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Thursday, December 8, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (१०)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है?


यह इस देश का दुर्भाग्य रहा कि १८९५ में एक अंग्रेज लार्ड एलन ओ1टावियन ह्यूम द्वारा स्थापित कांग्रेस ने शुरू से ही हिन्दुत्व विरोधी रवैया अपनाया और देश की आजादी के साथ विभाजन को भी स्वीकार कर लिया। कांग्रेस ने मजहब के आधार पर देश विभाजन के बाद भी अपनी हिन्दुत्व विरोधी व मुस्लिम तुष्टीकरण की राष्ट्र घातक नीति को नहीं छोड़ा। यह सिलसिला आज तक चल रहा है। मनमोहन सरकार ने तुष्टीकरण की सभी सीमाएं लांघ दी हैं। सरकार ने २००५ से केन्द्रीय योजना आयोग की वार्षिक योजनाओं में अनुसूचित जाति के लिए विशेष कम्‍पोनेंट योजना समाप्त कर दी थी। दूसरी ओर राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह ने देश के आर्थिक संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बना दिया।
२७ जून, १९६१ को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने सभी मु2यमंत्रियों को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि मजहब के आधार पर किसी भी प्रकार का आरक्षण न किया जाए। इसी प्रकार १९३६ में पूना पै1ट के बाद जब अंग्रेज सरकार ने अनुसूचित जाति की पहली सूची जारी की थी तो धर्मांतरित ईसाई व मुसलमानों की जातियां उसमें शामिल करने की मांग उठाई गई थी,जिसे अंग्रेज हुकूमत ने अस्वीकार कर दिया था। किन्तु मनमोहन सरकार इसमें भी नहीं चूकी और सच्चर कमेटी के बाद रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन करके धर्मांतरित ईसाई और मुसलमानों को अनुसूचित जाति का आरक्षण करने हेतु पैरवी प्रार6भ कर दी। प्रारंभिक तौर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह ने भी इसका विरोध किया किन्तु सोनिया गांधी जैसों की सहमति देखकर शांत हो गए।
वस्तुत: १६ दिसंबर, २००४ को कैथोलिक विशप कांग्रेस आफ इंडिया ने नई दिल्ली में ३४ ईसाई और १४ गैर ईसाई अर्थात कुल ४८ सांसदों की बैठक बुलाई,जिनमें धर्मांतरित ईसाई और मुसलमानों को अनु. जाति के आरक्षण का लाभ दिलवाने संबंधी जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करने का विचार तय हुआ। इस याचिका के संदर्भ में केन्द्र सरकार ने अपनी सहमति व्यक्त की,जिसका बयान सरकार के वकील ने कोर्ट में दिया, इस पर न्यायालय ने सहमति का आधार जानना चाहा। आधार बताने के लिए बड़े ही नाटकीय ढंग से रंगनाथ मिश्र आयोग बनाकर सरकार ने १० मई, २००७ को मनमानी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दी जबकि सुप्रीम कोर्ट पंजाब राव बनाम मेश्राम (१९६५), रामालिंगम बनाम अब्राह्म (१९६७), सूसाई बनाम भारत संघ (१९८७) आदि विवादों से पहले ही इस विषय पर असहमति व्यक्त कर चुका है, लेकिन केन्द्र सरकार की नीयत कैसी विचित्र है कि १० मार्च, २००६ को अल्पसंख्‍यक शिक्षण संस्थानों में अनु. जाति एवं पिछड़े वर्ग के आरक्षण की व्यवस्था को छात्रों के प्रवेश के संबंध में समाप्त कर दिया गया जबकि धर्मांतरित ईसाई व मुसलमानों को अनुसूचित जाति का आरक्षण दिलवाने की पैरवी प्रार6भ कर दी गई। सचमुच में यह धर्मांतरण को प्रेरित करके भारत में हिन्दू जनसंख्‍या कम करने का गंभीर षड्यंत्र है।
सरकार की तुष्टीकरण की नीतियों के चलते अल्पसंख्‍यकों का झुकाव कांग्रेस की तरफ ही रहा जबकि हिन्दू राजनीतिक तौर पर बिखरा हुआ ही रहा। यही कारण रहा कि देश की सत्‍ता पर ऐसे लोग और दल काबिज हो जाते हैं जिन्हें हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता और अपने देश के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति का ज्ञान ही नहीं होता। केन्द्र की सरकारों ने भारत विरोधी तत्वों को खुद इस देश में पनाह दी। भारत में ३ करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिये देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं। उन्होंने सरकारी सहयोग से अपनी संपत्तियां बना ली हैं। हिन्दुओं के धर्मस्थलों और शक्तिपीठों का सरकारीकरण किया जा रहा है, लेकिन दूसरों के धर्मस्थलों पर कोई नियंत्रण नहीं। सरकारी खजाने से अल्पसंख्‍यकों के धार्मिक स्थलों के रखरखाव पर खर्च होता है।
सरकार की नीतियों को लेकर अदालतों का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है। सच्चर कमेटी की सिफारिशों को न लागू करने के संबंध में केन्द्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाई है। उसने पूछा है कि आप गरीबी से लडऩा चाहते हैं तो फिर धर्म आड़े क्‍यों आ रहा है? क्‍या यह समुदाय विशेष का तुष्टीकरण करने का प्रयास तो नहीं है? क्‍या यह कमेटी इसी काम के लिए बनी है? क्‍या सरकार को सबकी भलाई के लिए पैसा खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए। आखिर ९० मुस्लिम बहुल जिले चिन्हित कर उनमें मुस्लिमों की तरक्की के ही विशेष प्रयास क्‍यों किए गए हैं?सरकार केवल अल्पसंख्‍यकों के उत्थान के लिए कटिबद्ध है, बहुसंख्‍यकों के लिएक्‍यों नहीं? आप अंग्रेजों की तरह बांटो और राज करोके सिद्धांत पर 1यों चलना चाहते हैं?(क्रमश:)
साभार- पंजाब केशरी

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