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Saturday, August 31, 2013

परमाणु बम का जनक - सनातनी भारत





आधुनिक परमाणु बम का सफल परीक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया था|

इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer [http://en.wikipedia.org/wiki/J._Robert_Oppenheimer ] के नेतृत्व में किया गया था 

Oppenheimer को आधुनिक परमाणु बम के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है, आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है की इस परमाणु परीक्षण का कोड नाम Oppenheimer ने त्रिदेव (Trinity) रखा था,

परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में २३५ भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु ३ न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिणित हो जाता है। ऊर्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२ {E=MC^2} के अनुसार अपरिमित ऊर्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है। यहाँ देखें - [ http://www.facebook.com/photo.php?fbid=374856539304046&set=a.338314332958267.1073741828.100003391094649&type=1&theater ]

Oppenheimer ने महाभारत और गीता का काफी समय तक अध्ययन किया था और हिन्दू धर्मं शास्त्रों से वे बेहद प्रभावित थे १८९३ में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे, उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया।

यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पंहुच इस सदी की विशेष कल्याणकारी घटना है।

उन्होने जिन तीन श्लोकों को महत्व दिया वे निम्र प्रकार है।

१. राबर्ट औपेन हाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊष्मा होगी, जैसा कि भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट स्वरुप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा।

गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है-

दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता यदि
मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मन: {११:१२ गीता}

अर्थात - आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा वह भी वह विश्वरुप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो।

२. औपेन हाइमर के अनुसार इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी, दुनिया में विनाश ही विनाश होगा।

उस समय उन्होंने गीता के गीता के ग्यारहवें अध्याय के ३२ वें श्लोक में वर्णित बातों का सन्दर्भ दिया -

कालोस्स्मि लोकक्षयकृत्प्रवृध्दो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत:।
ऋ तेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येह्यवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।। {११:३२ गीता}

अर्थात - मैं लोको का नाश करने वाला बढा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं,अत: जो प्रतिपक्षी सेना के योध्दा लोग हैं वे तेरे युध्द न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इनका नाश हो जाएगा।

३. औपेन हाइमर के अनुसार बम विस्फोट से जहां कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दु:खी होंगे विलाप करेंगे,जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वे दुखी हुए, परन्तु उन्होंने गीता में वर्णित कर्म के सिद्धांत का प्रतिपालन किया

उन्होंने गीता के सबसे प्रसिद्ध द्वितीय अध्याय के सैंतालिसवें श्लोक का सन्दर्भ दिया।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोह्यस्त्वकर्माणि।। {२:४७ गीता}

अर्थात - तू कर्म कर फल की चिंता मत कर। तू कर्मो के फल हेतु मत हो, तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) आसक्ति नहीं होनी चाहिए!

उन्होंने अपनी डायरी में स्वयं की मनोस्तिथि लिखी , और इस परीक्षण का कोड नेम इन्ही ३ श्लोको के आधार तथा भगवान ब्रम्हा विष्णु महेश के नाम पर ट्रिनिटी रखा...

तत्कालीन अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी की कोई और सभ्यता तथा संस्कृति आधुनिक परमाणु बम की अवधारणा का का श्रेय ले जाए.... इसीलिए इस परीक्षण के नामकरण की सच्चाई को उन्होंने Oppenheimer को छुपाने के लिए कहा.... परन्तु जापान में परमाणु बम गिरने के बाद Oppenheimer ने एक इंटरव्यू में ये बात स्वीकार की थी....... विकिपीडिया भी दबी जुबान में ये बात बोलता है... [ http://en.wikipedia.org/wiki/Trinity_(nuclear_test)#Name ]

इसके अतिरिक्त 1933 में उन्होंने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर भगवद गीता का पूरा अध्यन किया और परमाणु बम बनाया 1945 में | परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता, रामायण तथा महाभारत से ही मिला, इसमें कोई संदेह नहीं | Oppenheimer ने इस प्रयोग के बाद प्राप्त निष्कर्षों पर अध्यन किया और कहा की विस्फोट के बाद उत्पन विकट परिस्तियाँ तथा दुष्परिणाम जो हमें प्राप्त हुए है ठीक इस प्रकार का वर्णन भगवद गीता तथा महाभारत आदि में मिलता है |

बाद में Oppenheimer के खुलासे के बाद भारी पैमाने पर महाभारत और गीता आदि पर शोध किया गया उन्हें इस बात पर बेहद आश्चर्य हुआ की इन ग्रंथो में "ब्रह्माश्त्र" नामक अस्त्र का वर्णन मिलता है जो इतना संहारक था की उस के प्रयोग से कई हजारो लोग व अन्य वस्तुएं न केवल जल गई अपितु पिघल भी गई| ब्रह्माश्त्र के बारे में हमसे बेहतर कौन जान सकता है इसका वर्णन प्रत्येक पुराण आदि में मिलता है... जगत पिता भगवान ब्रह्मा द्वारा असुरो के नाश हेतु ब्रह्माश्त्र का निर्माण किया गया था...

इस शोध पर लिखी गई कई किताबो में से एक है : [ The Atoms of Kshatriyas http://www.amazon.com/The-Atoms-Kshatriyas-Azsacra-Zarathustra/dp/8182533309 ]

रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु श्रीलक्ष्मण ने जब ब्रह्माश्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की अभी इसका प्रयोग उचित नही अन्यथा पूरी लंका साफ़ हो जाएगी |

इसके अतिरिक्त प्राचीन भारत में परमाण्विक बमों के प्रयोग होने के प्रमाणों की कोई कमी नही है । सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में अनुसन्धान से ऐसी कई नगरियाँ प्राप्त हुई है जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व तक अस्तित्व में थी| वहां ऐसे कई नर कंकाल इस स्थिति में प्राप्त हुए है मानो वो सभी किसी अकस्मात प्रहार में मारे गये हों... इनमें रेडिएशन का असर भी था | वह कई ऐसे प्रमाण भी है जो यह सिद्ध करते है की किसी समय यहाँ भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई जो केवल परमाण्विक बम या फिर उसी तरह के अस्त्र से ही उत्पन्न हो सकती है

उत्तर पश्चिम भारत में थार मरुस्थल के एक स्थान में दस मील के घेरे में तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव्ह राख की मोटी सतह पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी परमाणु विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। एक शोधकर्ता के आकलन के अनुसार प्राचीनकाल में उस नगर पर गिराया गया परमाणु बम जापान में सन् 1945 में गिराए गए परमाणु बम की क्षमता से ज्यादा का था।

मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 कि.मी. दूरी पर स्थित लगभग 2,154 मीटर की परिधि वाला एक अद्भुत विशाल गड्ढा (crater), जिसकी आयु 50,000 से कम आँकी गई है, भी यही इंगित करती है कि प्राचीन काल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था। शोध से ज्ञात हुआ है कि यह गड्ढा crater) पृथ्वी पर किसी 600.000 वायुमंडल के दबाव वाले किसी विशाल के प्रहार के कारण बना है किन्तु इस गड्ढे (Crater) तथा इसके आसपास के क्षेत्र में उल्कापात से सम्बन्धित कुछ भी सामग्री नहीं पाई जाती। फिर यह विलक्षण गड्ढा आखिर बना कैसे? सम्पूर्ण विश्व में यह अपने प्रकार का एक अकेला गड्ढा (Crater) है।

महाभारत में सौप्तिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है|

महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन चलाने के बाद 2 दिसम्बर 5561 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । 3 नवंबर 5561 ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया ।

{ तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने मे समर्थ थी ।

तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। }

{ इसके बाद भयंकर वायु चलने लगी । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे ।
आकाश में बड़ा शब्द (ध्वनि ) हुआ । पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई|

सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अध्याय १४ }

यहाँ वेदव्यास जी लिखते हैं कि -

“जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ वषों तक पर्जन्यवृष्ठी (जीव-जंतु , पेड़-पोधे आदि की उत्पति ) नहीं हो पाती

ये लिंक दे रहा हूँ इसे ओपन करके ध्यान पूर्वक पढ़ें -


सनातनी भारत के विलक्षण विज्ञानं को नमन है...


