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Tuesday, July 30, 2013

भारतीय मीडिया हिंदू विरोधी क्यों हैं?





क्या आप जानते है की कोई मीडिया समूह हिन्दू या हिन्दू संघठनो के प्रति इतना बैरभाव क्यों रखती है. -भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… 

सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारत में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस कार्य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया. फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… फीर मैंने एक लम्बा अध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो मै आज सार्वजानिक कर रहा हु. विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत…
१- दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी, बर्न, स्विट्जरलैंड, इसके संपादक एन राम, इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है.

२- एन डी टी वी… गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन, यूरोप

३- सी.एन.एन, आई.बी.एन.७, सी.एन.बी.सी… १००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च

४- दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत, टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारा संचालित, ८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा, बचा हुआ २०% एक अँगरेज़ और इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु.पी.ए. अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है.

५-हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान… मालिक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्स ग्रुप के साथ जोड़ दिया गया है...

६- इंडियन एक्सप्रेस… इसे दो भागो में बाट दिया गया है, दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू इंडियन एक्सप्रेस (साउदर्न एडिसन) - Acts Ministries has major stake in the Indian express and later is still with the Indian कौन्तेर्पर्त

७- दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा में सांसद है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है.

८- दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारा समूह देखती है इसके निदेशक सुब्रोतो राय भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है

९- आंध्र ज्योति..हैदराबा­द की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया

१०- स्टार टीवी ग्रुप…सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअल चर्च, मेलबर्न,ऑस्ट्रे­लिया

११- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित

इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है की भारत की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है.. और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है... अपने को पाक साफ़ बताने वाली मीडिया के भ्रस्ताचार की चर्चा करना यहाँ पर पूर्णतया उचित ही होगा,,,, बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरण की चर्चा दूर दूर तक है, इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की ये १००% सही बात है की NDTV की एंकर बरखादत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है....
प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला फिक्स कराते हुए पकडे गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए.

दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नो. पर बिहार में कई जगह पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशित किया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ....

दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २०० करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक सशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है.. शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन, लोकपाल जैसे
मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेती है.....

सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी सच्चाई का पता लग सके....

.वन्दे मातरम् —

साभार : 

भारतीय योद्धा मंचफेस बुक वाल से ....

Sunday, July 28, 2013

अंग्रेजो ने भारत से कितना धन लूटा एवं यह कैसे प्रारंभ हुआ ?

लूट के जो आंकड़ें प्राप्त हैं वह ही इतने बड़े है कि यदि ज्ञात एवं अज्ञात आंकड़ों का मिलान किया जाए तो सर चकरा जाता है। २३ जून सन १७५७ जब प्लासी का ' युद्ध ' होना था " मीर जाफर " ने १ करोड़ स्वर्ण मुद्राओं एवं उच्च राजपद की लालसा में विश्वासघात किया था। अपने ही राजा (सिराज उद्दौला) के १८ सहस्त्र (हज़ार) भारतीय सैनिकों को मात्र ३५० अंग्रेज सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया था अर्थात युद्ध हुआ ही नहीं था वरन एक संधि हुई थी, जिसमें एक सेठ " अमीचंद " रॉबर्ट क्लाईव की ओर से साक्षी बने थे।

अब इस संधि का परिणाम यह हुआ की अंग्रेजो को बंगाल की दीवानी (कर लेने का अधिकार) एवं विशेष कर कलकत्ता का राज्य प्राप्त हुआ जहाँ उन्होंने पहले मीर कासिम को राजा बनाया, उसे हटाया मीर जाफर को राजा बनाया, उसे हटाया एवं सत्ता औपचारिक रूप से भी अपने हाथ में कर ली। सात वर्षों तक रोबर्ट क्लाईव ने कलकत्ता को लूटा। जब लूट कर लंदन ले गया तब लंदन की संसद में उससे बहस की गई कि तुम भारत से क्या लाए हो, तो उसने कहा " सोने चांदी से भरे जहाज लाया हूँ " मंत्री पूछते है कितने लाए हो " उसने कहा कि ९०० जहाज लाया हूँ "

