वोट की राजनीति ने हमारे समाज को बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक,साम्प्रदायिक-सेकुलर व अन्य जाति-मत-पंथ में विभाजित कर देश का जोनुकसान किया है उसकी भरपाई कैसे होगी, इसका विचार किए जाने कीबजाय इस विभेद को सत्ता के लिए और भी गहराने की साजिशें हो रही हैं।जनता के बीच इस प्रकार के भ्रम निर्माण कर अपने राजनीतिक स्वार्थ साधनेकी मानो होड़ लगी है। देश का प्रधानमंत्री सेकुलर हो, यह कहने का अर्थ क्याहै? संविधान निर्माताओं ने तो प्रधानमंत्री पद की यह 'विशिष्ट पहचान' बनानेका कोई चिंतन नहीं किया, क्योंकि शायद उनका मानना रहा होगा कि भारतजिन सनातन मूल्यों, धर्म-संस्कृति का पोषक रहा है, वहां तो सर्वसमावेशीऔर सहअस्तित्व का भाव ही हमारे सामाजिक व राष्ट्रीय जीवन का आधारहै। इसलिए यहां मत-पंथ के आधार पर किसी प्रकार का सामाजिक विभाजनकरना उन्होंने उचित नहीं समझा। अत: केन्द्रीय शासन और उसके प्रमुख केरूप में प्रधानमंत्री का दायित्व लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए बिनाकिसी भेदभाव के देश की समस्त जनता की सुख-समृद्धि व हिफाजत कीचिंता करना है। लेकिन इसके विपरीत प्रधानमंत्री को 'सेकुलर' जैसी पहचानदेने की कोशिशें हो रही हैं। सर्वपंथसमभाव तो भारत के हिन्दू चिंतन कीविशेषता है। ऐसे हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक मानना और 'सेकुलरवाद' कोसत्ता की राजनीति का हथियार बना लेना सुविधा की राजनीति के अलावाऔर कुछ नहीं है।
स्वाधीनता के बाद कांग्रेस की शह पर ज्यों-ज्यों राजनीति सत्ता केन्द्रित होतीगई और राष्ट्र निर्माण व समाज सेवा का भाव उसमें से समाप्त होता गया तोवोट का गणित राजनीति पर हावी हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमतीइंदिरा गांधी की पहल पर 42वां संविधान संशोधन करके उसमें सेकुलर यानीपंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया। लेकिन सेकुलरवाद व अल्पसंख्यकवाद का अर्थमान लिया गया मुस्लिम तुष्टीकरण और हिन्दू विरोध। वोट की राजनीतिकरते हुए इसका लाभ लेकर सत्तास्वार्थों को साधने वाली कांग्रेस की तर्ज परउसी लालसा से देश में कई दल व नेता उस राह पर चल निकले। परिणामत:हिन्दू उत्पीड़न व मुस्लिम तुष्टीकरण सत्ता की राजनीति का मंत्र बन गयाऔर इसकी होड़ में आज ये दल व नेता एक-दूसरे से आगे निकल जाने कोआतुर हैं। प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह कहते हैं कि देश के संसाधनों परपहला हक मुस्लिमों का है। यह तो घोर साम्प्रदायिक मानसिकता है कि देशके 85 प्रतिशत हिन्दुओं का हक छीनकर कथित अल्पसंख्यकों यानीमुस्लिमों को सौंप दिया जाए। क्या ऐसा 'सेकुलर' प्रधानमंत्री चाहिए देश को?उड़ीसा के कंधमाल में जनजातियों की सेवा कर उनके जीवन को खुशहालबनाने में जुटे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जब चर्च के मतांतरण षड्यंत्र मेंबाधा बनते दिखे तो उनकी निर्मम हत्या कर दी गई, तब प्रधानमंत्री ने उफ्भी नहीं की और आस्ट्रेलिया में डा.हनीफ की गिरफ्तारी भर से उनकी रातोंकी नींद उड़ जाती है! संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में समानांतरसत्ता की पर्याय बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा 'साम्प्रदायिक एवं लक्षितहिंसा रोकथाम विधेयक' के प्रारूप में हिन्दुओं को प्रथम दृष्ट्या साम्प्रदायिकदंगों का अपराधी ठहराए जाने व मुस्लिमों को पीड़ित माने जाने का मानकतैयार किया जाता है और संप्रग सरकार उस प्रारूप को कानून बनाने पर तुलीहै! उ.प्र. में मुलायम सिंह की पार्टी का राज आते ही केन्द्रीय धन से नएविद्यालय खोलने की योजना के तहत प्रदेश के 21 मुस्लिम बहुल जिलों में हीविद्यालय खोलने की योजना, राज्य में 10वीं पास मुस्लिम लड़कियों को आगेकी पढ़ाई के लिए 30 हजार रु. तक की आर्थिक सहायता दिया जाना औरउ.प्र. के 18 प्रतिशत मुस्लिम बहुल थानों में मुस्लिम पुलिस अधिकारीनियुक्त किए जाने जैसा मुस्लिम एजेंडा लागू करने की कोशिशें क्या हैं? क्यायही सेकुलरवाद है?
वास्तव में यह तो हिन्दू उत्पीड़न की साम्प्रदायिक राजनीति है जो कांग्रेस व उसकी मानसिकता में से जन्मे दलों व नेताओं की सोच का अहम हिस्सा बन चुकी है। राजनीति में मुस्लिमपरस्ती दिखाकर उनके थोक वोट पाने की चाह में ही ये दल व नेता आज जब चाहे हिन्दुत्व को कोसते व हिन्दू हित की बातों को साम्प्रदायिक करार देते नजर आते हैं। वे भूल जाते हैं कि भारत में 85 प्रतिशत हिन्दू होने के कारण ही उनका तथाकथित सेकुलरवाद और लोकतंत्र जैसी अवधारणाएं जीवित हैं, अन्यथा जो धरती देश विभाजन से पहले भारत ही कहलाती थी, वहां पाकिस्तान के रूप में एक मजहबी राज्य बन जाने के बाद न सेकुलरवाद रहा, न लोकतंत्र। हिन्दुओं का उत्पीड़न कर 'सेकुलर राज' स्थापित किए जाने को तत्पर इन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि भारत में देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितों की चिंता करने वाली सरकार और प्रधानमंत्री क्यों नहीं होना चाहिए। ऐसा शासन और ऐसा प्रधानमंत्री निश्चय ही हिन्दू जीवन मूल्यों, संस्कारों व आदर्शों से प्रेरित होकर 'सर्वेषां अविरोधेन्' के भाव के साथ सभी मत-पंथों के हित चिंतन व उत्कर्ष के लिए कार्य करेगा। छत्रपति शिवाजी का हिंदवी स्वराज इसका उदाहरण है। फिर इन सेकुलरों को हिन्दुत्व से इतनी चिढ़ क्यों है? क्या केवल वोट व सत्ता की खातिर?
साभार : पांचजन्य
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