Thursday, August 29, 2013

नरेन्द्र मोदी की पहचान

काँग्रेस और बिकाऊ मीडिया नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायक’ कह रहै हैं तो मुस्लिम वोट हासिल करने के लिये बी जे पी उन्हें ‘धर्म निर्पेक्ष’ बनने के लिये मजबूर कर रही है। ‘साम्प्रदायक’ और ‘धर्म निर्पेक्ष’ की परिभाषा और पहचान क्या है यह नरेन्द्र मोदी ने स्वयं स्पष्ट कर दी है – ‘इण्डिया फर्स्ट’ ! नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता का कारण उन की भ्रष्टाचार मुक्त ‘मुस्लिम तुष्टिकरण रहित’ छवि है। अगर नरेन्द्र मोदी को काँग्रेसी ब्राँड का धर्म निर्पेक्ष बना कर चुनाव में उतारा जाये तो फिर नितिश कुमार और नरेन्द्र मोदी में कोई फर्क नहीं रहै गा। इस लिये नरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी ही बने रहना चाहिये।
बी जे पी के  जिन स्वार्थी नेताओं को ‘हिन्दू समर्थक’ कहलाने में ‘साम्प्रदायकता’ लगती है तो फिर वह बी जे पी छोड कर काँग्रेसी बन जायें। अगर सिख समुदाय के लिये शिरोमणि अकाली दल, मुस्लमानो के लिये मुस्लिम लीग को ‘सैक्यूलर’ मान कर उन के साथ चुनावी गठ जोड करे जा सकते हैं तो हिन्दू समर्थक पार्टी को साम्प्रदायक क्यों कहा जाता है? इस लिये अब बी जे पी केवल उन्हीं पार्टियों के साथ चुनावी गठ जोड करे जिन्हें हिन्दूत्व ऐजेंडा मंजूर हो नहीं तो ऐकला चलो…
काँग्रेस की हिन्दू विरोधी नीति
1947 के बटवारे के बाद हिन्दूओं ने सोचा था कि देश का ऐक भाग आक्रानताओं को  दे कर हिन्दू और मुस्लमान अपने-अपने भाग में अपने धर्मानुसार शान्ति से रहैं गे लेकिन गाँधी और नेहरू जैसे नेताओं के कारण हिन्दू बचे खुचे भारत में भी चैन से नहीं रह सके। उन का जीवन और हिन्दू पहचान ही मिटनी शुरु हो चुकी है। अब इटली मूल की सोनियाँ दुस्साहस कर के कहती है ‘भारत हिन्दू देश नहीं है’। उसी सोनियाँ का कठपुतला बोलता है ‘मुस्लिमों का इस देश पर प्रथम हक है’।
जयचन्दी नेता मुस्लमानों के अधिक से अधिक सुविधायें देने के लिये ऐक दूसरे से प्रति स्पर्धा में जुटे रहते हैं। मुस्लिम अपना वोट बैंक कायम कर के ‘किंग-मेकर’ के रूप में पनप रहै हैं। आज वह ‘किंग-मेकर’ हैं तो कल वह ‘इस्लामी – सलतनत’ भी फिर से कायम कर दें गे और भारत की हिन्दू पहचान हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में ग़र्क हो जाये गी।
देश विभाजन की पुनः तैय्यारियाँ
सिर्फ मुस्लिम धर्मान्धता को संतुष्ट करने के लिये आज फिर से हिन्दी के बदले उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जा रहा है, सरकारी खर्च पर इस्लामी तालीम देने के लिये मदरस्सों का जाल बिछाया जा रहा है। शैरियत कानून, इस्लामी अदालतें, इस्लामी बैंक और मुस्लिम आरक्षण के जरिये समानान्तर इस्लामी शासन तन्त्र स्थापित किया जा रहा है। क्या धर्म निर्पेक्षता के नाम पर यह सब कुछ  राष्ट्रीय ऐकता को बढावा देगा या फिर से विभाजन के बीज बोये गा?
पुनर्विभाजन के फूटते अंकुर
आज जिन राज्यों में मुसलमानों ने राजनैतिक सत्ता में अपनी पकड बना ली है वहाँ पडोसी देशों से इस्लामी आबादी की घुस पैठ हो रही है, आतंकवादियों को पनाह मिल रही है, अलगाव-वाद को भड़काया जा रहा है और हिन्दूओं का अपने ही देश में शर्णार्थियों की हैसियत में पलायन हो रहा है। काशमीर, असम, केरल, आन्ध्राप्रदेश, पश्चिमी बंगाल आदि इस का  प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यासिन मलिक, अबदुल्ला बुखारी, आजम खां, सलमान खुर्शीद, औबेसी, और अनसारी जैसे लोग खुले आम धार्मिक उन्माद भडकाते हैं मगर काँग्रेसी सरकार चुप्पी साधे रहती है। अगर कोई हिन्दू प्रतिक्रिया में सच भी बोलता है तो मीडिया, अल्प संख्यक आयोग और सरकारी तंत्र सभी ऐक सुर में हिन्दू को साम्प्रदायकता का प्रमाणपत्र थमा देते हैं। बी जे पी के कायर और स्वार्थी  नेता अपने आप को अपराधी मान कर अपनी धर्म निर्पेक्षता की सफाई देने लग जाते हैं।
भारत में इस्लाम 
यह ऐक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था। इस्लाम दोस्ती और प्रेम भावना से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की सभी पहचाने मिटाने के लिये ऐक आक्रान्ता की तरह भारत आया था। भारत में मुस्लमान हैं उन्ही आक्रान्ताओं के वंशज हैं या फिर उन हिन्दूओं के वंशज हैं जो मृत्यु, भय, और अत्याचार से बचने के लिये या किसी लालच से इस्लाम में परिवर्तित किये गये थे। पाकिस्तान बनने के बाद अगर मुस्लमानों ने भारत में रहना स्वीकारा था तो वह उन का हिन्दूओं पर कोई अहसान नहीं था। उन्हों ने अपना घर बार त्यागने  के बजाये भारत में हिन्दूओं के साथ रहना स्वीकार किया था। लेकिन आज भी मुस्लमानों की आस्थायें और प्ररेणा स्त्रोत्र भारत से बाहर अरब देशों में है। भारत का नागरिक होने के बावजूद वह वन्दे मात्रम, समान आचार संहिता, योगिक व्यायाम तथा स्थानीय हिन्दू परम्पराओं से नफरत करते हैं। उन का उन्माद इस हद तक है कि संवैधानिक पदों पर रहते हुये भी उन की सोच में कोई बदलाव नहीं। और क्या प्रमाण चाहिये?
 गोधरा की चिंगारी
गोधरा स्टेशन पर हिन्दू कर-सेवकों को जिन्दा ट्रेन में जला डालना अमानवी अत्याचारों की चरम सीमा थी जो गुजरात में ऊँट की पीठ पर आखिरी तिनका साबित हुयी थी। अत्याचार करने वालों पर हिन्दूओं ने तत्काल प्रतिकार लिया और जब तक सरकारी तंत्र अचानक भडकी हिंसा को रोकने के लिये सक्ष्म होता बहुत कुछ हो चुका था। उस समय देश की सैनायें सीमा की सुरक्षा पर तैनात थीं। फिर भी गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार ने धर्म निर्पेक्षता के साथ प्रतिकार की आग को काबू पाया और पीडितों की सहायता करी। लेकिन क्या आज तक किसी धर्म निर्पेक्ष, मानवअधिकारी ने मुस्लिम समाज को फटकारा है? क्या किसी ने कशमीर असम, और दिल्ली सरकार को हिन्दू-सिख कत्लेआम और पलायन पर फटकारा है?
अत्याचार करना पाप है तो अत्याचार को सहना महापाप है। सदियों से भारत में हिन्दू मुस्लमानों के संदर्भ में यही महापाप ही करते आ रहै थे। क्या आज तक किसी मानव अधिकार प्रवक्ता, प्रजातंत्री, और धर्म निर्पेक्षता का राग आलापने वालों ने मुस्लमानों की ‘जिहादी मुहिम’ को नकारा है? भारत में धर्म निर्पेक्षता की दुहाई देने वाले बेशर्म मीडिया या किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी ने इस्लामी अत्याचारों के ऐतिहासिक तथ्यों की निंदा करी है?
 हिन्दूओं की आदर्शवादी राजनैतिक मूर्खता
मूर्ख हिन्दू जिस डाली पर बैठते हैं उसी को काटना शुरु कर देते हैं। खतरों को देख कर कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेते हैं और कायरता, आदर्शवाद और धर्म निर्पेक्षता की दलदल में शुतर्मुर्ग की तरह अपना मूँह छिपाये रहते हैँ। आज देश आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्प-संख्यक तुष्टीकरण, बेरोजगारी और महंगाई से पूरा देश त्रस्त है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की अनदेखी हो रही है लेकिन हिन्दू पाकिस्तान क्रिकेट देखने में व्यस्त रहते हैं या पाकिस्तानी ग़ज़लें सुनने में मस्त रहते हैं। अगर निष्पक्ष हो कर विचार करें तो भारत की दुर्दशा के केवल दो ही कारण है – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और नेताओं का स्वार्थ जिस में सब कुछ समा रहा है।
अंधेरी गुफा में ऐक किरण आज के युवा अंग्रेजी माध्यम से फैलाई गयी इकतरफा धर्म निर्पेक्षता के भ्रमजाल से छुटकारा पाना चाहते हैं। वह अपनी पहचान को ढूंडना चाहते हैं लेकिन उन्हें मार्ग नहीं मिल रहा क्योंकि हमारे अधिकांश राजनेता और   बुद्धिजीवी नागरिक  मैकाले तथा जवाहरलाल नेहरू के बहकावे के वातारवर्ण में ही रंगे हुये हैं।
केवल ऐक ही विकल्प – नरेन्द्र मोदी
युवाओं के समक्ष केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐक उमीद की किरण बनकर ऐक अति लोकप्रिय नेता की तरह उभरे हैं। आज भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ सुब्रामनियन स्वामी का ऐकाकी संघर्ष युवाओं को प्रेरणा दे रहा है। आज युवाओं को अतीत के साथ जोडने में स्वामी रामदेव की योग-क्रान्ति, स्वदेशी आयुर्वेदिक विकल्प तथा भारत स्वाभिमान आन्दोलन सफल हो रहै हैं लेकिन धर्म निर्पेक्षता की आड में काँग्रेस, पारिवारिक नेता, बिकाऊ पत्रकार, स्वार्थी नेता, बी जे पी के कुछ नेता, इस्लामिक संगठन तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तरह तरह से भ्रान्तियाँ फैलाने में जुटे हैं ताकि भारत अमरीका जैसी महा शक्तियों का पिछलग्गु ही बना रहै।
बी जे पी अब तो  साहस करे
अगर बी जे पी को भारत माता या राम से कोई लगाव है तो बे खटके यह घोषणा करनी चाहिये कि दो तिहाई मतों से सत्ता में आने पर पार्टी निम्नलिखित काम करे गीः-
  •  धर्म के नाम पर मिलने वाली सभी तरह की सबसिडियों को बन्द किया जाये गा।
  • परिवारों या नेताओं के नाम पर चलने वाली सरकारी योजनाओं का राष्ट्रीय नामंकरण दोबारा किया जाये गा।
  •  भ्रष्ट लोगों के खिलाफ समय सीमा के अन्तर्गत फास्ट ट्रैक कोर्टों में मुकदमें चलाये जायें गे और मुकदमें का फैसला आने तक उन की सम्पत्ति जब्त रहै गी।
  • पूरे देश में शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा या राज्य भाषा में होगा। अंग्रजी शिक्षा ऐच्छिक हो गी।
  •  जिन चापलूस सरकारी कर्मचारियों ने कानून के विरुद्ध कोई काम किया है तो उन के खिलाफ भी प्रशासनिक कारवाई की जाये गी।
  • धारा 370 को संविधान से खारिज किया जाये गा।
  • पूरे देश में सरकारी काम हिन्दी और राज्य भाषा में होगा।
  • समान आचार संहिता लागू करी जाये गी।
तुष्टीकरण की जरूरत नहीं
अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा।
साभार: चाँद शर्मा, http://hindumahasagar.wordpress.com

