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Friday, August 10, 2012

मॉरीशस में 'राम-राम'


भारत से सैकड़ों किलोमीटर दूर अफ्रीका महाद्वीप के किसी देश में यदि लोग आपसे 'राम-राम' या 'ॐ नम: शिवाय' कहकर अभिवादन करें तो आपको कैसा लगेगा? अपनी पहली यात्रा में मॉरीशस आकर कभी लगा ही नहीं कि मैं भारत से बहुत दूर आ गया हूं। वही भारतीय वेशभूषा, वही खान-पान, वही रीति-व्यवहार, वही पूजा-पद्धति, वही मंदिर और धर्म के प्रति वही अगाध आस्था।




भौगोलिक दृष्टि से हमसे बहुत दूर, लेकिन भावनात्मक लिहाज से बेहद निकट। मॉरीशस के सर शिवसागर रामगुलाम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही भारत तथा हिंदुत्व के प्रति सहज अपनत्व के दर्शन होने लगते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कुछ साल पहले कितनी सटीक टिप्पणी की थी कि हिंद महासागर भारत और मॉरीशस को अलग नहीं करता, उन्हें जोड़ता है।

सच कहा जाए तो इस भावनात्मक संबंध की मिसाल आपको दिल्ली से रवाना होते ही मिल जाती है। विमान में अपने आसपास देखने पर हाथों में लंबे-लंबे चूड़े पहने नवविवाहिता युवतियों को देखना दूसरे देशों के यात्रियों के लिए कौतूहल का विषय हो जाता है। भारत में मॉरीशस को एक रूमानी, खूबसूरत और 'अपने से' देश के रूप में अच्छा प्रचार मिला है जिसने उसे नवविवाहित जोड़ों की नंबर एक पसंद बना दिया है। सुंदर समुद्रतट, एकांत, हरियाली, सुहाना मौसम और सीधे-सरल लोग इन प्रेमी जोड़ों को निराश नहीं करते। मॉरीशस में भारतीय भोजन खूब मिलता है, फिर भले ही आपको उत्तर भारतीय भोजन पसंद हो या दक्षिण भारतीय।

हालांकि मॉरीशस के अधिकांश मार्गों, आवासीय कालोनियों, गांवों आदि के नाम फ्रेंच भाषा में हैं, लेकिन यदा-कदा हिंदी नाम भी सुनाई दे जाते हैं, जैसे- अप्रवासी घाट, गंगा तलाब, शिवसागर मन्दिर आदि-आदि। लोग आपसी बातचीत में क्रियोल भाषा का प्रयोग करते हैं जो फ्रेंच, अफ्रीकी, भोजपुरी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्दों का अनोखा मिश्रण है। लेकिन भारतीय मूल के अधिकांश लोग हिंदी समझते हैं। मॉरीशस आकर कुछ-ऐसा लगा, जैसे दक्षिण भारत के किसी स्थान पर हैं जहां लोग हिंदी बोल भले ही न रहे हों, समझ सब रहे हैं। हालांकि यह स्थिति अब थोड़ी-थोड़ी बदलने लगी है और अपनी जड़ों से जुड़ने की चाह में लोग हिंदी सीख रहे हैं। इन लोगों के लिए भारत से आने वाला हर पर्यटक अपने निजी अतिथि जैसा है। वे कोशिश करते हैं कि उनके माध्यम से भारत को जितना जान सकें, जान लें। अनजान लोगों के बीच अचानक बह उठने वाली अपनेपन की यह धारा पहले-पहले एक सुखद आश्चर्य जैसी प्रतीत होती है लेकिन कुछ समय बाद अहसास होता है कि हिंदी, हिंदू, हिन्दुस्थान के प्रति मॉरीशस के समाज का लगाव कोई कृत्रिम या दिखावटी नहीं है। वह एक स्वाभाविक प्रकृति है, उन लोगों की जिन्होंने अपने पुरखों के मूल राष्ट्र और उनकी महान संस्कृति के बारे में सुना और पढ़ा तो बहुत है, किंतु उसे प्रत्यक्ष अनुभव करने का सौभाग्य नहीं पा सके। वे इस टूटी हुई कड़ी को जोड़ने की भावुकतापूर्ण कोशिश करते हुए प्रतीत होते हैं। इसलिए मॉरीशस की यात्रा भारतीयों के लिए एक भावनात्मक तीर्थयात्रा जैसी बन जाती है।

