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Wednesday, March 20, 2013

क़ुतुब मीनार का सच .....






क़ुतुब मीनार का सच .....
असली नाम: विष्णु स्तंभ, ध्रुव स्तंभ
निर्माता: विराहमिहिर

विराहमिहिर के मार्गदर्शन में बना, 

सम्राट चंद्रगुप्त के शाशन काल के दौरान

असली आयु: २५०० साल से अधिक पुराना.

1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली परआक्रमण किया ,तराइन के मैदान मेंपृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजितहुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमणमें पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन,गौरी का सेनापति था. 1206 में गौरी ने  कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई तब  वह गद्दी पर बैठा ,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए.1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े सेगिरकर उसकी मौत हो गयी. अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार , कुवैतुल इस्लाम मस्जिद औरअजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई.

अब कुछ प्रश्न .......अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ? क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और1210 में भी मरनेके पहले भी वह लाहौर में था ? कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसकेऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी. यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी केनाम पर"गौरी मीनार", या ऐसा ही कुछ होता न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार. उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई, अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुबमीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्वनिर्धारित होता है ? कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने केलिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक आभी सकती है ? सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है,मेहरौली वराहमिहिर के नाम परबसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , और खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों केअध्ययन के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था.इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी केसाथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बादभी कहीं कहीं दिख जाती हैं. कुछ संस्कृत भाषा केअंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं. मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है ,अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता,इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर "ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे. वह भी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है.इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे, इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख,जिसमे लिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है जो सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौहस्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा.उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट, खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए. ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौहस्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ  बना होगा? निश्चय ही आसपास अन्य निर्माणहुए होंगे, जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशाल स्तम्भ विष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाएगए, निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए. इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्यकल में खगोल शाष्त्री वराहमिहिरको जाता है. कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातु लइस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज(स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया...


साभार : 
सुदेश शर्मा भारतीय (Notes), फेसबुक 

12 comments:

  1. सटीक -
    सर्वथा सच-
    आभार भाई-

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  2. इस पर एक लेख मैंने पहले भी पढ़ा था ,लेकिन पता नहीं क्यों ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दबी रह जाती हैं!

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  3. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.

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  4. ye hai hamare bharatvarsh ka sahi itihas jise samapt kiya gaya aur kiya ja raha hai kya hum isko prasarit karne ke liye kuch nahi kar sakte

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  5. ये बताइये की यदि ये इमारत हिन्दु राजाओ द्वारा बनवाइ गयी थी तो इस पर उर्दु के शब्दो मे इबारत क्यो लिखी है

    मै भी हिन्दु हुं पर सच्चाई क्या है यह जानना जरूरी है

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    1. @गोपाल सिंह जी समझिये ---कुतुब मीनार जिस लाल पत्‍थर से बनी है और जिस से आयतें लिखी है उन के रंग में भी भेद है। जो सपाट लाल पत्‍थर लगा है। वो एक दम लाली लिए है। और जिस से आयतें लिखी गई है वो बदरंग लाल है। और उन आयतें को उस के उपर लगया गया है जिससे वो मीनार बहार की तरफ उभरी है। अगर एक साथ लगया गया होता उसके संग मिला कर लगाया जाता। और आप बिना किसी विचार ओर धारण के केवल कुतुब को देखे तो वो आयतें उस की खूबसूरती को बदरंग कर रही है।

