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Tuesday, January 31, 2012

‘मुसलमानोंने अपना धर्म संजोया; परंतु हिंदुओंने अपने ही हाथोंसे साधना बतानेवाली अपनी चैतन्यमय संस्कृति धूलमें मिला दी ।

‘मुसलमानोंने अपना धर्म संजोया; परंतु हिंदुओंने अपने ही हाथोंसे साधना बतानेवाली अपनी चैतन्यमय संस्कृति धूलमें मिला दी । इस कारण अब उनका विनाश अटल है, यह सूचित करनेवाला प.पू. डॉक्टरजीका लेख !

प.पू. डॉक्टरजीके लेख, ‘मुसलमान माता-पिताओंको ......’ पर ‘एक विद्वान’का भाष्य

डॉ. आठवले : ‘मुसलमान माता-पिताओंको बेटीके जिहादी बननेपर आनंद होता है । इसकी तुलनामें हिंदु माता-पिता बेटीद्वारा साधनामार्ग अपनाए जानेपर आक्रोशमें आकाश-पाताल एक कर देते हैं !’ (फाल्गुन शु. ३, कलियुग वर्ष ५११२ (८.३.२०११))


‘एक विद्वान’का भाष्य

१. हिंदुओंके लिए धर्मशिक्षा न उपलब्ध होनेसे देश रसातलमें पहुंच गया है । किंतु, मुसलमानोंने जिहादको मनसे संजोया ! : धर्मशिक्षाके अभावमें हिंदुओंके नीतिमूल्योंमें आमूल परिवर्तन हुआ और देश रसातलतक पहुंच गया । परंतु, मुसलमानोंने अपना धर्माभिमान संजोकर आनेवाली पीढीको गंभीरतासे धर्मशिक्षा दी । इस कारण, गत अनेक वर्षोंसे उनकी पीढी-दर-पीढी जिहादी बन रही है ।

२. मातृभाषाका सम्मान करनेकी सीख दी जानेसे उनके बालक जन्मसे ही धर्ममूल्योंका आचरण करते हैं ।

३. हिंदुओंद्वारा आधुनिकता अपनाई जानेके कारण उन्हें चैतन्य प्राप्त नहीं होता एवं उनकी आगामी पीढीपर अनैतिकताका दुष्परिणाम होता है ।

३ अ. पूर्वकालीन सुसंस्कारको त्यागकर आधुनिकताके प्रवाहमें बहनेवाले हिंदुओंका अपयशके मार्गपर चल पडते हैं ।

३ आ. २१ वीं शताब्दीकी दिशामें बढता हुआ प्रत्येक अभिभावक अपने बालकको विदेश जाते हुए देखना चाहता है । उसी प्रकार बेटीसे भी अभिभावकोंकी अनेक अपेक्षाएं होती हैं । वह आजके युगमें किसी भी क्षेत्रमें पीछे न रहे । इसलिए कुछ अभिभावक अपनी बेटियोंपर पश्चिमी प्रथाएं लाद रहे हैं । इसलिए बेटी शीलवान एवं चारित्र्यवान बननेकी अपेक्षा अत्यंत निम्न स्तरकी उच्छृंखल वर्तन करनेवाली गणिका समान बन रही है । ऐसी अधोगतिके मार्गपर चलनेके कारण मनुष्य जहां मानवता भूल चुका है, वहां धर्मनियमोंका पालन करना तो कोसों दूर रहा!

३ इ. परिवारका प्राण, अर्थात् स्त्री ही भ्रष्ट हो जानेके कारण भारतका भविष्य अंधःकारमय होना

३ ई. ऐसे तमोगुणी विश्वमें सर्वत्र असुरोंका प्रभाव बढ जानेके कारण वे अब पातालसे बडी शक्ति लेकर धर्मसूर्यको निगलनेका प्रयास कर रहे हैं । प्रत्येक व्यक्तिद्वारा साधना करने तथा राष्ट्र एवं धर्मके कार्यमें स्वयंको समर्पित करनेपर ही देश बच सकता है ।

४. आपत्कालमें रज-तमका वेगसे बढता आलेख एवं अनेक जिहादी भारतपर आक्रमण करने हेतु कटिबद्ध होते हुए भी भारतके हिंदु भोगवादमें एवं धनार्जन कर उसे लुटानेमें मग्न हैं ।

५. हिंदुओंको जहां शवोंका श्राद्ध करनेके लिए अवकाश नहीं है, वहां बालकोंको धर्मशिक्षा देना तो अत्यंत दूरकी बात है । मुसलमान लोग अपनी आयका कुछ अंश धर्मके लिए नित्य अर्पित करते हैं । कितने हिंदु अपने धर्मके लिए त्याग करते हैं ?

६. हिंदुओंद्वारा धर्माभिमान अपनाना, एक स्वप्नदृश्य बन जानेके कारण, अब हिंदुओंका विनाश निश्चित है ।

७. हिंदुओंको नमस्कार करनेमें भी जहां लज्जा आती है, वहां उनसे धर्मप्रसार करनेकी क्या अपेक्षा करेंगे ?

