आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम आपको कनिष्क, आर्यन, वेद आदि मिलेंगे।
पठान पख्तून होते हैं। पठान को पहले पक्ता कहा जाता था। ऋग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन 'पक्त्याकय' नाम से मिलता है। इसी तरह तीसरे खंड का 91वें श्लोक आफरीदी कबीले का जिक्र 'आपर्यतय' के नाम से करता है।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान को छोड़कर भारत के इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती। कहना चाहिए की वह 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। अफगान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है।
17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासन-काल (1747-1773) में ही हुआ। इसके पूर्व अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था जिसमें गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु आदि क्षेत्र थे।
यहां हिन्दूकुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। ईसा के 700 साल पूर्व तक यह स्थान आर्यों का था। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है।
अफगानिस्तान की सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला का नाम ‘आर्याना' था और हवाई कंपनी भी ‘आर्याना' के नाम से जानी जाती थी। इस्लाम के पहले अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था।
पारसी मत के प्रवर्तक जरथ्रुष्ट द्वारा रचित ग्रंथ ‘जिंदावेस्ता' में इस भूखंड को ऐरीन-वीजो या आर्यानुम्र वीजो कहा गया है। आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम आपको कनिष्क, आर्यन, वेद आदि मिलेंगे।
उत्तरी अफगानिस्तान का बल्ख प्रांत दुनिया की कुछ बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासतों को सहेजे हुए है। इसके कुछ प्राचीन शहरों को दुनिया के सभी शहरों का जनक कहा जाता है। ये बल्ख के तराई इलाकों की समतल भूमि है जिसके प्राचीन व्यापारिक मार्ग ने खानाबदोशों, योद्धाओं, साहसी लोगों और धर्म प्रचारकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन लोगों ने अपने पीछे यहां ऐसे रहस्यों को छोड़ा जिन्हें पुरातत्वविदों ने खोजना शुरू ही किया है।
साभार: फेसबुक
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