Pages

Wednesday, September 24, 2014

ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि व अत्री के कुल



मरीचि : महर्षि मरीचि ब्रह्मा के अन्यतम मानसपुत्र और एक प्रधान प्रजापति हैं। इन्हें द्वितीय ब्रह्मा ही कहा गया है। ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के पहले सप्तऋषियों की सूची के पहले ऋषि है। यह दक्ष के दामाद और शंकर के साढू थे।

इनकी पत्नि दक्ष- कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्निनयां थी- कला और उर्णा। संभवत: उर्णा को हीधर्मव्रता भी कहा जाता है जो एक ब्राह्मण कन्या थी। दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी शंकर का अपमान किया था। इस पर शंकर ने इन्हें भस्म कर डाला था।

इन्होंने ही भृगु को दण्डनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरु के एक शिखर पर निवास करते हैं और महाभारत में इन्हें चित्रशिखण्डी कहा गया है। ब्रह्मा ने पुष्करक्षेत्र में जो यज्ञ किया था उसमें ये अच्छावाक् पद पर नियुक्त हुए थे। दस हजार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण का दान पहले-पहल ब्रह्मा ने इन्हीं को किया था। वेद और पुराणों में इनके चरित्र का चर्चा मिलती है। 

मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया और उनसे उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। कश्यप की माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिल देव की बहन थी। ब्रह्मा के पोते और मरीचि के पुत्र कश्यप ने ब्रह्मा के दूसरे पुत्र दक्ष की 13 पुत्रियों से विवाह किया। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए।

कश्यय पत्नी- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्ठा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि। महर्षि कश्यप को विवाहित 13 कन्याओं से ही जगत के समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। वे लोकमाताएं कही जाती हैं। इन माताओं को ही जगत जननी कहा जाता है।

यहां यह बताना जरूरी है कि बहुत से विद्वान मानते हैं कि कश्यप ने दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया था लेकिन ऐसा नहीं है। वो तार्क्ष्य कश्यप थे जिन्होंने विनीता कद्रू, पतंगी और यामिनी से विवाह किया था। इस तरह ये 17 कन्याएं होती है, लेकिन कुछ विद्वान सभी को कश्यप की पत्नी मान कर लिखते हैं। कश्यप ऋषि ने दक्ष की सिर्फ 13 कन्याओं से ही विवाह किया था।

कश्यप की पत्नी अदिति से आदित्य (देवता), दिति से दैत्य, दनु से दानव, काष्ठा से अश्व आदि, अरिष्ठा से गंधर्व, सुरसा से राक्षस, इला से वृक्ष, मुनि से अप्सरागण, क्रोधवशा से सर्प, ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि, सुरभि से गौ और महिष, सरमा से श्वापद (हिंस्त्र पशु) और तिमि से यादोगण (जलजंतु) की उत्पत्ति हुई।

कश्यप के आदिति से 12 आदित्य पुत्रों का जन्म हुए जिनमें विवस्वान और विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। राजा इक्ष्वाकु के कुल में जैन और हिन्दू धर्म के महान तीर्थंकर, भगवान, राजा, साधु महात्मा और सृजनकारों का जन्म हुआ है।

वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- 1.इल, 2.इक्ष्वाकु, 3.कुशनाम, 4.अरिष्ट, 5.धृष्ट, 6.नरिष्यन्त, 7.करुष, 8.महाबली, 9.शर्याति और 10.पृषध।

* ब्रह्मा के प्रमुख पुत्र :- 1. मरीचि, 2. अत्रि, 3. अंगिरस, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. कृतु, 7. भृगु, 8. वशिष्ठ, 9. दक्ष, 10. कर्दम, 11. नारद, 12. सनक, 13. सनन्दन, 14. सनातन, 15. सनतकुमार, 16. स्वायम्भुव मनु और शतरुपा, 17. चित्रगुप्त, 18. रुचि, 19. प्रचेता 20. अंगिरा आदि।

* ब्रह्मा की प्रमुख पुत्रियां :- 1. सावित्री, 2. गायत्री, 3. श्रद्धा, 4. मेधा और 5. सरस्वती हैं।

* 10 प्रजापति : ब्रह्मा के 59 पुत्रों में से 10 पुत्र प्रजापति बने- 1. मरीचि, 2. अत्रि, 3. अंगिरा, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. कृतु, 7. भृगु, 8. वशिष्ठ, 9. दक्ष और 10. कर्दम।

ब्रह्मा जी के पुत्र अत्री का कुल 


इनसे जन्मे- भारत, यादव, मलेच्छ और यवन - ब्रह्मा के दूसरे पुत्र अत्रि का कुल


अत्रि : अत्रि ने ब्रह्मा पुत्र कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था। अत्रि को अनुसूया से एक पुत्र जन्मा जिसका नाम दत्तात्रेय था। अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। इनके ब्रह्मावादिनी नाम की कन्या भी थी।

अत्रि पुत्र चन्द्रमा ने बृहस्पति की पुत्री  तारा से विवाह किया जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे। चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए। ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि से संबंधित या अत्रि की संतान।

चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम भी सोम माना जाता है जिसका प्रयाग पर शासन था। अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबल-विक्रमशाली पुत्र हुए।

नहुष के बड़े पुत्र यति थे, जो संन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए। ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले। ययाति के 5 पुत्र थे। देवयानी से यदु और तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से द्रुह्मु, अनु एवं पुरु हुए। तर्वासु से भोन (यवन), द्रुह्म से मलेच्छ (मिस्र-अरबी) तथा पुरु से सबसे प्रतापी पुरुवंश चला। अनु का वंश ज्यादा नहीं चला।

* ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु।

ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिंध प्रांत) और उत्तर में अनु को माण्डलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। हालांकि पुरु के राज्य में संपूर्ण कश्मीर और जम्मू सहित हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र था। यरुशलम से काशी तक इन 5 कुल का ही शासन था।

1. पुरु का वंश : पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए उनमें से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश में ही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर परीक्षित हुए जिनके पुत्र थे जन्मजेय।

2. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए। 

3. तुर्वसु का वंश : तुर्वसु के वंश में भोज (यवन) हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ मरूत। मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था। परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।

महाभारत के अनुसार ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थे, पर ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण इनकी गिनती शूद्रों में होने लगी। महाभारत युद्ध में ये कौरवों के साथ थे। इससे पूर्व दिग्विजय के समय नकुल और सहदेव ने इन्हें पराजित किया था।

4. अनु का वंश : अनु को ऋ‍ग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।

5. द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे बाद में द्रहुओं को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया गया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए।

ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के सौ पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों (अरबों) के राजा हुए।

* यदु और तुर्वस को दास कहा जाता था। यदु और तुर्वस के विषय में ऐसा माना जाता था कि इंद्र उन्हें बाद में लाए थे। सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत का था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे। तुर्वस और द्रुह्म से ही यवन और मलेच्छों का ‍वंश चला। इस तरह यह इतिहास सिद्ध है कि ब्रह्मा के एक पु‍त्र अत्रि के वंशजों ने ही यहुदी, यवनी और पारसी धर्म की स्थापना की थी। इन्हीं में से ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ। यहुदियों के जो 10 कबीले थे उनका संबंध द्रुह्मु से ही था। हालांकि यह शोध का विषय है।

संदर्भ : वेद, पुराण, महाभारत, साभार: वेबदुनिया

No comments:

Post a Comment

हिंदू हिंदी हिन्दुस्थान के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।