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Saturday, October 6, 2012

शब्दकोश में 'हिन्दू' शब्द के बदलते अर्थ

अक्षर अमर है। स्वर अमर है। व्यंजन अमर है। हर शब्द का कोई एक चित्र होता है, जो बोलते ही चित्रित हो जाता है। उसका प्रतिबिम्ब हमारे सम्मुख आ जाता है। प्रत्येक शब्द का कोई अर्थ होता है। प्रत्येक अर्थ का कोई भाव होता है। भाव से बनती है दृष्टि और उससे उत्पन्न होती है मानसिक सृष्टि। काल, गति तथा स्थान से शब्दों के अर्थ बदलते रहे हैं। अर्थ के अनर्थ भी होते रहे हैं। कभी-कभी तो वे बिल्कुल विपरीत अर्थों में भी प्रयुक्त होते हैं। गांधी जी ने लिखा, 'सबसे बड़ी बात यह है कि शब्द मारता है पर उसका निहितार्थ तारता है।' (हरिजन-5 दिसम्बर, 1926) गुरु नानक देव 'शब्द' को पवित्र मानते हैं। नि:शब्द रहस्यमयी होता है। परिस्थितिवश शब्द का सैद्धान्तिक विश्लेषण बदलता रहा है। व्यवहार तथा व्याख्या में भी एकरूपता नहीं होती। समय-समय पर शब्दों के अर्थ बदलते रहे हैं।

ब्रिटिश इतिहासकारों का षड्यंत्र

भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में यदि कुछ विश्वकोशों तथा शब्दकोशों की ओर ध्यान दें तो शब्दकार की तत्कालीन परिस्थितियों, राजनीतिक परिवेश, धार्मिक चिंतन तथा सामाजिक सोच की सहज में ही अनुभूति होती है। भारत में अपने लगभग दो सौ वर्षों (1760-1947) के साम्राज्यवादी तथा औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने अपने स्वार्थों के अनुकूल अनेक अवधारणाओं को शब्दोकोशों के माध्यम से रूढ़िगत बना दिया। उदाहरण: यदि 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका' में भारतीयों, विशेषकर हिन्दुओं के प्रति धारणाओं का विवेचन करें तो प्रारम्भ से अन्त तक इसमें अनेक परिवर्तन तथा संशोधन दिखाई देंगे। ये हिन्दुओं के प्रति क्रमश: बढ़ती हुई कठोरता, रूढ़िवादिता को दर्शाते हैं। विशेषत: 1813 ई. के भारत के 'चार्टर एक्ट' के संदर्भ में ब्रिटिश संसद की पांच दिन लम्बी कार्यवाहियों ने इसे पूर्णत: बदल दिया। इसमें हिन्दू  चरित्र, हिन्दू धर्म एवं हिन्दू संस्कृति तथा जीवन पद्धति पर प्रतिशोधात्मक ढंग से ईसाई पादरियों तथा उनके नेता व संसद सदस्य विलियम विल्बरफोर्स द्वारा योजनापूर्वक तरीके से तीखे प्रहार किए गए। इसमें विलियम विल्बरफोर्स ने केवल स्वयं ही नहीं बल्कि अपने से पूर्व के भारत स्थित ब्रिटिश प्रशासकों तथा ईसाई पादरियों के हिन्दुओं के प्रति घृणास्पद विचारों को उद्धृत किया। उसके इन्हीं निम्न तथा घटिया, तुच्छ तथा झूठे विचारों को बाद में इंग्लैंण्ड के प्रसिद्ध एवं प्रथम ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहाकार जेम्स मिल ने अपने लेखन तथा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया' में प्रकट किया। बाद में इन्हीं विचारों को मैकाले तथा एलफिन्सटन के ग्रंथों में प्रमुखता से स्थान दिया गया। यही सोच भारत में आने वाले प्राय: सभी ब्रिटिश प्रशासकों की मार्गदर्शिका बनी तथा वे हिन्दुओं के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहे। इस क्रमिक सोच का विकास 1813 ई. से पूर्व तथा बाद के 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका' के तब से वर्तमान तक के विभिन्न संस्करणों के अवलोकन से सहजता से देखा जा सकता है।

