चुनाव चुनाव चुनाव......बार बार चुनाव...
इस हमारे प्यारे देश में शायद ही कोई सा वर्ष ऐसा जाता होगा जब चुनाव ना होते हो. किसी ना किसी राज्य में आचार संहिता लगी रहती हैं. सरकारे, अफसर शाही, पार्टिया, नेता लोग, मिडिया इसी में लगा रहता हैं. कभी कही लोकसभा, राज्यसभा, कही विधान सभा, विधान परिषद् , नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत जिला पंचायत के चुनाव चलते रहते हैं. ऐसा लगता हैं हमारा देश चुनावो का देश बन के रह गया हैं. इसके कारण से देश में विकास कार्य ठप्प पड़े रहते हैं. फ़ालतू का पैसा खर्चा होता हैं. मोदी जी ने तो एक चुनाव एक देश की परिकल्पना प्रस्तुत की थी, लेकिन हमारे विपक्ष के लोगो ने स्वार्थ वश इस परिकल्पना को नकार दिया. इसमें विपक्ष के अपने स्वार्थ हैं. उनके द्वारा इससे देश में लोगो को जाति पाति, सम्प्रदाय में बांटने में आसानी होती हैं. इस तुच्छ सोच से बचना होगा. पुरे देश में राष्ट्रपति, लोकसभा, विधानसभा के चुनाव एक साथ पांच वर्ष में होने चाहिए. यदि किसी विधायक या सांसद की मृत्यु हो जाए तो उसके स्थान पर दुसरे स्थान पर रहे व्यक्ति को निर्वाचित घोषित करना चाहिए. लोक सभा व विधान सभा ५ वर्ष के लिए निर्वाचित घोषित होनी चाहिए. उससे पहले किसी भी स्थान पर चुनाव ना हो. इसी तरह से नगरपालिका, निगम, व पंचायतो के चुनाव होने चाहिए. इस तरह से देश के पैसे के बचत भी होगी और सरकारी अधिकारी व नेता लोग देस के विकास में ध्यान देंगे. वन्देमातरम, धन्यवाद, राष्ट्रवादी प्रवीण गुप्ता
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