Pages

Tuesday, August 23, 2016

SHAKTI PEETH - शक्ति पीठ

हिन्दू धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंय पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।

पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठो का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह अंतर्पंथा है कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए इधर-उधर घूमने लगे। तदनंतर सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया। तदनंतर वे टुकडे 52 जगहो पर गिरे। वे ५२ स्थान शक्तिपीठ कहलाए। सती ने दूसरे जन्म मे हिमालयपुत्री पार्वती के रूप मे शंकर जी से विवाह किया।

पुराण ग्रंथों, तंत्र साहित्य एवं तंत्र चूड़ामणि में जिन बावन शक्तिपीठो का वर्णन मिलता है, वे निम्नांकित हैं। निम्नलिखित सूची 'तंत्र चूड़ामणि' में वर्णित इक्यावन शक्ति पीठो की है। बावनवाँ शक्तिपीठ अन्य ग्रंथों के आधार पर है। इन बावन शक्तिपीठो के अतिरिक्त अनेकानेक मंदिर देश-विदेश में विद्यमान हैं। हिमाचल-प्रदेश में नयना देवी का पीठ (पंचकूला) भी विख्यात है। गुफा में प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है कि यह भी शक्तिपीठ है और सती का एक नयन यहाँ गिरा था। इसी प्रकार उत्तराखंड के पर्यटन स्थल मसूरी के पास सुरपुंडा देवी का मंदिर (धनौल्टी में) है। यह भी शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर सती का सिर धड़ से अलग होकर गिरा था। माता सती के अंग भूमि पर गिरने का कारण भगवान श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती माता के समस्तांग विछेदित करना था।

