देश बहुत खतरनाक दौर से गुजर रहा है। अगर जल्द सही दिशा में सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो राजनीतिक पार्टियां वोट के लालच में सामाजिक ढांचे की जड़ों में इतना जहर घोल देंगी कि सभ्य व धर्मनिरपेक्ष नागरिकों के लिए जीना मुश्किल हो जाएगा। देश के स्वतंत्र होने के बाद यह आवश्यक था कि देश के प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू की जाए। संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया था कि सरकार को प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करनी चाहिए, लेकिन जब भी कभी समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रश्न खड़ा होता है मुस्लिम और ईसाई वोटों के लालची कांग्रेस व अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल स्वर में स्वर मिला कर इसका विरोध करना शुरू कर देते हैं।
13 जुलाई, 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में निर्णय देते हुए कहा था कि यह अत्यंत दु:ख की बात है कि स्वाधीनता के इतने वर्षों बाद भी संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के तहत आने वाले अनुच्छेद 44 पर अमल नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए संसद को कानून बनाना चाहिए क्योंकि इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण निर्णय आते ही आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कट्टरपंथियों ने शोर-शराबा मचाना शुरू कर दिया। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात यह थी कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों और अन्य दलों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध किया।
भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका उल्लेख होते ही राजनीतिक क्षेत्र में भूचाल आ जाता है। देश के लिए चाहे वे कितने ही अधिक महत्वपूर्ण हों परन्तु राजनीतिक क्षेत्र के लोग अपने सत्ता स्वार्थ के कारण उनकी निरंतर उपेक्षा करते आ रहे हैं। उन्हीं में से एक मुद्दा है समान नागरिक संहिता का, जिसका नाम लेना भी भारतीय राजनीति में अपराध समझा जाने लगा है परन्तु भारतीय संविधान एवं न्यायपालिका समान नागरिक संहिता को देश की एकता एवं अखंडता के लिए आवश्यक समझती है। ऐसी परिस्थिति में जब संवैधानिक उत्तरदायित्व एवं न्यायालय का निर्णय राजनीतिज्ञों की दृष्टि में अपराध बन जाए तब देश के नागरिकों को इसके विषय में जानना एवं निर्णय लेना अनिवार्य हो जाता है। अत: इस दृष्टि से निम्न बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है।
दुनिया के किसी भी अन्य देश में दोहरी कानून व्यवस्था नहीं तथा भारत के अतिरिक्त किसी भी दूसरे देश के नागरिकों के लिए अलग-अलग कानून का विधान भी नहीं। यूरोप एवं अमरीका समेत सभी पश्चिमी राष्ट्रों में वहां रहने वाले नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता है। वहां पंथ, जाति या क्षेत्र के आधार पर किसी विशेष कानून का विधान नहीं किया गया। दूसरी तरफ अरब के उन मुस्लिम राष्ट्रों में भी अलग कानून की व्यवस्था नहीं है जहां शरीयत एवं कुरान के कानून मान्य हैं। वहां के अन्य धर्मावलम्बियों के ऊपर भी वही कानून लागू होते हैं। एकमात्र भारत ही ऐसा राष्ट्र है जहां मुस्लिम मतावलम्बियों के लिए नागरिक कानून से अलग शरीयत कानून लागू होता है। उन पर भारत की संसद के द्वारा बनाए गए कानून लागू नहीं होते। दूसरी तरफ सनातनी हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिखों पर संसद द्वारा बनाई गई एक समान नागरिक संहिता लागू होती है, जिसे हिन्दू लॉ कहते हैं। एक ही क्षेत्र में रहने वाले एक ही शासन द्वारा शासित नागरिकों पर भिन्न-भिन्न कानून के लागू होने का यह अद्भुत उदाहरण केवल भारत में ही मिलता है। (क्रमश:)
Courtsey: अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी) (5)
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