निष्कर्ष

कलियुगमें धर्माभिमानके अभावके कारण ही हिंदुओंका विनाश होनेवाला है । अपने पूर्वजोंद्वारा सिखाए प्रत्येक धर्माचरणपर हमने ही अपने रज-तमात्मक विचारोंसे आघात किया है और उनकेद्वारा संजोए गए चैतन्यमय जीवनमूल्योंको मिटा दिया है । दिनोंदिन संपूर्ण पीढी हिंदु धर्मको कलंकित करनेमें ही अपनेको धन्य मान रही है । गत अनेक पीढियोंसे हिंदुओंद्वारा ही हो रहे हिंदुद्रोहके कारण, संचित रज-तम अब हिंदुओंको ही निगलनेके लिए उनके सामने मुंह खोले किसी असुरके समान खडा है । अतः हिंदुओ, अब तो जागृत होकर साधना करो, यह प.पू. डॉक्टरजीने अप्रत्यक्ष रूपसे इस लेखद्वारा बतानेका प्रयास किया है ।

(श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, चैत्र शु. २, कलियुग वर्ष ५११३ (५.४.२०११), दोपहर ३.१५)
COURTESY : SANATAN PRABHAT

विश्वके प्रत्येक देशमें मुसलमानोंद्वारा हिंदुओंके अस्तित्वको नष्ट करनेका प्रयास किया जा रहा है । हिंदु बंधुओ, इस षड्यंत्रको पहचानिए तथा अपना अस्तित्व बचानेके लिए संगठित हो जाइए !

विश्वके प्रत्येक देशमें मुसलमानोंद्वारा हिंदुओंके अस्तित्वको नष्ट करनेका प्रयास किया जा रहा है ।
हिंदु बंधुओ, इस षड्यंत्रको पहचानिए तथा अपना अस्तित्व बचानेके लिए संगठित हो जाइए !

कर्नाटकके सकलेशपुरमें पुलिस थानेके सामने ही बजरंगदलके स्थानीय प्रमुखपर मुसलमानोंका आक्रमण
सकलेशपुर (कर्नाटक) – बजरंगदलके स्थानीय प्रमुख श्री. रघु और श्री. विजी जब मार्गसे जा रहे थे, उस समय, ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ नामक मुसलमान संगठनके कार्यकर्ताओंने गुंडई की । इस संबंधमें श्री. रघु और श्री. विजीने पुलिस थानेमें परिवाद प्रविष्ट किया । उनके पुलिस थानेसे बाहर निकलते ही मुजाकिर और इरफान, इन दो मुसलमान गुंडोंने उन्हें पुलिस थानेके सामने ही निर्ममतासे पीटा ।

जामखेड (जनपद नगर) में हिंदुत्ववादियोंपर मुसलमानोंद्वारा तलवारसे आक्रमण !
जामखेड (महाराष्ट्र) - यहांके श्री नागेश विद्यालयमें आयोजित स्नेहमिलन समारोहमें छात्रोंने ‘मैं शिवाजी राजा भोसले बोल रहा हूं’ इस मराठी चलचित्रका शिवाजी राजाके संदर्भमें पोवाडा नामक गीत (शौर्यगीत) प्रस्तुत किया । उससे क्रुद्ध मुसलमानोंने पथराव किया । (शिवाजी राजाके संदर्भमें पोवाडा गीत प्रस्तुत किए जानेपर क्रोध करनेवाले मुसलमान औरंगजेबके ही वंशज हैं ! ऐसे धर्मांध मुसलमानोंको शिवाजी राजाकी पद्धतिसे ही उत्तर देनेकी आवश्यकता है, यह हिंदुओंको जिस दिन ज्ञात होगा, वह दिन हिंदुओंके लिए सुदिन होगा ! - संपादक) समारोह समाप्त होनेके उपरांत घर जानेवाले शिवप्रतिष्ठानके पदाधिकारियों पर तलवारसे आक्रमण भी किया गया । इस संदर्भमें पुलिस थानेमें परिवाद प्रविष्ट किया गया ।
डेन्मार्कमें स्थित हरे कृष्ण मंदिर पर मुसलमानोंद्वारा आक्रमण !
कोपनहेगन (डेन्मार्क) - डेन्मार्कमें पश्चिम कोपनहेगनमें स्थित ‘हरे कृष्ण’ मंदिरपर मुसलमानोंके एक समुदायने आक्रमण किया । युवकोंके इस समुदायने मंदिरपर पथराव कर मंदिरके द्वारके शीशे तोड दिए । मुसलमानोंके समुदायसे संघर्ष टालनेके लिए नगर प्रशासनने मंदिरके आसपासके मुसलमान प्रभावित क्षेत्रमें हिंदु भक्तोंको पारंपरिक वेश परिधान न करनेकी विनती की । (अर्थात् डेन्मार्कमें हिंदुओंका धर्मपालन करना कठिन हो गया है । आज ‘पारंपरिक वेश परिधान न करें’, ऐसा कहनेवाले भविष्यमें पूजा-पाठ करनेके लिए भी प्रतिबंध लगाएंगे । विश्वभरमें हिंदुओंने यदि संगठित होकर ऐसी घटनाओंका विरोध नहीं किया, तो पूरे विश्वमें हिंदुओंके श्रद्धास्थान नष्ट करनेके लिए भी मुसलमान नहीं हिचकिचाएंगे । - संपादक)
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अब राम नवमी उत्सव मनाने एवं मंदिर में घंटी बजाने पर रोक की माँग



हैदराबाद में मजलिस पार्टी के विधायक दल के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने शहर में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली शोभा यात्रा को अनुमति ना देने की प्रशासन से माँग की है| ओवैसी का कहना है की इस बार ईद मिलाद-उन-नवी का उत्सव होली के त्यौहार के आसपास ही है और उसी के कुछ दिन के बाद ही राम नवमी का उत्सव है जिससे शहर में दंगो की स्थिति पैदा हो सकती है|

ओवैसी की इस मांग से शहर के हिंदुओं में अत्यधिक रोष है और वही हिंदूवादी संघठनो ने इसकी कड़ी निंदा की| इस मुद्दे पर शहर के युवा नेता राजा सिंह ने कहा कि एक ओर ओवैसी प्रशासन से ईद मिलाद-उन-नवी के भव्य आयोज़न में सहयोग की अपील कर रहे है वही दूसरी ओर रामनवमी ओर हनुमान जयंती पर पाबंदी की माँग कर रहे है| राजा भाई ने कहा की पुराने शहर में मुस्लिम लीग का गुंडा राज चल रहा है जिसमें कांग्रेस बराबर की भागीदारी रही है| उन्होंने कहा की कोई भी राम नवमी ओर हनुमान जयंती मनाने से उन्हें नहीं रोक सकता|