दिल्ली से लगभग डेढ़ गुना आकार का छोटा सा और बेहद खूबसूरत मॉरीशस हिंद महासागर के सुदूर पश्चिमी छोर पर दक्षिण अफ्रीका और मेडागास्कर जैसे देशों के पड़ोस में हमारी संस्कृति का अद्भुत केंद्र बन कर उभर रहा है। उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों द्वारा भारत से मॉरीशस ले जाए गए कुलियों ने, जिन्हें बहुधा गिरमिटिया मजदूर कहकर संबोधित किया जाता है, अत्यंत विषम सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक परिस्थितियों के बावजूद अपनी हिंदू पहचान और अपनी सांस्कृतिक विरासत को विलुप्त नहीं होने दिया। उनके बाद की पीढ़ियों ने, जिनका आज मॉरीशस की राजनीति और समाज में दबदबा है, अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को और प्रगाढ़ बनाया है।

मॉरीशस की जनसंख्या में लगभग 52 प्रतिशत हिन्दू हैं। अफ्रीका महाद्वीप में सबसे ज्यादा। जाहिर है, स्थानीय राजनीति, समाज और संस्कृति पर उनकी प्रधानता होगी ही। मॉरीशस में धार्मिक आस्था के स्तर पर एक किस्म का नवजागरण चल रहा है, जिसके पीछे कई हिंदू संगठनों की दशकों की मेहनत छिपी है। इन संगठनों में हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा, विश्व हिंदू परिषद, मॉरीशस सनातन धर्म मंदिर संघ, मॉरीशस आर्य सभा, आर्य समाज, सनातन धर्म प्रचारिणी सभा, मॉरीशस तमिल मंदिर संघ, मॉरीशस आंध्र सभा, मॉरीशस मराठी मंडली संघ आदि का जिक्र खास तौर पर होता है। हिंदू स्वयंसेवक संघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मॉरीशस चौप्टर के रूप में संघ की विचारधारा तथा काम को आगे बढ़ाने में जुटा है। मॉरीशस में चिन्मय मिशन, माता अमृतानंदमयी आश्रम, रामकृष्ण मिशन, इस्कान और ब्रह्माकुमारी आश्रम आदि की भी शाखाएं हैं जिन्होंने यहां के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है।

मॉरीशस को अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्ति 1968 में मिली थी। इससे पहले वहां मिशनरियों के हाथों आर्थिक दृष्टि से जर्जर हिंदुओं के मतांतरण की प्रक्रिया जोरों से चल रही थी। आजादी के बाद हिंदू समाज के बीच इसकी व्यापक प्रतिक्रिया शुरू हुई और उसने जनजीवन के विभिन्न क्षेत्रों में एकजुट होने की जरूरत महसूस की।
भारतवंशी संगठनों की ही कोशिशों का परिणाम है यहां मंदिरों की संख्या का बढ़ना तथा हिंदू धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा उत्सवों में लोगों की भागीदारी का बढ़ना। महाशिवरात्रि मॉरीशस का सबसे बड़ा त्योहार है जब नौ दिन तक यहां का सारा वातावरण शिवमय हो जाता है। इसे भारत के अतिरिक्त शेष विश्व में हिंदुओं का सबसे बड़ा धार्मिक संगम माना जाता है। इस मौके पर हिंदू ही नहीं बल्कि गैर-हिंदू तथा मॉरीशस के लोग ही नहीं बल्कि आसपास के कई देशों से हिंदू इकट्ठे होते हैं। गणेश चतुर्थी, दीपावली और कवाड़ी जैसे पर्व भी बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं और तब ऐसा लगता है कि भारत से दूर इस छोटे भारत की बड़ी आबादी अपने पितृराष्ट्र के साथ धार्मिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर एकाकार हो गई है।