प्रधानमंत्री अचंभित हो जाते है पूछते है, यह कहाँ से लाए हो, सम्पूर्ण भारत से ?
तब रॉबर्ट क्लाईव कहता है संपूर्ण भारत से नहीं भारत के एक नगर कलकत्ता से संपूर्ण भारत में तो पता नहीं कितना सोना चांदी है।

आगे उससे पूछा गया इसका मूल्यांकन क्या है,
तब वह कहता है ' वन थाउजेंड मिलियन स्टर्लिंग पाउंड ' सन १७५७ के स्टर्लिंग पौंड की कीमत ३०० गुना कम हुई है (जैसे दस-२० पैसा पहले अधिक हुआ करता था)

थाउजेंड = १,००० (एक सहस्त्र या एक हज़ार)
मिलियन = १०,००० (दस लाख)
पाउंड = ८० रु (औसत अभी तो ८२ है)
अर्थात १००० * १०००० * ३०० * ८० आप स्वयं निकल ले, लाख करोड़ में उत्तर आयेगा।
{ = २४०,००,००,००,००० रु }

मात्र एक विदेशी का संस्था अधिकारी रोबर्ट क्लाईव भारत से इतना धन ले गया था। पहले रॉबर्ट क्लाईव आया, उसने लूटा, तदुपरांत वॉरन हेस्टिंग्स, कर्ज़न, लिल्निथ्गो, डिकिंस, विलियम वेंटिंग, कोर्नवोलिस ऐसे ऐसे भारत में ८४ अधिकारी आये थे।

यह लूट का क्रम वर्षों तक चलता रहा अभी २०११ के अंत में खोजा गया चाय, मसालों एवं चांदी से भरा SS Mantola जहाज भी इसी पुस्तक का एक पन्ना है। भारत को ईश्वर ने बहुत धनवान बनाया है बहुत से देशी को ईश्वर ने ही निर्धन बनाया है उनके यहाँ पूरे वर्ष में केवल ३-४ महीने सूर्य के दर्शन होते हैं। वही एक दो अन्न पैदा होते है गेहूँ-आलू, आलू-प्याज। धरती में भी खनिज पदार्थो की कमी रहती है। भारत तो कई कई वर्षों की लूट के बाद इतना अधिक धनवान है कि संभवतः केवल एक दो महादेश जैसे अफ्रीका आदि से ही उसकी तुलना की जा सकती है। इससे इस बात को भी बल मिलता है कि कई सहस्त्र वर्षों से भारत एवं अफ्रीका के बीच व्यापर इतना सफल कैसे रहा।

साभार : IBTL , लेखक : श्री राजीव दीक्षित 

Thursday, July 18, 2013

KASHMIRI HINDU, भारत माँ हुई लज्जित - कश्मीरी हिंदुओं के निर्वासन पर

१९ जनवरी १९९० – ये वही काली तारीख है जब लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपनी धरती, अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा | वे आज भी शरणार्थी हैं | उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं | उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिंदू शरणार्थियों को वो भी नहीं |

१९९० के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी | हिजबुल मुजाहिदीन ने ४ जनवरी १९९० को प्रेस नोट जारी किया जिसे कश्मीर के उर्दू समाचारपत्रों आफताब और अल सफा ने छापा | प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था | कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएँ शुरू हो गयी | कश्मीर की मस्जिदों के लाउडस्पीकर जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियाँ हमारे लिए छोड़ जाओ | "कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है", "असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन" (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदू स्त्रियों के साथ, लेकिन पुरुष नहीं"), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे |

दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि सभी कश्मीर में इस्लामी वेश भूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया | कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, मकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिन्हित कर दिए गए | यहाँ तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने को उन्हें विवश किया गया | २४ घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – काफिरों को क़त्ल करो का सन्देश कश्मीर में गूँज रहा था | इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भुला चुका था, वो एक बार फिर अपने सामने था |

