हरिद्वार का बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर
जहां शिव प्रकट हुए थे
दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पिता द्वारा माता सती अपने पति भगवान शिव का अपमान देखकर आहत हो उठीं। आवेश व क्रोधवश उन्होंने यज्ञकुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दिया। इस घटनाक्रम के कई वर्ष उपरांत माता सती ने पर्वतराज हिमालय के घर उनकी पुत्री के रूप में दुबारा जन्म लिया। अपने इस जन्म में भी वे भगवान भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। अत: मां पार्वती ने तप द्वारा प्रभु को प्रसन्न करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि वर्षों घोर तपस्या करने के पश्चात् शिव शंकर माता पार्वती से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर माता को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। तब माता गौरी ने भगवान को स्वयं के पति के रूप में पाने का वरदान प्राप्त किया।
जिस स्थान पर माता पार्वती ने भोले बाबा को प्राप्त करने के लिए तप किया, वह स्थान गौरी कुंड कहलाया। इसके पास ही जिस जगह महादेव ने प्रकट होकर पार्वती जी को दर्शन दिए वह बिल्वकेश्वर महादेव के नाम से स्थापित हो गया। चूंकि भगवान शंकर बिल्व वृक्ष के नीचे प्रकट हए थे, वे बिल्वकेश्वर के नाम से विख्यात हुए। यह संपूर्ण क्षेत्र आज भी बिल्व पर्वत के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह पावन स्थान हरिद्वार की पुण्यभूमि पर विराजमान है। हरिद्वार आने वाले अधिकांश श्रद्धालु इस पावन तीर्थ की महिमा से अनभिज्ञ रह जाते हैं, जबकि हर की पैड़ी से यह स्थान मात्र 4 किमी.की दूरी पर है।
स्कंद पुराण में इस तीर्थ का वर्णन प्राप्त होता है। स्कंद जी ने देवर्षि नारद को बिल्वकेश्वर की महिमा तथा पवित्रता के बारे में बताया। स्कंद पुराण में ही माता पार्वती द्वारा 3000 वर्ष तक यहां तप करने व भगवान शंकर के प्रकट होने का वर्णन मिलता है। यहां स्थित गौरी कुंड में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस तीर्थ का महात्म्य श्रवण करने से दुर्लभ पुण्य की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण में ही लिखा है कि बिल्व पर्वत के ऊपर एक शिव धारा बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य शिव तुल्य हो जाता है। इसी के दक्षिण भाग में अश्वतर नामक महानाग के निवास करने की बात कही गई है। यह नाग शिव स्वरूप माना जाता है तथा कई प्रकार के रूप बदलता रहता है। वाम भाग में एक पाषाण गुफा है, यहां पर एक सिद्ध योगी तप करते हैं। इस धर्मात्मा मुनि का नाम ऋचिक बताया गया है।
स्कंद पुराण में ही आगे कहा गया है कि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को इस पर्वत क्षेत्र में एक महान व दिव्य ज्योति के दर्शन होते हैं। यह ज्योति साक्षात् शिव-पार्वती स्वरूप मानी जाती है। इस प्रकार श्रावण मास में बिल्वकेश्वर महादेव की आराधना करने से शंकर भगवान प्रसन्न होते हैं। विशाल पर्वत व जंगल के मध्य विराजमान यह तीर्थ आज भी बेहद आकर्षक प्रतीत होता है। श्रावण मास में तो कांवड़िये यहां गंगा जल लाकर महादेव का अभिषेक करते हैं। हरिद्वार के दक्षिण पश्चिम भाग में विद्यमान इस मंदिर में सड़क मार्ग द्वारा किसी भी वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है। हरियाली से युक्त यहां का वातावरण बहुत मनमोहक है। हाथी सहित कई जंगली जानवर यहां स्वछंद विचरण करते हैं। जिस बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान प्रकट हुए थे, वह लुप्त हो चुका है। उसके स्थान पर एक नीम का वृक्ष खड़ा है। इसी के नीचे शिवलिंग व शिव परिवार स्थापित है, जिनके दर्शन से ही मन को असीम शांति का अनुभव प्राप्त होता है। थोड़ी दूरी पर ही गौरी कुंड है, जहां स्नान का विशेष महत्व है। माता गंगा के पावन तट पर भगवान भोलेनाथ का यह धाम एक वरदान के समान प्रतीत होता है।
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