शब्दों के बदलते अर्थ

इसी भांति यदि 'आक्सफोर्ड' शब्दकोश के विभिन्न संस्करणों को ध्यान तो शब्दों के बदलते हुए अर्थों को सहज ही समझा जा सकता है। इसमें सामान्यत: हिन्दू शब्द का अर्थ एक व्यक्ति से लिया गया है, जिसका रिलीजन 'हिन्दूइज्म' है। वस्तुत: यह हिन्दू की अति संकीर्ण तथा सीमित परिभाषा है। इसे एक उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है- संस्कृत सीखने के लिए प्रसिद्ध जिज्ञासु जॉन विलियम्स से लेकर अन्य ब्रिटिश प्राच्यवादियों की रचनाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन्होंने संस्कृत शब्द के मनमाने अर्थ निकाले। वे संस्कृत भाषा की प्राचीनता पर भी अलग-अलग शब्दोंकोशों में अलग-अलग शब्दावली प्रयुक्त करते रहे। संस्कृत को क्रमश: विश्व की प्राचीनतम भाषा, विश्व की एक पुरानी भाषा, भारत की प्राचीनतम भाषा, इण्डो-आर्यन भाषा, इण्डो-यूरोपियन भाषा आदि अनेक ढंग से वर्णित किया गया है। इतना ही नहीं, अंग्रेज शब्दकारों ने ब्रिटिश साम्राज्यवादी तथा अहंकारयुक्त वाणी से हिन्दू समाज में हीनता की भावना पैदा करने के लिए अनेक नए  शब्दों को गढ़ा। एक अंग्रेजी शब्दकोश में 'हिन्दू' का अर्थ हिन्दुस्थान की एक 'जनजाति' बतलाया। (देखें-ए डिक्शनरी ऑफ ऐवरी डे डिफिक्लटीज, लन्दन) दूसरे, शब्दकोश में हिन्दुस्थान को एक 'नेटिव' बताया (पीयर्स इन्साइक्लोपीडिया, लन्दन-1926) एक तीसरे शब्दकोश में हिन्दू को 'हिन्दुस्थान का 'नेटिव' बतलाते हुए इसका प्रयोग -जो ब्राह्मणवाद में विश्वास रखते हों तथा मुसलमानों के विरोधी हों' बतालाया गया है। सामान्यत: अंग्रेजों ने एशियाई देशों के लिए, विशेषकर हिन्दुओं के लिए 'नेटिव' शब्द की रचना की, जो आज भी या कभी भी किसी यूरोपियन समाज या व्यक्तियों के लिए प्रयोग में नहीं आती है। इसका अर्थ है 'जानवरों की भांति'। अर्थात मनुष्यों को भी एक लेन-देन की वस्तु के रूप में माना गया है। सम्भवत: इसीलिए शराब में धुत रहने वाले भारत के गर्वनर जनरल कार्नवालिस ने प्रत्येक भारतीय को भ्रष्ट तथा हीन समझते हुए 'नेटिव ऐक्सक्लूशन एक्ट' पारित कर भारत की नागरिक सेवाओं का यूरोपीयकरण किया था तथा भारतीयों को सेना के पदों से वंचित कर दिया था।

