क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है?
साम्प्रदायिकता तथा लक्षित हिंसा विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इस विधेयक के इरादे यही हैं कि अपना देश एक न रहे, समाज में सद्भाव समाप्त हो जाए, संविधान की भावना के उलट सभी कार्य हों। इस प्रारूप को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है, इस परिषद के संवैधानिक अधिकार क्या हैं? इस पर भी बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं। देश में लोकतंत्र है, संसद है, तो फिर हम तथाकथित सलाहकारों के जाल में क्यों फंस रहे हैं?
न्याय, संविधान आदि की अवहेलना करने वाला यह विधेयक क्या विचार करने योग्य है? इस विधेयक को तो रद्दी की टोकरी में डाल देना ही बेहतर है क्योंकि इस विधेयक के पीछे की राष्ट्र विरोधी, घृणित, षड्यंत्रकारी मानसिकता इस पहले प्रारूप में ही साफ हो गई है।
इस विधेयक को लेकर कुछ और बिन्दू स्पष्ट करना चाहूंगा :विधेयक में प्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा होने पर कानून व्यवस्था के नाम पर केन्द्र सरकार को ''हस्तक्षेप का अधिकार'' दिया गया है। यह भारतीय संविधान में ''संघीय चरित्र'' के विरुद्ध है। राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा के नाम पर केन्द्रीय हस्तक्षेप असंवैधानिक है।
विधेयक देश के सार्वभौम नागरिकों को अल्पसंख्यक (मुस्लिम) और बहुसंख्यक (हिन्दू) में बांटकर देखता है।
देश की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम 13.5 प्रतिशत, हिन्दू, सिख, इसाई 86.5 प्रतिशत हैं।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साम्प्रदायिक दंगों की संख्या में भारी गिरावट आई है।
यह विधेयक बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, असम, पुड्डुचेरी आदि में गले का फंदा बना है।
पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसाई बहुसंख्यक हैं।
विश्व के किसी भी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है।
कांग्रेस का कहना है कि साम्प्रदायिक दंगों के समय स्थानीय प्रशासन और पुलिस उनके साथ सही बर्ताव नहीं करती है। प्रशासन एवं पुलिस मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखती है, यह गलत है।
साम्प्रदायिक दंगों के लिए स्थानीय जिला प्रशासन और पुलिस को जवाबदेह बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, वाम मोर्चा, तीसरी शक्ति साम्प्रदायिक हिंसा को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्या मानती है।
विश्व के अधिकांश टीवी समाचार चैनलों पर धार्मिक समारोह रपट विरले ही प्रसारित की जाती है।
विपक्ष का आरोप है कि साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक में बहुसंख्यक हिन्दुओं को ''खलनायक की भांति चित्रित किया गया है।''
कांग्रेस का आरोप है कि मीडिया शांति और सौहार्द स्थापना में रचनात्मक भूमिका अदा नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री डा. सिंह ने मीडिया को सौहार्द, शांति के लिए रचनात्मक कार्य करने की सलाह दी।
विपक्ष के अनुसार विधेयक के प्रावधान नागरिक स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त प्रावधानों का अतिक्रमण करते हैं। विधेयक नागरिकों को धर्म और जाति के नाम पर विभाजित करता है।
विधेयक के अनुसार हिन्दू, मुस्लिमों के लिए अलग-अलग आपराधिक दण्ड संहिता (फौजदारी कानून) होंगे। परिणामस्वरूप साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक हिन्दू बहुसंख्यकों के लिए भस्मासुर बनेगा। उसका दुरुपयोग होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
विधेयक से हिन्दू-मुस्लिमों में ''परस्पर अविश्वास'' और अधिक गहराएगा। अत: यह संविधान विरोधी साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक मसौदा खारिज किया जाए। वर्तमान में साम्प्रदायिक हिंसा से निपटने के अनेक सख्त कानून हैं उनका उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है? (क्रमश:)
Courtsey:अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
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