Sunday, August 25, 2013

BRAHMASHTRA OR MISSILE - ब्रहमास्त्र या मिसाइल


आजकल अंग्रेजी स्कूलों एवं अंग्रेजी प्रभाव के कारण.... हमारे हिंदुस्तान में लोगों के दिमाग में यह बात ठूंस -ठूंस कर भर दी जाती है कि..... मिसाइल, हवाई जहाज , टेलीविजन इत्यादि आधुनिक पाश्चात्य आविष्कार हैं.... और, हमें ये सब ज्ञान पश्चिम के देशों से प्राप्त हुआ है....!

लेकिन.... हकीकत बिल्कुल इसके विपरीत है.... और, सच्चाई यह है कि..... हम हिन्दुस्थानियों ने पश्चिम के देशों से ये सब विज्ञान नहीं सीखा है..... बल्कि, पश्चिम के देशों ने .... हम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेकर.... अथवा, इसे बनाने की विधि चुरा कर ... इसे अविष्कार का नाम दे दिया है.... और, हम मूर्खों की तरह .... पश्चिमी देशों की वाह-वाही और उसकी नक़ल करने में लगे हुए हैं....!

उदाहरण के लिए..... युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले मिसाइले ..... आज के ज़माने में बेहद आधुनितम तकनीक मानी जाती है......

परन्तु.... यह जानकर आपको आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि...... जिस ज़माने में पश्चिम के तथाकथित ""ज्ञानी लोगों"" के पूर्वज .... पहाड़ों की गुफा में रहकर .... और, कंद-मूल खा कर अपना जीवन बसर किया करते थे..... उस समय हमारे हिन्दुस्थान के युद्धों में मिसाइल जैसी आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग हुआ करता था...!

हम हिन्दुओं के विभिन्न ग्रंथों ..... खास कर रामायण और महाभारत में जगह-जगह पर बहुत सारे अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन आता है ....

यहाँ सबसे पहले यह समझ लें कि..... अस्त्र मतलब .. जिसे हाथ में रख कर युद्ध किया जाए .... जैसे कि.... तलवार, बरछी , भला इत्यादि....!
वहीँ.... शस्त्र का मतलब वैसा अस्त्र होता है...... जिसे दूर से ही दुश्मनों पर प्रहार किया जा सके...... यथा ... तीर, पक्षेपात्र इत्यादि....!

इस तरह.... हमारे पुरातन धार्मिक ग्रंथों में ..... विभिन्न प्रकार के पक्षेपात्रों ( मिसाइल) का उल्लेख मिलता है..... जिसे अस्त्र कह कर संबोधित किया गया है.....

जैसे कि..... इन्द्र अस्त्र , आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र , नाग पाश , वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र , चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र , त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र , पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र , नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र ......ब्रह्मास्त्र .... इत्यादि....!

ये सभी ऐसे अस्त्र थे........ जो अचूक थे....!

इसमें से .....ब्रह्मास्त्र .... संभवतः..... परमाणु सुसज्जित मिसाइल को कहा जाता होगा.... जिसमे समुद्र तक को सुखा देने की क्षमता मौजूद थी...!

परन्तु.... ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।

चतुर्दिश अस्त्र ( एक साथ चारों दिशाओं में प्रहार कर सकने की क्षमता वाला अस्त्र ) के सम्बन्ध में हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस प्रकार का उल्लेख है ....:

संरचना:

1.तीर (बाण) के अग्र सिरे पर ज्वलनशील रसायन लगा होता है....... और , एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पीछे के सिरे पर बंधे बारूद से होता है.

2.तीर की नोक से थोडा पीछे ....... चार छोटे तीर लगे होते हैं ..... और, उनके भी पश्च सिरे पर बारूद लगा होता है.

कार्य-प्रणाली:

1. जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है... वायु के साथ घर्षण के कारण........तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.

2. उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पर लगा बारूद जलने लगता है......... और , इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.

3. और, तीसरे चरण में तीर की नोक पर लगे....... 4 छोटे तीरों पर लगा बारूद भी जल उठता है ....और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.

दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):

navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था।

आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि...... अंग्रेजी शब्द navigation, . हमारे संस्कृत से ही बना है.. और, ये शब्द सिर्फ हमारे संस्कृत का अंग्रेजी रूपांतरण है....!

: navi -नवी (new); gation -गतिओं (motions).

इसीलिए जागो हिन्दुओ...... और, पहचानो अपने आपको ....

हम हिन्दू प्रारंभ में भी ..... विश्वगुरु थे ... और, आज भी हम में विश्वगुरु बनने की क्षमता है....!

जय महाकाल...!!!

साभार : लेखक श्री कुमार सतीश

Thursday, August 22, 2013

दुनिया पर भारतीय संस्कृति की छाप

अमरीकी अन्तरिक्ष संस्था ‘नासा’ ने ‘संस्कृत’ मिशन नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया है। इसके संस्कृत सिखाई जाती है। 

अफ्रीका महाद्वीप ईथोपिया और मोरीटोनिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की देखरेख में हुई खुदाई में गणपति की मूर्तियां मिली हैं।

नासा का नाम सुपरिचित है। अंतरिक्ष की खोज में इस अमरीकी संस्था का क्या योगदान है यह सर्वविदित है। उक्त संस्था अपने आप में एक प्रयोगशाला भी है और विश्व विद्यालय भी। इसका प्रशिक्षण कितना कठोर है यह तो नासा से जुड़ी सुनीता विलियम जैसा कोई विद्यार्थी ही बता सकता है। लेकिन इसका अध्ययन अत्यंत कठिन है। नासा ने माना है कि संस्कृत बहुत ही वैज्ञानिक भाषा है और संस्कृत साहित्य में विज्ञान के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी है। इसलिए नासा ने ‘संस्कृत मिशन’ की शुरुआत की है। इसके अन्तर्गत संस्कृत सिखाई जाती है। वहां जो लोग संस्कृत सीख रहे हैं वे बाद में नासा के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध होंगे। नासा ने यह भी माना है कि तकनीकी आधार पर भी इस भाषा के माध्यम से तालमेल सरलतापूर्वक हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि संस्कृत साहित्य में अनेक जानकारियां उपलब्ध हैं इसलिए उन्होंने इस भाषा को प्राथमिकता दी है। भारत में संस्कृत भले ही उपेक्षित है, लेकिन नासा में उसे वैज्ञानिकों की भाषा का दर्जा दिया गया है।

पिछले दिनों वैष्णो देवी तीर्थ को लेकर भारत सरकार ने जब पांच रुपए का सिक्का जारी किया तो भारत के अल्पसंख्यक समाज के मुट्ठी भर लोगों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है इसलिए यहां किसी देवी-देवता का सिक्का जारी नहीं किया जा सकता है। लेकिन विरोध करने वाले इस तथ्य को भूल गए कि भारतीय संस्कृति की छाप तो पूरी दुनिया में दिखती है। उससे आप कहां तक दूर भागेंगे? किसी देश की सांस्कृतिक विरासत का विरोध करना तर्क संगत नहीं है। जो लोग आज मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं कल उन्हीं के देशों में देवी-देवताओं की पूजा होती थी। ग्रीक और मिस्र से लेकर अरबस्तान में इस्लाम से पूर्व तक की यही कहानी है। विश्व में जहां कहीं ऐतिहासिक वस्तुओं की खोज और खंडहरों की खुदाई होती है उसमें अधिकतर धर्म से जुड़ी वस्तुएं उपलब्ध होती हैं। इसलिए इतिहास और प्राचीन धर्म से जुड़ी संस्कृति के बीच एक महीन रेखा है जिसको समझना और उसका वैचारिक विश्लेषण करना बड़ा जरूरी है। 