आज कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं हैं | उनके शरणार्थी शिविर जम्मू और दिल्ली में आज भी हैं | २३  साल से वे वहाँ जीने को विवश हैं | कश्मीरी पंडितों की संख्या ३ लाख से ७ लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए | एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गयी | कभी धनवान रहे ये हिंदू आज सामान्य आवश्यकताओं के मोहताज हैं | उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे | उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरूंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं |

कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहाँ कभी पांडवों की २८ पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत माँ का मुकुट कहा जाता है, वहाँ भारत के झंडा लेकर जाने पर सांसदों को पुलिस पकड़ लेती है और आम लोगों पर डंडे बरसाती है | ५०० साल पहले तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था | औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था | बाद में उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित करके भरे दरबार में उसे क़त्ल किया था | भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है | “हिंदू घटा तो भारत बंटा” के 'तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है | कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है |

मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदू संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजीदां पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती | गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर क़त्ल किए गए दसियों हज़ार कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता | सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदू "स्वेच्छा से" कश्मीर छोड़ कर भागे | इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड़यंत्र भी रचा गया है | आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं | भोगने वाले भोग रहे हैं | जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और आँखें याद करके आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है | रामायण की देवी सीता को शरण देने वाली भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पड़ा | कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है - "मन करता है फूल चढा दूँ लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी धरती पर" |

Source: IBTL

WHAT IS "HINDU


Wednesday, July 17, 2013

बुर्के में रहने दो बुरका ना उठाओ, बुरका जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा



जीप घोटाला (1948),

साइकिल आयात घोटाला(1951),

मुंध्रा मैस (1957-58),

तेजा लोन (1960),

पटनायक मामला (1965)

नागरावाला घोटाला (1971),

मारूति घोटाला, व कुओ ऑयल डील (1976),

अंतुले ट्रस्ट (1981),

एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987),

बिटुमेन घोटाला, तांसी भूमि घोटाला, सेंट किट्स केस (1989),

अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम, चुरहट लॉटरी स्कैम, बोफोर्स घोटाला (1986),

एयरबस स्कैंडल (1990),

इंडियन बैंक घोटाला ,हर्षद मेहता घोटाला , सिक्योरिटी स्कैम (1992),

जैन (हवाला) डायरी कांड (1993),

चीनीआयात (1994),

बैंगलोर-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर , जेएमएम संासद घूसकांड (1995)


यूरियाघोटाला , संचार घोटाला , चारा घोटाला ,लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996),

तेलगी स्टाम्प स्कैंडल (2003),

कैश फॉर वोट स्कैंडल , सत्यम घोटाला ,मधुकोड़ा मामला (2008),

आदर्श सोसाइटी मामला , कॉमनवेल्थ घोटाला , 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला(2010),

नेशनल रूरल हे़ल्थ मिशन घोटाला , एयर इंडिया एंड इंडियन एयरलाइन्स घोटाला , कावेरी बेसिन डी ब्लाक घोटाला , एंट्रिक्स देवास घोटाला......... . सभी 2011

पावर प्रोजेक्ट घोटाला , इंदिरा गाँधी एअरपोर्ट घोटाला , कोयला घोटाला , लौह अयस्क घोटाला, हेलिकॉप्टर घोटाला, मनरेगा घोटाला, थोरियम घोटाला......... .सभी 2012

SAABHAR : MANUPRAKASH TYAGI, FESBOOK

Monday, July 15, 2013

KAILASH PARVAT - महान कैलाश पर्वत





कैलाश पर्वत .......दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत, अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डारक

एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र, दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव के रूप में, यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है।

भूगोल और पौराणिक रूप से कैलाश पर्वत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन अपनी विशिष्ट आकार में निहित है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिन्दुओं के सामान है और एकान्त स्थान पर स्थित है जहाँ कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत पर चड़ना निषिद्ध है पर 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चड़ाई की थी।

कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है। ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। जब दक्षिण चेहरे से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा सकता है.

