अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
कल मैंने सवाल उठाया था कि क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? इस सवाल का जवाब अधिकांश लोग हां में देते हैं। आखिर ऐसी सोच क्यों पैदा हुई? भारत विश्व के दृश्यपटल पर सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश है। यह ऐसा धर्मनिरपेक्ष है, जैसी धर्मनिरपेक्षता होनी बड़ी मुश्किल है। जो नई नस्लें हैं, उन्हें क्या मालूम कि हम क्या चीज हैं। भारत आजाद हुआ, इसके लिए बाकायदा इंडियन इंडीपैंडैंस एक्ट बना, पाकिस्तान वजूद में आ गया। अंग्रेजों ने उन्हें कश्मीर नहीं दिया था। उसे हमारे साथ महाराजा हरि सिंह ने विलय किया था। ऐसा विलय 542 रियासतों ने पहले ही कर दिया था। सबकी बात हमने सुनी, मानी परन्तु कश्मीर में घुंडी अड़ गई। यह अनोखी धर्मनिरपेक्षता थी। शेख और महाराजा के अच्छे संबंध नहीं थे। महाराजा ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में कैद कर रखा था जबकि पंडित नेहरू और महाराजा के संबंध भी अच्छे नहीं थे। महाराजा की नजरों में नेहरू की चारित्रिक समग्रता संदिग्ध थी। शेख अब्दुल्ला तिलमिला उठे। वह बाहर आए, नेहरू से मिले और शेख ने चाल चल दी। 27 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। यह एक पूर्ण रूप से सुनियोजित षड्यंत्र था। भयंकर मारकाट हुई। महाराजा ने अपनी रियासत को भारत के हक में विलयन के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। श्रीनगर तो बच गया, परन्तु हमारा 2/5 भाग पाकिस्तान ने जबरदस्ती हथिया लिया। पाकिस्तान की बलात्कारी फौज को जवाब देने के लिए हमारी सेना पहुंच चुकी थी। घनसारा सिंह और ब्रिगेडियर परांजपे मौजूद थे। छह घंटे के अन्दर हमारा भूभाग वापस आ सकता था, परन्तु सेना का नियंत्रण और उसे आगे बढऩे का अधिकार केवल शेख के हाथ में विशेष आदेश के द्वारा नेहरू ने दे रखा था।
कारण था- हमारी धर्मनिरपेक्षता।सवाल भारतीयता का नहीं धर्मनिरपेक्षता का था। महाराजा हरि सिंह रोते रहे, हमने अपना भू-भाग गंवा दिया और मामला संयुक्त राष्ट्र तक जा पहुंचा।
हम अपनी सरजमीं से विशाल सेना होते हुए भी दुश्मन को खदेड़ नहीं सके। हमारी धर्मनिरपेक्षता आड़े आ गई। मामला संयुक्त राष्ट्र में लटक गया।
पाकिस्तान ने हमारे भू-भाग का 13 हजार वर्ग किलोमीटर 2 मार्च, 1963 को चीन को दान कर दिया। सीमा निर्धारण के बहाने किये गए इस कुकृत्य पर बतौर विदेश मंत्री भुट्टो ने हस्ताक्षर कर दिए और उधर चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री चेन यी ने दस्तखत किए। इसी को कहते हैं 'माल महाराज का मिर्जा खेले खोली।' माल किसी का था और कमाल कौन कर रहा था। जब पंडित नेहरू पर दबाव पड़ा तो उन्होंने मगरमच्छी आंसुओं से भरा एक भाषण लोकसभा में 5 मार्च, 1963 को दिया था।
यह एक 'धर्मनिरपेक्ष और ढोंगी' प्रधानमंत्री की तकरीर थी। रो रहे थे कि हम क्या करें, अभी समय विपरीत है, हमने अपना 'प्रोटैस्ट' कर दिया है। कांग्रेसी बंधु इसे पढ़ें और अपना सिर पीटें।
