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Saturday, May 19, 2012

धर्म सनातन धर्म [हिन्दू ] कई युगो पुराना है



धर्म ( हिन्दू ) कई युगो पुराना है धर्म पालकों ( हिन्दुओ ) को छोड़कर दुनिया के सभी उपधर्म संप्रदाय या जातियाँ क्रम विकास से जन्मती है और नष्ट हो जाती हैं परंतु धर्म पालक( हिन्दु ) कभी नही समाप्त होते , हिन्दुओ के धार्मिक ग्रंथो मे कल्पो का विवरण दिया हुआ है । हिन्दू धर्म के अनुसार चारों युगों का 1 चक्र 1000 बार पूरा होना एक कल्प होता है । हिन्दू धर्म मे चार युगो की गढ़ना की गई है सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग जो लगभग १२०००००० वर्ष या एक कल्प कहलाता है यह है हमारे ज्ञान-विज्ञान की....



हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा होते हैं। इनकी आयु इन्हीं के सौ वर्षों के बराबर होती है। इनकी आयु १००० महायुगों के बराबर होती है। विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार: 



* 2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 360 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष * 4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग * 3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग * 2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग * 1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग * 12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं)


ब्रह्मा की काल गणना


* 1000 महायुग= 1 कल्प = ब्रह्मा का 1 दिवस (केवल दिन) (चार खरब बत्तीस अरब मानव वर्ष; और यहू सूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है).


(दो कल्प ब्रह्मा के एक दिन और रात बनाते हैं)


* 30 ब्रह्मा के दिन = 1 ब्रह्मा का मास (दो खरब 59 अरब 20 करोड़ मानव वर्ष) * 12 ब्रह्मा के मास = 1 ब्रह्मा के वर्ष (31 खरब 10 अरब 4 करोड़ मानव वर्ष) * 50 ब्रह्मा के वर्ष = 1 परार्ध * 2 परार्ध= 100 ब्रह्मा के वर्ष= 1 महाकल्प (ब्रह्मा का जीवन काल)(31 शंख 10 खरब 40अरब मानव वर्ष)


ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं: चारों युग 4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग 3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग 2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग 1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग

3 comments:

  1. धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना करना ।
    व्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है ।
    ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
    धर्म संकट - जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा
    जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और
    न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, प्रजाधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म ।
    यह धर्म भी निजी (व्यक्तिगत) व सामाजिक होते है ।
    धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिमूर्ति) से लेकर इस क्षण तक ।
    राजतंत्र होने पर धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र होने पर धर्म का पालन
    लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है । by- kpopsbjri

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    1. बिलकुल थी कहा हैं आपने श्रीमान, बड़े सुन्दर वचन हैं.

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    2. वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।

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