कुछ वर्ष पूर्व भारत सरकार ने लालकिले के भूगर्भ में एक ऐसा ही कैप्सूल दफन किया है जिसके माध्यम से सैकड़ों वर्षों के बाद आने वाली दुनिया आज के विकास और प्रगति को मानवीय इतिहास के रूप में समझ पाएगी। आज खुदाई करने के पश्चात ्जो कुछ उपलब्ध होता है उसमें भूतकाल की परछाइयां होती हैं। विश्व के किसी भी कोने में इन दिनों जब इतिहास की खोज होती है तो हम देखते हैं कि उसमें प्राचीन भारत की छवि दिखाई पड़ती है।

अफ्रीका महाद्वीप, जो भारत से लाखों किलोमीटर दूर स्थित है, में राष्ट्र संघ के नेतृत्व में हो रही खुदाई में जो वस्तुएं प्राप्त हुई हैं उनमें गणपति के चित्र और तत्कालीन धातुओं से बनी गणपति की मूर्तियां मुख्य हैं। हाल ही में धुर पूर्व में बसे ईथोपिया और धुर पश्चिम में बसे मोरीटोनिया में एक जैसी गणपति की मूर्तियां प्राप्त होना आश्चर्यजनक बात है। आज का सऊदी अरब अफ्रीका के इन देशों से काफी दूर है। यहां नाइला नामक देवता की मूर्ति अर्ध नारेश्वरी का प्रतीक दिखाई पड़ता है, तो हुबल सफा और इज्जा नामक प्रतिमाएं कोई गणपति के आकार की है, तो कोई अन्य भारतीय देवी-देवताओं जैसी। उपरोक्त प्रतिमाओं का वर्णन उर्दू के प्रसिद्ध क वि अलताफ हुसैन हाली ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘मुसददसे-हाली’ में किया है। हाली ने उन्हें प्राचीन अरब के बुत बताए हैं। खलील जिब्रान ने ‘दी प्रोफेट’ नामक अपनी पुस्तक में इसी प्रकार के देवी-देवताओं के माध्यम से विश्व दर्शन की ओर इशारा किया है। इससे एक सवाल खड़ा होता है कि भिन्न-भिन्न देशों में होने वाली खुदाई में एक जैसी प्रतिमाएं क्यों उपलब्ध हो रही हैं? या तो इनको बनाने वाला कोई एक ही था या फिर उन दिनों इनका प्रचार प्रसार चारों ओर था। वे इनके माध्यम से प्रकृति के रहस्यों को उजागर करते थे। यह भारतीय संस्कृति के फैलाव और विश्वव्यापी होने का एक ठोस सबूत है। 

तालिबानी जिस जिहाद के लिए लालायित हैं उनके मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट भारतीय संस्कृति का बोलबाला ही है। इस दिशा में इंडोनेशिया सरकार के एक निर्णय ने उन्हें बहुत निराश किया। 

पिछले दिनों इंडोनेशिया ने अमरीका को एक चौंका देने वाली वस्तु भेंट की है। वह न केवल उसके इस्लाम पूर्व की अपनी संस्कृति से जुड़े होने का संदेश देती है, बल्कि वह उसकी अनेकता में एकता के दृढ़ विश्वास को भी रेखांकित करती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आज की दुनिया में मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी वाला देश इंडोनेशिया है। लेकिन उसकी भाषा और पोशाक कहीं भी अरब संस्कृति से प्रभावित नहीं है। दक्षिण पूर्व एशिया का यह देश अपने नगरों और नेताओं के नाम भी अपनी प्राचीन संस्कृति के आधार पर ही रखता है। फिर वह सुकार्णों हो या सुहार्तों अथवा मेघावती। अपनी विमान सेवा को वह ‘गरुड़ा’ का नाम देने में गर्व महसूस करता है। उसी इंडोनेशिया में पिछले दिनों एक विचित्र घटना घटी। मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया की मुस्लिम सरकार ने अमरीका को हिन्दू देवी सरस्वती की 6 फीट ऊंची प्रतिमा भेंट की है। इस सांस्कृतिक उपहार को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस से कुछ दूरी पर स्थापित किया गया है। जहां महात्मा गांधी की प्रतिमा भी पहले से ही मौजूद है। इस्लाम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता है लेकिन अपनी राष्ट्रीय भावना को इंडोनेशिया आज भी सरस्वती की प्रतिमा के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि धर्म से महान संस्कृति है, जिसका गुणगान करना देश की धरती के यशोगान करने के समान है।

मुस्लिम शासनकाल में भारत के असंख्य नगरों के नाम मुस्लिम शासकों ने बदल दिए। चूंकि वे भारतीय संस्कृति पर आधारित थे अथवा उनके पीछे किसी न किसी देवी-देवता का नाम था। उत्तर भारत में तो नगरों के नामों में इतने फेर-बदल हुए कि मानो वे इतिहास को ही परिवर्तित करने के लिए कटिबद्ध हों। किसी भी स्थान के नाम को बदलकर कोई भी विजेता अपने अहं को शांत कर सकता है लेकिन उसके पीछे के इतिहास को बदलना बड़ा कठिन होता है। प्राचीन नगरों के नाम केवल धार्मिक आधार पर ही नहीं थे, बल्कि उसकी माटी में कोई न कोई विशेष गुण होता था इसलिए उस गुण को परिभाषित करने वाला नाम रख दिया जाता था। यह नाम भौगोलिक भी होते थे और पौराणिक भी। इन सबके उपरांत कुछ नामों में ऐसा जादू था कि मुस्लिम शासक उसका नाम तो बदल नहीं सके लेकिन उसके समानान्तर एक दूसरा नाम अवश्य रख लिया। भारत में ऋषिकेश एक पवित्र धार्मिक स्थल है। गंगा के किनारे बसे होने के कारण इस नगर का अपना सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। मुस्लिम शासक चाहते तो इसका नाम कुछ भी दे सकते थे, लेकिन उन्होंने इस पवित्र नगर का नाम बदलने में रुचि नहीं दिखाई। क्योंकि सहस्रों वर्षों के पश्चात् भी यह आज ऋषिकेश ही है। इस पर मुस्लिम आक्रांताओं ने विचार नहीं किया होगा ऐसा भी नहीं है। वे जानते थे कि ऋषिकेश का नाम बदल भी देंगे तब भी इस तीर्थस्थल का नाम बदलने और उसे जन प्रिय बनाने में बड़े कष्ट उठाने पड़ेंगे। इसलिए उन्होंने यह प्रयास नहीं किया। लेकिन ऋषिकेश के तुल्य एक स्थान अवश्य ही कश्मीर की घाटी में तैयार कर लिया। जिस जगह पैगम्बर मोहम्मद के पवित्र बाल होने के सम्बंध में किवदंती प्रचलित है उसका नाम उन्होंने ‘हजरत बाल’ रख दिया। इस्लाम पूजा-पद्धति में विश्वास नहीं रखता। लेकिन अपने पैगम्बरों और ओलियाओं के प्रति श्रद्धा तो अवश्य ही व्यक्त करता है इसलिए उनसे सम्बंधित ऋषिकेश के अनुवाद स्वरूप हजरत बाल नामकरण कर दिया होगा। यह एक व्याख्या है इतिहास नहीं। अमीर हमजा नामक लेखक एवं बुद्धिजीवी पाकिस्तान के आंतकवादी संगठनों के मित्र एवं दार्शनिक माने जाते हैं। उनके कथनानुसार भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी मीसाइलों के नाम 'अग्नि' और 'पृथ्वी' दिए हैं, जो इस बात को सिद्ध करते हैं कि वे आतंकवादियों को इनसे नष्ट करके विजय प्राप्त कर लेंगे। एक ओर वे मुस्लिम राष्ट्र हैं जो भारतीय संस्कृति के सकारात्मक पहलू की प्रशंसा करते हुए थकते नहीं हैं, जबकि दूसरी ओर आंतकवादी मानसिकता से ग्रसित ऐसे जिहादियों की भी कमी नहीं है जिन्हें पृथ्वी और अग्नि जैसे पंचभूत तत्वों में भी राजनीति ही दिखाई पड़ती है।