राजा सिंह जी ने शहर की स्थिति बताते हुए कहा की सरकार हिंदू विरोधी कार्य करने में लिप्त है जिसका ताजा उदाहरण चार मीनार के पास स्थित भाग्यलक्ष्मी जी के मंदिर पर 'आरती के समय घंटे' बजाने पर रोक है; जिसके लिए प्रशासन ने दो कांस्टेबल भी भक्तों को घंटे-घन्टी बजाने से रोकने के लिए लगाये है|

इस विषय पर हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री जयपाल नयाल ने कहा कि ये माँग ना सिर्फ निंदा योग्य है बल्कि राष्ट्रभावना के विरुद्ध है, राम नवमी का उत्सव ना सिर्फ हिंदुओं का उत्सव है बल्कि यह पूरे भारत वर्ष का उत्सव है जो की भारतीय पुण्य भूमि के गौरान्वित इतिहास को दर्शाता है|

वही इस मुद्दे पर भाजपा के नगर कार्यकारिणी सदस्य नरेश अवस्थी ने इसे राजनितिक लाभ उठाने का प्रयास बताया| उन्होंने कहा कि ये माँग हिंदुओं एवं मुस्लिमो के बीच ईर्ष्या की भावना पैदा करने के लिए की गयी है ओर उन्होंने गृह मंत्री से इस माँग पर तत्काल कार्यवाही की अपील की है और कहा की राम नवमी का उत्सव इस बार ही पहले की तरह ही धूमधाम से मनाया जायेगा|

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चित्र में भक्तों को रोकती हुई महिला महिला कांस्टेबल

Published: Thursday, Jan 26,2012, 19:36 IST
Source: IBTL

Friday, January 13, 2012

क्या विडंबनाओं का देश बन कर रह जाएगा हमारा भारत?



कहा जाता हैं कि भारत विविधताओं का देश है। बात सच भी है। संस्कृति की समरसता के छत्र में वैविध्य की वाटिका यहाँ सुरम्य दृष्टिगत होती है। परन्तु आज वही भारत विडंबनाओं का देश बनने की ओर अग्रसर है। कारण वह मानसिकता है जो भारतीय न होते हुए भी भारतीयों को घेरे जा रही है। मर्यादा पुरुषोत्तम की जन्मभूमि भारत में मर्यादा ऐसी अन्तर्निहित थी कि उसे ऊपर से थोपने की आवश्यकता नहीं थी। परन्तु आज ऐसा नहीं होता तो उसका कारण इन्हीं अन्तर्निहित मर्यादाओं का क्षय है जिस कारण आज मर्यादाएँ ऊपर से थोपने की आवश्यकता आन पड़ी है। वैलेंटाईन डे आदि पर दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मर्यादा स्थापित करने के प्रयास अन्तर्निहित मर्यादा के उसी अपरदन के कारण जन्म लेते हैं। मर्यादा का उल्लंघन होगा, तो अपवाद रूप में ये भारत एम एफ हुसैन को बाहर निकलवाने और भारत तोड़ने के षड्यंत्रकारी प्रशांत भूषण को ‘बग्गा-पाठ’ पढ़ाने की भी क्षमता रखता है।


सदैव से आध्यात्म को भौतिकवाद से ऊपर रखने वाले इसी भारत ने "ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत" (अर्थात, उधार लो, मौज करो) की अवधारणा देने वाले चार्वाक को भी 'महर्षि' कहा, उन्हें ऋषि परंपरा में शामिल होने का गौरव दिया। वस्तुतः अपने से अलग को भी अपनाने की भावना, हमारी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। एक सिंधु के समान कितनी ही नदियाँ यहाँ मिलती आई हैं और समय के साथ साथ वे सब इसी का अंग हो गयी। किन्तु भारतीयता ने अपना मूल अर्थ नहीं खोया। और यह भी प्रमाणित सत्य है कि जो जो इस भारतीयता से ओत प्रोत रहा, उसने इसी संस्कृति को आगे बढ़ाया। आधुनिक युग की बात करें तो स्वामी विवेकानन्द का स्मरण होता है। थोड़ा और आगे सावरकर दिखलाई पड़ते हैं। और अभी की बात करें तो सुब्रमनियन स्वामी और नरेन्द्र मोदी जैसे उदाहरण हैं।


पाठक कहेंगे कि सावरकर, मोदी और स्वामी समरसता के नहीं अलगाववाद के प्रतीक हैं। परन्तु परछाई देख कर वस्तु के रंग को काला समझ लेने की भूल तो मूर्ख ही किया करते हैं। यही आज की समस्या है। अपनी भारतीयता की अन्तर्निहित स्वीकरण की भावना को छोड़ जब हम पाश्चात्य मापदंड अपनाते हैं, तब हमें नैसर्गिकता भी विकृति लगने लगती है। ये उन मापदंडों का दोष है कि परछाई देख कर एक शुभ्र वस्तु भी काली समझ ली जाती है। बात उदाहरण से स्पष्ट हो पायेगी।


