भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है।
आर्यावर्त के पूर्व इसका कोई नाम
नहीं था। कहीं-कहीं जम्बूद्वीप का उल्लेख
मिलता है। कुछ लोगों का मानना है
कि इसे पहले 'अजनाभ खंड'
कहा जाता था। अजनाभ खंड का अर्थ
ब्रह्मा की नाभि या नाभि से उत्पन्न।
लेकिन वेद-पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के
साथ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन करें
तो पता चलता है कि मनुष्य व अन्य जीव-
जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि (उत्पत्ति)
हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई
थी जिसमें तिब्बत को इसलिए महत्व
दिया गया क्योंकि यह
दुनिया का सर्वाधिक ऊँचा पठार है।
हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में
भारत वर्ष को हिमवर्ष
भी कहा जाता था।
वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप
कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक
पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है
कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य
को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन
नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे
सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में
नहीं धरती पर ही हिमालय के इलाके में रहते
थे। वहीं शिव और अन्य देवता भी रहते थे।
पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से
ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर
की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे
यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण
धरती ही जलमग्न हो गई थी, लेकिन
विद्वानों में इस विषय को लेकर मतभेद हैं।
कुछ का मानना है कि कहीं-
कहीं धरती जलमग्न नहीं हुई थी। पुराणों में
उल्लेख भी है कि जलप्रलय के समय
ओंकारेश्वर स्थित मार्कंडेय
ऋषि का आश्रम जल से अछूता रहा।
कई माह तक वैवस्वत मनु (इन्हें श्रद्धादेव
भी कहा जाता है) द्वारा नाव में
ही गुजारने के बाद उनकी नाव गोरी-शंकर
के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी-
शंकर जिसे एवरेस्ट
की चोटी कहा जाता है। दुनिया में इससे
ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़
दूसरा नहीं है।
तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और
वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के
कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग
भूमि की ओर रुख करना शुरू किया।
विज्ञान मानता है कि पहले सभी द्वीप
इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर
अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से
जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ
था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय
परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई।
इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय
की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु
की संतानें कम ऊँचाई वाले
पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-
जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और
भी मध्य भाग में आते गए। राजस्थान
की रेगिस्तान इस बाद का सबूत है
कि वहाँ पहले कभी समुद्र हुआ करता था।
दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न
ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे
जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल
पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और
पहाड़ी प्रदेशों में फैल गए।
जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने
ही अखंड भारत की सम्पूर्ण
भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश,
मध्यदेश, आर्यावर्त एवं भारतवर्ष
आदि नाम दिए। जो इधर आए वे
सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। आर्य एक
गुणवाचक शब्द है जिसका सीधा-सा अर्थ
है श्रेष्ठ। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे।
इसी से यह धारणा प्रचलित हुई
कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से
गंगा को उतारा गया आदि अनेक
धारणाएँ।
इन आर्यों के ही कई गुट अलग-अलग झुंडों में
पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर
भाँति-भाँति के धर्म और
संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु
की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर
धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव
कहलाती थीं। इस धरती पर आज
जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु
की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में
मतभेद हैं। यह अभी शोध का विषय है।
भारतीय पुराणकार सृष्टि का इतिहास
कल्प में और सृष्टि में मानव उत्पत्ति व
उत्थान का इतिहास मवन्तरों में वर्णित
करते हैं। और उसके पश्चात्
मन्वन्तरों का इतिहास युग-युगान्तरों में
बताते हैं।
'प्राचीन ग्रन्थों में मानव इतिहास
को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1). हमत्
कल्प 1 लाख 9 हजार 8 सौ वर्ष विक्रमीय
पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक,
(2). हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय
पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक, ब्राह्म कल्प
60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व
तक, (3). ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय
पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (4). पाद्म कल्प
37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक
और (5). वराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से
आरम्भ होकर इस समय तक चल रहा है ।
अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु,
स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-
मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर
बीत चुके हैं और अब वैवस्वत
तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल
रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव
विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष
पूर्व हुआ था।'--श्रीराम शर्मा आचार्य
(गायत्री शक्ति पीठ)
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प
को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन
घोषित किया है।
त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से
वैवस्वत मनु के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के
मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ।
वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से
पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे।
इसी से श्रुति और
स्मृति की परम्परा चलती रही। वैवस्वत मनु
के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य
अवतार हुआ।
वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में
पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष,
किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र
थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट,
नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और
पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल
का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु
कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि,
अरिहंत और भगवान हुए हैं
साभार : हिंदुत्व दर्शन
hahaha
ReplyDeleteNabhi Varsh ya Ajanabha Varsh Bharat ke Purvaj Nabhi ka naam tha
Nabhi bana di aap ne use
sath me vedo me is desh ka naam kewal Bharat hai
Jaiye pahale padkar aaiye