नेहरू रोते क्यों न? 1962 के युद्ध में उन्होंने हमारी दुर्गति करवा दी। चीन के नाम से रूह कांप रही थी। इसकी सारी दास्तां तब ले. जनरल वी.एम. कौल ने अपनी किताब “Untold Story” में बयान कर दी। उसे भी आज पढ़ा जाना चाहिए लेकिन किसे फिक्र है जो इन दस्तावेजों में जाए? नेहरू का 1964 में निधन हो गया।
1965 में पाकिस्तान ने हम पर आक्रमण कर दिया। तब तक लाल बहादुर शास्त्री की कृपा से हम में बड़ा गुणात्मक फर्क आ गया था। हमने पाकिस्तान को दिन में तारे दिखवा दिए। हमारी सेनाएं लाहौर तक जा पहुंचीं। उन्होंने कच्छ के रण में हमारा एक हिस्सा कब्जे में ले लिया। पाकिस्तान ने चाल चली। हमारे परममित्र कोसीजिन से मिलकर अयूब ने ताशकंद में समझौता किया। हमने उनका सारा भूभाग छोड़ दिया, उन्होंने कच्छ में आज तक हमारी जमीन न छोड़ी। क्यों? हमने धर्मनिरपेक्ष तरीके से इसका प्रौटेस्ट किया। 1971 में फिर वही तारीख दुहराई गई।
हम चाहते तो शिमला समझौता में अपना कश्मीर वापस ले सकते थे, पर इंदिरा जी की धर्मनिरपेक्षता आड़े आ गई। तब से लेकर आज तक कश्मीर जल रहा है। आज एक धर्मनिरपेक्ष सरकार हमारे देश में वजूद में आ गई है लेकिन इन 30-32 वर्षों में कश्मीर में क्या हुआ इसका हाल सुनें। कश्मीर घाटी से 2.14 गुना क्षेत्रफल जम्मू का है। कश्मीर घाटी से 4.35 गुना क्षेत्रफल लद्दाख का है। उस राज्य की 90 प्रतिशत आय जम्मू और लद्दाख से है। 10 प्रतिशत घाटी से है। सम्पूर्ण आय का 90 प्रतिशत हिस्सा घाटी में खर्च किया जाता है। कारण क्या है? हमें इस बात का मलाल नहीं कि 3 लाख हिन्दू क्यों निकाल दिए गए। हमें यह मलाल नहीं कि बौद्धों के साथ क्या हो रहा है। पर हमें इस बात की सबसे ज्यादा फिक्र है कि-
· वहां दो नागरिकताएं कायम रहें।
· अनुच्छेद 370 कभी न हटे।
· भारत का संविधान लागू न हो।
· वहां कोई जमीन न खरीद सके।
· भारत का कानून लागू न हो।
· वहां की बेटी भारत में कहीं शादी करे तो नागरिकता खो बैठे, और पाकिस्तान में करे तो वह यहां का नागरिक हो जाए।
जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता प्रस्ताव हमारी सरकार के पास है। अगर हमारी सरकार की धर्मनिरपेक्षता ने फिर जोर मारा, तो हम सिर्फ 'अभिन्न अंग' रह जाएंगे, और हमारा प्यारा कश्मीर De-Facto पाकिस्तान हो जाएगा और हमारे पास De-Jure कश्मीर ही रहेगा। हम तब इस अभिन्न अंग को गाएंगे, गुनगुनाएंगे, ओढ़ेंगे, बिछाएंगे और चरखे के गुण गाएंगे। जय बापू की-जय गांधी की।
अफसोस! एक अरब 25 लाख लोगों का यह मुल्क इतना मोहताज हो गया कि प्राचीन गौरव और परम्पराएं भूल गया। धिक्कार है इस राष्ट्र के धरती पुत्रों पर।
मानसिक रूप से इस राष्ट्र को 'निर्णायक जंग' के लिए तैयार करना होगा।
''जब किसी जाति का अहं चोट खाता है।पावक प्रचंड होकर, बाहर आता है।यह वही चोट खाए स्वदेश का बल है।आहत भुजंग है, सुलगा हुआ अनल है।''(क्रमश:)
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