कैलाश पर्वत और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यन कर रहे रसिया के वैज्ञानिक Tsar Nikolai Romanov और उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात की उन्होंने बताया कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ telepathic संपर्क करते है।

" In shape it (Mount Kailas) resembles a vast cathedral… the sides of the mountain are perpendicular and fall sheer for hundreds of feet, the strata horizontal, the layers of stone varying slightly in colour, and the dividing lines showing up clear and distinct...... which give to the entire mountain the appearance of having been built by giant hands, of huge blocks of reddish stone. "

(G.C. Rawling, The Great Plateau, London, 1905).

रूसिया के वैज्ञानिकों का दावा है की कैलाश पर्वत प्रकृति द्वारा निर्मित सबसे उच्चतम पिरामिड है। जिसको तीन साल पहले चाइना के वैज्ञानिकों द्वारा सरकारी चाइनीज़ प्रेस में नकार दिया था। आगे कहते हैं " कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी, पवित्र स्थान है जिसके आस पास अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है। इस पवित्र पर्वत सभी धर्मों ने अलग अलग नाम दिए हैं। "

रूसिया वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट UNSpecial! Magzine में January-August 2004 को प्रकाशित की गयी थी।

With deep thanks to Mr. Wolf Scott, former Deputy Director of UNRISD,

साभार : A Journey of Ancient India, FESBOOK

Thursday, July 11, 2013

भारतीय मुसलमान और उनकी जड़ें

भारतीय मुसलमान और उनकी जड़ें



स्वतंत्र भारत में आज भी भारतीय समाज हिन्दू-मुसलमान संबंधों को लेकर अनेक उभरते प्रश्नों तथा समस्याओं से ग्रसित है। 1206 ई. से लेकर 1857 ई. तक पठानों तथा मुगल शासकों का देश के अधिकतर भागों पर आधिपत्य होने पर भी भारत का मुसलमान सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक पिछड़ेपन का शिकार बताया जाता है। विश्व के मुस्लिम देशों के विपरीत, भारत का मुसलमान राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग क्यों है? सैकड़ों वर्षों से साथ रहते हुए भी व्यावहारिक जगत में हिन्दू तथा मुसलमान समाज एक-दूसरे से अपरिचित से क्यों? विश्व के एकमात्र बहुसंख्यक हिन्दू देश में यहां का मुसलमान, अन्य मुस्लिम देशों की तुलना में क्यों इतना क्रूर, वीभत्स तथा  अत्याचारी रहा? गंभीर चिंतन का विषय है कि हिन्दू तथा मुसलमान की मानसिकता में कैसे सामंजस्य हो? आखिर कौन से ऐसे सूत्र हैं जो भारतीय मुसलमान को उसकी मूल जड़ों से जोड़ सकते हैं?

यह एक ऐतिहासिक कटु सत्य है कि हजरत मोहम्मद की 632 ई. में मृत्यु से इस्लाम को एक विश्वव्यापी स्वरूप देने के प्रयत्न प्रारंभ हो गए थे। लगभग आगामी सौ वर्षों में इस्लाम का झण्डा सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, फारस तथा यूरोपीय देशों- स्पेन, पुर्तगाल तथा दक्षिण फ्रांस में फहराने लगा था। परन्तु भारत पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए उसे पांच सौ वर्षों तक संघर्ष तथा प्रतीक्षा करनी पड़ी। स्वाभाविक रूप से ये विदेशी आक्रमक मुसलमान भारत के प्रति ज्यादा क्रूर, वीभत्स तथा नरसंहारक थे। उनका एकमात्र लक्ष्य था- दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाना। उन्होंने भारत में मजहबी उन्माद के तहत प्रतिशोध तथा प्रतिक्रिया से कार्य किया। जो भारतीय, मुसलमान न बना उसे 'काफिर', 'जिमी' तथा 'मोमिन' कहा तथा जजिया लेकर ही उसको छोड़ा। इस्लाम न अपनाने पर उसे द्वितीय या तृतीय श्रेणी के नागरिक के रूप में माना गया।

