डॉ. आठवले : ‘मुसलमान माता-पिताओंको बेटीके जिहादी बननेपर आनंद होता है । इसकी तुलनामें हिंदु माता-पिता बेटीद्वारा साधनामार्ग अपनाए जानेपर आक्रोशमें आकाश-पाताल एक कर देते हैं !’ (फाल्गुन शु. ३, कलियुग वर्ष ५११२ (८.३.२०११))
‘एक विद्वान’का भाष्य
२. मातृभाषाका सम्मान करनेकी सीख दी जानेसे उनके बालक जन्मसे ही धर्ममूल्योंका आचरण करते हैं ।
३. हिंदुओंद्वारा आधुनिकता अपनाई जानेके कारण उन्हें चैतन्य प्राप्त नहीं होता एवं उनकी आगामी पीढीपर अनैतिकताका दुष्परिणाम होता है ।
३ अ. पूर्वकालीन सुसंस्कारको त्यागकर आधुनिकताके प्रवाहमें बहनेवाले हिंदुओंका अपयशके मार्गपर चल पडते हैं ।
३ आ. २१ वीं शताब्दीकी दिशामें बढता हुआ प्रत्येक अभिभावक अपने बालकको विदेश जाते हुए देखना चाहता है । उसी प्रकार बेटीसे भी अभिभावकोंकी अनेक अपेक्षाएं होती हैं । वह आजके युगमें किसी भी क्षेत्रमें पीछे न रहे । इसलिए कुछ अभिभावक अपनी बेटियोंपर पश्चिमी प्रथाएं लाद रहे हैं । इसलिए बेटी शीलवान एवं चारित्र्यवान बननेकी अपेक्षा अत्यंत निम्न स्तरकी उच्छृंखल वर्तन करनेवाली गणिका समान बन रही है । ऐसी अधोगतिके मार्गपर चलनेके कारण मनुष्य जहां मानवता भूल चुका है, वहां धर्मनियमोंका पालन करना तो कोसों दूर रहा!
३ इ. परिवारका प्राण, अर्थात् स्त्री ही भ्रष्ट हो जानेके कारण भारतका भविष्य अंधःकारमय होना
३ ई. ऐसे तमोगुणी विश्वमें सर्वत्र असुरोंका प्रभाव बढ जानेके कारण वे अब पातालसे बडी शक्ति लेकर धर्मसूर्यको निगलनेका प्रयास कर रहे हैं । प्रत्येक व्यक्तिद्वारा साधना करने तथा राष्ट्र एवं धर्मके कार्यमें स्वयंको समर्पित करनेपर ही देश बच सकता है ।
४. आपत्कालमें रज-तमका वेगसे बढता आलेख एवं अनेक जिहादी भारतपर आक्रमण करने हेतु कटिबद्ध होते हुए भी भारतके हिंदु भोगवादमें एवं धनार्जन कर उसे लुटानेमें मग्न हैं ।
५. हिंदुओंको जहां शवोंका श्राद्ध करनेके लिए अवकाश नहीं है, वहां बालकोंको धर्मशिक्षा देना तो अत्यंत दूरकी बात है । मुसलमान लोग अपनी आयका कुछ अंश धर्मके लिए नित्य अर्पित करते हैं । कितने हिंदु अपने धर्मके लिए त्याग करते हैं ?
६. हिंदुओंद्वारा धर्माभिमान अपनाना, एक स्वप्नदृश्य बन जानेके कारण, अब हिंदुओंका विनाश निश्चित है ।
७. हिंदुओंको नमस्कार करनेमें भी जहां लज्जा आती है, वहां उनसे धर्मप्रसार करनेकी क्या अपेक्षा करेंगे ?
निष्कर्ष