अब लाहौर में श्मशान घाट भी नहीं बचे

हाल ही में एक खबर आई है कि पाकिस्तान के लाहौर में अब एक भी श्मशान घाट नहीं रहा। इस कारण लाहौर में रहने वाले हिन्दुओं और सिखों को बड़ी परेशानी होती है। किसी हिन्दू या सिख के मरने पर उनके परिजन इस चिन्ता से शोक भी नहीं मना पाते कि अब इसका अन्तिम संस्कार कहाँ किया जाए? लाहौर में रावी नदी के किनारे अन्तिम संस्कार करने की मनाही है। प्रशासन का कहना है कि रावी नदी के किनारे अन्तिम संस्कार करने से मुस्लिमों की मजहबी भावनाएँ आहत होती हैं। इसलिए लाहौर में रहने वाले हिन्दुओं को अपने मृत परिजन का अन्तिम संस्कार करने के लिए करीब 90 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इतना ही नहीं शव को दिन में एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी खतरे से खाली नहीं है। कट्टरवादी विरोध करते हैं और शव को मुस्लिम रीति से दफनाने पर जोर देते हैं। इसलिए रात में शव को ले जाया जाता है,वह भी चोरी-छुपे। उल्लेखनीय है कि 1947 में लाहौर में 11 श्मशान घाट थे। ये घाट मडल टाऊन, टकसाली गेट, बक्कर मंडी, इशरा, कृष्ण नगर आदि इलाकों में थे। पहले इन श्मशान घाटों पर कट्टरवादियों ने जबरन कब्जा किया और अब उन लोगों ने इन्हें बेच दिया है। जहाँ पहले श्मशान घाट होते थे अब वहाँ बड़े-बड़े व्यावसायिक परिसर बन गए हैं। दिल्ली में रहने वाले कई पाकिस्तानी हिन्दुओं ने पाञ्चजन्य को बताया कि यह सब एक साजिश के तहत हुआ है। इस साजिश में पाकिस्तान की सरकार भी शामिल है। इन लोगों ने यह भी कहा कि लाहौर में अंगुली में गिनने लायक हिन्दू रह गए हैं। कट्टरवादियों को ये हिन्दू भी बर्दाश्त नहीं हो रहे हैं। इसलिए वे लोग हिन्दुओं को पाकिस्तान से भगाने में लगे हैं। 

साभार: पाञ्चजन्य, लेखक: मुजफ्फर हुसैन

Wednesday, August 21, 2013

GOVT. LOOT - सरकारी लूट




औरंगजेब ने जजिया कर लगाया था जो साल मे एक हि बार देना पड़ता था, आमदनी पर उसने भी कोई कर नही लगाया था | लेकिन अंग्रेजों ने भारत की लोगोंकी आमदनी पर कर लगाया वो भी 97%, माने 100 रूपए अगर किसी की आमदनी हो तो 97 रूपए अंग्रेजों को देना पड़ता था सिर्फ 3 रूपए उसके पास बचता था | ऐसा व्यवस्था अंग्रेजों ने बनाया था जिससे सारा पैसा भारतीय से लूट लेना ताकि भारतीय के हात मे कुछ न बचे, ताकि वे क्रांतिकारियों को दान न दे सके, इसके लिए इनकम टैक्स का कानून इस देश मे आया था |

बड़ी दुःख बात यह है के अंग्रेजों ने जो लूट का कानून बनाया था वो आज़ादी के 65 साल बाद भी चल रहा है, Indian Income Tax के नाम से हि चल रहा है, और आज भी भारतवासियों से धन लूटा जा रहा है | बस अंतर इतना है पहले गोर अंग्रेजों ने लूटा था और उस धन को लन्दन मे जमा किया था, अब काले अंग्रेज उस कानून के आधार पर धन लूट रहे है और सुईजरलैंड मे ले जाकर उस धन को जमा कर रहें है; व्यवस्था वोही के वोही चल रही है कानून वोही के वोही चल रही है |

अंग्रेजों ने Central Excise Act बनाया – कोई भी भारतवासी किसी वस्तु का उत्पादन करे तो उसपर 350% excise duty, अंग्रेजों ने sales tax लगाया, अंग्रेजों ने road tax लगाया, toll tax अगया, municipal corporation tax लगाया और ऐसे 23 तरह के टैक्स कानून लगाकर इस देश के नागरिकों को जमकर लूटा, लहभग 190 वर्षों तक |

अब अंग्रेजों ने यह सब कानून बनाये थे लूटने के लिए, तो आज़ादी के बाद होना ये चाहिए था के ये सारे कानून ख़तम किये जाये Income Tax ख़तम किये जाये, Central Excise ख़तम किये जाये, Road Tax ख़तम किये जाये, Toll Tax ख़तम किये जाये, Municipal Corporation Tax ख़तम किये जाये माने, अंग्रेजों के लगाये हुए 23 तरह के सारे टैक्स ख़तम किया जाये | लेकिन हमारे काले अंग्रेजों ने इसका उल्टा किया, अंग्रेजों के जाने के 65 साल के बाद काले अंग्रेजों ने इस देश पर अब 64 तरह के टैक्स लगा रखे है, और देश को लूट रहे है, अंग्रेजों ने भी जितना नही लूटा होगा उससे कई गुना जादा काले अंग्रेज, भ्रष्टाचारी नेता, और भ्रष्टाचारी अधिकारी इस देश को लूट रहें है और इसी लूट के damदम पर 100 लाख करोड़ रूपए से जादा इन्होने विदेशी बैंकों मे जमा करके रखा हुआ है |

साभार: फेस बुक, राजीव दीक्षित जी, कुनाल आर्य व दिनेश राठोर जी 

Friday, August 16, 2013

हिदुत्व के व्यापक विरोध के कारण गनजवी 10 प्रतिशत भारत भी नही जीत पाया था

आनंदपाल के पश्चात उसके पौत्र भीमपाल ने अपने महान पूर्वज राजा जयपाल की वीर और राष्टभक्ति से परिपूर्ण परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। इस शिशु राजा को पुन: कुछ अन्य राजाओं ने सैन्य सहायता देने का निश्चय किया। अत: एक बार पुन: देशभक्ति का एक रोमांचकारी वातावरण देश में बना। राजा ने झेलम नदी के तट पर बालानाथ की पहाड़ियों में मार्गला घाटी में महमूद का सामना करने के लिए स्थान का निर्धारण किया। यहां इस स्थान पर छापामार युद्घ को अच्छी तरह लड़ा जा सकता था, लेकिन नवयुवक राजा ने ऐसा न करके सीधे सीधे सामना करना ही उचित समझा। देश की इस राष्ट्रीय सेना के लिए यह पहला अवसर था जब उसे पहाड़ों के बीच ऐसा युद्घ लड़ना पड़ रहा था। फलस्वरूप वीरता पर क्रूरता हावी हो गयी और हम युद्घ हार गये। यह घटना 1014 ई. की है।

राजा भीमपाल ने लुटेरे को मार भगाया

अगले ही वर्ष महमूद ने फिर भीमपाल पर हमला किया। पर इस बार राजा भीमपाल ने इस लुटेरे आक्रांता को पीछे धकेलकर देश से बाहर भगाने में सफलता प्राप्त की। परंतु महमूद गजनवी ने 1018ई. में उस पर फिर आक्रमण किया और इस बार सारे पश्चिम एशिया से छंटे हुए लुटेरों और आततायियों को सम्मिलित कर वह भारत की ओर बढ़ा। महमूद गजनवी के विशाल दल को देखकर तथा अपने साथ इस बार किसी अन्य राजा को न पाकर राजा ने संधि करना ही श्रेयस्कर समझा। महमूद गजनवी और आगे बढ़ा तथा बुलंदशहर के राजा हरदत्त को हराकर मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि पर खड़े विशाल मंदिर को नष्ट कर दिया गया और भारी मात्रा में लूट का सामान प्राप्त कर लिया गया। प्रो. हबीब कहते हैं कि इस बार लूटते समय मालूम होता है कि ईर्ष्या से महमूद गजनवी का माथा पागल हो गया था।

विदेशी इतिहासकारों की दुरंगी बातें

भारत के विषय में विदेशी इतिहासकारों की बातें नितांत दुरंगी हैं। यदि हमारे रामायण कालीन और महाभारत कालीन पात्रों तथा उनके वैभव और विकास की बातें होने लगें तो ये लोग उन सब बातों को काल्पनिक कहकर उन्हें मूल्यहीन सिद्घ करने का प्रयास करते हैं। परंतु द्रोपदी के पांच पति होने के गप्प को भी सच मानकर हमारी संस्कृति का उपहास उड़ाते हैं। द्रोपदी के तो इस गप्प को सच मानते हैं और राम व कृष्ण आदि के अस्तित्व को ही नकारते हैं। कैसी बिडंबना है?

इसी प्रकार इतिहास बता रहा है कि भारत के सांस्कृतिक वैभव को सोमनाथ से भी पहले मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को अपमानित करके नष्टï किया गया था। परंतु हमें बता दिया गया कि कृष्ण तो वैसे ही काल्पनिक हैं, इसलिए उनके जन्मस्थल पर खड़े मंदिर के नष्टï होने से अधिक दुखी होने की बात नही है। बीते हुए कल की ऐसी दुखद घटनाओं को तो हमें इसलिए भूलने के लिए कहा जाता है कि बीती ताहि बिसार दे और आगे की सुधि लेहि, वाली बात ध्यान में रखो और आज जो कुछ हो रहा है उसे धर्मनिरपेक्षता छाप सहिष्णुता को अपनाने की बात कहकर भूलने की अपेक्षा की जाती है।

‘शैतान’ से कोई नही कहता कि तू अपनी शैतानियों को छोड़ और जो अब तक शैतानियां की हैं उन पर प्रायश्चित कर। उसे बिगडै़ल बच्चा समझकर ‘सब सुधर जाएगा’ वाली स्थिति में रखकर क्षम्य माना जाता है और देश के बहुसंख्यकों को नितांत मर्यादित रहने की शिक्षा दी जाती है। यह तो अच्छी बात है कि हमें नितांत मर्यादित रखा जाए, परंतु यही बात ‘बिगडै़ल बच्चे’ पर भी लागू होनी चाहिए। वह सदियों से बिगडै़ल है और क्या आने वाली सदियों तक बिगड़ैल ही रहेगा?

….और तब तक हमारा क्या होगा?