भारतीय जनजीवन में यद्यपि इस्लाम का आक्रमण पहला विदेशी टकराव न था। इससे पूर्व भी भारत में ईरानी, यूनानी इण्डो-ब्रैक्टरियन, इण्डो पर्शियन, शक, कुषाण तथा हूण आये थे। परन्तु वे सभी भारतीय जनजीवन से समरस हो गए थे। उन्होंने यहां की रीति-नीतियों तथा ऐतिहासिक पुरुषों तथा दिव्य विभूतियों को अपना लिया था। परन्तु इस्लाम की आंधी इसके विपरीत थी। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा 'लड़ाई-मारकाट के दृश्य तो हिन्दुओं ने बहुत देखे थे। परन्तु उनको सपने में भी उम्मीद न थी कि संसार में एकाध जाति ऐसी हो सकती है, जिसको मूर्तियों को तोड़ने और मंदिरों को भ्रष्ट करने में सुख मिले। जब मुस्लिम आक्रमण के समय मंदिरों व मूर्तियों पर विपत्ति आई, हिन्दुओं का हृदय फट गया।'

विदेशी मुस्लिम आक्रांता

भारतीय मुसलमानों के सन्दर्भ में इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी मुसलमान, जो विभिन्न जातियों, स्थानों से थे, भारत में आये। इनमें ही चंगेज खां, तैमूरलंग, बाबर, नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली जैसे रक्त पिपासु, नर संहारक तथा जबरदस्ती दारुल-हरब से दारुल इस्लाम बनाने की आकांक्षा से आये थे। ये अरबिया, ईरान, तुर्किस्तान तथा अबीसीनियन थे। परन्तु कुल मिलाकर मुस्लिम जनसंख्या के दो प्रतिशत से अधिक न थे। शेष 98 प्रतिशत भारतीय थे जिसमें से मुसलमान बने। इस्लामीकरण का यह दौर निरंतर चलता रहा। ताज्जुब नहीं कि यदि कोई भी भारतीय मुसलमान आज भी अपनी पांचवीं या छठी पीढ़ी का विवरण निकाले तो वह प्राय: हिन्दू अथवा भारतीय होगी।

इन विदेशी मुसलमानों ने शासक वर्ग के रूप में मतान्तरित भारतीय मुसलमानों का भयंकर शोषण किया तथा जान-बूझकर उनके सामाजिक अलगाव, आर्थिक विषमता तथा शैक्षणिक पिछड़ेपन को बनाये रखा। किसी भी हिन्दू से मतान्तरित हो मुसलमान बने व्यक्ति को किसी भी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त न किया गया। उदाहरण के लिए पठानों के 320 वर्ष के शासनकाल (1206-1526) तक 32 शासक हुए परन्तु इसमें एक भी भारतीय मुसलमान न था। अपवादस्वरूप केवल तीन-चार भारतीय मुसलमान अल्पकाल के लिए प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों तक पहुंच पाये थे। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार इमाद्दुदीन रायहन पहला मतान्तरित भारतीय मुसलमान था जिसे कुछ समय के लिए गुलाम वंश के शासक नसीरुद्दीन महमूद ने अपना प्रधानमंत्री बनाया। परन्तु दरबारी विरोध के कारण उसे न केवल हटाया गया बल्कि शीघ्र ही मार दिया गया था (देखें 'नबकाने नासिरी (हिन्दी अनुवाद, पृ. 88-90) इसी भांति मोहम्मद तुगलक ने रतन नामक व्यक्ति को राजस्व अधिकारी तथा फिरोज तुगलक ने एक को ख्वाजा जहां बनाया था। मुगलों के काल में भी किसी भी भारतीय मुसलमान को ऊंचे पद न दिये गये। या बाबर तथा हुमायूं ने किसी भारतीय मुसलमान को ऊंचा पद न किया। अकबर से औरंगजेब के काल में उच्च मनसबदार के पद विदेशी मुसलमानों को ही दिये गये। संक्षिप्त में भारतीय मुसलमानों को सरकारी नौकरियों से वंचित रखा गया। ये नये बने भारतीय मुसलमानों, जो प्राय: पहले हिन्दू ही थे (देखे, डा. के.एस.लाल 'ग्रोथ आफ मुस्लिम पोपुलेशन इन इंडिया) को, प्रो. आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव के शब्दों में, केवल यह सनतोष था, कि 'मेरा भी वही मजहब है जो शासकों का है और शुक्रवार को मैं उन्हीं के साथ खड़ा होकर मस्जिद में नमाज पढ़ सकता हूं' (भारत का इतिहास (1000-1707, पृ. 482)।

