आदित्य चोपड़ा
लडख़ड़ाते लोकतांत्रिक और बिगड़ते राजनीतिक हालात के बीच देश में एक तो पहले ही नेतृत्व नाम की कोई चीज दिखाई नहीं देती और बची-खुची कसर हमारी लचर व भेदभावपूर्ण नीतियों ने पूरी कर दी है। कहीं जंतर-मंतर और इंडिया गेट पर इंसाफ की मांग को लेकर यूथ का सैलाब तो कभी पाकिस्तानी फौज के शर्मनाक कृत्य को देखकर लगता है कि हमारे यहां पीएम के होते हुए भी राजनीतिक नेतृत्व कहीं नहीं है। इससे भी बढ़कर चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में मुस्लिम कट्टïरता की जहरीली बेल फैलती जा रही है। अकबरुद्दीन ओवैसी नामक एक मुस्लिम विधायक ने हैदराबाद में हजारों की एक उन्मादी भीड़ के समक्ष जहर उगलते हुए नफरत भरा जो भाषण दिया, उसे कोई सुन ले तो रौंगटे खड़े हो जाएं। देश की हिन्दू शक्ति के खिलाफ इस शख्स ने इतनी बेशर्मी से नफरत भरी जुबां से जो बकवास की उसके खिलाफ हमारी सरकार के पुलिस व प्रशासनिक अमले ने बहुत लम्बा वक्त बीत जाने के बाद भी जो दिखावे की कार्रवाई की, वह भी राजनीति पर आधारित थी। मुसलमानों की भीड़ के सामने हिन्दुओं के बारे में जहर भरा भाषण देकर यह शख्स लंदन इलाज के बहाने चला गया तथा वापसी पर पुलिस ने उसे राजनीति का मोहरा बनाकर महज गिरफ्तार कर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। अब ओवैसी गिरफ्तारी के बाद जेल में 'महफूज' है। कल वह इत्मीनान से बाहर आ जाएगा क्योंकि उसके खिलाफ लगी धाराएं सरल व जमानती हैं। जिस व्यक्ति ने देश की अखंडता व अस्मिता के खिलाफ जहर घोला हो उसके खिलाफ कम से कम राष्ट्र द्रोह का केस दर्ज करना चाहिए था, ताकि पूरे देश के बाकी वे मुस्लिम जो आतंकियों से रिश्ते रखते हों, को भी सबक मिल जाता। जब गृहमंत्री शिंदे कानून तोडऩे वालों का साथ दे रहे हों तो देश की सुरक्षा में लगे राष्ट्र भक्त परिवारों की रक्षा कौन करेगा? देश में पहले ही मुस्लिम कट्टरता ने आतंकियों से हाथ मिलाकर हमारी सहिष्णुता छीन रखी है और अब भड़काऊ भाषण अगर खादी की ओट में दिए जाने लगें और खाकी अपना फर्ज निभाने में देरी करे तो परिणाम बहुत भयावह निकलेंगे। राजनेताओं को खबरदार हो जाना चाहिए।
हमें तो लगता है कि इंसाफ न मिलना, इसके लिए प्रयास भी न किया जाना और जुर्म पर कभी भी समय पर कार्रवाई न होने से अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं। देश में आतंक पनपने और इंसाफ न होने से अब मुस्लिम कट्टरपन की जो नागफनी शो-पीस बनाकर रखी गई है, यह पूरी सीरत बिगाड़ कर रख देगी क्योंकि इसकी सूरत ही ठीक नहीं है। राजनीति के फ्रेम से इसे हटाना होगा। सवाल पैदा होता है क्या देश में हिन्दू होना गुनाह है?