इक्यावन शक्तिपीठ

शक्तिपीठों की संख्या इक्यावन कही गई है। ये भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तृत हैं। यहां पूरी शक्तिपीठों की सूची दी गई है। 
"शक्ति" अर्थात देवी दुर्गा, जिन्हें दाक्षायनी या पार्वती रूप में भी पूजा जाता है। 
"भैरव" अर्थात शिव के अवतार, जो देवी के स्वांगी हैं। 
"अंग या आभूषण" अर्थात, सती के शरीर का कोई अंग या आभूषण, जो श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरा, आज वह स्थान पूज्य है और शक्तिपीठ कहलाता है।
क्रम सं०स्थानअंग या आभूषणशक्तिभैरव
1हिंगुल या हिंगलाजकराचीपाकिस्तान से लगभग 125 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व मेंब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग)कोट्टरीभीमलोचन
2शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट, इसके अलावा नैनादेवी मंदिरबिलासपुर, हि.प्र. भी बताया जाता है।आँखमहिष मर्दिनीक्रोधीश
3सुगंध, बांग्लादेश में शिकारपुर, बरिसल से 20 कि॰मी॰ दूर सोंध नदी तीरेनासिकासुनंदात्रयंबक
4अमरनाथपहलगाँवकाश्मीरगलामहामायात्रिसंध्येश्वर
5ज्वाला जीकांगड़ाहिमाचल प्रदेशजीभसिधिदा (अंबिका)उन्मत्त भैरव
6जालंधरपंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाबबांया वक्षत्रिपुरमालिनीभीषण
7अम्बाजी मंदिर, गुजरातहृदयअम्बाजीबटुक भैरव
8गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, निकट पशुपतिनाथ मंदिरदोनों घुटनेमहाशिराकपाली
9मानस, कैलाश पर्वतमानसरोवरतिब्ब्त के निकट एक पाषाण शिलादायां हाथदाक्षायनीअमर
10बिराज, उत्कलउड़ीसानाभिविमलाजगन्नाथ
11गंडकी नदी के तट पर, पोखरानेपाल में मुक्तिनाथ मंदिरमस्तकगंडकी चंडीचक्रपाणि
12बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिलापश्चिम बंगाल से 8 कि॰मी॰बायां हाथदेवी बाहुलाभीरुक
13उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिलापश्चिम बंगाल 16 कि॰मी॰दायीं कलाईमंगल चंद्रिकाकपिलांबर
14माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाँव, उदरपुरत्रिपुरादायां पैरत्रिपुर सुंदरीत्रिपुरेश
15छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, चिट्टागौंग जिला, बांग्लादेशदांयी भुजाभवानीचंद्रशेखर
16त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गाँव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी जिलापश्चिम बंगालबायां पैरभ्रामरीअंबर
17कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटीअसमयोनिकामाख्याउमानंद
18जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिलापश्चिम बंगालदायें पैर का बड़ा अंगूठाजुगाड्याक्षीर खंडक
19कालीपीठ, कालीघाटकोलकातादायें पैर का अंगूठाकालिकानकुलीश
20प्रयागसंगमइलाहाबादउत्तर प्रदेशहाथ की अंगुलीललिताभव
21जयंती, कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला,बांग्लादेशबायीं जंघाजयंतीक्रमादीश्वर
22किरीट, किरीटकोण ग्राम, लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन, मुर्शीदाबाद जिलापश्चिम बंगाल से 3 कि॰मी॰ दूरमुकुटविमलासांवर्त
23मणिकर्णिका घाट, काशीवाराणसीउत्तर प्रदेशमणिकर्णिकाविशालाक्षी एवं मणिकर्णीकाल भैरव
24कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिर, तमिल नाडुपीठश्रवणीनिमिष
25कुरुक्षेत्रहरियाणाएड़ीसावित्रीस्थनु
26मणिबंध, गायत्री पर्वत, निकट पुष्करअजमेरराजस्थानदो पहुंचियांगायत्रीसर्वानंद
27श्री शैल, जैनपुर गाँव, 3 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व सिल्हैट टाउन, बांग्लादेशगलामहालक्ष्मीशंभरानंद
28कांची, कोपई नदी तट पर, 4 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व बोलापुर स्टेशन, बीरभुम जिला,पश्चिम बंगालअस्थिदेवगर्भरुरु
29कमलाधव, शोन नदी तट पर एक गुफा में, अमरकंटकमध्य प्रदेशबायां नितंबकालीअसितांग
30शोन्देश, अमरकंटकनर्मदा के उद्गम पर, मध्य प्रदेशदायां नितंबनर्मदाभद्रसेन
31रामगिरि, चित्रकूटझांसी-माणिकपुर रेलवे लाइन पर, उत्तर प्रदेशदायां वक्षशिवानीचंदा
32वृंदावनभूतेश्वर महादेव मंदिर, निकट मथुराउत्तर प्रदेशकेश गुच्छ/
चूड़ामणि
उमाभूतेश
33शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर, 11 कि॰मी॰ कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग, तमिल नाडुऊपरी दाड़नारायणीसंहार
34पंचसागर, अज्ञातनिचला दाड़वाराहीमहारुद्र
35करतोयतत, भवानीपुर गांव, 28 कि॰मी॰ शेरपुर से, बागुरा स्टेशन, बांग्लादेशबायां पायलअर्पणवामन
36श्री पर्वत, लद्दाखकश्मीर, अन्य मान्यता: श्रीशैलमकुर्नूल जिला आंध्र प्रदेशदायां पायलश्री सुंदरीसुंदरानंद
37विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिलापश्चिम बंगालबायीं एड़ीकपालिनी (भीमरूप)शर्वानंद
38प्रभास, 4 कि॰मी॰ वेरावल स्टेशन, निकट सोमनाथ मंदिरजूनागढ़ जिलागुजरातआमाशयचंद्रभागावक्रतुंड
39भैरवपर्वत, भैरव पर्वत, क्षिप्रा नदी तट, उज्जयिनीमध्य प्रदेशऊपरी ओष्ठअवंतिलंबकर्ण
40जनस्थान, गोदावरी नदी घाटी, नासिकमहाराष्ट्रठोड़ीभ्रामरीविकृताक्ष
41सर्वशैल/गोदावरीतीर, कोटिलिंगेश्वर मंदिर, गोदावरी नदी तीरे, राजमहेंद्रीआंध्र प्रदेशगालराकिनी/
विश्वेश्वरी
वत्सनाभ/
दंडपाणि
42बिरात, निकट भरतपुरराजस्थानबायें पैर की अंगुलीअंबिकाअमृतेश्वर
43रत्नावली, रत्नाकर नदी तीरे, खानाकुल-कृष्णानगरहुगली जिला पश्चिम बंगालदायां स्कंधकुमारीशिवा
44मिथिलाजनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट, भारत-नेपाल सीमा परबायां स्कंधउमामहोदर
45नलहाटी, नलहाटि स्टेशन के निकट, बीरभूम जिलापश्चिम बंगालपैर की हड्डीकलिका देवीयोगेश
46कर्नाट, अज्ञातदोनों कानजयदुर्गाअभिरु
47वक्रेश्वर, पापहर नदी तीरे, 7 कि॰मी॰ दुबराजपुर स्टेशन, बीरभूम जिलापश्चिम बंगालभ्रूमध्यमहिषमर्दिनीवक्रनाथ
48यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेशहाथ एवं पैरयशोरेश्वरीचंदा
49अट्टहास, 2 कि॰मी॰ लाभपुर स्टेशन, बीरभूम जिलापश्चिम बंगालओष्ठफुल्लराविश्वेश
50नंदीपुर, चारदीवारी में बरगद वृक्ष, सैंथिया रेलवे स्टेशन, बीरभूम जिलापश्चिम बंगालगले का हारनंदिनीनंदिकेश्वर
51लंका, स्थान अज्ञात, (एक मतानुसार, मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है। एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है)पायलइंद्रक्षीराक्षसेश्वर