मुल्लामौलवियोंउलेमाओं का प्रभाव

विदेशी शासकों ने प्रशासन तथा राजदरबार में सभी प्रमुख स्थान विदेशी मुसलमानों को ही दिये। खान, अमीर, सिपहसलार सभी विदेशी मुसलमान होते थे। ऐसे ही शेख, मुल्ला-मौलवी तथा उलेमा विदेशी मुसलमान ही थे। उलेमा प्राय: मजहब, शिक्षा, न्याय तथा दान में विशेष रूप से हस्तक्षेप करते थे। ये प्राय: कुछ साल बाद शासन की रीढ़ की हड्डी बन गये थे। उन्होंने भारत के मुसलमानों को न तो अपने पूर्वजों की विरासत, इतिहास तथा संस्कृति से न जुड़ने दिया और न ही समकालीन शैक्षणिक सुधारों से। यदि ऐसा न होता तो भारत के मुसलमानों की अवस्था विभिन्न क्षेत्रों में अच्छी होती। शाहजहां के उदार पुत्र दारा शिकोह ने 'सिर्रे अकबर' में सही लिखा-
बहिश्त  जा कि मुल्क-- बायद
जि मुल्क शोरो गौगा-  बायद
अर्थात 'बहिश्त उसी जगह है जहां मुल्ले और मौलवी नहीं हैं और उनका शोर सुनाई नहीं देता।' इन्होंने समय-समय पर अपने बेतुके, परस्पर विरोधी फतवों से भारतीय मुसलमानों को यहां से समाज से अलग रखा। ये सभी भारत में विदेशी शासकों को समरकन्द, बलख-बुखारा, कन्धार, मध्य एशिया की याद दिलाना न भूलते थे। भारतीय श्रद्धा केन्द्रों से इन्हें तनिक भी लगाव न था।

सर सैयद  रूढ़िवादी मुस्लिम

सर सैयद अहमद खां के राजनीतिक विचार कुछ भी रहे हों, उन्होंने भारतीय मुसलमानों की सामाजिक तथा शैक्षणिक अवस्था को उन्नत करने के लिए अवश्य प्रयत्न किया। उन्होंने मुसलमानों से कठमुल्लापन, संकीर्णता और मतान्धता छोड़ने का आग्रह किया। बहुविवाह तथा पर्दे की प्रथा का विरोध किया। महिलाओं का सामाजिक स्तर उठाने की कोशिश की। उन्होंने मदरसा प्रणाली को बंद करने को कहा जहां केवल रटन्त पद्धति अपनाई जाती है। शिक्षा में मौलिकता, वैज्ञानिकता तथा आधुनिकता लाने के प्रयत्न किये। परन्तु रूढ़िवादी मुल्ला-मौलवी इससे चिढ़ गए। उन्होंने सर सैयद को मारने की भी धमकी दी। श्री जदुनाथ सरकार ने लिखा- 'रूढ़िवादी मुसलमान ने सदैव यही अनुभव किया कि वह भारत में रहता अवश्य है, परन्तु भारत का अविभाज्य अंग नही है। उसे अपना हृदय, भारतीय परम्पराओं, भाषा और सांस्कृतिक वातावरण को अपनाने की बजाय फारस और अरब से आयात करना अच्छा लगता है। भारतीय मुसलमान बौद्धिक दृष्टि से विदेशी थे। वह भारतीय पर्यावरण के अनुरूप हृदय को नहीं बन सके (देखें 'ए शार्टर हिस्ट्री आफ औरंगजेब', पृ. 393)
दुर्भाग्य से बाद में खिलाफत आन्दोलन में शेख मौलवियों, उलेमाओं को सहयोग देकर कांग्रेस ने भारतीय मुसलमानों में भी अतिरिक्त विदेश भक्ति जगाई तथा राजनीतिक भूख पैदा की। अंग्रेजों ने उनका लाभ उठाकर देश के विभाजन में उनका सहयोग लिया।

मुख्यधारा से कैसे जुड़ें?