कृष्ण जन्म भूमि का कण-कण हमसे यही प्रश्न कर रहा है। हमने कुरूक्षेत्र के कृष्ण की गीता को उनके नाम पर बढ़ाते बढ़ाते इतना भारी कर दिया कि उनकी मूल वाणी ही कहीं विलुप्त हो गयी, उनकी द्वारिका को समुद्र ने विलुप्त कर दिया, उनके मंदिर को महमूद ने विलुप्त कर दिया और उनकी ऐतिहासिकता को विदेशी इतिहासकारों ने विलुप्त कर दिया। हमने विलुप्त के इस अंतहीन क्रम के अतिरिक्त अपने ‘योगीराज कृष्ण को और दिया ही क्या है? स्वयं अपने ही विषय में अनभिज्ञ रहने के आदी हो चुके हैं हम लोग। श्रीकृष्ण को वैसे और दे भी क्या सकते हैं? यदि हम कुछ नही कर सकते हैं तो हमारी ओर से हमारे राष्टधर्म का प्रो. हबीब देखिए किन शब्दों में निर्वाह कर रहे हैं :-

महमूद असीम संपत्ति में लोटता था। भारतीय उसके धर्म से घृणा करने लगे। लुटे हुए लोग कभी भी इस्लाम को अच्छी नजर से नही देखेंगे?….जबकि इसने अपने पीछे लुटे मंदिर बर्बाद शहर, और कुचली लाशों की सदा जीवित रहने वाली कहानी को ही छोड़ा है। इससे धर्म के रूप में इस्लाम का नैतिक पतन ही हुआ है, नैतिक स्तर उठने की बात तो दूर रही। उसकी लूट 30,00,000 दिहराम आंकी गयी है।

क्या हिंदू कायर थे

विदेशी आक्रामकों की क्रूरता के सामने भारत की वीरता हारी हुई देखकर अक्सर लोग हिंदुओं को कायर कह देते हैं। अपनों ने हमें ‘कायर मान लिया, उन्होंने ‘काफिर मान लिया, जबकि अंग्रेजों ने हमें ‘टायर्ड (थकी हुई मानसिकता से ग्रस्त) मान लिया और देखिए कि हम इन तीनों पुरस्कारों को ही अपनी पीठ पर लादे फिर रहे हैं। यदि कोई ये हमसे कहे भी कि इन को उतारो, फेंको अथवा छोड़ दो तो हम ऐसा कहने वाले पर ही गुर्राते हैं। शेर सयारों में बहुत दिन रह लिया तो अपने शेरत्व को ही भूल गया है। हिंदू कायर आदि नही था। वह हर स्थान पर और हर वस्तु में नैतिक नियमों की पवित्रता का समर्थक था। व्यापक नरसंहार, स्त्रियों के साथ दानवीय अनाचार और बच्चों तक के साथ अमानवीय अत्याचार भारत की, युद्घ शैली में कभी सम्मिलित नही थे। पूर्णत: वर्जित थे ये अमानवीय कृत्य। मुस्लिम आक्रामकों की युद्घ शैली में पहली बार ऐसे कृत्य देखकर हिंदू इन आक्रामकों के प्रति घृणा से भर गया। यही कारण रहा कि कभी भविष्य में भी ये दोनों विचारधाराएं निकट नही आ सकीं। इसलिए यह भी दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारत में किसी हिंदू मुस्लिम नाम की मिश्रित संस्कृति का निर्माण भी नही हुआ। संस्कृति तब निर्मित होती है, जब आपकी नैतिकता और मेरी नैतिकता समान स्तर की हों, तो वे मिलते ही परस्पर घुल मिल जाती हैं। जबकि यहां शिवाजी अपने शत्रु की पुत्रवधू को अपने खेमे में आने पर भी लौटा रहे हैं और वो हमारी बहू बेटियों को लूट का माल समझ रहे हैं। कैसे आप इसे मिश्रित संस्कृति कहेंगे? जैन, बौद्घ, पारसी और सिक्खों ने कभी ऐसा कृत्य नही किया, इसलिए वह हमारी वास्तविक संस्कृति के अंग बन गये और आज तक हैं। यही सोच भारत की संस्कृति के सर्वाधिक निकट है। आप हिंदुओं की देश धर्म के प्रति असीम भक्ति देखिए कि हर बार के आक्रमण के साथ गजनवी हजारों स्त्री पुरूषों व बच्चों को दास बनाकर ले जाता था, उनका फिर एक मेला लगाता था। जिसमें अरब के लोग उन्हें अपनी वासना पूर्ति या अन्य कार्यों के लिए खरीदते थे जो इस पकड़ में आ जाते थे वो आजीवन यातना झेलते थे और जो नही आते थे, वो अपनों के बिछुड़ने की पीड़ा से कराहते रहते थे-परंतु फिर भी देश धर्म के प्रति श्रद्घा बनाए रखी, असीम यातनाओं को लंबे काल तक झेलना भी कायरता नही शूरवीरता ही होती है।

कन्नौज के अपघाती शासक को दण्ड

कन्नौज का दुर्भाग्य रहा है कि वहां कई जयचंदों ने जन्म लिया है। महमूद गजनवी के काल में कन्नौज के शासक ने उसके सामने फटाफट आत्मसमर्पण कर दिया था और अपनी प्रजा पर असीम अत्याचारों को मूक होकर देखता रह गया था। यह बात कालिंजर और ग्वालियर के राजाओं को अच्छी नही लगी थी। इन राजाओं ने मिलकर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और प्रजा पीड़क राजा से कन्नौज की प्रजा को मुक्ति दिलाकर अपने राजधर्म का पालन किया। इन दोनों राजाओं की राष्ट्रीय भावना यहीं तक सीमित नही रही उन्होंने महमूद के आक्रमण को रोकने के लिए राजा भीमपाल और उसके पिता त्रिलोचन पाल की सहायता करने का भी निश्चय किया। 1019 ई. के शीतकाल में महमूद ने पंजाब की ओर से आक्रमण करने की योजना बनाई। दुर्भाग्य रहा इस देश का कि त्रिलोचन पाल की सेना युद्घ से पहले ही बिखर गयी। उसकी सेना की ये स्थिति देखकर सहायक राजाओं का भी मनोबल टूट गया। तब महमूद गजनवी को इस सेना का जो कुछ भी माल पल्ले पड़ा उसे ही लेकर वह चला गया। हमारी अहिंसा परमो धर्म: की नीति हमारे लिए घातक सिद्घ हुई। फिर भी अलबरूनी ने भीमपाल राजा के वंश के विषय में लिखा है:-वे उच्च विचार और सभ्य आचार के महान व्यक्ति थे। अपनी महानता के कारण वे अच्छे और सच्चे कामों को करने में कभी भी पीछे नही हटे। अंतिम जीवित उत्तराधिकारी भीमपाल अजमेर के राय के पास चले गये। वहां 1029 ई. में उनका देहांत हो गया।

शत्रु के मुंह से भी प्रशंसा निकलना किसी के व्यक्तित्व की महानता को नमन करना ही होता है। हमें स्मरण रखना होगा कि अवरोध की निर्बल पड़ती परंपरा के कारण महमूद गजनवी ने लाहौर को हमसे छीनकर वहां मुस्लिम शासक की नियुक्ति कर दी थी। यह राज्य पंजाब के कल्लूर शासकों की राजधानी रहा था। महमूद ने भारत की धरती पर लूटमार और आक्रमण तो कई किये थे, पर शासन स्थापित करने का उसका ये कार्य पहला ही था। सन 1022 में महमूद ने ग्वालियर और कालिंजर पर आक्रमण किया। यहां से वह कुछ लूट का माल लेकर लौट गया।

वीर सेल्यूक हिंदू जाति

वृहत्तर भारत अत्यंत विस्तृत था। आज हम जिस भारत को देखते हैं वह तो उस समय के महाभारत का अत्यंत लघु रूप है। महमूद गजनवी के समय समरकंद (समरखण्ड) के पास एक वीर हिंदू सेल्यूक जाति रहती थी। इसके योद्घाओं की उस समय धाक थी। उनके आसपास से गजनवी कई बार निकलकर भारत की ओर आया, परंतु उनसे कभी युद्घ का खतरा मोल नही लिया। ये लोग भी अपने देश धर्म के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे और उन्हें यह पसंद नही था कि कोई उनके देशधर्म को किसी प्रकार से क्षति पहुंचाए। महमूद भी इन लोगों से सीधे टकराने और उन्हें समाप्त करने से बचता था। एक बार उसने इन लोगों को अपने मूल स्थान से उठाकर अन्यत्र बसाने का निश्चय किया। जिससे उसका इस्लामी राज्य पूर्णत: मुस्लिम माना जाए। इसी सोच के वशीभूत होकर महमूद ने सेल्यूकों को परशियन के चरागाहों में जा बसने को कहा। उस समय तो सेल्यूकों ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया परंतु गजनवी के मरने के पश्चात इन्हीं सेल्यूकों ने उसका साम्राज्य छिन्न भिन्न करने में विशेष योगदान देकर पिछले पापों का प्रतिशोध लिया था। जब ये लोग महमूद के समय में स्थान परिवर्तन कर नदी पार कर रहे थे तो कहा जाता है कि इन्हें नदी में ही डुबोकर मारने का परामर्श गजनवी को उसके सैन्याधिकारियों ने दिया था। परंतु महमूद का इनकी वीरता से ऐसा करने का साहस नही हुआ था। निश्चित ही इन सेल्यकों के योगदान पर अभी भी विशेष शोध की आवश्यकता है।