मुझे मॉरीशस के प्रसिद्ध गंगा तालाब के दर्शन करने का अवसर मिला जो महाशिवरात्रि महोत्सव का केंद्रीय स्थल है। गंगा तालाब जाने से पहले मार्ग में खुले आसमान के नीचे 108 फुट ऊंची मंगल महादेव की विशाल, भव्य और दिव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं। यह वड़ोदरा की सुरसागर झील में स्थापित शिव प्रतिमा की सटीक प्रतीत  है।  मॉरीशस में गंगा तालाब का दर्जा लगभग वही है जो भारत में पवित्र गंगा नदी का है। गंगा तलाब में भगवान शिव मंदिर के साथ-साथ और भी कई मंदिर हैं। इसके पवित्र जल में शिवजी, हनुमान जी, गणेश जी, मां दुर्गा आदि की प्रतिमाएं भी          स्थापित हैं।

संयोगवश, मॉरीशस के हिंदुओं में शैवों की संख्या सर्वाधिक है। यही वजह है कि यहां शिवजी के मन्दिरों की बहुतायत है। मॉरीशस के उत्तरी भाग में स्थित महेश्वरनाथ मन्दिर जो ट्रायोलेट शिवाला के नाम से भी चर्चित है, भी गंगा तालाब से कम प्रसिद्ध नहीं है। वास्तव में यह मंदिर दो सदियों से मॉरीशस में हिंदू पहचान का महत्वपूर्ण प्रतीक है।

पूर्वी मॉरीशस में एक मनोरम द्वीप पर अत्यंत दर्शनीय सागर शिव मंदिर है। चारों तरफ से आती समुद्री लहरों और समुद्री हवाओं के बीच फहराता हुआ सागर शिव मंदिर का ध्वज मानो उद्घोष कर रहा हो कि मॉरीशस में भारतीयता और अध्यात्म की कीर्ति पताका हमेशा ऊंची रहेगी। मॉरीशस के मंदिरों की एक खास बात है। भले ही मंदिर का प्रधान देवता कोई भी हो, दर्जनों दूसरे देवताओं की मूर्तियां भी रहेंगी। ऐसा इसलिए ताकि हर आस्था के व्यक्ति को अपने आराध्य के दर्शन हो जाएं। वैसे यहां के भारतवंशियों के घरों में भी मंदिर होना अनिवार्य है और ये मंदिर हैं हनुमान जी के।

इसी प्रकार उत्तर भारतीय पृष्ठभूमि वाले हिंदुओं के संगठन, मंदिर आदि हिंदी के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं। करीब तीन सौ हिंदीभाषी मंदिरों का एक अलग संगठन भी है, जिसका नाम है- सनातन धर्म मंदिर संगठन। कई मंदिरों में हिंदी की प्राथमिक कक्षाएं लगती हैं जिनमें नन्हें बच्चों को हिंदी अक्षरज्ञान कराया जाता है। हिंदी से जुड़े कई साहित्यिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक आयोजन भी यहां होते हैं। हिंदी भाषियों के लिए सामुदायिक गतिविधियों का केंद्र बन रहे ये मंदिर धार्मिक दायित्व निभाने के साथ-साथ भाषाओं के प्रसार को भी अपना उद्देश्य मानकर चलते हैं। हालांकि अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड आदि देशों में भी मंदिर भारतीयों की सांस्कृतिक और भाषायी गतिविधियों के केंद्र बन रहे हैं, लेकिन मॉरीशस के मंदिर जिस सुनियोजित ढंग से भाषा शिक्षण से जुड़े हैं, उसका प्रत्यक्ष अनुभव करना बहुत सुखद लगा।

इस बीच, मॉरीशस में तमिल मंदिरों (कोविल) की संख्या तेजी से बढ़ी है। हिंदी भाषियों की ही तरह तमिल भाषी लोगों के मंदिरों का संगठन भी आ गया है।

साभार : बालेंदु शर्मा दाधीच, पांचजन्य 

2 comments:

  1. वाह आपकी नज़र से मॉरि‍शस देख कर अच्‍छा लगा

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  2. आपके नजर से देखने मे मारीशश ऐसा लगा जैसे मै खुद मारीशश की शैर कर रहा हूं

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