जब लहराता था अरब तक भारत का परचम
"सैरुअल ओकुल" नमक एक अरबी काव्य , जिसके लेखक "जिरहम विन्तोई" नामक एक अरबी कवि है। उन्होंने लिखा है.....
"वे अत्यन्त भाग्यशाली लोग है, जो सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में जन्मे। अपनी प्रजा के कल्याण में रत वह एक कर्ताव्यनिष्ट , दयालु, एवं सचरित्र राजा था।"
"किंतु उस समय खुदा को भूले हुए हम अरब इंद्रिय विषय -वासनाओं में डूबे हुए थे । हम लोगो में षड़यंत्र और अत्याचार प्रचलित था। हमारे देश को अज्ञान के अन्धकार ने ग्रसित कर रखा था। सारा देश ऐसे घोर अंधकार से आच्छादित था जैसा की अमावस्या की रात्रि को होता है। किंतु शिक्षा का वर्तमान उषाकाल एवं सुखद सूर्य प्रकाश उस सचरित्र सम्राट विक्रम की कृपालुता का परिणाम है। यद्यपि हम विदेशी ही थे,फ़िर भी वह हमारे प्रति उपेछा न बरत पाया। जिसने हमे अपनी द्रष्टि से ओझल नही किया"। "उसने अपना पवित्र धर्म हम लोगो में फैलाया। उसने अपने देश से विद्वान् लोग भेजे,जिनकी प्रतिभा सूर्य के प्रकाश के समान हमारे देश में चमकी । वे विद्वान और दूर द्रष्टा लोग ,जिनकी दयालुता व कृपा से हम एक बार फ़िर खुदा के अस्तित्व को अनुभव करने लगे। उसके पवित्र अस्तित्व से परिचित किए गए,और सत्य के मार्ग पर चलाए गए। उनका यहाँ पर्दापण महाराजा विक्रमादित्य के आदेश पर हुआ। "
इसी काव्य के कुछ अंश बिड़ला मन्दिर,दिल्ली की यज्ञशाला के स्तभों पर उत्कीर्ण है,
१-हे भारत की पुन्य भूमि!तू धन्य है क्योंकि इश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना।
२-वाह्ह ईश्वर का ज्ञान जो सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है,यह भारतवर्ष में ऋषियो द्बारा चारों वेदों के रूप में प्रकट हुआ।
३-और परमात्मा समस्त संसार को आज्ञा देता है की वेद जो मेरे गान है उनके अनुसार आचरण करो। वह ज्ञान के भण्डार 'साम' व 'यजुर 'है।
४ -और दो उनमे से 'ऋग् ' व 'अथर्व 'है । जो इनके प्रकाश में आ गया वह कभी अन्धकार को प्राप्त नही होता।
सम्राट विक्र्मदियता के काल में भारत विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, नस्छ्त्र आदि विद्याओं का विश्व गुरु था। विक्रमादित्य के नौ रत्नों में महान कवि कालिदास और महान गणितग्य व जोतिश्चार्य वराह मिहिर जैसे लोग सामिल थे जिन्होंने ने सम्राट विक्रम के शासन काल में ही सारे विश्व में भारत की कीर्ति पताका फहराई थी।
मुग़ल सम्राट अकबर ने उन्ही का अनुसरण कर के अपने दरबार में नौ रत्न की वयवस्था की थी|
भारत और नेपाल की हिंदू परंपरा में व्यापक रूप से प्रयुक्त प्राचीन पंचाग हैं विक्रम संवत् या विक्रम युग. कहा जाता है कि ईसा पूर्व 56 में शकों पर अपनी जीत के बाद राजा ने इसकी शुरूआत की थी|
परन्तु भारतीय इतिहास पर विदेशियों के प्रभाव के कारण विक्रमादित्य जैसे वीरो को लगभग भुला दिया गया उनकी जगह इतिहास में अकबर , टीपू सुल्तान , गौरी जैसों ने ले ली|
हिन्दुओं का वो स्वर्णिम काल भुला दिया गया जब अरब तक उनका परचम लहराता था|
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