कुछ और शक्ति पीठ मंदिर कहे जाते हैं:-
  • विंध्यवासिनी मंदिरमिर्ज़ापुरउत्तर प्रदेश
  • महामाया मंदिर, अंबिकापुरअंबिकापुरछत्तीसगढ़
  • योगमाया मंदिर, दिल्लीमहरौलीदिल्ली
  • दंतेश्वरी मंदिर,दंतेवाड़ा,दंतेवाड़ा,छत्तीसगढ़

क्षत्रिय समाज में सिंह लिखने का प्रचलन


जो महान देशभक्तों की श्रेणी में अग्रणी रहे हैं, जिन्होंने क्षत्रिय समाज को अपने जीवनकाल में अनेक उपलब्धियां प्रदान की हैं, उनमें से एक प्राप्ति ‘सिंह’ शब्द की है। क्षत्रिय समाज में अपने पुत्रों का कुंभा, जोधा, धंग, धारा, खेता, सांगा आदि नामकरण किया जाता था।

जननी जन्म भूमि के लिये जो नि:स्वार्थ भाव से समर्पित होते रहे हैं। वास्तव में वे ही महापुरुष कहलाते हैं और इतिहास ऐसे वीर पुरुषों की विरदि बरवान करते-करते नहीं अघाते हैं। वह समाज में अपने पीछे एक छाप छोड़ जाते हैं। जो अनुकरणीय होती है। आदर्श कहलाती है। भारत में सौराष्ट्र प्रान्त के एक ऐसे ही राजपुरुष की कहानी है। जिसके पौरस की गाथाएं कभी इस देश की धरती पर गूंजती रहती थीं। जो महान देशभक्तों की श्रेणी में अग्रणी रहे हैं। जिन्होंने क्षत्रिय समाज को अपने जीवनकाल में अनेक उपलब्धियां प्रदान की हैं। उनमें से एक प्राप्ति ‘सिंह’ शब्द की है। क्षत्रिय समाज में अपने पुत्रों का कुंभा, जोधा, धंग, धारा, खेता, सांगा आदि नामकरण किया जाता था। नाम के साथ शब्द लिखने का प्रचलन नहीं था। जो महाराजा खेतसिंह खंगार की ही देन है।

दिल्लीश्वर महाराजा पृथ्वीराज चौहान अपनी युवा अवस्था में गिरनार के वनों में शिकार खेलने जाया करते थे। एक बार उन्होंने जंगल में देखा। एक नौजवान राजकुमार वनराज को ललकारकर कुश्ती लड़ रहा है। कभी वनराज ऊपर होता था तो कभी नरराज। चौहान वह दृश्य देख आनंद विभोर होकर अवसन्त खड़े रह गये। उनके देखते ही देखते, राजकुमार ने बलशाली वनराज को पछाड़ लगा दी और लात घूसों से उसको मार डाला। जब नरराज और वनराज का युध्द समाप्त हो गया तब चौहान उस वीर पुरुष के पास पहुंचे। बोले-बड़े बहादुर हो। क्या मैं आपका परिचय जान सकता हूं। वह युवक प्रतिउत्तर में बोला-पहले आप अपना परिचय दें। मैं शाकम्भरी चौहान, महाराज सोमेश्वर का पुत्र हूं, पृथ्वीराज चौहान। दिल्ली का प्रशासक हूं। युवक इतने जवाब से ही नतमस्तक हो गया। बोला-महाराज क्षमा करें। अज्ञानतावश मैंने मूढ़ता की है। मेरा परिचय लेकर महाराज क्या करेंगे, हम तो अब वनवासी जन हैं।