समरसता और स्वीकरण, जो अपने नहीं, उन्हें भी अपना लेने का उदाहरण सावरकर जैसा अनोखा शायद ही मिले। हिंदू मुस्लिम वामनस्य के उस दौर में सावरकर ने 'हिंदू' शब्द को ऐसा परिभाषित किया कि भारत-भक्त मुस्लिम उस परिभाषा में हिंदू समाज, हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के अंग बन गए। सावरकर के अनुसार, "जो भी इस भारत भूमि को अपनी पितृभूमि एवं अपनी पुण्यभूमि मानता है, वह हिंदू है"। अब इस परिभाषा के अनुसार प्रत्येक राष्ट्रभक्त भारतीय, उसका पंथ कुछ भी हो, उसका पूजा स्थल मन्दिर हो, अथवा मस्जिद, अथवा चर्च अथवा कुछ और, वह हिंदू हो जाता है। सावरकर के हिंदुत्व की परिभाषा को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अपनाया। सावरकर ने कहा था, "भारत के मुस्लिमों, ये देश आपका है। इसके टुकड़े करने के षड़यंत्र में न फँसो। आप साथ हो तो आपके साथ, आप साथ नहीं हो तो आपके बिना, और आप विरोध में हो तो आपने विरोध के बावजूद, हम भारत को स्वतंत्र करवाएँगे।" विभाजन के लिए उत्तरदायी राजनैतिक दल के कुछ लोग ऐसा कहने वाले सावरकर को उलटे विभाजन का उत्तरदायी ठहराते हैं। उन्हें 'हिंदू जिन्ना' तक कह डालते हैं। फ़्रांस की सरकार सावरकर पर स्मारक बनना चाहती है परन्तु वोटबैंक की राजनीति में जकड़ी भारत की सरकारें लगभग १५-१६ साल से फ़्रांस को अनुमति नहीं दे रही हैं। यदि इस परिभाषा पर अमल किया जाये, तो 'अल्पसंख्यक' जैसे कपटपूर्ण शब्द की आवश्यकता ही न रहे।


कुछ ऐसी ही बात की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने। उन्होंने अपनी पुस्तकों में एवं कुछ मास पहले प्रकाशित अपने लेख में भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए। 'जो भी भारत की प्राचीन संस्कृति में आस्था रखता है, मानता है कि वह भी इसी मिट्टी की संतान है, उसके पूर्वज यहीं के थे, कहीं बाहर से नहीं आये, आज उसका पूजा-स्थल कोई भी हो, वह हमारे 'विराट हिंदू समाज' का अंग है। हाँ, यदि ऐसा नहीं है, तो वह विरोध, विध्वंस एवं विनाश के बीज बोएगा, और उसे ऐसा करने से रोकने की आवश्यकता है।' तथाकथित 'अल्पसंख्यक' जिन्हें स्वयं को छाती पीट पीट कर धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करके तुष्टिकरण कर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले राजनैतिक दलों ने इतने वर्षों से उस अखबार की तरह प्रयोग किया जिसपे खाना खा कर उसे कूड़े में फेंक दिया जाता है, वे सभी केवल इस अपनत्व को स्वीकार लें, तो वे इस प्रकार प्रयोग होने से बच जाएँ। परन्तु, उसी लेख के कारण सुब्रमनियन स्वामी पर अनर्गल आरोप लगाये गए।


अब आते हैं नरेन्द्र मोदी पर। मोदी ने सदैव "मेरे ५ करोड़ गुजराती" कह कर अपनी प्रजा को संबोधित किया। शायद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को उनसे सीख लेने की आवश्यकता है जो वे उर्दू में लिखा अपना भाषण पढ़ते हुए लाल किले की प्राचीर से भी भारतवासियों को नहीं, "हिंदुओं, मुस्लिमों, सिखों, ईसाईयों" को संबोधित करते हैं। सबका साथ, सबका विकास, समरसता, सद्भावना को जीवंत करके दिखलाने वाले मोदी के गुजरात में विगत ९.५ वर्ष अभूतपूर्व सांप्रदायिक सौहार्द के वर्ष रहे हैं। दंगों का लंबा इतिहास रखने वाले गुजरात में २००२ के दंगों के बाद से वहाँ साम्प्रदायिकता का एक पत्ता नहीं खड़का। स्वयं भारत सरकार द्वारा मनोनीत समितियों की रिपोर्ट कहती है कि गुजरात में मुस्लिम भारत के किसी अन्य राज्य की अपेक्षा अधिक सुखी, अधिक संपन्न हैं। और विकास की अभूतपूर्व आँधी में मोदी ने संस्कृति सभ्यता का हनन नहीं होने दिया। गुजरात के सांस्कृतिक गौरव को जीवंत रखा। परन्तु मोदी की छवि उसके बिलकुल विपरीत बनाने के प्रयास किए गए। वस्तुतः मोदी के चरित्र हनन के जितने प्रयास हुए हैं, उन्हें देख कर कंस द्वारा कृष्ण की हत्या के लिए भेजे गए तमाम राक्षसों का स्मरण हो आता है। परन्तु जग जानता है, कंस कृष्ण का कुछ बिगाड़ न सका था, और समय आने पर, कंस का वध भी कृष्ण के ही हाथों हुआ। और ऐसा भी नहीं कि केवल कंस वध ही कृष्ण के होने का कारण हो, वह तो प्रारंभ था। मथुरा को कंस के अत्याचारों से मुक्त करवाने के बाद कृष्ण ने धर्मयुद्ध करवा कर पूरे भारत को एकीकृत कर सम्राट युधिष्ठिर के शासन में धर्म की संस्थापना की थी।


