संविधान निर्माताओं ने कुछ सोच-समझ कर ही भारत का संविधान बनाते समय उसमें ‘अल्पसंख्यक’ की परिभाषा नहीं दी होगी। शायद उन्होंने यह समझा होगा कि इससे राष्ट्र विघटन की समस्या पैदा हो सकती है लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा वोट बैंक की राजनीति के चलते राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 (ग) के अंतर्गत अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि को मान्यता दी गई है। ऐसा करके सरकार ने देश की जनता को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों की श्रेणी में बांट दिया लेकिन जिन राज्यों में बहुसंख्यक खुद अल्पसंख्यक हैं वहां उनके लिए किसी तरह की योजना का चलाया जाना भी जरूरी था, जिसकी अधिनियम में व्यवस्था ही नहीं की गई।
इतना ही नहीं, सरकार का यह कहना है कि जब बहुसंख्यकों यानी हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों की श्रेणी में शामिल ही नहीं किया गया तो योजनाओं का लाभ दिए जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। यह जानकारी तब मिली जब मैंने राज्य सभा में अल्पसंख्यकों का दर्जा प्रदान किए जाने संबंधी अल्पसंख्यक कार्य मंत्री से कुछ सवाल किए। सरकार की नीतियों से ऐसा लगता है कि जिन हिन्दुओं के सिर पर अल्पसंख्यकों को राहतें दी जा रही हैं उन्हीं को एक दिन अल्पसंख्यकों की कड़ी में खड़ा कर दिया जाएगा क्योंकि अगर सरकार की योजनाओं में स्पष्टता होती तो जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहां उन्हें भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता। लेकिन ऐसा कुछ भी प्रावधान करना सरकार जरूरी नहीं समझ रही ।
वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आने वाले समुदायों के लिए मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति योजना, मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय अध्येतावृत्ति, मैरिट-सह-साधन आधारित छात्रवृत्ति, नि:शुल्क कोचिंग एवं संबद्ध योजना, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम तथा बहु-क्षेत्रीय कार्यक्रम के अलावा कई अन्य योजनाएं चलाई जा रही हैं। केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अलावा प्रदेश स्तर पर अल्पसंख्यक आयोग बना कर अल्पसंख्यकों को सुविधाएं दी जा रही हैं और उनका चेयरमैन भी अल्पसंख्यक को ही बनाया जाता है पर जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहां उन्हें यह सुविधा न देकर हिन्दुओं को एक और प्लेटफार्म से वंचित कर दिया गया ताकि वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज ही बुलंद न कर सकें। बावजूद इसके सरकार की योजनाओं में देश के मूल वासी हिन्दुओं के लिए कोई योजना नहीं।
हां, इन्हें भी अलग-अलग जाति वर्ग, समुदायों और पंथों में बांट कर राजनीतिक रोटियां सेंकने के क्रम निरंतर जारी हैं। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम आदि क्षेत्रों में हिन्दुओं की संख्या अन्य समुदायों के मुकाबले कम है और वहां भी उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जाना किसी षड्यंत्र की तरफ इशारा करता है कि कहीं-कहीं हिन्दुओं को उन्हीं की मातृभूमि से वंचित करने का रास्ता साफ किया जा रहा है।
लेकिन इतिहास गवाह है कि हजारों सालों से मुगल और अंग्रेजी शासक ऐसा करने में असफल रहे हैं पर भ्रम में कार्य कर रही केन्द्र सरकार अपनी वोट बैंक के स्वार्थ से भरी मनमानियों के चलते आज कई स्थानों पर हिन्दुओं की हालत बद से बदतर करने पर उतारू है। सरकार की योजनाएं वहीं लागू होती हैं जहां उसे वोट बैंक की चमक दिखती है।
केन्द्र सरकार को यह बात भली-भांति जान लेनी चाहिए कि सरकार बनाने में हिन्दुओं का योगदान अन्य समुदायों से अधिक होता है क्योंकि संख्या में अधिक होने के कारण इनके मत भी अधिक होते हैं और कांगेस पार्टी में 70 प्रतिशत से अधिक की भागेदारी भी हिन्दुओं की ही है। ऐसे में हिन्दुओं के हकों को दरकिनार करना तर्कसंगत न होगा।
केन्द्र सरकार का अल्पसंख्यकों की परिभाषा को स्पष्ट न किए जाने से साफ हो जाता है कि मात्र वोट बैंक की राजनीति करके हिन्दुओं को गुमराह ही नहीं बल्कि उनका शोषण भी किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में पंडितों के साथ जो हुआ उसे पूरा विश्व जानता है और जो आज असम में हो रहा है वह भी किसी से छिपा नहीं है। इतना ही नहीं, आजादी के समय देश के हुए बटवारे में पाकिस्तान से आकर जम्मू-कश्मीर में बसने वाले हिन्दू और सिखों को आज तक भारतीय नागरिकता नहीं दी गई है और उन्हें रिफ्यूजी कह कर पुकारा जाता है।
मैं यहां अल्पसंख्यकों के हकों के विरोध में नहीं कह रहा लेकिन अगर अधिनियम बनाकर अल्पसंख्यकों को अधिकार दिए ही जाने हैं तो ऐसे में जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहीं उनके हकों की पूर्ति करनी भी सुनिश्चित बनाई जाए ताकि उन्हें यह न लगे कि उनकी अनदेखी की जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि अल्पसंख्यक की परिभाषा स्पष्ट की जाए।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि सरकार को हर अहम फैसला अपने परम विद्वानों और सच्चे हितैषी मंत्रियों के परामर्श से ही करना चाहिए, चापलूसों और स्वार्थी मंत्रियों की बातों में नहीं फंसना चाहिए जो देश को दुश्मनों के हाथों बेच सकते हैं लेकिन आज शास्त्रों के लिखे को अनभिज्ञ करते हुए केन्द्र सरकार द्वारा ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं जो कदापि देश हित में नहीं हैं।
इतना ही नहीं, बाहरी देशों से यहां आकर बसने वाले मुस्लिमों और ईसाइयों को भी इन सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है लेकिन मूल निवासियों के लिए सरकार के पास बांटो और राज करो की पॉलिसी के सिवाय कुछ नहीं है। अब समय आ गया है कि सरकार हिन्दुओं के सब्र का इम्तिहान लेना छोड़े और समरसता का संचार करते हुए प्रदेश स्तर पर अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए एक स्पष्ट नीति बनाकर लागू की जाए।
साभार : लेखक श्री अविनाश राय खन्ना, पंजाब केसरी
भाई जी आपने बिलकुल सही मुद्दा उठाया हे ये भ्रष्टाचार सरकार देश को न जाने कन्हा लेजाकर मानेगी आज भी इस देश को एक विदेश की नाचने वाली ओरत चला रही हे अब तो इसका एक ही उपाए हे हिन्दुओं को जागना होगा और इस बार देश हित में सोच कर मोदी जी को pm बनाना होगा तभी कुछ होगा वंदेमातरम्
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