यह सर्वज्ञात है कि समूचे विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जहां प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से धार्मिक स्वतंत्रता की पूरी गारंटी है। अत: भारत ही एक देश है जहां किसी भी मुसलमान को अन्य किसी भी मुस्लिम देश से अधिक मजहबी स्वतंत्रता है। सूत्र रूप में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव उपयोगी हो सकते हैं।

प्रथम, विचारणीय विषय है कि प्रत्येक भारतवासी अपना नाम देश के इतिहास, संस्कृति तथा स्वस्थ परम्परा के अनुसार क्यों न रखे? इससे सम्पूर्ण भारत में जातिवाद, वर्ग, सम्प्रदाय बोध भी कम होगा तथा भारत राष्ट्र सबल होगा। आज भी विशालकाय चीन, रूस तथा अन्य कुछ देशों में नाम के आधार पर व्यक्ति की पहचान संभव नहीं है। यहां तक कि  हज पर जाने वाले भारतीयों को हिन्दू देश से आये माना जाता है। डा. सुखदेव सिंह ने अपने शोध ग्रंथ में भारतीय मुसलमानों के नाम बदलने का मुख्य कारण उनका अतीत से नाता तोड़ना तथा मजहबी आस्थाओं को तोड़ना बतलाया है (देखिये 'द मुस्लिम आफ इंडियन ओरिजन', पृ. 199)। उल्लेखनीय है कि आज भी अनेक भारतीय मुसलमानों ने अपने नाम के साथ अपने पुराने गोत्र, जाति या वैशिष्ट्य को नहीं छोड़ा है।

दूसरे, यह सच है कि कुरान अरबी में है। परन्तु यह भी कटु सत्य है कि देश का एक प्रतिशत भी मुसलमान अरबी नहीं जानता है। आज कुरान के अनेक भाषाओं-फारसी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी तथा संस्कृत में अनुवाद उपलब्ध हैं। बिना इसका समुचित अर्थ समझे, क्या किसी मुसलमान को इससे लाभ होगा'? प्रसिद्ध मुस्लिम देश तुकर्ी में बहुत पहले से ही कुरान को तुकर्ी भाषा में बोला जाता है। उल्लेखनीय है कुरान का अरबी से फारसी में पहला अनुवाद दिल्ली के शाह वलीउल्लाह (1703-1763) ने ही किया था। अत: भारतीय मुसलमान भी इसका प्रभावोत्पादक उपयोग करे। 

तीसरे, विदेशी मुस्लिम शासकों के काल में भारतीय मुसलमानों का जुड़ना एक प्रकार का अपराध माना जाता था। पर स्वतंत्रता के पश्चात परिस्थितियां बदल गई हैं। यह विचारणीय है कि विश्व के अन्य मुस्लिम देशों ने मतान्तरण के पश्चात भी अपने अतीत से नाता नहीं तोड़ा। आज भी ईरान अपने को 'आर्यन' कहने में गौरव अनुभव करता है तथा रुस्तम-सोहराब से नाता जोड़ता है। मंगोलिया के लोग चंगेज खां को नहीं भूलते जो मूलत: एक बौद्ध था। इण्डोनेशिया में राम और कृष्ण को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। संघर्ष के उस भयंकर दौर में कुछ भारतीय मुसलमानों ने भारत भक्ति को बनाये रखा, जैसे अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी कुतुबन, मंझन, ताज, रसखान, रहीस, नगीर अकबराबादी जैसे विद्वान।