अब प्रश्न उठता है कि वे लोग किस मानसिकता का विष लिए घूम रहे हैं जिन्हें सावरकर, मोदी और स्वामी अपनाने के नहीं, ठुकराने के, जोड़ने के नहीं, तोड़ने के पैरोकार दिखाई देते हैं। ध्यान रहे ये वही लोग हैं, जिन्हें सच को सच कहने में मृत्यु आती है। ये वो लोग हैं जो अन्ना हजारे द्वारा गुजरात के विकास की प्रशंसा करने पर ऐसा विधवा-प्रलाप करते हैं कि अपने आन्दोलन के निष्फल हो जाने के भय से घबराए अन्ना को विवश हो कर प्रशंसा वापिस लेनी पड़ती है। महबूबा मुफ्ती मोदी की प्रशंसा करके मुकर जाती हैं और उनका झूठ बैठक के प्रतिलेखों से सामने आता है। डेढ़ दशक से अधिक समय से प्रत्यक्ष समाज सेवा में लगी, अनेक अनाथ बच्चों, विधवा स्त्रियों एवं असहाय वृद्धों के लिए वात्सल्यग्राम चलाने वाली पूजनीया साध्वी ऋतंभरा के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शामिल होने पर इस मानसिकता के लोग ऐसा हंगामा खड़ा करते हैं, जैसे आसमान टूट पड़ा हो। कारण, उनके विरुद्ध रामजन्मभूमि विवाद से सम्बंधित एक अभियोग न्यायालय में लंबित है। परन्तु, उन्हीं लोगों को कभी भी भारत विरोधी भाषण देने वाले शाही इमाम के आगे मत्था टेकने में कोई खोट दिखाई नहीं देता। और इस मानसिकता के विकृत रूप की पराकाष्ठा तो तब हुई जब ८ दशकों से इस देश की अस्मिता एवं अखंडता की रक्षा एवं सेवा में लगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से अलग दिखलाने के लिए अन्ना और उनकी टीम ने धरती आकाश एक कर दिए। १० वर्षों से संघ के स्वयंसेवकों द्वारा स्थापित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहले कश्मीर और अब सम्पूर्ण भारत के मुस्लिमों को विद्वेष एवं तुष्टिकरण की राजनीति खेलने वाले दलों के दुष्प्रचार के चक्रव्यूह से बाहर निकालने में लगा हुआ है। पर जो लोग सावरकर, मोदी और स्वामी के तत्व को न देख, उनकी परछाई को ही देख उन्हें गलत समझने की भूल करते हैं, अथवा सब कुछ जान बूझ कर उनके विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं, वहीं लोग संघ को भी लांछित करने में सबसे आगे होते हैं।


परछाई तो केवल उस प्रकाश की अनुपस्थिति का प्रमाण है जो व्यक्ति ने सोख लिया ताकि वह जग को प्रकाशित कर सके। परछाई देख मंतव्य बना लेना तो भारतीय संस्कृति नहीं। कैसी विडम्बना है कि मोदी के विकास की प्रशंसा करना भी पाप है, और संघ या साध्वी ऋतंभरा भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने आएँ तो उनसे अछूतों जैसा व्यवहार करने की संस्तुति की जाती है। क्या 'सत्यमेव जयते' के देश में सच कहना प्रतिबंधित हो गया है ? हमें सावरकर, मोदी, स्वामी और संघ जैसे उदाहरणों से सीखने की आवश्यकता है। वही हमारी संस्कृति के आधुनिक प्रतिनिधि हैं, और संरक्षक भी, और हमारे स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न को साकार करने के दायित्व के उत्तराधिकारी भी। सनातन राष्ट्रवाद को समझने और अपनाने की आवश्यकता है। भारत को विडंबनाओं का नहीं, पुनः गौरवपूर्ण विविधताओं का राष्ट्र बना पुनः विश्वगुरु पद पर आसीन करवाने के मार्ग में यह एक महती योगदान होगा।


अभिषेक टंडन (ये लेखक के निजी विचार हैं)

Published: Friday, Jan 13,2012, 16:17 IST

Source: IBTL

Thursday, January 12, 2012

WAKE UP HINDU'S - - -


The Hindu secularists : Liberals or Hypocrites?


