Pages

Thursday, October 31, 2013

इतिहास को विकृत करने का षडयंत्र - १

कांग्रेस सरकार ने देश के स्वाधीन होने के बाद से ही सेकुलरिज्म के नाम पर भारत के स्वर्णिम इतिहास के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी थी। प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं अपनी पुस्तक ‘भारत की खोज’ में महाराणा प्रताप की अपेक्षा अकबर को महान सिद्घ करने का प्रयास किया था।

स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर सुनियोजित ढंग से राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले, प्राणोत्सर्ग करने वाले क्रांतिकारियों की घोर उपेक्षा ही नही की गयी, अपितु उन्हें आतंकवादी और सिरफिरा सिद्घ करने के प्रयास किये गये। स्वातंत्रयवीर सावरकर, भाई परमानंद शहीदे आजम सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, राजा महेन्द्र प्रताप, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लाला हरदयाल आदि क्रांति पथा के राही राष्ट्रभक्तों को इतिहास में उपयुक्त स्थान ही नही दिया गया, अपितु उनके विरूद्घ उनकी कार्य प्रणाली के विषय में प्रतिकूल प्रचार-अभियान भी चलाया गया। पूरे देश में :-

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल,
दे दी तूने आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, 

जैसे फिल्मी गानों का प्रचार कर यही सिद्घ कराने का प्रयास किया गया कि देश को स्वाधीनता खून का एक कतरा भी बहाए बिना गांधी जी तथा कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन तथा चरखे के कारण मिली है। इतना ही नही, वामपंथियों ने कांग्रेस सरकार को ढाल बनाकर भारत के प्राचीन स्वर्णिम इतिहास के साथ भी सुनियोजित ढंग से छेड़छाड़ की।

प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने सन 1971 में वामपंथी विचारधारा से अभिभूत डा. नूरूल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री पद सौंपा। डा. हसन ने तुरंत इतिहास तथा पाठय पुस्तकों के विकृतिकरण का बीड़ा उठा लिया। वामपंथी इतिहासकारों लेखकों को एकत्रित कर वे इस कार्य में जुट गये।

सन 1972 में इन सेकुलरवादियों ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की घोषणा की। सुविख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जीएस सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू कराया गया। घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वे अंश हटा दिये जाएंगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले लगते हैं। डा. नूरूल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए कहा- महमूद गनजवी औरंगजेब आदि द्वारा मंदिरों की मूर्तियां तोड़ने के प्रसंग राष्ट्रीय एकता में बाधक है अत: उन्हें नही पढ़ाया जाना चाहिए।

वामपंथी कम्युनिस्टों का यह हमेशा से ही दुष्प्रयास रहता है कि वे इतिहास से छेड़छाड़ कर उसे विकृत कर अपना स्वार्थ सिद्घ करें। केन्द्र में जब से वामपंथियों के रहमोकरम से यूपीए की कांग्रेस सरकार का गठन हुआ है तबसे वामपंथियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान सेनानी स्वातंत्रवीर सावरकर पर अंग्रेजों से क्षमा मांगकर अण्डमान काला पानी जेल से रिहा होने जैसे निराधार आरोप लगाने शुरू कर दिये हैं। केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर केा आगे करके उन्हेांने क्रांतिकारी शिरोमणि वीर सावरकर का चरित्र हनन सुनियोजित रूप से शुरू कर दिया है।

वामपंथी विचारधारा के कुछ लेखकों ने 1994 में वीर सावरकर की राष्ट्रभक्ति पर कीचड़ उछालकर उन्हें वीर की जगह कायर बताने की धृष्टता की थी। वामपंथियों का यह दुष्कृत नया नही है। वामपंथी तथा सेकुलररिस्ट लेखक सुनियोजित एंग से भारत राष्ट्र के वीर पुरूषों का चरित्र हनन करते आ रहे हैं।

राष्ट्रीय सैनिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीआरटी) द्वारा प्रकाशित ‘मध्यकालीन भारत’ तथा ‘उत्तर मुगलकालीन भारत’ पुस्तकों में वामपंथी लेखक डा. सतीश चंद्र ने कलम और तलवार के धनी महान भारतीय विभूति गुरू गोविंद सिंह जी महाराज पर औरंगजेब से माफी मांगने जैसा निराधार आरोप लगाने की धृष्टता की थी। उन्होंने धर्म स्वातंत्रय की रक्षा के लिए महान बलिदान देने वाले गुरू तेगबहादुर जी के संबंध में लिखा:-गुरू तेगबहादुर का वध किया गया। एक स्थान पर लिखा-1705 में औरंगजेब ने गुरू को माफ कर दिया। गुरू चाहता था कि औरंगजेब उसे आनंदपुर वापस दिलवा दें। डा. सतीश चंद्र ने हत्या या बलिदान की जगह वध तथा उनकी जगह उसकी शब्दों का प्रयोग कर घोर अशिष्टता का ही परिचय दिया।

मध्यमालीन भारत में डा सतीश चंद्र लिखते हैं:-

गुरू तेगबहादुर को अपने पांच अनुयायियों के साथ दिल्ली लाया गया और मौत के घाट उतार दिया गया। पूरा संसार जानता है कि गुरू तेगबहादुर जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था। उन्होंने हिंदू धर्म त्यागकर मुसलमान बनने से स्पष्ट कर दिया था इसलिए औरंगजेब के आदेश से आततायियों ने सरेआम उनकी हत्या की। उन्होंने बलिदान दिया, किंतु धर्म परिवर्तन न ही किया। मुस्लिम धर्मान्ता के उपर्युक्त तथ्य पर पर्दा डालते हुए गुरू तेगबहादुर जी के बलिदान का भ्रमित व निराधार कारण इस प्रकार वर्णित किया गया है:- गुरू तेगबहादुर ने असम से लौटने के बाद शेख अहमद सरहिंद के एक अनुयायी हाफिज आमिद के साथ पूरे पंजाब प्रदेश में लूटमार मचा रखी थी और सारे प्रांत को उजाड़ दिया था। क्रमश:

by उगता भारत ब्यूरो, लेखक - शिव कुमार गोयल

No comments:

Post a Comment

हिंदू हिंदी हिन्दुस्थान के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।