करोणों वर्ष पहले जब किसी को पता नहीं था कोई शोध नहीं तब से यह सनातन धर्म मनुष्य को मानवता की शिक्षा दे रहा है पहले खेती नहीं होती थी लोग जंगलो में रहना गुरुकुलो में शिक्षा ग्रहण करना अध्यात्मिक जीवन व्यतीत करना श्रृष्टि को परमेष्टि से जोड़ना यही साधना थी, फल- फूल खाते थे विकाश की प्रक्रिया इस सनातन धर्म में प्रारंभ से ही बनी हुई है ऐसा नहीं कि जो मै कहू या मेरी किताब में लिखा है वही सही, यहाँ तो शोध और चिंतन के आधार पर मानव जीवन का विकाश यह लक्ष्य हमेशा बना रहा, हजारो संतो ने वेदों का अध्ययन कर वेदांत, उपनिषद और फिर पुराणो का भी काल आया, इस भारत माता ने कभी भगवन श्री राम तो कभी श्री कृष्ण जैसे महापुरुषों को जन्म देकर इस धर्म की प्रतिष्ठा को बढाया, यही धरती है जिसपर महाराजा पृथु पैदा हुए जिन्होंने जनता को खेती करने की प्रेरणा दी, कोई महाराजा जनक आये होगे जिन्होंने खेती को प्रमुखता दी इसलिए हमारे कहा गया ''उत्तम खेती मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी भूख निदान'' .
भारत में ऋषियों -मुनियों की परंपरा थी जिन्होंने शोध किया क्या खाना -क्या नहीं खाना क्या पहनना के नहीं पहनना ? आज भी हमारा जीवन- भारतीय जीवन -वैज्ञानिक जीवन बना हुआ है प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा जरुर मिलेगा जो हमारे जीवन में तमाम रोगों के काम में आती है कोई भी हिन्दू पीपल के बृक्ष को नहीं काट सकता ये हमें रातो-दिन प्राणु वायु देता है हमने औषधियों को सुरक्षित करने का प्रयत्न किया प्रकृति की पूजा की इस नाते हम प्राकृतिक पूजक भी कहलाते है यही हमारी धीरे-धीरे सनातन परंपरा- सनातन धर्म कहलाता है जिससे हमारी जीवन धारा चलती है जो मनुष्य को मनुष्यता सिखाती है जियो और जीने दो, मेरा ग्रन्थ सही है तो किसी दुसरे का भी ठीक,यदि हमारे महापुरुष ठीक है तो दुसरे की निंदा नहीं करना, हमारे पूजा स्थल है तो दुसरे को नहीं तोडना .
समय बदलता गया विश्व में बहुत सारे महापुरुष आये बिभिन्न स्थानों के होना के नाते उन्होंने अपने हिसाब से दुनिया को परिभाषित करने का प्रयास किया और उन्होंने कहना शुरू किया कि मेरी ही बात ठीक है शेष सबकी बात गलत है, मेरा ही पूजा स्थल पवित्र है इसलिए दुसरे की जरुरत नहीं, मेरी ही पूजा पद्धति ठीक है इसलिए इसी को मनो नहीं तो जीने का अधिकार नहीं,मेरा ही ग्रन्थ जन्नत प्रदान करता है इस नाते और किसी ग्रन्थ की आवस्यकता नहीं, कारन सारे विश्व में हिंसा, तनाव, बर्चस्व की लडाई शुरू हो गयी धर्म के नाम पर इस्लाम मतावलंबियो ने करोणों की हत्या ही नहीं अमानुषिक ब्यवहार किया,लाखो मंदिरों को तोडा, दुनिया का इतिहास और भूगोल बदलने का प्रयास किया दूसरी तरफ इशाई मतावलंबियो ने भी यही काम किया इन्होने तो १५० करोण लोगो की हत्या की दोनों ने एक ही काम किया जिससे ये आज अप्रसांगिक हो गए है, लेकिन हिन्दू धर्म नित्य -नूतन और बैज्ञानिक अवधारना को मानने वाला है, प्रकृति के साथ चलने वाला किसी के साथ घृणा का भाव नहीं.
हमारी संस्कृति का विकाश धीरे- धीरे गंगा, यमुना और सरस्वती तथा नर्मदा के तटों द्वारा हुआ यहाँ कबीलों का नहीं तो गावो और नगरो का विकाश परिवार का अद्भुत विकाश जिसमे स्नेह प्रेम हमारी परंपरा बनी, हमारे ऋषियों ने वेदों को आधार बना जीवन रचना की जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था हमने लाखो- करोणों वर्ष की यात्रा में मानवता का उत्कृष्ट उदहारण विश्व के सामने रखा है, हमारे पुर्बजो ने तीर्थो में जैसे द्वादस ज्योतिर्लिंग ५२ शक्ति पीठ चार धाम और कुम्भो की ब्यवस्था की जिससे हमारे समाज में चिंतन व विचार की प्रक्रिया चलती रहे यही सनातन धर्म की विशेषता है.
यही है हिंदुत्व, यही है सनातन धर्म, यही है भारतीयता, और यही है मानवता जिससे सारी दुनिया सुखी संपन्न रहकर इस युग में भी सृष्टि को परमेष्टि से जोड़ साकता है, आइये हम सभी मिलकर भूले बिसरे लोगो को पुनः हिन्दू धर्म में सामिलकर उन्हें मोक्ष का भागी बनावे-जिसका पुण्य हमें भी मिलेगा क्यों की वह गाय का हत्यारा नहीं होगा, वह मूर्ति को तोड़ने वाला नहीं होगा, वह पाकिस्तान जिंदाबाद नहीं करेगा, वह भारत माता की जय बोलेगा, वह भारतीय पहाड़ो, नदियों, तीर्थ स्थलों के प्रति श्रद्धा रखेगा और अंत में वह देश भक्त ही होगा आखिर इसका पुण्य तो हमें ही मिलेगा आईये सोचे, समझे और बिचार करे .
साभार : कुंवर दीप्नयन सिंह
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