Pseudo Secularism
Pseudo Secularism
By Sameer Thakkar
Today, we can find many people who are quick to christen famous Hindu gurus as “dhongis” and “pakhandi”. Such people generally hold the view that to become a guru all one needs is to chant a few mantras and promote the superstitions. These people think that the millions who follow the advice and teachings of such gurus are “fools” and ignorant of the modern science. Moreover, they not only percieve Hinduism as a mix of cast system, dowry, sati pratha etc but also use these assumptions as a basic elements of their argument to further denigrate their own culture and the ancient knowledge. These are the set of people who have never read even the bhagvad-Gita, the works of the world famous scholar Sri Aurobindo or the testimonials of the famous scientists like Heisenberg, Nicholas Tesla, Albert Einstein etc.
On the contrary, today, if any other Hindu promotes the true aspects of hinduism and tries to clear the myths and distortions, then such people are quick to term him as ‘illiterate and unscientific’. Moreover, if a Hindu questions the aspects and practices of other religions he is termed as “communal”. A person born in a hindu family who doesn’t even know anything regarding these differentiations created by the abrahamic invaders is often termed as anti-minority if he, from his own conscience and objectivity, questions reservation based on religion and animal killing. If he questions the scams, corruption and anti-nationalism of the ministers in the Congress government which thrives on minority appeasment, then he is termed as “BJP-RSS” activist.
A patriot is one who thinks about his country first. It is the conscience of a person which makes him voice against animal killings and other atrocities. How can any person who raises “pro-India” slogans which can be anti-Congress be confused as or termed deliberately as pro-”BJP-RSS”? Reservation based on religion is a direct abuse to the secularism and animal killings are against animal rights and welfare. How can supporting these causes be called “communal”?
Recently, many pseudo secularists wrote articles against Dr.Subramanyam Swamy’s article on ‘How to wipe out Islamic terror”. Aditya Ramakrishnan wrote, “I am 17 years old. I am not a Muslim. I am not a Christian. I was born a Hindu, but I am against religious fundamentalism of any kind because it breeds distrust and tears apart the social fabric of any country.” Parsa Venkateshwar Rao Jr wrote, “Many liberals have been outraged by Swamy’s arguments. The maverick — he hates the term and objects to being described as one — politician is no closet Hindu right-winger.”
If Aditya Ramakrishnan and Venkateshwar are so concerned about Dr.Swamy’s statements, then perhaps they should also similarly discuss on the killing of infidels, idolators, jews and christians as openly mentioned in some other scriptures which divides the society between their faith and the rest of the world. The apologists argue that the term “infidel” refers to one who doesn’t believe in God. “La Iaha Ill Allah Muhammudur Rasool Aallah”, God according to Islam is Allah and there is no other name except Allah and one who doesn’t believe in the abrahamic god is called as “atheist”.
Baburnama and Aurangzebnama themselves testify how Babur and Aurangzeb killed infidels and destroyed temples for the sake of Allah and to spread Islam (e.g Baburnama page 232,370,371, 373, 374, 385-388, 527 etc). The same pattern can be seen in the email sent by the Indian Mujahideen on Varanasi terror attacks. But, the pseudo-secularists seem to have a habit of ignoring such patterns but rather argue that “all religions are the same”. If that was the case, then abrahamic invaders would have prayed in the temples instead of demolishing them, Bamiya Buddha statues would have been honoured and animals like goats and cows would have been protected and not killed to appease some God on some festival. Quran itself sees Allah as the ultimate god and Islam as superior. How is it then such pseudo-seculars are the champions in denigrating Hinduism which doesn’t divide the society between hindus and non-hindus, and pioneers in playing a mute audience where secularism and democracy are openly abused? For a muslim, no other name is to be chanted other than Allah and to appease that “God of mercy” a goat is killed on Bakr-Id. Jihad related terrorism is not just local to India but global. Do we find Hindus, Buddhist, Sikhs, Jains etc blowing up mosques or churches all over the world? Why is it then that the Indian history which is full of temple destructions, conversion by hook or crook etc, as stated by the invaders themselves, is ignored? Why is it that an open discussion and exposition of such verses and testimonies is called “communal”?
Discussions and questioning of Quran and Mohammed is prohibited and reservation based on religion or animal killing to appease some God are ignored. Ex-Muslims like Taslima Nasreen, Salman Rushdie were exiled. Whereas, thousands of Hindus and non-hindus keep writing inflammatory speeches against Hinduism and India themselves. “O you who believe, take not the Jews and the Christians for friends. They are friends of each other. And whoever amongst you takes them for friends he is indeed one of them. Surely Allåh guides not the unjust people”. (Quran 5.51). Clearly, the Jews and christians are not friendly according to Quran and the idolators are “unequal and unclean” (Quran 9.19, 9.28). Nobody is a born genius to know about a “holy name”, if a particular animal is really meant to be killed or if a particular category of people are “inferior or unfriendly”. Some apologists argue that such verses reflect the ancient life when Islam started in Arab. Such a connotation also implies that such ancient practices are not applicable in the case of India, a land where “athiti devo bhava” and ideals of “ahimsa” have been the eternal mantras, the cows are treated as divine and the divine elements of the nature are personified and celebrated in the form of paintings and idols. In general, such ancient practices are not compatible with the modern world where people make idols of different forms and personalities for different reasons.
The Indian law gives death punishment in the rarest of the cases, but can the same be said about Sharia law which is based on Quran? “The punishment of those who wage war against Allah and His Messenger [i.e., Muhammad], and strive with might and main for mischief through the land is: execution, or crucifixion, or the cutting off of hands and feet from opposite sides, or exile from the land: that is their disgrace in this world, and a heavy punishment is theirs in the Hereafter. ( Quran 5.33)”
Fight those who believe not in Allåh, nor in the Last Day, nor forbid that which Allåh and His Messenger have forbidden, nor follow the Religion of Truth, out of those who have been given the Book, until they pay the tax in acknowledgement of superiority and they are in a state of s subjection (9.29)
In the western world, the studies of comparative religion itself is a subject and history is seen without any bias or filters. But in India, it seems, any discussion of history which includes abrahamic invasion and mughal atrocities or questioning of “minority scriptures” is seen as “communal”.
References :
http://www.muslim.org/english-quran/ch005-100.pdf
Full texts os Indian Mujahideen on Varanasi blasts : http://www.freedombulwark.net/voices/257

SOURCE

Friday, January 6, 2012

हिन्दुओ, स्वाभिमान जाग्रत कीजिये

हिंदुओ, यह देश हिंदुओंका है और हिंदुओंका ही रहे, ऐसा आपको लगता हो, तो आगे दी हुई बातें धर्मनिरपेक्ष (अधर्मी) कांग्रेसी शासकोंसे स्पष्ट कहिए । यह देश है,


१. देशकी स्वतंत्रता और सर्व भारतीयोंके लिए जीवन समर्पित करनेवाले लोकमान्य तिलक, स्वा. सावरकर और भगतसिंह आदि क्रांतिकारियोंका !

२. हिंदुओंकी रक्षा करनेवाले, हिंदुओंके मंदिरोंकी पवित्रता बनाए रखनेवाले, हिंदु धर्मका पालन करनेवाले और हिंदु धर्मसे असीम प्रेम करनेवाले प्रखर धर्माभिमानियोंका ।

३. भारतके महान संतों और गुरुओंका, जिन्होंने अपना जीवन समर्पित कर कोटि-कोटि हिंदुओंके उद्धारके लिए अथक महान प्रयत्न किए और आज भी कर रहे हैं तथा जिन्होंने अपने सामर्थ्यसे भारतकी सात्त्विकता बनाए रखकर सर्व हिंदुओंको जीवित रखा है ।

४. भारतका मस्तक गर्वसे ऊंचा करनेवाले वीर सैनिकोंका, जो अपना सिर हथेलियोंपर रखकर इस भारतकी रक्षाके लिए सीमापर दिन-रात डटे हैं ।

५. समाजका निरंतर प्रबोधन कर श्रेष्ठ मार्गपर चलानेवाले, उसपर उत्तम संस्कार करनेवाले, उसे इतिहास और पराक्रमी राष्ट्रीय हिंदु नेताओंका पुनःपुनः स्मरण करवाकर साहस, वीरता, पराक्रम, धैर्य, शौर्य आदि गुणोंके बीज बोनेवाले समाज सुधारकोंका ।

६. यह देश है ईश्वरकी प्राप्तिके लिए साधना करनेवालोंका और अपने साथ समाजको यह ध्येय देकर समाजका भी उत्कर्ष साध्य कर संपूर्ण राष्ट्रको ही ईश्वरप्राप्तिकी दिशामें गतिमान कर राष्ट्रकी सर्वांगीण प्रगति करवानेवालोंका !’

