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Monday, May 27, 2013

हिन्दुस्तान का आइना - INDIA'S MIRROR



दोस्तों ये लेख आपके सभी प्रशनो के का जवान देगा और जान पाएंगे असल में हिन्दुस्तान हैं क्या ...? शुरुवात की दस लाइनों से ही ये लेख आपको बाध्य कर देगा इसे पूर्ण पढने पर l
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तो आओ शुरू करते हैं कैसे हिन्दुस्तानियों पर जुल्म हुए और ये नेहरु और गांधी ने क्या कुकर्म किये l
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“पुरे विश्व  को अँधेरी गुफा से निकालकर सूर्य की रश्मि में भिगोने वाले, जो चरों पैरों पर घुडकना सिख रहे थे उन्हें ऊँगली पकड़कर चलना सिखाने वाले हम भारतियों को आज अपने भारतीय होने पर शर्म महसूस होता हैं, हिन् भावना से ग्रसित होकर जीवन जी रहे हैं हमसब.......
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तभी तो हम भारतीय अपना तर्कसंगत नया साल को छोड़कर अंग्रेजो का नया साल मानते हैं जिसका कोई आधार ही नहीं हैं.,



हम पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन, दान-पुण्य कर घी के दिए को जलाकर अपना जन्म-दिवस मानाने की परंपरा को छोड़कर अंडे से बने गंदे केक पर थूककर बेहूदा और गन्दी परंपरा को बड़े गर्व के साथ निभा रहे हैं,



अपनी स्वास्थ्यकर चीजों को छोड़कर रोगों को बुलावा देने वाले चीजो को खाना अपना शान समझते हैं,
अपनी मातृभाषा में बात करने में हम अपने आप को अपमानित महसूस करते हैं और उस भाषा को बोलने में गर्व महसूस करते हैं जिसके विद्वानों को खुद उस भाषा के बारे में पता नहीं, खुद उसे अपनी सभ्यता-संस्कृति के इतिहास की कोई जानकारी नहीं और जो हमारे यहाँ के किसी बच्चे से भी कम बुद्धि रखता हैं ........
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अगर विश्वास नहीं होता तो किसी इसी से पूछकर देखिये तो की उनके आराधना-स्थल का नाम चर्च क्यों पड़ा.......? क्रिसमस का अर्थ क्या हैं ....? और क्रिसमस को एक्समस (X-mas) क्यों कहा जाता हैं..... ? हम लोगो के तो संस्कृत या हिंदी के प्रत्येक शब्द का अर्थ हैं क्योंकि सब संस्कृत के मूल धातु से उत्पन्न हुआ हैं

........... क्रिसमस को अगर ईसा के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता हैं तो फिर क्रिसमस में तो जन्मदिन जैसा कोई अर्थ नहीं है और उनके जन्म को लेकर ईसाई विद्वानों में ही मतभेद हैं....और उनके जन्म को 4 ईसा पूर्व बताते हैं तो कोई कुछ..........................................................



और ठीक हैं अगर मान लीजिये कि 25 दिसंबर को ही ईसा का जन्म हुआ था तो अपना नया साल एक सप्ताह बाद क्यों ...?



आपको तो नया साल का शुरुआत उसी दिन से करना चाहिए था …. ! कोई जवाब नहीं हैं उनके पास लेकिन हमारे पास हैं .... और जिन शब्दों का अर्थ उन्हें नहीं मालुम वो हमें हैं वो इसलिए कि लहरें नदी के जितना विशाल नहीं हो सकती

........ एक और प्रशन कि वो लोग अपना अगला दिन और तिथि रात के 12 बजे उठकर क्यों बदलते हैं जबकि दिन तो सूर्योदय के बाद होता हैं..............

तनिक विचार कीजिये कि अंग्रेजी में सेप्ट (Sept) 7 के लिए प्रयुक्त होता हैं Oct आठ के लिए Deci दस के लिए तो फिर September, October, November & December क्रमश:
नौवा, दसवां, ग्यारहवा और बारहवां महिना कैसे हो गया ........??

