाई का मान सबसे पहले बुद्धायन ने दिया था पाइथागोरस से कई सौ साल पहले..
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अपनी कक्षा में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने की अवधि हमारे गणितज्य भष्कराचार्य ने हजारों साल पहले ही दे दिया था जो अभी से ज्यादा शुद्ध है........365.258756484 दिन
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विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ था ७००ईसा पूर्व जिसमें पूरे विश्व के छात्र पढ़ने आया करते थे तभी तो इसका नाम विश्वविद्यालय पडा़...(इसी विश्वविद्यालय को अँग्रेजी में अनुवाद करके यूनिवर्सिटी नामकरण कर लिया अँग्रेजों ने..)इसमें ६० विषयों की पढा़ई होती थी..इसके बाद फ़िर ३००साल बाद यानि ४०० ईसा पूर्व नालंदा में एक विश्वविद्यालय खुला था जो शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयों की महान उपलबद्धि थी.. {*{एक मुख्य बात और कि हमारे महान भारतीय परम्परा के अनुसार चिकित्सा और शिक्षा जैसी मूलभूत चीजें मुफ़्त दी जाती थी इसलिए इन विश्वविद्यालयों में भी सारी सुविधाएँ मुफ़्त ही थी,,रहने खाने सब चीज की...इसमें प्रतिस्पर्द्धा के द्वारा बच्चों को चुना जाता था..इस विश्वविद्यालय की महानता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहाँ पढ़ने को इच्छुक अनगिनत छात्रों को दरबान से शास्त्रार्थ करके ही वापस लौट जाना पड़ता था..आप सोच सकते हैं कि जिसके दरबान इतने विद्वान हुआ करते थे उसके शिक्षक कितने विद्वान होते होंगे...यहाँ के पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थी कि जब फ़िरंगियों नेर इसमें आग लगा दी तो सालों साल तक ये जलता ही रहा..
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सभी यूरोपीय भाषाओं की जननी संस्कृत है.और १९८७ ई० में फ़ोब्स पत्रिका ने ये दावा किया था कि कमप्युटर लैंग्वेज की सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत है....
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मनुष्यों द्वारा ज्यात जानकारी में औषधियों का सबसे प्राचीन ग्रंथ आयुर्वेद जिसे चरक जी ने २५००ई०पूर्व संग्रहित किया था.उन्हें चिकित्सा-शास्त्र का पिता भी कहा जाता है..{*{पर हमारे धर्मग्रंथ के अनुसार तो आयुर्वेद हजारों करोडो़ साल पहले धन्वन्तरि जी लेकर आए थे समुंद्र-मंथन के समय}*}
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शल्य चिकित्सा{[अभी इसी शल्य का नाम सर्जरी(surgery) हो गया है अँग्रेजी में]} का पिता शुश्रुत को कहा जाता है..२६०० साल पहले ये और इसके सहयोगी स्वास्थ्य वैज्यानिक जटिल से जटिल ऑपरेशन किया करते थे जैसे-सिजेरियन(ऑपरेशन द्वारा प्रसव),,कैटेरेक्ट(आँखों का आपरेशन),क्रित्रिम पैर,टूटी हड्डी जोड़ना,मूत्राशय का पत्थर..इन सबके अलावे मस्तिष्क की जटिल शल्य क्रिया तथा प्लास्टिक सर्जरी भी.......१२५ से ज्यादा प्रकार के साधनों का उपयोग करते थे अपने शल्य-क्रिया के लिए वे..इसके अलावे भी उन्हें इन सब चीजों की भी गहरी जानकारी थी..--anatomy(जंतुओं और पादपों की संरचना का ज्यान),,physiology(प्राणियों के शरीर में होने वाली सभी क्रियाओं का विज्यान),etiology(रोग के कारण का विज्यान),embryology(भ्रूण-विग्यान),metabolism,पाचन,जनन,प्रतिरक्षण आदि आदि...सीधे-सीधी कहूँ तो चिकित्सा सम्बंधी शायद ही ऐसा कोई ज्यान हो जो भारतीयों को ज्यात ना होगा..ये उतना विकसित था जितना अभी भी नहीं है...हमलोगों की एक कथा के अनुसार तो च्यवन ऋषि जडी़-बूटी का सेवन करके वृद्ध से युवक बन गए थे जिसके नाम पर अभी भी च्यवन-प्राश बाजार में बेचा जा रहा है...
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पाँच हजार साल पहले जब अन्य देशों में लोग जंगली बने हुए थे उस समय हमारे यहाँ सिंधु घाटी और हड़प्पा की संस्कृति काफ़ी उन्नत अवस्था में थी..(हलांकि प्रमाण भले ही ५००० साल पहले तक का उपलब्ध हो पर हमारी सभ्यता-संस्कृति इससे भी पुरानी है)
६००० साल पहले सिंधु नदी के किनारे नेविगेशन(समुंद्री यातायात या परिवहन) का विकास हो चुका था..उस समय सारे विश्व को विशाल बरगद वृक्ष के लकडी़ का नाव बनाकर भारत ही दिया करता था....ये शब्द नेविगेशन संस्कृत के नवगातिह से बना है..नौसेना जिसका अँग्रेजी शब्द नेवी(navy) है वो भी हमारे संस्कृत शब्द nau (नौ) से बना है..
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सबसे पहला नदी पर बाँध सौराष्ट्र में बना था...इससे पहले के इतिहास का साक्ष्य भले ना हो पर ये सब कला इससे भी काफ़ी पुरानी है..अज भले ही भारत की प्राचीन उपलब्धियों को गिनाना पड़ रहा है क्योंकि काफ़ी लम्बे सालों के प्रयास से दुश्मनों ने इसे लगभग विलुप्त कर दिया गया है नहीं तो इसे गिनाने की जरुरत नहीं पड़ती फ़िर भी अभी भी ये संभव नहीं है कि कोई हमारी उपलब्धियों को १०-१५ वाक्य लिखकर गिना दे..ये तो अनगिनत हैं....... बाकी अगले पोस्ट मै
........................जय महाकाल !!!
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