सोमनाथ पर आक्रमण

सोमनाथ का मंदिर उस समय के सर्वाधिक संपन्न मंदिरों में गिना जाता था। कहा जाता है कि इस मंदिर के पास जितनी धन संपदा उस समय थी उसका सौवां भाग भी किसी राजा के पास नही था। अत: ऐसे धन संपदा संपन्न मंदिर पर महमूद जैसे लुटेरे की दृष्टिï ना पड़े ऐसा कैसे संभव था? इसलिए उसने अक्टूबर 1025ई. में इस मंदिर पर आक्रमण करने के आशय से गजनवी से प्रस्थान किया। जनवरी 1026 में उसने मंदिर पर आक्रमण किया। मंदिर में दो सौ मन सोने की एक जंजीर थी। मंदिर के प्रांगण में स्थित पाषाण स्तंभ भी स्वर्णावेष्टित थे। 3000 ऊंटों पर व हजारों घोड़ों और हाथियों पर मंदिर का खजाना लादकर ले जाया गया था।

उस समय के लिए कहा जाता है कि सारे राजस्थान के राजपूत राजाओं ने वापस लौटते महमूद को घेरने की योजना बनाई थी, लेकिन उसने मार्ग परिवर्तन कर लिया और दूसरी ओर से निकल गया। तब रास्ते में उसे जाटों ने मुलतान में घेरने का प्रयास किया था, लेकिन वह जाटों से भी बच गया था। गजनवी पहुंचकर वह मुलतान के जाटों से प्रतिशोध लेने पुन: आया। जाटों को बड़ी यातनाएं दी गयीं और उनकी पत्नियों को मुस्लिम लुटेरे अपने साथ ले गये। सोमनाथ के मंदिर का पूर्णत: विध्वंस मचा दिया गया था।

महमूद ने कितना भारत जीता

अब हम 1030 की बात कर रहे हैं। 30 अप्रैल को इसी वर्ष महमूद मृत्यु का ग्रास बना। वह उस समय 63 वर्ष का था। मूलत: वह लुटेरा था, परंतु फिर भी उसने भारत के पश्चिम में एक इस्लामिक साम्राज्य खड़ा कर लिया था। यह साम्राज्य कुछ अफगानिस्तान में तो कुछ पाकिस्तान में और कुछ आज के पंजाब के क्षेत्र से मिलकर बना था। उस समय के भारत का यह लगभग 10 प्रतिशत भाग ही होगा। शेष 90 प्रतिशत भारत तो तब भी स्वतंत्र था। 1030 में हम 10 प्रतिशत की हानि झेल रहे थे जबकि सन 712 ई. से मुस्लिम आक्रांता हमारे भूभाग को हड़पना चाह रहे थे। 318 वर्ष में उन्हें 10 प्रतिशत की अस्थायी सफलता मिली। जबकि हम संघर्ष के 318 वर्षों में अपने 90 प्रतिशत भूभाग को बचाए रखने में सफल रहे। दुर्भाग्य है इस देश का कि जो 318 वर्षों में 10 प्रतिशत सफल हुए उन्हें तो शत प्रतिशत अंक दिये गये और जिन्होंने मात्र 10 प्रतिशत ही विदेशी शत्रु को सफल होने दिया उन्हें पूर्णत: असफल मानकर शून्य अंक दिये गये। कितना बड़ा छल, कितना बड़ा प्रपंच, और कितना बड़ा झूठ है ये? जिसे हम सदियों से ढोते आ रहे हैं। इसी छल के कारण हमारे भीतर यह धारणा बैठा दी गयी कि मौहम्मद बिन कासिम यहां आया और उसने आते ही भारत को हथकड़ी बेड़ी लगायी और पराधीनता की कारावास में डाल दिया और अगले 1235 वर्ष तक यह देश पराधीनता की कारावास में पड़ा सड़ता रहा। अपने पुरूषार्थ और पौरूष पर अपने आप ही पानी फेरने का ऐसा अपघात किसी अन्य देश में होता नही देखा जाता। सचमुच हमें इतिहास बोध नही है, यदि इतिहास बोध होता तो हम अब तक अपना वास्तविक इतिहास लिख डालते।

डकैतों का वंदन राष्ट्रघात है

राजा जब अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए दूसरे देशों पर आक्रमण करता है तो ऐसे आक्रमण राजनीतिक उद्देश्य से किये जाते हैं, जिनके प्रतिशोध में कई बार आपकी ओर से भी आक्रमण हो सकता है। जहां युद्घों का ऐसा आदान प्रदान होता है वहां युद्घों से होने वाली क्षति भी क्षम्य होती है। परंतु जहां लूट और नरसंहार आक्रमण का एक मात्र उद्देश्य हो वहां ऐसे आक्रमण को लूट व नरसंहार की घटना मानकर आक्रांता को डकैत अथवा मानवता का हत्यारा कहना ही उचित होता है।

भारत ने कभी सिकंदर के यूनान पर आक्रमण नही किया भारत ने कभी गजनवी या गोरी के देश पर भी चढ़ाई नही की, इसलिए इनको लुटेरा ही कहा जाएगा। परंतु इन्हें महान कहकर हमें पढ़ाया गया है। जो हीरो थे और वास्तव में महान थे वे तो जीरो हो गये और जो जीरो थे वो हीरो या महान कहकर प्रस्तुत किये गये। छल व कपट का ऐसा ताना बाना भारतीय इतिहास पर चढ़ाया गया कि आज तक वह उतारे से भी उतर नही रहा है। लूट, हत्या, डकैती, बलात्कार और क्रूरता कभी सांस्कृतिक सामंजस्य स्थापित कराने में सहायक नही हो सकते और ना ही इन कार्यों को कभी महान माना जा सकता है, तो फिर भारतीय इतिहास में ऐसा क्यों पढ़ाया जा रहा है?


Hindu-Vedic Culture of Ancient Indonesia - इण्डोनेशिया की प्राचीन हिन्दू संस्कृति




७वीं - ८वीं सदी तक इण्डोनेशिया में पूर्णतया हिन्दू-वैदिक संस्कृति ही विद्यमान थी इसके आज भी अनेकों प्रमाण मिल रहे है तथा कई तो निर्भय होकर मूरत रूप में खड़े है


निम्न जानकारी लाल कृष्ण आडवाणी जी के ब्लॉग से ली गई है --


कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक मित्र ने दुनिया के सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इण्डोनेशिया से लौटने के बाद कच्छ के आदीपुर (गुजरात) में मुझे एक 20 हजार रुपया वहां की करेंसी का नोट दिखाया जिस पर भगवान गणेश मुद्रित थे। मैं आश्चर्यचकित हुआ और प्रभावित भी ।

जब पिछले महीने इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता से सिंधी समुदाय के कुछ महानुभावों के समूह ने 9,10 तथा 11 जुलाई 2010 को जकार्ता में होने वाले विश्व सिंधी सम्मेलन में आने का न्यौता दिया तो मैंने इसे तुरन्त स्वीकारा । इसका कारण यह था कि मैं इस देश पर भारतीय सभ्यता और विशेष रुप से रामायण और महाभारत जैसे महाग्रंथों के प्रभाव के बारे में अक्सर सुनता रहता था। करेंसी नोट पर गणेशजी का छपा चित्र इसका एक उदाहरण है।

मेरी पत्नी कमला, सुपुत्री प्रतिभा, दशकों से मेरे सहयोगी दीपक चोपड़ा और उनकी पत्नी वीना के साथ मैं 8 जुलाई को यहां से रवाना हुआ तथा 13 जुलाई को इस यात्रा की अविस्मरणीय स्मृतियां लेकर लौटा। इण्डोनेशिया में 13,677 द्वीप हैं जिनमें से 6000 से ज्यादा पर आबादी है। वहां की कुल जनसंख्या 20.28 करोड़ में से 88 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम और 10 प्रतिशत ईसाई हैं। यहां की 2 प्रतिशत हिन्दू आबादी मुख्य रुप से बाली द्वीप में रहती है।

Bali Brand Logo


बाली द्वीप के लिए हाल ही में स्वीकृत किया गया नया ब्राण्ड ‘लोगो’ (प्रतीक चिन्ह) देश की हिन्दू परम्परा का प्रकटीकरण है। इण्डोनेशिया के पर्यटन मंत्रालय का प्रकाशन इस प्रतीक चिन्ह को इस प्रकार बताता है, त्रिकोण (प्रतीक चिन्ह की आकृति) स्थायित्व और संतुलन का प्रतीक है। यह तीन सीधी रेखाओं से बना है जिनमें दोनों सिरे मिलते हैं, जो सास्वत, अग्नि (ब्रह्मा- सृष्टि निर्माता), लिंग या लिंग प्रतिमान के प्रतीक हैं। त्रिकोण् ब्रहमाण्ड के तीनों भगवानों - (त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और शिव), प्रकृति के तीन चरणों (भूर, भुव और स्वाहा लोक) और जीवन के तीन चरणों (उत्पत्ति, जीवन और मृत्यु ) को भी अभिव्यक्त करते हैं। प्रतीक चिन्ह के नीचे लिखा बोधवाक्य शान्ति, शान्ति, शान्ति भुवना अलित दन अगुंग (स्वयं और विश्व) पर शान्ति, जोकि एक पावन और पवित्र सिरहन देती है, जिससे गहन दिव्य ज्योति जागृत होती है जो सभी जीवित प्राणियों में संतुलन और शान्ति कायम करती है।