सितम्बर को तो सातवाँ महिना होना चाहिए फिर वो नॉवा महीना क्यों और कैसे ........? कभी सोचा आपने ........!!

इसका कारण ये हैं कि 1752 ई0 तक इंग्लैण्ड में मार्च ही पहला महीना हुआ करता था और उसी गणित से 7वां महीना सितम्बर और दसवां महीना दिसंबर था

लेकिन १७५२ के बाद जब शुरूआती महीना जनवरी को बनाया गया तब से साड़ी व्यवस्थाये बिगड़ी...तो अब समझे कि क्रिसमस को (X-mas) क्यों कहते हैं .... ! "x जो रोमन लिपि में दस का संकेत हैं और "mas" यानी मॉस, यानी दसवां महीना........ उस समय दिसंबर दसवां महीना था जिस कारण इसका X-mas नाम पड़ा.........


 और मार्च पहला महीना इसलिए होता था क्योंकि भारतीय लोग इसी महीने में अपना नववर्ष मानते थे और अभी भी मानते हैं ....


तो सोचिये कि हम लोग बसंत जैसे खुशाल समय जिसमे पैड-पौधे, फुल पत्ते साड़ी प्रकृति एक नए रंग में रंग जाती हैं और अपना नववर्ष मानती हैं उसे छोड़कर जनवरी जैसे ठन्डे, दुखदायी और पतझड़ के मौसम में अपना नयासाल मानकर हम लोग कितने बेवकूफ बनते हैं .....



सितम्बर यानी सप्त अम्बर यानी आकश का सातवां भाग...... भारतियों ने आकाश को बारह भागों में बाँट रखा था जिसका सातवा, आठवां, नौवां और दसवां भाग के आधार पर ये चरों नाम हैं...... तो अब समझे कि इन चार महीनो का नाम सेप्टेम्बर, अक्तूबर, नवम्बर और दिसंबर क्यों हैं.....l

संस्कृत में ७ को सप्त कहा जाता हैं तो अंग्रेजी में सेप्ट, अष्ट को ओक्ट, दस को डेसी.......अंग्रेज लोग "त" का उच्चारण "ट" और "द" का "ड" करते हैं इसलिए सप्त सेप्ट और दस डेश बन गया ..... तो इतनी समानता क्यों.....?? आप समझ चुके होंगे कि मैं किस और इशारा कर रहा हूँ .......! अगर अभी भी अस्पष्ट हैं तो चिंता कि बात नहीं आगे स्पष्ट हो जाएगा .........



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चलिए पहले हम बात कर रहे थे अपने हीन भावना कि तो इसी की बात कर लेते हैं
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........ हमारे देशवासियों की अगर ऐसी मानसिकता बन गयी हैं तो इसमें उनका भी कोई दोष नहीं हैं ....
भारतियों को रुग्न मानसिकता वाले और हीन भावना से भरने का चाल तो १७३१ से ही चला जा रहा हैं जबसे यहाँ अंग्रेजी शिक्षा लागू हुई............



अंग्रेजी शिक्षा का मुख्य उद्द्येश्य ही यहीं था कि भारतियों को पराधीन मानसिकता वाला बना दिया जाए ताकि वो हमेशा अंग्रेजों के तलवे चाटते रहे...



यहाँ के लोगो का के नारियों का नैतिक पतन हो जाए, भारतीय कभी अपने पूर्वजों पर गर्व ना कर सके,
वो बस यहीं समझते रहे कि अंग्रेजो के आने से पहले वो बिलकुल असभ्य था उसके पूर्वज अन्धविश्वासी और रुढ़िवादी थे, अगर अंग्रेज ना आये होते तो हम कभी तरक्की नहीं कर पाते...