चौथे, भारतीय मुस्लिम समुदाय में सामाजिक तथा शैक्षणिक स्तर उन्नत करने की आवश्यकता है। भारत में पाकिस्तान तथा बंगलादेश की भांति एक विवाह की व्यवस्था चाहिए। मदरसों में मौलिकता, वैज्ञानिक तथा आधुनिकतम शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए। आर्थिक क्षेत्र में योग्यता के आधार पर समान अवसर होने चाहिए।

पांचवें, सभी के लिए संविधान की सर्वोच्चता राष्ट्र प्रेम तथा देशभक्ति की पहली शर्त होनी चाहिए। अत: राष्ट्र के प्रतीक राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत को प्रमुख स्थान देना भारत के नागरिक का मुख्य लक्षण होना चाहिए।

साभार :  पाञ्चजन्य, लेखक : डा. सतीश चन्द्र मित्तल

Wednesday, July 3, 2013

कांग्रेस ने देश आज़ाद नहीं टुकड़े करबाए ..


क्या आप जानते हैं पिछले 100 वर्षों में भारत के कितनी बार टुकडे किये गए और उसके पीछे किसकी सरकार और सोच रही है ......

सन 1911 में भारत से श्री लंका अलग हुआ ,जिसको तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं का समर्थन प्राप्त था

सन 1947 में भारत से बर्मा -म्यांमार अलग हुआ ,

सन 1947 में भारत से पाकिस्तान अलग हुआ । कारण कांग्रेस ही थी

सन 1948 में भारत से आज़ाद कश्मीर काटकर अलग कर दिया गया और नेहरु जी की नीतियों ने सरदार पटेल के हाथ बांधे रखे

सन 1950 में भारत से तिब्बत को काटकर अलग कर दिया गया और नेताओं ने मुह बंद रखा

सन 1954 में बेरुबादी को काट कर अलग कर दिया गया

सन 1957 में चीन ने भारत के कुछ हिस्से हड़प लिए और नेहरु ने कहा की यह घास फूंस वाली जगह थी

सन 19262 में चीन ने अक्साई चीन का 62000 वर्ग मिल क्षेत्र भारत से छीन लिया ,और नेहरु जी हिंदी चीनी भाई-भाई कहते रहे । जब हमारी सेनाओं ने चीन से लड़ाई लड़ने का निर्णय किया और कुछ मोर्चों पर जीत की स्थिति में थी तो इन्ही नेहरु ने सीज फायर करा दिया

सन 1963 में टेबल आइलैंड पर बर्मा ने कब्ज़ा कर लिया ,और हम खामोश रहे । वहां पर म्यामांर ने हवाई अड्डा बना रखा है

सन 1963 में ही गुजरात का कच्छ क्षेत्र छारी फुलाई को पाकिस्तान को दे दिया गया

सन 1972 में भारत ने कच्छ तिम्बु द्वीप सर लंका को दे दिया

सन 1982 में भारत के अरुणांचल के कुछ हिस्से पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया , और हम बात करते रहे

सन 1992 में भारत का तीन बीघा जमीनी इलाका बांगला देश ने लेकर चीन को सौंप दिया ।

सान 2012 मे भी बांग्लादेश को कुछ वर्गमील इलाका कॉंग्रेस ने दिया और कहा की ये दलदली इलाका था

इसके अलावा भी अनेक छोटी बड़ी घटनाएं होती रहती हैं जिनका रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है , जैसे कि हाल ही की चीन की घटना है , जिस पर कोई अधिकारिक दस्तावेज अभी जारी नहीं किया गया है।

वैसे एक बात और ध्यान देने वाली है की जब भारत की धरती यूंही बंजर, घास-फूस वाली तथा दलदली है तो इन कोंग्रेसियों को हमारी इस धरती मे इतनी दिलचस्पी क्यूँ है। या जैसे अमुक सारे देशों से ये कोंग्रेसी खतम हो चुके हैं वैसे ही यहाँ से भी खतम हो कर ही मानेंगे।