यहां 20000 रुपये के करेंसी नोट का नमूना दिया गया है। जैसा मैंने ऊपर वर्णन किया कि कुछ वर्ष पूर्व मैंने इसे देखा था और तभी तय किया था कि यदि मुझे इस देश की यात्रा करने का अवसर मिला तो मै स्वयं जा कर इसे प्राप्त करुंगा तथा औरों को दिखाऊंगा।


Indonesian Rupiah with Ganesha inscription


जकार्ता जाने वाले यात्रियों के लिए इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता के उत्तर-पश्चिम तट पर स्थित शहर के बीचोंबीच भव्य निर्मित अनेक घोड़ों से खिंचने वाले रथ पर श्री कृष्ण-अर्जुन की प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षित करने वाली है।


Krishna-Arjuna statue at Jakarta main square


इण्डोनेशिया में स्थानों, व्यक्तियों के नाम और संस्थानों का नामकरण संस्कृत प्रभाव की स्पष्ट छाप छोड़ता है


Bheema statue


निश्चित रूप से यह जानकर कि इण्डोनेशिया में सैन्य गुप्तचर का अधिकारिक शुभांकर (mascot) हनुमान हैं, काफी प्रसन्नता हुई। इसके पीछे के औचित्य को वहां के एक स्थानीय व्यक्ति ने यूं बताया कि हनुमान ने ही रावण द्वारा अपहृत सीता को जिन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा गया था, का पता लगाने में सफलता पाई थी।


हमारे परिवार ने चार दिन इण्डोनेशिया - दो दिन जकार्ता और दो दिन बाली में बिताए।

बाली इस देश के सर्वाधिक बड़े द्वीपों में से एक है। यहां के उद्योगों में सोने और चांदी के काम, लकड़ी का काम, बुनाई, नारियल, नमक और कॉफी शामिल हैं। लेकिन जैसे ही आप इस क्षेत्र में पहुंचते हैं तो आप साफ तौर पर पाएंगे कि यह पर्यटकों से भरा हुआ है। लगभग तीन मिलियन आबादी वाले बाली में प्रतिवर्ष एक मिलियन पर्यटक आते हैं।

इस द्वीप की राजधानी देनपासर है। हमारे ठहरने का स्थान मनोरम दृश्य वाला फोर सीजंस रिसॉर्ट था जो समुद्र के किनारे पर है और हवाई अड्डे से ज्यादा दूर नहीं है। रिसॉर्ट जाते समय रास्ते में मैंने जकार्ता में कृष्ण-अर्जुन जैसी विशाल पत्थर पर बनी आकृति देखी हालांकि यह जकार्ता में देखी गई आकृति से अलग किस्म की थी।

मैंने अपनी कार के ड्राइवर से पूछा: यह किसकी प्रतिमा है? और क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब उसने जवाब दिया तो मैं आश्चर्यचकित रह गया। उसने बताया, ”यह महाभारत के घटोत्कच की प्रतिमा है।” उसने आगे बताया ”और शहर में इस आकृति में घटोत्कच के पिता भीम को भी दिखाया गया है जो दानव से भीषण युध्द कर रहे हैं!”


Ghatotakacha (Son of Bheema) statue near the Ngurah Rai International Airport


भारत में, इन दोनों महाकाव्यों रामायण और महाभारत में से सामान्य नागरिक रामायण के अधिकांश चरित्रों को पहचानते हैं। लेकिन महाभारत के चरित्र कम जाने जाते है।वस्तुत:, भारत में भी बहुत कम होंगे जिन्हें पता होगा कि घटोत्कच कौन है? और वहां हमारी कार का ड्राइवर भीम से उसके रिश्ते के बारे में भी पूरी तरह से जानता था। : D

जकार्ता में सिंधी सम्मेलन और बाली में हमें रामायण के दृश्यों के मंचन की झलक देखने को मिली जो भारत में प्रचलित परम्परागत रुप से थोड़ा भिन्न थी। कलाकारों का प्रदर्शन तथा प्रस्तुति और जिन स्थानों पर यह प्रदर्शन देखने को मिले वहां का सामान्य वातावरण भी पर्याप्त श्रध्दा और भक्ति से परिपूर्ण था।

मैं यह अवश्य कहूंगा कि इण्डोनेशिया के लोग हमसे ज्यादा अच्छे ढंग से रामायण और महाभारत को जानते हैं और संजोए हुए है।

-- लाल कृष्ण आडवाणी

नयी दिल्ली

१७ जुलाई, २०१०

Archaeology--

इसके अतिरिक्त शिव जी तथा गणेश जी का एक १००० वर्ष पुराना मंदिर भी खुदाई में प्राप्त हुआ है शोधकर्ताओं का कहना है की १० वीं सदी में हुए भयंकर ज्वालामुखी विस्फोट के कारन ये मंदिर लावे की तह में दब गया था तथा उनका कहना है की अब तक पूरी दुनियां में प्राप्त हुई विरासतों में यह सबसे उत्तम अवस्था में है

"This temple is a quite significant and very valuable because we have never found a temple as whole and intact as this one," said archaeologist Dr Budhy Sancoyo, who is one of the researchers painstakingly cleaning up the temple.


इण्डोनेशिया की विमान सेवा का नाम भी विष्णु जी के वाहन गरुड़ के नाम पर रक्खा गया है

Garuda , the vehicle ( Vimana ) of Lord Vishnu , holds an important role for Indonesia, as it serves as the national symbol of Indonesia.

इण्डोनेशिया के प्राचीन हिन्दू मंदिरों की कई अन्य तस्वीरें -

Archaeologists found a statue of Ganesha, a Hindu deity, during their excavations on the campus of the Islamic University, Indonesia














EVEN MORE --

Bali, Indonesia -

Mother Temple of Besakih, Karangasem Regency (the biggest Hindu temple in Indonesia)

Pura Ulun Danu Bratan

Pura Luhur Ulu Watu

Kehen Temple, southern slope of Bangli hill

Makori temple, Bali

Batur Temple (Ulun Danu temple), Kalanganyar Batur village, Kintamani

Watukaru Temple, Wangaya Gede village, Tabanan

Pucak Penulisan, Kintamani

Pancering Jagat, Trunyan village, Kintamani

Jagadnatha, Jalan Mayor Wisnu, Puputan Square

Maospahit Denpasar, Banjar Gerenceng

Tanah Lot, Marga

Goalawah

Tirtha Empul Temple

Sakenan, boat Pirelli, Klungkung Regency

Taman Ayun

Pengerebongan, Kesiman Culture Village, Kesiman Petilan Village, District of East Denpasar

Lombok

Lingsar Temple, 7 kilometer from Narmada, one hour drive to east from Mataram, Hindu Temple, but at some occasions is used also by Animism Islamic Wektu Telu which only do the prayer 3 times a day

Java

Prambanan Temples

Parahyangan Agung Jagat Kartta Temple, Warung Loak Village, Taman Sari, Bogor Regency (the second biggest Hindu temple in Indonesia)

Ijo Temple

Barong Temple

Sambisari Temple

Kedulan Temple

Gebang Temple

Pustakasala Temple

Dieng Temples

Sukuh Temple

Cetho Temple

Penataran Temple

Kidal Temple

Surawana Temple

North Sumatra

Shri Sithi Vinayagar Kuil, Karang Sari, Polonia Medan

Shri Balaji Venkateshwara Koil, Jln.Bunga Wijaya Kesuma/Pasar IV,Padang Bulan, Medan

Shri Mariamman Kuil, Jalan Teuku Umar, Kampung Madras, Medan

Thandayuthapani Temple, Medan

Shri Kaliamman Kuil, Jalan Zainul Arifin, Medan

Maha Muniswarar Temple, Medan

Arulmigu Shri Maha Mariamman Koil, Sampali

Shri Thendayudhabani Koil, Jln.Sultan Hasanuddin, Lubuk Pakam

Shri Subramaniam Nagarattar Kuil (Chettiar Kuil), Jalan Kejaksaan, Kebun Bunga, Medan

Shri Maha Shiva Shakti Kuil, Karang Sari, Medan

Shri Mariamman Kuil, Medan Helvetia

Shri Singgama Kali Kuil, Jalan Karya, Medan Barat

Shri Kaliamman Kuil, Jalan Karya, Medan Barat (persis di sebelah Vihara Manggala)

Shri Mariamman Kuil, Bekala, Medan Simalingkar B

Shri Rajarajeshvari Amman Kuil, Selesai, Binjai Barat

dan puluhan kuil lainnya namun berukuran kecil dan tersebar di hampir seluruh kota Medan

Jakarta

Sri Siva Temple, Pluit (Indian Hindu Style)

Shri Bathra Kaliamman Koil, Komplek Perumahan Puri Metropolitan, Jl. Krisan Asri V, Blok B3, No. 20-22, Gondrong Petir, Cipondoh - Tangerang

Pura Aditya Jaya, Jl. Daksinapati Raya 10, Jakarta, Indonesia




अब बताइए हिन्दुत्व की इतनी गहरी छाप तो हिन्दुस्थान में भी नही है !!


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