इस कड़ी में देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सारी हदें पार कर दी हैं। उन्होंने जयपुर में, जहां आला कांग्रेसी नेता युवराज राहुल गांधी को 'बड़े पद की जिम्मेदारी' सौंपने के लिए चमचागिरी के नए रिकार्ड बना रहे थे, अपने संबोधन के दौरान कहा कि आरएसएस और भाजपा हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि ये दोनों संगठन आरएसएस के प्रशिक्षण शिविरों में आतंकवाद का प्रशिक्षण दे रहे हैं। शिंदे ने इस कड़ी में समझौता एक्सप्रैस और माले गांव धमाकों में हिन्दू आतंकवाद संलिप्तता का भी उदाहरण दिया। हम तो यही कहना चाहेंगे कि देश के योग्य गृह मंत्री के पास अगर कोई ऐसा प्रमाण है तो वह जाएं और भाजपा सुप्रीमो श्री नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज या आरएसएस के दिग्गज नेता श्री मोहन भागवत को गिरफ्तार कर लें। दरअसल आरएसएस के बारे में देशवासी जानते हैं कि यह एक राष्ट्रभक्त संगठन है जबकि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपना खेल खेल रही है। शिंदे साहब के साथ हुई अपनी एक उस मीटिंग का उल्लेख यहां उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहूंगा। देश में राष्ट्र के लिए जान कुर्बान कर देने के बाद हमारे परिवार के अमर शहीद संपादकों परम श्रद्घेय लाला जगतनारायण जी और परम श्रद्घेय श्री रमेश जी की आतंकवादियों के हाथों बीच सड़क पर हत्या के बाद पिता श्री अश्विनी कुमार भी आतंकियों की हिट लिस्ट में हैं। हमारे पास आतंकी संगठनों से धमकी भरे पत्र आए जिसमें हमारे परिवार को खत्म कर देने की आतंकी धमकियां हैं। इसी सिलसिले में मैं जयपुर से विशेष रूप से दिल्ली आया और गृह मंत्री श्री शिंदे से मिला, उन्हें पूरी बात बताई लेकिन निष्ठुर शिंदे ने कहा- आप को कितना भी खतरा क्यों न हो, आप कितना भी किसी की हिट लिस्ट में क्यों न हों, मैं कुछ नहीं कर सकता। आपका एनएसजी कवर हटाने का हुक्म ऊपर से आया है। इस मीटिंग में गृह सचिव श्री आर.के. सिंह भी मौजूद थे। हमें इससे फर्क नहीं पड़ता। दरअसल पिताश्री अश्विनी कुमार पिछले कुछ दिनों से आरएसएस और भाजपा के समारोहों में शामिल हो रहे हैं लेकिन सवाल पैदा होता है इससे कांग्रेसी नेताओं को क्या खतरा है परन्तु शिंदे साहब की बात सुनकर हैरानी होती है कि देश का गृह मंत्री कैसा बर्ताव कर रहा है। देश के आम आदमी की सुरक्षा का अंदाजा इससे सहज ही लगाया जा सकता है। गृह मंत्री की कत्र्तव्य परायणता का एक नमूना आपके सामने है कि वह किस कदर 10 जनपथ का निजी गुलाम है। समय आ गया है कि कांग्रेस के दिग्गज खुद मंथन करें कि जिस गृह मंत्री के पद पर कभी सरदार पटेल जैसे लौहपुरुष हुआ करते थे वहां अब कैसे मिट्टी के माधो बिठा दिए गए हैं। उन्हें '10 जनपथ की हर बात को मानने का सचमुच ईनाम मिल चुका है।' एक तरफ तो ओवैसी जैसे लोग हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगल रहे हैं और दूसरी तरफ शिंदे जैसे गृह मंत्री जो राष्ट्र भक्त परिवार हैं उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं। दरअसल ओवैसी और शिंदे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। एक हिन्दुओं को चैलेंज कर रहा है तो दूसरा हिन्दुओं के समर्थकों को नजरंदाज कर रहा है।
हमें ऐसा लगता है कि भारत में आज की तारीख में अगर मुस्लिम कट्टरता भारी है तो यह सब-कुछ एक साजिश के तहत हो रहा है। अचानक एलओसी पर हमारे दो जवानों की नृशंसता के साथ हत्या किया जाना, एक का सिर सीमा पार ले जाना, लश्करे सरगना हाफिद सईद का पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में हाजिर होना, यह सब इत्तेफाक नहीं हो सकता। अचानक इसी दौरान एक विधायक द्वारा देश के हिन्दुओं के खिलाफ विष उगलना और ओवैशी की साधारण धाराओं के तहत गिरफ्तारी यह सब किसी भी सूरत में संयोग नहीं हो सकता। कांग्रेस की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अपनी सियासत करना जो कि उसे चुनावी मदद प्रदान कर सके, यह योजना बेहद खतरनाक है। शिंदे साहब इस बारे में कोई जवाब देना चाहेंगे?
