भारतके हितकी उपेक्षा कर आतंकवादको बढावा देनेवाले निष्क्रिय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह !
‘जिस प्रकार, ऋतुओंमें नित्य परिवर्तन सामान्य घटना हैं’, उसी प्रकार भारतमें बमविस्फोट होना, अब नित्यकी बात हो गई है । वह कब होगा, इसकी प्रतीक्षा करना ही समस्त भारतीयोंके भाग्यमें है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहजीके हाथोंमें सर्व सत्ता एवं सुरक्षा व्यवस्था है, तब भी बमविस्फोटकी पूर्वसूचना मिलनेपर उनका शासन कुछ नहीं करता । ऐसे निष्क्रिय प्रधानमंत्री मिलना समस्त भारतीयोंका दुर्भाग्य ही है ।
१. शासकोंकी निष्क्रियताके कारण अतिसाधारण आतंकवादी संगठनोंका भारतको धमकाना : ७.९.२०११ को हुए दिल्लीमें बमविस्फोटके पश्चात् प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहने नित्यकी भांति कह डाला, ‘यह कायरतापूर्ण कृत्य है ।’ उन्होंने बताया नहीं कि, इस स्थितिमें उन्होंने क्या किया । उन्होंने कुछ नहीं किया । १२० करोडकी जनसंख्यावाले इस देशको एक अतिसाधारण आतंकवादी संगठन, ‘हम बमविस्फोट करनेवाले हैं, साहस है तो रोककर दिखाओ !’ ऐसा संगणकीय पत्र (ई-मेल) भेजनेका दुस्साहस करता है । इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री कितने कायर हैं । तोतेके समान रटे-रटाए कुछ वाक्य हम भारतीयोंके समक्ष बोलना, इसे वे अपने दायित्वकी पूर्ति समझ बैठे हैं ।
२. शासकोंके स्वार्थीपन एवं निष्क्रियताके कारण फांसीका दंड भी हास्यास्पद बना ! : अफजल एवं कसाबकी फांसीको कब क्रियान्वित करेंगे ? इस देशमें फांसीका दंड भी अब हास्यास्पद हो गया है; क्योंकि संसदपर आक्रमण करनेवालेको फांसीका दंड सुनाए पांच वर्ष बीत गए हैं एवं इस घटनाको भी अब १० वर्ष हो गए हैं । फांसीका दंड सुनाकर भीr फांसी नहीं दी जाती, तो आतंकवादियोंके लिए दंडव्यवस्थाका क्या प्रयोजन है ? जनताको भ्रमित कर क्या मिलेगा ?
३. प्रधानमंत्री तथा भूतपूर्व प्रख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंहजीका उलटा न्याय ! : मनमोहन सिंहजी अर्थशास्त्री हैं न ? बमविस्फोटमें अकारण मृत निर्दोष व्यक्तियोंके परिजनो तथा पीडित व्यक्तियोंको २-४ लाख रुपए ही देते हैं; किंतु जिहादी कसाबका पोषण तथा उसकीr सुरक्षाव्यवस्थापर भारतके करोडों रुपए पानीकी भांति बहा रहे हैं ! यह वैâसा न्याय है ? यह देश आतंकवादियोंका है अथवा हम भारतीयोंका ? आतंकवादियोंको कठोर दंड देना तो दूरकी बात रही, उन्हें विविध सुख-सुविधाएं देकर आतंकवादका पोषण किया जा रहा है । लज्जा तो प्रधानमंत्रीजी त्याग ही चुके हैं; परंतु समाजकी मर्यादाका ध्यान रखते हुए वे अब अपनेपदसे त्यागपत्र दे दें । भारतवासियोंकी दृष्टिमें इस पदकी कोई गरिमा एवं मर्यादा शेष नहीं रह गई है ।’
आतंकवादकी समस्याको जड-मूलसे मिटानेके लिए रामबाण पद्धतिका प्रयोग न कर,
ऊपरी उपाययोजनाका दिखावाकर जनताको भ्रमित करनेवाला कांग्रेसी शासन !
भारतमें निरंतर बमविस्फोट होते हैं । इसलिए सर्वत्र सुरक्षा बढानेपर बल दिया जा रहा है । इसका अर्थ यह है कि दुर्घटनाके कारणोंका उन्मूलन करनेकी अपेक्षा आप दुर्घटनासे पीडितोंके लिए चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध करनमें व्यस्त रहते हैं । दुर्घटना हो ही नहीं, इस हेतु यदि कटिबद्ध रहते, तो उपरोक्त स्थिति उत्पन्न नहीं होती । ठीक इसी प्रकार, देशकी आंतरिक सुरक्षा बढानेकी अपेक्षा देशकी जनता निर्भय रहे, ‘देशमें एक भी आतंकवादी आक्रमण न हो, इस हेतु शासकोंद्वारा ठोस कदम उठाए जाने आवश्यक हैं । कांगे्रसी शासकोंसे ऐसी आशा देशकी जनता त्याग चुकी है । इस हेतु अब राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी शासकोंके शासनकी आवश्यकता है ।’
आतंकवादियोंद्वारा खोखला कर दिए गए भारतकी वर्तमानस्थिति
सुधारनेके लिए कांग्रसियोंको सत्तासे हटाना ही एकमात्र उपाय !
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