नहीं, नहीं आप अपना पूरा परिचय दीजिये। तुम्हारे लक्षण, राज परिवारों जैसे दिखते हैं। मुंह पर कहना अच्छा नहीं लगता है। आप एक असाधारण पुरुष हैं। मुझे सही परिचय देने में संकोच न करें। कहिये भद्र आप कौन हैं।

महाराज मेरे पितामह राजा ऊदलजी खंगार जूनागढ़ाधीश्वर थे, उन्हें यादव वंशी राजाओं ने धोखे से मार डाला और सत्ता छीन ली है। हमारा परिवार छिन्न- भिन्न हो गया। अधिकांश लोग, जेजाहूति प्रदेश चले गये हैं। मेरे पिताश्री रूढ़देव खंगार परिवार सहित पास में ही निवास करते हैं। मेरा नाम खेता खंगार है। यहां आखेट में आया था। वनराज से भेंट हो गई। परिणाम महाराज के सामने है। राजकुमार हम महाराज रूढ़देव के दर्शन करने की इच्छा रखते हैं। क्या हमें उनके दर्शन लाभ मिल सकेंगे।

हां महाराज जरूर चलिये, अब तो हम साधारण आदमी रह गये हैं। हमसे आपकी जो टूटी-फूटी सेवा हो सकेगी सेवार्पित करेंगे। दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान, पडिहार नरेश रूढ़देव खंगार से बड़ी आत्मीयता से मिलकर, बहुत प्रसन्न हो गये थे। बातचीत के क्रम में चौहान बोले-महाराज खेता राजकुमार बड़े अजेय योध्दा हैं। मैंने उनकी शूरवीरता देखी है। बड़ा प्रभावित हूं। महाराज आजकल देश की दशा ठीक नहीं है।

क्षत्रिय वंश आपस में ही लड़कर घात कर रहे हैं। जिससे देश की शक्ति का ह्रास हो रहा है। आये दिन यवन आक्रमणकारियों के हमले देश पर हो रहे हैं। रक्षा का चौकस प्रबंध केंद्र में नहीं है। जो बहुत जरूरी है। भारतभूमि की रक्षा के लिये आपसे जेष्ठ पुत्र खेता राजकुमार को मांगता हूं। उन्हें दिल्ली जाने की आज्ञा दे दें। देश की रक्षा, देशभक्त नौजवानों से ही संभव है। आशा है राजन मुझे निराश न करेंगे।

वनवासी रूढ़देव खंगार अवाक रह गये, कुछ देर बाद बोले-भारतभूमि के गौरव, महाराज पृथ्वीराज चौहान खेता राजकुमार के बल पर ही हम इस बियाबान जंगल में रहते हैं। खीचीकुमार अभी नादान है। महाराज की आज्ञा है जिसमें देशहित की बात कही गई है। टालने की हिम्मत नहीं हो रही है। क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

पृथ्वीराज चौहान कहने लगे-राजन, रघुवंश भूषण महाराज दशरथ ने मुनि विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए अपने दोनों राजकुमार राम-लक्ष्मण को भेजकर उनकी मदद की थी। यह तो जननी जन्मभूमि की रक्षा का सवाल है। आप देशरक्षा में भागीदारी कर सुयश प्राप्त करें।

रूढ़देव कहने लगे-महाराज की आज्ञा शिरोधार्य है। जननी जन्मभूमि के लिये तो मेरा रोम-रोम अर्पित है।

पृथ्वीराज चौहान राजकुमार खेता खंगार को उनके दल-बल सहित दिल्ली ले आए, बड़े हर्षित थे। चौहान कहने लगे मैं वनराज की खोज में निकला और पा गया नरराज को।

