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Thursday, June 21, 2012

सनातन धर्मरक्षक महान सम्राट- पुष्यमित्र शुंग...



मोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के
पोत्र महान अशोक (?) ने कलिंग युद्ध के
पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक
अगर राजपाठ छोड़कर बौद्ध भिक्षु बनकर
धर्म प्रचार में लगता तब वह वास्तव में महान
होता । परन्तु अशोक ने एक बौध सम्राट के
रूप में लग भाग २० वर्ष तक शासन किया।
अहिंसा का पथ अपनाते हुए उसने पूरे शासन
तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में
लगा दिया। अत्यधिक अहिंसा के प्रसार से
भारत की वीर भूमि बौद्ध भिक्षुओ व
बौद्ध मठों का गढ़ बन गई थी। उससे भी आगे
जब मोर्य वंश का नौवा अन्तिम सम्राट
व्रहद्रथ मगध की गद्दी पर बैठा ,तब उस
समय तक आज का अफगानिस्तान, पंजाब व
लगभग पूरा उत्तरी भारत बौद्ध बन
चुका था । जब सिकंदर व सैल्युकस जैसे वीर
भारत के वीरों से अपना मान मर्दन करा चुके
थे, तब उसके लगभग ९० वर्ष पश्चात् जब भारत
से बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक निति के
कारण वीर वृत्ति का लगभग ह्रास
हो चुका था, ग्रीकों ने सिन्धु
नदी को पार करने का साहस
दिखा दिया।
सम्राट व्रहद्रथ के शासनकाल में ग्रीक
शासक मिनिंदर जिसको बौद्ध साहित्य में
मिलिंद कहा गया है ,ने भारत वर्ष पर
आक्रमण की योजना बनाई। मिनिंदर ने
सबसे पहले बौद्ध धर्म के धर्म गुरुओं से संपर्क
साधा,और उनसे कहा कि अगर आप भारत
विजय में मेरा साथ दें तो में भारत विजय के
पश्चात् में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लूँगा।
बौद्ध गुरुओं ने राष्ट्र द्रोह
किया तथा भारत पर आक्रमण के लिए एक
विदेशी शासक का साथ दिया।
सीमा पर स्थित बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह के
अड्डे बन गए। बोद्ध भिक्षुओ का वेश धरकर
मिनिंदर के सैनिक मठों में आकर रहने लगे।
हजारों मठों में सैनिकों के साथ साथ
हथियार भी छुपा दिए गए।
दूसरी तरफ़ सम्राट व्रहद्रथ
की सेना का एक वीर सैनिक पुष्यमित्र शुंग
अपनी वीरता व साहस के कारण मगध
कि सेना का सेनापति बन चुका था ।
बौद्ध मठों में विदेशी सैनिको का आगमन
उसकी नजरों से नही छुपा । पुष्यमित्र ने
सम्राट से
मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी। परंतु
बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने मना कर दिया।
किंतु राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत
शुंग , सम्राट की आज्ञा का उल्लंघन करके
बौद्ध मठों की तलाशी लेने पहुँच गया।
मठों में स्थित
सभी विदेशी सैनिको को पकड़
लिया गया,तथा उनको यमलोक
पहुँचा दिया गया,और उनके हथियार कब्जे में
कर लिए गए।
राष्ट्रद्रोही बौद्धों को भी ग्रिफ्तार कर
लिया गया। परन्तु वृहद्रथ को यह बात
अच्छी नही लगी।
पुष्यमित्र जब मगध वापस आया तब उस समय
सम्राट सैनिक परेड की जाँच कर रहा था।
सैनिक परेड के स्थान पर ही सम्राट व
पुष्यमित्र शुंग के बीच बौद्ध मठों को लेकर
कहासुनी हो गई।सम्राट वृहद्रथ ने पुष्यमित्र
पर हमला करना चाहा परंतु पुष्यमित्र ने
पलटवार करते हुए सम्राट का वध कर दिया।
वैदिक सैनिको ने पुष्यमित्र का साथ
दिया तथा पुष्यमित्र को मगध का सम्राट
घोषित कर दिया।
सबसे पहले मगध के नए सम्राट पुष्यमित्र ने
राज्य प्रबंध को प्रभावी बनाया, तथा एक
सुगठित सेना का संगठन किया। पुष्यमित्र
ने अपनी सेना के साथ भारत के मध्य तक चढ़
आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया।
भारतीय वीर सेना के सामने ग्रीक
सैनिको की एक न चली। मिनिंदर
की सेना पीछे हटती चली गई । पुष्यमित्र
शुंग ने पिछले सम्राटों की तरह कोई
गलती नही की तथा ग्रीक
सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार
धकेल दिया। इसके पश्चात् ग्रीक
कभी भी भारत पर आक्रमण नही कर पाये।
सम्राट पुष्य मित्र ने सिकंदर के समय से
ही भारत वर्ष को परेशानी में डालने वाले
ग्रीको का समूल नाश ही कर दिया। बौद्ध
धर्म के प्रसार के कारण वैदिक
सभ्यता का जो ह्रास हुआ,पुन:ऋषिओं के
आशीर्वाद से जाग्रत हुआ। डर से बौद्ध धर्म
स्वीकार करने वाले पुन: वैदिक धर्म में लौट
आए। कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है
की पुष्यमित्र ने बौद्दों को सताया .किंतु
यह पूरा सत्य नही है। सम्राट ने उन
राष्ट्रद्रोही बौद्धों को सजा दी ,जो उस
समय ग्रीक शासकों का साथ दे रहे थे।
पुष्यमित्र ने जो वैदिक धर्म
की पताका फहराई उसी के आधार
को सम्राट विक्र्मद्वित्य व आगे चलकर गुप्त
साम्रराज्य ने इस धर्म के ज्ञान को पूरे
विश्व में फैलाया।

साभार : गौरी राय, फेसबुक 

2 comments:

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