७. संक्षेपमें, यह देश है नीतिमान, प्रखर राष्ट्राभिमानी, हिंदु धर्माभिमानी और देशके लिए समय देकर कुछ करनेवालोंका, अर्थात् कर्महिंदुओंका ।

(अधिक वैशाख शु. ३, कलियुग वर्ष ५११२ (१७.४.२०१०))

Courtesy By : SANATAN PRABHAT

देश वासियों, विचार कीजिये ये देश किसका हैं.

१. हिंदुओंसे मुंहजोरी करनेवाले, उनपर अत्याचार करनेवाले, उनके धर्माचरणमें बाधा डालनेवाले और उनकी हत्या करनेवाले १४ करोड मुसलमानोंका अथवा ‘वंदे मातरम्’ न कहनेवाले राष्ट्रद्रोही मुसलमानोंका ? अथवा, इसका उत्तर न मांगनेवाले कायर धर्मनिरपेक्षतावादी (अधर्मी) कांग्रेसी शासकोंका ?

२. सहस्रों नागरिकोंको आतंकवाद, नक्सलवादके कारण मृत्युके मुखमें ढकेलनेवाले नपुंसक धर्मनिरपेक्षतावादी (अधर्मी) कांग्रेसी शासकोंका अथवा निरंतर हिंदुओंका कपटसे धर्मपरिवर्तन करनेवाले और हिंदु नेताओंकी चुन-चनकर हत्या करनेवाले ईसाइयोंका ?

३. ‘इस देशकी संपत्तिपर प्रथम अधिकार मुसलमानोंका’, यह कहनेवाले प्रधानमंत्रीका अथवा देशकी संपत्ति मुसलमानोंपर न्यौछावर करनेवाले और 110 करोड हिंदुओंको संपत्तिके अधिकारसे वंचित रखनेवाले पक्षपाती कांग्रेसी शासकोंका ?

४. हिंदुओंपर अकारण अत्याचार करनेवाले तथा मुसलमानोंके सामने नतमस्तक होनेवाली पुलिसका ?

५. भ्रष्टाचारी, नैतिकताहीन, स्वार्थी, जनतासे रत्तीभर भी प्रेम न करनेवाले, देशकी सत्ता, अन्य सुखोपभोग और अपरिमित धन आदिका अमर्यादित उपभोग करनेके पश्चात् भी जनताको अत्यावश्यक आवश्यकताओंकी (अन्न, वस्त्र, निवास, बिजली, पानी और चिकित्सा इत्यादि) पूर्ति न करनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी (अधर्मी) कांग्रेसी शासकोंका ?

६. महान हिंदु धर्मसे द्वेष करनेवाले और हिंदुत्ववादियोंका तेज भंग कर उनमें फूट डालकर, उन्हें संगठित न होने देनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी (अधर्मी) कांग्रेसी शासकोंका ?

Courtesy : With thanks from SANATAN PRABHAT

Monday, January 2, 2012

Why Godhra only ? Read the history of RIOTS since 1715-1969


If we take the history of Ahmedabad for last five centuries, the city was ruled by Muslims and Mughals for about 340 years the rest by Marathas & The British coming to the incidents of communal riots during this era of five centuries, the major incidences are:

(1) 1714: Holi Riots: A Hindu named Hari Ram while celebrating Holi with his friends at his residence sprinkled ‘Gulal’ a red powder on one muslim, which was strongly protested by Muslims. A mob got assembled near Jumma Masjid under the leadership of Sunni Bohra Mulla Abdul Aziz. Afghan soldiers of the Muslim viceroy also joined the mob seeing the situation. A Kazi interfered for cooling down the angry mob. But the mob set on fire the house of this Kazi. The rioteers thereafter looted the shops of Hindu Mohalla, Shops and set their houses to fire. The rioters could be controlled only by armed guards of a Hindu, Kapurchand Bhanshali.

(2) 1715: Another Communal Riot: The 1715 communal riots were due to looting of shops of Hindus by Muslim soldiers. The riot came to an end with replacement of Muslim viceroy Daudkhan.

(3) 1716: Id riots: Consequently during the third year also, communal disturbances broke out during id in 1716. Bohra community Muslims gathered cows and buffallows for id celebration. A Muslim Havaldar just out of pity released one of such gathered cows. The Muslim protested before the Kazi Khairullakhan seeing no outcome to their expectation, the Muslims resorted to riots arson and mass looting of Hindu establishments. The situation could come to normally with Hindu viceroy Ajitsinh’s concerted efforts.

(4) 1750: Temple Demolition: 1750 riots by Muslims were provoked simply with an excuse that their Namaz was being disturbed due to noise of ringing of bell in the adjoining temple. The Muslims while returning from Masjid after Namaz, totally destroyed the temple and thus played with the Hindu sentiments.

(5) 1941: Riots: Communal disturbances broke out on 18th April 1941. The Muslims diverted to Muslim legue programmes after incidence of these riots.

