हमारे वेद और शास्त्रों में कण-कण में भगवान की थ्योरी पहल से ही मौजूद है। ऋग्वेद में तो पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति का लेखा-जोखा ही मौजूद है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सबसे मान्यता प्राप्त महाविस्फोट का सिद्धांत है। यह सिद्धांत ऋग्वेद की ऋचाओं से कितना मेल खाता है, यह देखते हैं।
द बिग बैंग थ्योरी
महाविस्फोट सिद्धांत में कहा गया है कि 10 से 20 खरब साल पहले ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से पास थे। इतने पास कि सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु महासूक्ष्म था। इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिति है, जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है।
ऋग्वेद में क्या है
ऋग्वेद में सृष्टि सृजन की श्रुति में कहा गया है- सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था कहां क्या, किसने देखा था। उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। बस एक बिंदु था। ऋग्वेद ।
ऋग्वेद इससे आगे भी रहस्य खोलता है। उसमें लिखा है कि ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ है। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घट का आकाश।
संस्कृत के विद्धान और गोविंद देव पंचांग के संपादक आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि उपनिषद में एक जगह उल्लेख है कि ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा, यह तीन तत्व ही हैं। ब्रह्म शब्द 'ब्रह्' धातु से बना है, जिसका अर्थ बढ़ना या फूट पड़ना होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से संपूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्तिहुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्तिा, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।
पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु
पदार्थ का विघटित रूप ही परम अणु है। जेनेवा प्रयोग में वैज्ञानिकों ने द्रव्य और द्रव्यमान के लिए इसी 'गॉड पार्टिकल' को जिम्मेदार माना। तैत्तिरीय उपनिषद में इसी द्रव्य के बारे में समझाया गया है। कृष्णमूर्ति ज्योतिष की जानकार शालिनी द्विवेदी कहती हैं कि तैत्तिरीय उपनिषद में साफ कहा गया है कि परमेश्वर से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य सर्वत्र फैल रहा था, उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है।
उनके अनुसार उपनिषद कहता है कि पदार्थ का संगठित रूप जड़ है और विघटित रूप परम अणु है। इस अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं और श्रमण पुद्गल। इसी उपनिषद में आगे कहा गया है कि आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।
साभार : जागरण, पवन निशांत.
@ भाई प्रवीण जी ! ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में बहुत गहरे आध्यात्मिक रहस्य का बयान है. यह सही है लेकिन इसका कोई ताल्लुक उस कण से नहीं है जिसे 'गाड पार्टिकल' के रूप में अभी खोजा गया है.
ReplyDeleteउपनिषदों में नेति नेति कह कर यह बताया गया है कि ब्रह्म किसी भी देखी हुई या जानी हुई वस्तु जैसा नहीं है. इसीलिए उसे अचिन्त्य, कल्पनातीत, अगम और अगोचर कहा गया है.
आधुनिक खोज को वेदों में दर्शाने के उत्साह में आप कम से कम ब्रह्म के स्वरूप को तो न भुलाएँ.
भारतीय कालगणना का आरम्भ सृष्टि के प्रथम दिवस से माना जाता है । इसलिये इसे सृष्टि संवत कहते हैं । यह संवत 1975949112 एक अरब सत्तानबे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हजार, एक सौ बारह वर्ष पुराना है ।
क्या आप जानते हैं कि वैदिक साहित्य के अनुसार सृष्टि संवत को २ अरब वर्ष भी नहीं हुए हैं जबकि आप खुद बता रहे हैं कि वैज्ञानिकों ने बताया है -"महाविस्फोट सिद्धांत में कहा गया है कि 10 से 20 खरब साल पहले ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से पास थे। इतने पास कि सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु महासूक्ष्म था।"
विज्ञानं की खोज को आप वेदों में कैसे ढूंढ़ पायेंगे ?
भाई अनवर वेद विज्ञान का ग्रन्थ है यहाँ तक कि वेदोँ मे प्रकाश की गति बताया गया है अगर इतने पहले कोई प्रकाश की गति बता सकता है,जो विज्ञान अभी बता पाया है तो ये विज्ञान नही तो क्या है?
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