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  6. कुतुब मीनार जिस लाल पत्‍थर से बनी है और जिस से आयतें लिखी है उन के रंग में भी भेद है। जो सपाट लाल पत्‍थर लगा है। वो एक दम लाली लिए है। और जिस से आयतें लिखी गई है वो बदरंग लाल है। और उन आयतें को उस के उपर लगया गया है जिससे वो मीनार बहार की तरफ उभरी है। अगर एक साथ लगया गया होता उसके संग मिला कर लगाया जाता। और आप बिना किसी विचार ओर धारण के केवल कुतुब को देखे तो वो आयतें उस की खूबसूरती को बदरंग कर रही है। चिकना धरातल मन को शांत और गहरे उतरनें लग जाता हे। मीनार ध्‍यान के लिए बनी थी। अलग-अलग चक्र पर पहुंचे साधक अलग-अलग मंजिल पर बैठ कर ध्‍यान करते होगें। क्‍योंकि जिन लोग न ध्‍यान करने के लिए कुतुब मीनार को बनवाया होगा वह इस रहस्‍य को जरूर जानते होगें। वो ये भी जरूर जानते थे पृथ्‍वी के गुरुत्वाकर्षण हमारी उर्जा को अपनी और खींचता है। इसी लिए उचे पहाड़ों पर जा कर लोग मंदिर बनाते है। आप जितना गुरूत्व केन्द्र से उपर जाओगे पृथ्‍वी को खिचाव कम होने लग जात है। कुतुब की लाट अध्‍यात्‍म की चरम अवस्‍था पर पहुँचे साधकों की आने वाली पीढी को महानतम देन है।

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  7. कुतुब मीनार की आज पाँच मंज़िले है उन की ऊँचाई 72.5 मीटर है,और सीढ़ियां 379 है। कुतुब मीनार की सात मंज़िले थी। यानि उस की उँचाई पूरी 100 मीटर, मानव शरीर के अनुपान के रे सो की तरह उसकी मंज़िलों का विभाजन किया गया था। मानव शरीर को सात चक्रों में विभाजित किया गया है। उसी अनुपात को यानि मानव ढांचे को सामने रख कर उस की सात मंज़िले बनवाई गई थी। पहले तीन चक्र अध्‍यात्‍मिक जगत के कम और संसारी जगत के अधिक होते है। इस लिए मानव उन्‍हीं में जीता है और लगभग उन्‍हीं में बार-बार मर जाता है। मूलाधार, स्वादिष्ठता, मणिपूर ये तीन चक्र इसके बाद अनाहत, विशुद्ध दो अध्यात्म का रहस्‍य और आंदन है। फिर आज्ञा चक्र ओर सहस्त्र सार अति है। इस लिए सात हिन्दूओ की बड़ी बेबुझीसी रहस्‍य मय पहली है। सात रंग है। सात सुर है। प्रत्‍येक सुर एक-एक चक्र की धवनि को इंगित करता है। जैसे सा…मूलाधार रे….स्वादिष्ठता….इसी तरह रंग भी सा के लिए काला……रे के लिए कबूतरी……। हिन्दू शादी जैसे अनुष्‍ठान के समय वर बधू के फेरे भी सात ही लगवाते है।

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  8. कुतुब मीनार एक अध्‍यात्‍मिक केंद्र था। जिसे बुद्धो ने इसे विकसित किया था। इस का लोह स्तंभ भी गुप्त काल से भी प्रचीन है। इस शिलालेख भी मिले है। शायद चंद्र गुप्‍त के काल से भी प्राचीन। आज भी वहाँ भग्नावशेष अवस्‍था में कला के बेजोड़ नमूनों के अवशेष देखे जा सकते है। जो कला की दृष्टि में अजन्‍ता कोणार्क और खजुराहो से कम नहीं आँकें जा सकते उन स्तम्भों में उन आकृतियों के चेहरे को बडी बेदर्दी से तोड़ा दिए गये है। खूब सुरत खंबों में घंटियों की नक्‍काशी जो किसी मुसलिम को कभी नहीं भाती एक चित्र में गाय अपने बछड़े को दुध पीला रही है। शिव पर्वती, नटराज, भगवान बुद्ध और अनेक खजुराहो की ही तरह भगना वेश अवस्‍था में। आँजता या खजुराहो की मूर्तियां तो मिटटी से ढक दी गई थी वहां किसी मुस्‍लिम शासक की पहुच नहीं हुई अाजंता के तो उस स्‍थान को दर्शनीय बना दिया जहां से एक अंग्रेज आफिसर ने पहली बार खड़े होकर उन गुफाओं को देखा था।

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  9. ydi is minar se jude sabi tathya hindutav ki or sanket karte hai ,to fir "indian archology department"k anusar ye roochak jankari duniya ko btai kyu hi jati...

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  10. ydi is minar se jude sabi tathya hindutav ki or sanket karte hai ,to fir "indian archology department"k anusar ye roochak jankari duniya ko btai kyu hi jati...

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