अगर अतीत में झांकें और ओवैसी को केंद्र बिन्दु बनाएं तो हम पाते हैं कि इस शख्स ने विवादित ढांचे को गिराए जाने के अलावा 1993 मुंबई बम धमाकों को भी न्यायोचित ठहराया था। मुंबई के हमलावर अजमल कसाब की फांसी पर प्रश्न खड़ा करना और भारतीय व्यवस्था के खिलाफ जहर उगलना क्या यह हमारी संप्रभुता और अस्मिता पर हमला नहीं है? मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन की स्थापना इसी हैदराबाद में हुई थी और इसी संगठन की शह पर भारत विभाजन के दौरान हैदराबाद के निजाम ने हमारे देश में विलय से साफ इंकार कर दिया था। लिहाजा इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सच बात तो यह है कि हमारे देश की अनेकता में एकता वाली संस्कृति में हिन्दुओं का वर्चस्व है परन्तु अब कांग्रेसी राजनेताओं ने बड़ी चतुराई से देश के कई इलाकों में अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिम कार्ड खेल कर सत्ता पाने का जो खतरनाक खेल खेला है उसकी कीमत हम सबको चुकानी पड़ सकती है। पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में कांग्रेस के इसी मुस्लिम कार्ड की वजह से हिन्दू वोटर अल्पसंख्यक बन चुके हैं और कांग्रेस चुनावों के विजेता मुस्लिम जनसेवकों से सांठगांठ करते हुए सत्ता के उस घोड़े पर सवार है जिसकी लगाम सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथ से निकल चुकी है। देश में अल्पसंख्यक कार्ड को कांग्रेस भले ही चुनावों के मौकों पर तेजी से चलाती है परन्तु हम यही कहेंगे कि सरकार की खामोशी एक कट्टरवादी मानसिकता को बढ़ावा भी दे रही है। शिंदे साहब क्या यह सब कुछ भी प्रियंका और राहुल के कहने से हो रहा है। आज इस्लामी कट्टरवाद हमारी सनातनी संस्कृति पर भारी पड़ रहा है और देश के कई इलाकों में मुसलमानों का अचानक बढ़ते जाना खतरे की एक घंटी है जिसे न केवल सुना जाना चाहिए बल्कि इस पर फौरन कार्रवाई भी करनी चाहिए। देश में गृह मंत्री हालात संवारने के लिए जाना जाता है परन्तु शिंदे साहब देश के हालात बेहद बदतर बनाते जा रहे हैं तभी तो ओवैसी जैसे लोग हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के ही खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं
1947 से लेकर आज तक मुस्लिम कट्टरपन की बेल ने देश में ऐसा जाल बुना है कि हमें हमेशा दर्द ही मिला है। सैकुलर राजनीतिक पार्टियां जो किरदार निभा रही हैं वह हमारे देश को तबाह करने की राह पर ले आई हैं। हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलने का काम आज ओवैसी कर रहे हैं तो कल उनके हिमायती भी शुरू हो जाएंगे। एक तरफ देश में चिदंबरम और शिंदे जैसे लोग हिन्दू आतंकवाद के नाम पर कितने ही हिन्दू संगठनों के बड़े नेताओं को बम विस्फोटों में गिरफ्तार कर रहे हैं और मुस्लिम आतंकवादियों को जेलों में सुरक्षित पनाह दे रहे हैं तो भविष्य की तस्वीर कितनी खतरनाक होगी? इसका जवाब हमें कौन देगा। कभी हिन्दू कोड बिल बनाकर सामाजिक सुधारों को केवल हिन्दुओं तक ही सीमित रखा गया और मुसलमानों को इससे अगर वंचित किया गया था तो वे कट्टरपंथियों की झोली में चले गए थे। हम यहां सन् 1986 में शाहबानो केस का उदाहरण देना चाहेंगे जब सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समाज में सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया था। आज बाटला हाउस मामला हो या 1998 का कोयंबटूर बम धमाका, कितने ही सैकुलर नेता मुसलमानों के उदारवादी धड़ों के साथ खड़े हो जाते हैं। शिंदे जैसे लोग जब गृहमंत्री होंगे तो कुछ भी संभव है।
अब भी कांग्रेस ने अगर आंखें मूंदे रखीं और ओवैसी जैसी जहरीली बेलों को जड़ से न उखाड़ा तो ऐसे परिणाम निकलेंगे कि हम रसातल तक जा गिरेंगे। देश का नाम हिन्दुस्तान है लेकिन अगर मुसलमानों की ही ज्यादा चलेगी तो क्या हश्र होगा, इसका जवाब सत्ता के नशे में अंधे राजनेता जान लें। क्या गृह मंत्री शिंदे इसका जवाब देंगे?
अन्त में हम यही कहेंगे कि भाजपा या आर.एस.एस. में जो भी लोग हैं, तो क्या वे सारे ही आतंकवादी हैं। आर.एस.एस. एक हिन्दू संगठन है तो फिर हम क्या शिंदे साहब की बात मान लें? अगर हम उनकी बात मानते हैं तो फिर सारे हिन्दू आतंकवादी ही कहलाएंगे। हमारा सवाल ज्यों का त्यों है-क्या हिन्दू होना गुनाह है?
साभार : पंजाब केसरी, लेखक श्री आदित्य चोपड़ा
इस देश में वाकई हिंदू होना गुनाह ही तो है तभी तो हर कोई हिंदुओं को आसान निशाना बना रहा है !!
ReplyDeleteतो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
ReplyDeleteकाबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।।