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Saturday, June 30, 2012

नटराज शिव


नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज। इस स्वरूप में शिव समस्त कलाओं के आधार हैं। शिव के प्रसिद्ध तांडव नृत्य के दो स्वरूप हैं। 



1. उनके क्रोध का परिचायक, प्रलंयकारी रौद्र तांडव 
2. आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव।



किन्तु अधिकतर लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही समझते हैं। रौद्र तांडव करने वाले शिव ‘रुद्र’ हैं, जबकि आनंद तांडव करने वाले शिव ‘नटराज’ हैं।



प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। शिव का नटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भाँति मनमोहक है तथा उसकी अनेक व्याख्यायें हैं।



नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति की चार भुजाएँ हैं, उनके चारों ओर अग्नि के घेरे हैं। उन्होंने अपने एक पाँव से एक बौने को दबा रखा है, एवं दूसरा पाँव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है।



उन्होंने अपने पहले दाहिने हाथ में (जो कि उपर की ओर उठा हुआ है) डमरु पकड़ा हुआ है। डमरू की आवाज़ सृजन का प्रतीक है। इस प्रकार यहाँ शिव का तांडव उनकी सृजनात्मक शक्ति का द्योतक है।



ऊपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में अग्नि है। यहाँ अग्नि विनाश की प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि शिव ही एक हाथ से सृजन करते हैं तथा दूसरे हाथ से विलय।



उनका दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है जो बुराईयों से हमारी रक्षा करता है।



उठा हुआ पाँव मोक्ष का द्योतक है। उनका दूसरा बाँया हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है। इसका अर्थ यह है कि शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव करते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है।



उनके पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है। शिव अज्ञान का विनाश करते हैं।
चारों ओर उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्माण्ड की प्रतीक हैं। उनके शरीर पर से लहराते सर्प कुण्डलिनि शक्ति के द्योतक हैं। उनकी संपूर्ण आकृति ॐकार स्वरूप जैसी दीखती है। यह इस बाद को इंगित करता है कि ॐ शिव में ही निहित है।
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साभार देवो के देव महादेव, फेसबुक 

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