इसी तर्ज पर उन्होंने शिक्षा-व्यवस्था लागू कि थी और सफल हो भी गए .............. और ये हमारा दुर्भाग्य ही हैं आज़ादी के बाद भी हमारा देश का नेत्रित्व किसी योग्य भारतीय के हाँथ में जाने के बजे नेहरु जैसे विकृत, बिलकुल दुर्बल इर रोगी मानसिकता वाले व्यक्ति के हाँथ में चला गया जो सिर्फ नाम से भारतीय था

पर मनन और कर्म से तो वो बिलकुल अंग्रेज( मुल्ला ) ही था.... बल्कि उनसे चार कदम आगे ही था........
ऐसा व्यक्ति था जो सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, वीर सावरकर और बाल गंगाधर तिलक जैसे हमारे देश भक्तों से नफरत करता था क्योंकि उसकी नजरों में वो लोग मजहबी थे ...



उसकी नजर में राष्ट्रवादी होना मजहबी होना था. वो समझता था कि भारतीय बहुत खुशनसीब हैं जो उनके ऊपर गोरे शासन कर रहे हैं, क्योंकि इससे असभ्य भारतीय सभ्य बनेंगे.........



उसकी ऐसी मानसिकता का कारण ये था कि उसने भारतीय शिक्षा कभी ली ही नहीं थी l अपनी पूरी शिक्षा उसने विदेश से प्राप्त की थी जिसका ये परिणाम निकला था....



चरित्र ऐसा की बुढ़ारी में इश्कबाजी करना नहीं छोड़े जब उनकी कमर छुक गयी थी और छड़ी के सहारे चलते थे........



भारत के अंतिम वायसराय की पत्नी एडविन माउन्टबेटेन के साथ उनकी रंगरेलियां जग-जाहिर हैं जिसका विस्तृत वर्णन एडविन की बेटी पामेला ने अपनी पुस्तक "India remembered" में किया हैं .....



पामेला के पास नेहरु द्वारा उसकी माँ को बक्सा भर-भरकर लिखे गए लव-लेटर्स भी हैं ...



वो तो भला हो हमारे लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल का जिसके कारण आज कश्मीर भारत में हैं नहीं तो पंडित जी ने तो इसे अपने प्यार पर कुर्बान कर ही दिया था .......



और उस लौह पुरुष को भी महात्मा कहे जाने वाले गाँधी ने इतना अपमानित किया था कि बेचारे के आँखों से आंसू चालक पड़े थे ..



सच्ची बात तो ये थी कि कश्मीर भारत में रहे या पाकिस्तान में इससे इन दोनों (नेहरु,गांधी) को कोई फर्क नहीं पड़ता था .......



लोग समझते हैं कि अंग्रेजो ने 1947 में भारत को आजाज़ कर दिया था पर सच्चाई ये नहीं हैं.. सच्चाई यह हैं कि उसने नेहरु के रूप में अपना नुमायिन्दा यहाँ छोड़ दिया था....



वो जानता था कि उसका नुमाईन्दा उससे भी ज्यादा निपुणता से भारत देश को बर्बाद करने काम करेगा.....
और सच में उसका नुमाईन्दा उसकी आशा से ज्यादा ही खरा उतरा ......



नेहरु (सीधी-सीधी कहूँ तो पुरे कांग्रेसियों का) का ही ये प्रभाव हैं कि आज तक मानसिक रूप से आज़ाद नहीं हो पाए अंग्रेजों से हमारी स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी हैं कि अमृत भी मिल जाए तो पहले अंग्रेजों से पूछने जायेंगे कि इसे पिए कि नहीं.........



अगर कोई विषैला पदार्थ भी मिल गया तो पहले हम अंग्रेजों से ही पूछेंगे कि इसे त्यागना चाहिए या पि लेना चाहिए...........



और जिस अंग्रेजों ने आजतक हमलोगों से नफरत कि कभी हमलोगों कि तरक्की सह नहीं पाए, क्या लगता हैं कि वो हमें हमारे भले कि सलहा देंगे .....?


सधन्यवाद : लेखक : रावल किशोर 

2 comments:

  1. aapka bahut bahut dhanyavad praveen ji..... Des ko jagane ka bahut safal pryas hain aapka.... Dhanyavad

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