अमरीकियों-रूसियों की भी बेढंगी चाल

ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने न केवल हिन्दुओं को हीन बतलाया बल्कि यहां के पेड़ पौधों, पशु-पक्षियों को भी घटिया स्तर का बतलाया। आक्सफोर्ड शब्दकोश में भारतीय हाथी को बाकी प्रजातियों से अलग तथा छोटा बतलाया है। मैकाले को भारत के पेड़-पौधों से भी बदबू आती थी। यहां तक कि वह भारत की मछली को भी प्रथम अथवा दूसरी श्रेणी की नहीं बल्कि पांचवें स्तर की मानता था (देखें थामस पिन्नै द्वारा सम्पादित 'द लैटर्स आफ टी.बी. मैकाले, भाग तीन, कैम्ब्रिज, 1976) ये सभी कथन ब्रटिश साम्राज्यवाद की क्षुद्र मानसिकता को प्रकट करते हैं। ब्रिटिश विश्वकोशों की भांति अमरीका के भी शब्दकोश तत्कालीन परिस्थितियों तथा मानसिकता के परिचायक हैं। उदाहरणत: अमरीका के विश्वविख्यात नूह वैबस्टर ने 1825 में अपना शब्दकोश तैयार किया। इसमें 70,000 शब्द हैं जो उसके 25 वर्षों के कठोर परिश्रम की व्यक्तिगत कृति है। 19वीं शताब्दी के मध्य में अमरीका में वेबस्टर का नाम ही वहां के शब्दकोश का पर्यायवाची बन गया था। अमरीका के ब्रिटेन से संघर्ष के दौरान वेबस्टर एक आशावादी क्रांतिकारी, पक्का राष्ट्रवादी तथा उदारवादी चिंतक था। वह यह मानता था कि भाषा का जन्म एशिया में हुआ जो बाद में बाहर गई। (हेरी आ वरफैल, द लैटर्स ऑफ नूह वेबस्टर, न्यूयार्क, 1953) उसने भाषा तथा राष्ट्र में गहरा सम्बन्ध बताया। वह शब्दों को एक सामाजिक नियंत्रण के रूप में लेता था। उसके शब्दकोश में अंग्रेजी शब्दकोशों से अनेक भिन्न अर्थ दिए गए हैं। उसका शब्दकोश संघर्ष, स्वतंत्रता तथा समानता की भावना का उद्बोधक है। परन्तु हिन्दू के बारे में उसने भी ब्रिटिश आक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुरूप ही अर्थ लिया है, अर्थात् 'एक व्यक्ति जिसका हिन्दूइज्म धर्म है।'
1917 की रूसी क्रांति ने न केवल अपने देश के इतिहास के तोड़-मरोड़ा बल्कि चिंतन तथा सोच के लिए भी आदेशात्मक दिशा दी। शब्द के अर्थ बदले और अब चिंतन का आधार मार्क्स हो गया। दूसरे देशों के इतिहास लेखन में वही दृष्टि थोपने का प्रयत्न किया गया। उदाहरणत: यदि 'न्यू ग्रेट सोवियत इन्साइक्लोपीडिया' (मास्को, 1970) का अध्ययन करें तो प्राचीन हिन्दू सभ्यता मोहनजोदड़ो एवं हडप्पा का वर्णन करते समय पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त दो टीलों में से एक, जो काफी ऊंचा था, को अमीरों, समृद्धशाली का निवास स्थल तथा नीचे वाले टीले को गरीबों का बताया गया। प्राचीन हिन्दू इतिहास को भी मार्क्स की भौतिकवादी व्याख्या के अन्तर्गत बांधने की कोशिश की। इसे भी वर्ग संघर्ष तथा आर्थिक तत्व की सर्वोच्चता से पूरित किया। फारसी के शब्दोकोश 'गया सुल्लगात' में हिन्दू शब्द का अर्थ काला, चोर, काफिर, बदमाश, बटमार, मस्सा तथा छछुन्दर लिखा है। वस्तुत: यह उनके ओछेपन तथा मानिसक दिवालियेपन को दर्शाता है। उर्दू कोश 'करीमुल्लुगात' में फारसी कोष की ही नकल की गई है।
संस्कृत, हिन्दी तथा भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दकोश समान्यत: उसकी सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिक दृष्टि, धर्म तथा संस्कृति का बोध कराते हैं। उदाहरण के रूप में यदि हिन्दू की परिभाषा को लें तो 'बृहद् हिन्दी विश्वकोश' (सम्पादक-कालिका प्रसाद सहाय, बनारस) में 'प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष वेदों के आधार पर बने आचार-विचार, रीति-नीति, समाज व्यवस्था, धर्म आदि में किसी ना किसी रूप में विश्वास करने और उन पर चलने वाले भारतीय को हिन्दू कहा जाता है।' 'पंजाबी विश्वकोश' (प्रथम संस्करण 1895) में 'हिन्दू को भारत का रहने वाला या ब्राह्मण धर्म का मानने वाला व्यक्ति' माना है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि 'शब्द' किसी भी राष्ट्र की मनोच्छा, मानसिकता, महत्वाकांक्षा, अभिव्यक्ति तथा व्यवहार का द्योतक है। उसकी रचना में उसकी सफलताओं, यशस्वी गाथाओं तथा राष्ट्रीय एकता का भी ज्ञान होता है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ब्रिटिश शब्दकोश अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति तथा महत्वाकांक्षाओं, संयुक्त अमरीका का शब्दकोश स्वतंत्रता, संघर्ष तथा व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का, रूस का शब्दकोश अधिनायकवाद तथा मार्क्स के सिद्धांतों का तथा भारत के विभिन्न शब्दकोश इसकी संस्कृति तथा परम्पराओं को उजागर करते हैं। अत: भारतीय पाठकों, विशेषकर इतिहास के विद्वानों के लिए यह नितांत आवश्यक है कि विभिन्न शब्दकोशों का उपयोग करते समय बड़ी सतर्कता तथा सजगता रखें, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

साभार : लेखक, डा. सतीश चंद्र मित्तल, पांचजन्य 

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