सावन माह में शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली भगवान शिव की आराधना, पूजा, जयकारे और धार्मिक आयोजन ऐसा शिवमय वातावरण बना देते हैं कि उसके प्रभाव से ईश भक्ति से दूर रहने वाले लोगों के मन भी शिवभक्ति और श्रद्धा की लहर पैदा हो जाती है। इससे यही प्रश्र हर धर्मजन के मन में पैदा होता है कि आखिर श्रावण मास और शिव भक्ति का क्या संबंध है और इस मास में शिव उपासना का... इतना अधिक महत्व क्यों है?
इस बात का उत्तर हिन्दू धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में बताया गया है। वेदों में प्रकृति और मानव का गहरा संबंध बताया गया है।
वेदों में लिखें कुछ मंत्रों का संदेश कुछ इस प्रकार है -
बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ और धर्म ग्रंथों का अध्ययन करतेहैं और इस दौरान वह ऐसे मंत्रों को पढ़ते हैं, जो सुख और शांति देने वाले होते हैं। बारिश के मौसम में अनेक तरह के जीव-जंतु बाहर निकल आते है और तरह-तरह की आवाजें सुनाई देतीहै। ऐसा लगता है कि जैसे लंबे समय तक व्रत रखकर सभी ने अपनी चुप्पी तोड़ी हो। इस बात के द्वारा संदेश दिया गया है कि जिस तरह जीव-जंतु बारिश के मौसम में बोलने लगते हैं, उसी तरह से हर व्यक्ति को श्रावण से शुरु होने वाले चारमासों में धर्म और ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ करना या सुनना चाहिए। इसी प्रकार बारिश या सावन मास में अनेक प्रकार के पौधे पैदा होते हैं, जो औषधीय गुणों के होते हैं। यह हमारी आयु और शरीर सुखों को बढ़ाते हैं। धार्मिक दृष्टि से पूरी प्रकृति ही शिव का रुप है। इसलिए प्रकृति की पूजा के रुप में सावन मास में शिव की पूजा की जाती है।
खास तौर पर वर्षा के मौसम जल तत्व की अधिकता होती है। इसलिए शिव का जल से अभिषेक सुख, समृद्धि, संतान, धन, ज्ञान और लंबी उम्र देने वाला होता है।
साभार, भारतीय संक्राति ही सर्वश्रेष्ठ हैं., फेसबुक
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