उस समय अजमेर में उपद्रव हो गया था। राजस्व वसूली बंद पड़ी थी। अशांति का वातावरण बन गया था। आते ही समय महाराज ने राजकुमार को बंदोबस्त के लिये अजमेर भेज दिया। उन्होंने अपने बुध्दि कौशल से पूर्ण शांति व्यवस्था की और राजस्व वसूली का सिलसिला जमाया।

पृथ्वीराज चौहान ने अपनी सैन्य व्यवस्था में सोलह सामन्तों की रचना की, उसमें राजकुमार खेता खंगार को प्रधान सामन्त नियुक्त किया गया। संयोगिता हरण में राजकुमार का भरपूर सहयोग लिया गया। चन्द कवि ने अपने पृथ्वीराज रासौ नामक ग्रन्थ में इसका वर्णन किया है। वे कहते हैं :-

खण्ड खण्ड निर्वाण सामन्त सार।

खैंची सुगोंड खेता खंगार॥

खित्त रन जीतियो।

पृथ्वीराज चौहान ने सत्रह बार मुहम्मद गौरी को इसी सामन्त के प्रबल पराक्रम से खदेड़ कर भगाया था। सन् 1182 ई. में उरई के मैदान में आला-ऊदल जैसे जगत प्रसिध्द बनाफर वीरों का मान मर्दन कर, परमार चंदेल पर विजयश्री प्राप्त की, जिसमें ऊदल मारा गया था और आल्हा भाग गया था।

पृथ्वीराज चौहान ने विजित प्रदेश का प्रबंध सामन्त खेता खंगार और पंजुनराय कछवाहा को सौंपकर सूबेदारी नियुक्त की। चौहान, चंदेल की लड़ाई की उथल-पुथल में, गौड़ों ने कुंडार कर कब्जा कर लिया। जो विजित क्षेत्र का अंग था। राजकुमार खेता खंगार ने, गौड़ों को कुंडार से खदेड़ भगाया और अपना झण्डा गाड़ दिया। पृथ्वीराज चौहान ने कुंडार को खेता खंगार सामन्त की निजी उपलब्धि मानकर उन्हें कुंडार का अधिपति घोषित कर दिया।

पडिहार राजकुमार खेता खंगार ने कुंडार को अपना मुख्यालय बनाया। वे महोबा छोड़कर कुंडार में आ गये। यहां आकर उन्होंने प्राचीन पध्दति से सर्वप्रथम परकोटे का निर्माण कराया। परकोटे का मुख्य द्वार वंदनवारनुमा बनाया गया। मुस्लिम कला देश में जोरों पर उभरकर आ रही थी बारहवीं शताब्दी में अंदर का निर्माण किया गया। जिसमें मौमिन कला की झलक दिखती है। उन्होंने एक आकर्षित सुदृढ़ और अति दुर्गम दुर्ग का निर्माण कराया। कुंडार अब गढ़कुंडार के नाम से विख्यात हो गया।

पंजुनराय कछवाहा महोबा, पडिहार राजकुमार खेता खंगार गढ़कुंडार की ख्याति सेर् ईष्यालु हुए, उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के भाई, कान्हापाल चौहान को अपने पक्ष में कर खेता खंगार को मरवाने के यत्न ढूंढना चालू किये। बड़ी-बड़ी युक्तियां ढूंढी गईं। अंत में सोचा, महाराज पृथ्वीराज चौहान खेता खंगार को बड़ा शूरवीर कहकर प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि खेता खंगार ने सोरठ (सौराष्ट्र) में कुश्ती लड़कर शेर मारा है। भला यह कैसे हो सकता है। क्यों न शेर से लड़वाकर खेता खंगार को मरवा दिया जाय। कान्हापाल चौहान ने पंजुनराय को भरोसा दिया, मैं महाराज से स्वीकृति ले लूंगा। भिण्ड के वनों में आदमी और शेर के युध्द का नाटक खेला जाय। युक्ति ठीक है।

युक्ति के मुताबिक भिण्ड राज्यान्तर्गत बियाबान जंगल में एक दर्शक मंच बनाया गया। आसपास के सभी राजे, महाराजे, सामंत, सरदार आमंत्रित किये गये। महाराज पृथ्वीराज चौहान की आज्ञा से नरराज और वनराज के आकर्षित युध्द का ऐलान किया गया। निश्चित तिथि पर सब लोग उस बियाबान जंगल में एकत्रित हुए।

