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Friday, August 17, 2012

दशावतार की परिकल्पना और राजनीतिक आंदोलन



हिंदू धर्म में दशावतार की जो कल्पना है, उसे आज का युवा समझ सके तो वह अपने जीवन को बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढालने में सहजता महसूस करेगा। माना गया है कि भगवान विष्णु अलग-अलग युगों में दस अलग-अलग रूपों में अवतरित होंगे- मत्स्य अवतार से ले कर कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध अवतार तक। इन अवतारों का सूक्ष्म विवेचन करें तो हम पाएंगे कि इनका क्रम हमारे शारीरिक विकास, हमारे करियर के बदलाव और समाज में जटिल होती व्यवस्थाओं के क्रम की भी प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति होती है। इन अवस्थाओं में हमें किस प्रकार कार्य करना चाहिए, उसका एक स्पष्ट संकेत दशावतारों में छिपा है। 

मत्स्यावतार यानी जल की मछली, जीवन की शिशु अवस्था का प्रतीक है। इसमें व्यक्ति जल में है। उसने अभी स्थल और दुनिया देखी नहीं। कूर्मावतार यानी कछुआ जीवन की उस अवस्था प्रतीक है जब जल से निकल कर स्थल यानी कठोर धरातल पर धीमी गति से शुरुआत की जाए। यही बाल्यकाल है। वाराहावतार अर्थात सुअर द्वारा धरती को सागर से बाहर निकालने का कथानक जीवन की किशोरावस्था है। नृसिंह अवतार तरुण से युवा अवस्था के मध्य की अवस्था है।  
इसके बाद वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध जैसे सभी अवतार गहरे सामाजिक और राजनैतिक चिंतन के कूट प्रतीक हैं। वे दिखाते हैं कि जब आप कार्यकारी जीवन में प्रवेश करते हैं तो समाज में किस प्रकार से परिस्थितियां आपके सामने आती हैं और आपको कैसे अपने व्यक्तित्व को उनके अनुसार ढालना पड़ता है। आज के युवाओं को जीवन में इन चारों अवस्थाओं को पार करना होगा। 

वामन अवतार में केवल भिक्षा मांगने मात्र से राजा बलि का मान मर्दन हो जाता है और पूरा ब्रह्मांड उनसे छिन जाता है। यह उद्धरण उस अवस्था को दिखाता है जब आप अपना करियर प्रारंभ कर रहे हों। अर्थात आपको मांग कर अपने लिए एक स्थान बनाना है। बड़े से बड़े व्यक्ति को अपने छोटे से दिखने वाले व्यक्तित्व का एहसास कराना है। फिर परशुराम अवतार अर्थात समस्त शस्त्रों को धारण कर अकेले युद्ध लड़ना। आपके करियर के उस भाग को दर्शाता है जब आपको वन मैन आर्मी के रूप में विरोधियों पर स्वयं विजय पानी है। जब आप अपना एक स्थान बना लेते हैं तब राम की तरह मर्यादा के अनुसार युद्ध करना है। व्यवस्था का नेतृत्व करना है। आप शीर्ष स्तर पर आ जाते हैं तो आपको भगवान कृष्ण की ओर देखना है। अब आपको युद्ध के मध्य खडे़ तो रहना है परंतु युद्ध करना नहीं है। उसे गाइड करना है। फिर जब आप बुजुर्ग होकर रिटायर हो जाते हैं तब आप भगवान बुद्ध के अवतार की तरफ देखिए। अब न तो युद्ध करना है और न ही रणभूमि में जाना है। आपको शांतिपूर्वक एकांत में रहकर अनुभवों के आधार पर ऐसे कल्याणकारी सुझाव देने हैं जो दूसरों के मार्गदर्शक बन सकें। 

करियर के विविध अवसरों पर हमारे भीतर की क्षमता प्रारंभ में भगवान वामन के समान भक्ति युक्त होनी चाहिए। फिर भगवान परशुराम और भगवान राम के समान शक्ति से और आगे चलकर भगवान कृष्ण के समान युक्ति से युक्त होनी चाहिए। अंत में भगवान बुद्ध के समान अनासक्त रहते हुए मुक्ति के लिए प्रवृत्त होनी चाहिए। 