(6) 1946: Rath Yatra Riots: 1st July, 1946, was a Rath Yatra day. Rath Yatra as usual was passing through Shaher Kotda Police Station Area, on this auspicious day. There took a hut exchange between a Hindu Akhada man and a Muslim watching the procession. The incidence turned into breaking out of communal violence, viz. arson, stone throwing, stabbing etc. There was also a police firing and curfew was finally imposed, to control the situation.

(7) 1965: Sikh incidence: The 1965 riots were resulted out of murder of two Shikh Rickshaw drivers by Muslims. The angrieved Shikhs took out funeral procession of both these dead bodies. The situation got disturbed at Delhi Darwaja and got converted into a communal riot soon.

(8) 1969: Historic Communal Riots: These riots were biggest of its type having taken lives of about 560 persons. It was 18th Sept. 1969, the last day of Urs. The violence crept up in the evening time on the ground that Jagannath Mandir cows going back to temple premises disturbed the URS. It may be mentioned that movement of cows was a daily routine irrespective of URS celebration taking place simultaneously. A hot discussion took place which provoked communal tension with a series of violent, incidences killing, linking, and soon in various parts of the city.

http://www.ibtl.in/news/exclusive/1246/why-godhra-only---read-the-history-of-riots-since-1715-1969

saabhar : Karsevak India

1964 में पाकिस्‍तान से 9 लाख से भी अधिक हिंदू निष्‍कासित



49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:1
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी का अध्‍यक्षीय भाषण
प्रस्‍तुति: पं0 बाबा नंद किशोर मिश्र
स्‍वागताध्‍यक्ष महोदय, प्रतिनिधि बन्‍धुओं एवम् मित्रों।
आपने मुझे इस महान् संगठन का अध्‍यक्ष-पद पुन: प्रदान कर जो सम्‍मान दिया है, उसके लिये मैं आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं। पाटलिपुत्र की यह प्राचीन महानगरी अतीत में हिन्‍दू धर्म एवं संस्‍कृति का केन्‍द्र रही है। बिहार प्रांत में ही भगवान् महावीर तथा अन्‍य कई तीर्थंकर एवं भगवान बुद्ध सरीखे महान् धार्मिक नेताओं का आर्विभाव हुआ था। अशोक एवं पुराणों में विख्‍यात गयासूर सरीखे महान् सम्राटों ने भी इस प्रांत की पावन धरती को गौरवान्वित किया था। इस पावन तथा प्राचीन महानगरी पा‍टलिपुत्रके नागरिकों एवं हिन्‍दुस्‍थान के एक छोर से दूसरे छोर तक के आये हुए प्रतिनिधि बंधुओं को सम्‍बोधित करने का सुयोग प्राप्‍त कर भी मुझे गौरव की अनुभूति हो रही है।
पिछला वर्ष, एक बुरा वर्ष था
गत वर्ष भारत के राजनीतिक इतिहास में अनेक उल्‍लेखनीय घटनाओं से परिपूरित वर्ष था। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का सहसा ही जून मास में देहावसान हो गया और उनके उपरांत एक नवीन मंत्रिमंडल का गठन हुआ। संपूर्ण देश के समक्ष खाद्यान्‍न की कमीं की समस्‍या मुख फैलाकर उपस्थित हुयीत तो जीवनोपयोगी पदार्थों के भावों में वृद्धि भी अबाध-गति से होती रही। इन सब समस्‍याओं के अतिरिक्‍त स्‍वदेश की सुरक्षा, पाकिस्‍तान के आक्रमण, कश्‍मीर तथा नागालैण्‍ड आदि की पहले से ही विद्यमान समस्‍याओं का भी समाधान न खोजा जा सका।
भाषा की समस्‍या तथा स्‍वदेश में ही सक्रिय चीन और पाकिस्‍तान के क्रीतदासों(दलालों) की गतिविधियों ने भी राष्‍ट्र की सुरक्षा को चुनौती दी। भारत के बाहर अन्‍य देशों में निवास करने वाले हिन्‍दू बंधुओं पर आपदाओं के घन गहरा उठे और उन्‍हें जन एवं धन दोनों की हानि उठानी पड़ी। उन्‍हें लाखोंकी संख्‍या में शरणार्थी बनकर पाकिस्तान, ब्रह्मदेश, श्रीलंक, अफ्रीका एवं अन्‍य देशों से शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा और वहां कई पीढि़यों से बनाये गये अपने निवास तथा आवास स्‍थानों को भी अंतिम प्रणाम कर विदा लेने पर विवश होना पड़ा। 1964 में केवल पाकिस्‍तान से ही 9 लाख से भी अधिक हिंदू निष्‍कासित कर दिये गये।

ऐसा क्‍यों

आज जब भारत एक स्‍वतंत्र देश है और''लोकप्रिय'' सरकार का शासन है तो इस राष्‍ट्रीय अपमान और दुर्दशा का कारण क्‍या है? राह में चलता एक सामान्‍य व्‍यक्ति भी इस प्रश्‍न का यही उत्‍तर देगा कि वर्तमान सरकार की नीति ही हमारे राष्‍ट्र के समक्ष विद्यमान कष्‍टों एवं दुखों के लिये उत्‍तरदायी है। वर्तमान सरकार की नीति के विदेश, आर्थिक अथवा गृह नीति संबंधी किसी विशेष पक्ष की आलोचना करना निरूपयोगी ही है क्‍योंकि इसकी नीति का मूल आधार ही त्रुटिपूर्ण है और इसका अधिष्‍ठान ही दुर्बल सिद्धांतों पर आधारित है। वस्‍तुत: वर्तमान सत्‍ताधीशों ने सतोगुण के नाम पर निकृष्‍टतम ''तमागुणी'' व्‍यवस्‍थाओं की पद-वंदना की है।
क्रमश:
Saabhar : Hindu Mahasabha