दिल्लीश्वर महाराज पृथ्वीराज चौहान ने गढ़कुंडार के अधिपति खेता खंगार को वनराज से कुश्ती लड़ने हेतु निर्वाचित किया। जंगल का हांका किया गया। बब्बर शेर के निकलते ही खेता खंगार को मुकाबला करने हेतु राजा ने आदेशित किया। जंगली मैदान के बीच एक निहत्था विशालकाय शरीर, हृष्ट-पुष्ट रोबीला पुरुष खेता खंगार विद्यमान था। उसी तरह हृष्ट-पुष्ट रोबिला बब्बर शेर निकलकर मैदान में आया। उसने अपने शिकार को सामने खड़ा देखकर गुर्राकर पूंछ को ऐंठ मारी और बड़ी हैकड़ी के साथ गढ़कुंडार अधिपति खेता खंगार पर आक्रमण कर दिया। उसने हमलावर बब्बर शेर के दोनों पैरों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। वनराज और नरराज दोनों आपस में गुत्थम गुत्था होने लगे। स्यारों ने समझ लिया था कि उनका कांटा बिन प्रयास निकल गया है।

महाराज पृथ्वीराज चौहान भूतों की चालों से अनभिज्ञ थे। सन्नाटा छाया हुआ था। खेता खंगार पर बब्बर शेर हावी था। खेता ने अपनी पूर्ण शक्ति से वनराज को धकेला और उसे पटकर ऊपर सवार हो गया। फिर लात घूंसा मार-मारकर बब्बर शेर को पस्त कर डाला। आवेश में उसने बब्बर शेर के बाएं पैर पर, अपना दायां पैर रखा और उसका दायां पैर अपने हाथ में लेकर, उसे चीर डाला। बब्बर शेर के मरते ही, उपस्थित जन समूह चिल्ला उठा। शेर चिरा, शेर चिरा, मंच पर तालियां बज गईं। महाराज पृथ्वीराज चौहान खुशी से झूम उठे, रक्त रंजित खेता खंगार हर्षित मन महाराज पृथ्वीराज चौहान के चरणों में आकर झुक गया। शाबास और धन्यवाद के बीच खेता खंगार का जयघोष गूंज गया।

महाराज पृथ्वीराज चौहान ने इस अविस्मरणीय घटना पर उस जगह एक ग्राम बसाने का ऐलान किया और उसका नाम रखा ‘शेरचिरा’। राजा ने ऐसा कर जनवाणी को ऊपर कर दिया। राजा ने फिर चन्द कवि से पूछा- कविराज शेर का कोई अच्छा सा नाम बताओ।

चन्द बोले राजन-नाहर, केहर, सिंह, राज बोले बस हमने राजकुमार खेता खंगार को अब ‘खेतसिंह’ खंगार की संज्ञा दे दी है। क्यों चन्द ठीक है न, शेर को मारने वाला सिंह पुरूष तो कहलाएगा ही। महाराज की जय हो, जय हो की ध्वनि आकाश मंडल में गूंज गई। तभी बहादुर क्षत्रिय लोग अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द का प्रयोग करने लगे हैं

Aabhar : Sanjay Singh Ji Gaur



हमारे पुराण - OUR PURANS

पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

1.ब्रह्म पुराण (Brhma Purana)–

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2.पद्म पुराण (Padma Purana)-

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

3.विष्णु पुराण (Vishnu Purana)-

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

4.शिव पुराण (Shiva Purana)–

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5.भागवत पुराण (Bhagwata Purana)–

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

6.नारद पुराण (Narad Purana)-

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7.मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana)–

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

8.अग्नि पुराण (Agni Purana)–

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9.भविष्य पुराण (Bhavishya Purana)–

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण (Brahma Vaivarta Purana)–

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11.लिंग पुराण (Linga Purana)–

लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12.वराह पुराण (Varaha Purana)–

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13.स्कन्द पुराण (Skanda Purana)–

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14.वामन पुराण (Vamana Purana)-

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15.कुर्मा पुराण (Kurma Purana)–

कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16.मतस्य पुराण(Matsya Purana)–

मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है।

17.गरुड़ पुराण (Garuda Purana)–

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

18.ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)-

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

साभार:  http://aapkikhabar.com

-aapkikhabar