अवतारों का यह क्रम राजनैतिक दृष्टि से भी समाज में क्रमश: जटिल होते हुए राजनैतिक समीकरणों और परिस्थितियों का एक तर्कसंगत प्रतीक प्रस्तुत करता है। वामन के बाद भगवान परशुराम का अवतार आता है जो स्वयं ही सभी शस्त्रों को धारण कर रहे हैं और अकेले युद्ध कर रहे हैं। यह राजनीति की वह व्यवस्था इंगित करता है जब मानव समाज आदिम स्थिति में था। तब नेतृत्व करने के लिए किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से स्वयं युद्ध करना पड़ता था। स्वयं ही शस्त्रों को धारण करना पड़ता था। युद्ध और शस्त्र संचालन की क्षमता ही नेतृत्व का मुख्य आधार थी। विश्व के इतिहास में कबीलाई युग के सभी समाज ऐसी ही राजनीति के प्रतीक थे। 

इसके बाद राम अवतार आता है। यह राजनीति के स्तर और जटिल व परिपक्व हो जाने का प्रतीक है। इसमें नेतृत्व करने के लिए अकेले युद्ध करना पर्याप्त नहीं है। संगठित सेना द्वारा विशिष्ट मूल्यों के माध्यम से सेनानायक सेना को प्रेरित करता है और फिर नेतृत्व कर सत्ता पाना राजनीति का मूल मंत्र हो जाता है। विश्व के इतिहास में सिकंदर से लेकर किंग चार्ल्स, चंगेज खां, मुगल और नेपोलियन से लेकर हिटलर तक राजनीति के इसी सिद्धांत के उदाहरण हैं। यह उस स्तर को दर्शाता है, जब सत्ता प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष युद्ध की बजाय नेतृत्व करने वाले को कुछ मूल्यों और सिद्धांतों के आधार पर प्रेरित करना होता है। जरूरी नहीं है कि नेता बहुत अच्छा योद्धा हो, उसे युद्ध भूमि अर्थात आंदोलित समाज में मार्ग दर्शन करना है। आधुनिक युग में 20वीं शताब्दी की कई ऐतिहासिक क्रांतियां ऐसी ही हैं। लेनिन और माओ के नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। 

भगवान कृष्ण के बाद बुद्ध का अवतार आता है। कृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाया था परंतु युद्ध भूमि में उपस्थित रहे थे। बुद्ध का अवतार इसके आगे की राजनीति दर्शाता है, क्योंकि बुद्ध युद्ध क्षेत्र में भी नहीं जाते। वे अपने स्थान पर बैठकर जनता के मध्य में जाकर कुछ मूल्यों के द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करते हैं कि बगैर युद्ध के सत्ता परिवर्तन होने लगता है। आधुनिक युग में महात्मा गांधी का आंदोलन, अमेरिका में माटिर्न लूथर किंग का संघर्ष और दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के आंदोलन द्वारा हुए सत्ता परिवर्तन ऐसी राजनीति के उदाहरण हैं। बुद्ध अवतार कहीं न कहीं विश्व में वर्तमान में स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्था की राजनीति का प्रतीक है। 

दशावतार की अवधारणा में छिपे राजनैतिक विकास क्रम की जटिलता व परिपक्वता के गूढ़ संदेश को पढ़ कर वर्तमान और भविष्य की राजनीति को समझने के लिए एक अच्छा उपकरण मिल सकता है। आधुनिक भारत में गांधी ने जो धारा प्रारंभ की थी, उसी परंपरा में जेपी और आज अन्ना और रामदेव के आंदोलन राजनीति के इसी विकास क्रम की सफलता को इंगित करते हैं। 

साभार : गौरी राय, फेस बुक 


1 comment:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते
    हैं, पंचम इसमें वर्जित
    है, पर हमने इसमें अंत में पंचम
    का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग
    बागेश्री भी झलकता
    है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
    ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
    जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
    मिलती है...
    Also visit my homepage ... संगीत

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