‘मुसलमानोंने अपना धर्म संजोया; परंतु हिंदुओंने अपने ही हाथोंसे साधना बतानेवाली अपनी चैतन्यमय संस्कृति धूलमें मिला दी । इस कारण अब उनका विनाश अटल है, यह सूचित करनेवाला प.पू. डॉक्टरजीका लेख !
प.पू. डॉक्टरजीके लेख, ‘मुसलमान माता-पिताओंको ......’ पर ‘एक विद्वान’का भाष्य
डॉ. आठवले : ‘मुसलमान माता-पिताओंको बेटीके जिहादी बननेपर आनंद होता है । इसकी तुलनामें हिंदु माता-पिता बेटीद्वारा साधनामार्ग अपनाए जानेपर आक्रोशमें आकाश-पाताल एक कर देते हैं !’ (फाल्गुन शु. ३, कलियुग वर्ष ५११२ (८.३.२०११))
डॉ. आठवले : ‘मुसलमान माता-पिताओंको बेटीके जिहादी बननेपर आनंद होता है । इसकी तुलनामें हिंदु माता-पिता बेटीद्वारा साधनामार्ग अपनाए जानेपर आक्रोशमें आकाश-पाताल एक कर देते हैं !’ (फाल्गुन शु. ३, कलियुग वर्ष ५११२ (८.३.२०११))
‘एक विद्वान’का भाष्य
१. हिंदुओंके लिए धर्मशिक्षा न उपलब्ध होनेसे देश रसातलमें पहुंच गया है । किंतु, मुसलमानोंने जिहादको मनसे संजोया ! : धर्मशिक्षाके अभावमें हिंदुओंके नीतिमूल्योंमें आमूल परिवर्तन हुआ और देश रसातलतक पहुंच गया । परंतु, मुसलमानोंने अपना धर्माभिमान संजोकर आनेवाली पीढीको गंभीरतासे धर्मशिक्षा दी । इस कारण, गत अनेक वर्षोंसे उनकी पीढी-दर-पीढी जिहादी बन रही है ।
२. मातृभाषाका सम्मान करनेकी सीख दी जानेसे उनके बालक जन्मसे ही धर्ममूल्योंका आचरण करते हैं ।
३. हिंदुओंद्वारा आधुनिकता अपनाई जानेके कारण उन्हें चैतन्य प्राप्त नहीं होता एवं उनकी आगामी पीढीपर अनैतिकताका दुष्परिणाम होता है ।
३ अ. पूर्वकालीन सुसंस्कारको त्यागकर आधुनिकताके प्रवाहमें बहनेवाले हिंदुओंका अपयशके मार्गपर चल पडते हैं ।
३ आ. २१ वीं शताब्दीकी दिशामें बढता हुआ प्रत्येक अभिभावक अपने बालकको विदेश जाते हुए देखना चाहता है । उसी प्रकार बेटीसे भी अभिभावकोंकी अनेक अपेक्षाएं होती हैं । वह आजके युगमें किसी भी क्षेत्रमें पीछे न रहे । इसलिए कुछ अभिभावक अपनी बेटियोंपर पश्चिमी प्रथाएं लाद रहे हैं । इसलिए बेटी शीलवान एवं चारित्र्यवान बननेकी अपेक्षा अत्यंत निम्न स्तरकी उच्छृंखल वर्तन करनेवाली गणिका समान बन रही है । ऐसी अधोगतिके मार्गपर चलनेके कारण मनुष्य जहां मानवता भूल चुका है, वहां धर्मनियमोंका पालन करना तो कोसों दूर रहा!
३ इ. परिवारका प्राण, अर्थात् स्त्री ही भ्रष्ट हो जानेके कारण भारतका भविष्य अंधःकारमय होना
३ ई. ऐसे तमोगुणी विश्वमें सर्वत्र असुरोंका प्रभाव बढ जानेके कारण वे अब पातालसे बडी शक्ति लेकर धर्मसूर्यको निगलनेका प्रयास कर रहे हैं । प्रत्येक व्यक्तिद्वारा साधना करने तथा राष्ट्र एवं धर्मके कार्यमें स्वयंको समर्पित करनेपर ही देश बच सकता है ।
४. आपत्कालमें रज-तमका वेगसे बढता आलेख एवं अनेक जिहादी भारतपर आक्रमण करने हेतु कटिबद्ध होते हुए भी भारतके हिंदु भोगवादमें एवं धनार्जन कर उसे लुटानेमें मग्न हैं ।
५. हिंदुओंको जहां शवोंका श्राद्ध करनेके लिए अवकाश नहीं है, वहां बालकोंको धर्मशिक्षा देना तो अत्यंत दूरकी बात है । मुसलमान लोग अपनी आयका कुछ अंश धर्मके लिए नित्य अर्पित करते हैं । कितने हिंदु अपने धर्मके लिए त्याग करते हैं ?
६. हिंदुओंद्वारा धर्माभिमान अपनाना, एक स्वप्नदृश्य बन जानेके कारण, अब हिंदुओंका विनाश निश्चित है ।
७. हिंदुओंको नमस्कार करनेमें भी जहां लज्जा आती है, वहां उनसे धर्मप्रसार करनेकी क्या अपेक्षा करेंगे ?
निष्कर्ष
कलियुगमें धर्माभिमानके अभावके कारण ही हिंदुओंका विनाश होनेवाला है । अपने पूर्वजोंद्वारा सिखाए प्रत्येक धर्माचरणपर हमने ही अपने रज-तमात्मक विचारोंसे आघात किया है और उनकेद्वारा संजोए गए चैतन्यमय जीवनमूल्योंको मिटा दिया है । दिनोंदिन संपूर्ण पीढी हिंदु धर्मको कलंकित करनेमें ही अपनेको धन्य मान रही है । गत अनेक पीढियोंसे हिंदुओंद्वारा ही हो रहे हिंदुद्रोहके कारण, संचित रज-तम अब हिंदुओंको ही निगलनेके लिए उनके सामने मुंह खोले किसी असुरके समान खडा है । अतः हिंदुओ, अब तो जागृत होकर साधना करो, यह प.पू. डॉक्टरजीने अप्रत्यक्ष रूपसे इस लेखद्वारा बतानेका प्रयास किया है ।
(श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, चैत्र शु. २, कलियुग वर्ष ५११३ (५.४.२०११), दोपहर ३.१५)
COURTESY : SANATAN PRABHAT
aapne bilkul sahi likha h
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