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Thursday, July 5, 2012

वेदों में भी है ईश्वरीय कण का जिक्र



यूरोपीय वैज्ञानिको ने जिस हिग्स बोसॉन से मिलते-जुलते कण को खोजने का दावा किया है उसका व बिग बैंग का सबसे पहला जिक्र वेदों में आता है। वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल यानी ब्रह्मकण का नाम दिया है । सबसे प्राचीन वेद ॠगवेद में वर्णत नासद सूक्त में प्राचीन मानव और अंतरिक्ष को समझने की उसकी मूलभूत जिज्ञासा का पता चलता है। नासद सूक्त में कहा गया है कि सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था, न आकाश था, न जमीन, न जल। इस श्लोक में बह्मा की चर्चा करते हुए बताया गया है कि सृष्टि से पहले ब्रह्मा ही विद्यमान थे और उन्हीं से सारी सृष्टि का विकास हुआ है।



वैज्ञानिकों का बिग बैंग सिद्धांत भी इस समझ को अधिक विस्तृत बनाते हुए कहता है कि 13.7 अरब वर्ष पहले समूचा अंतरिक्ष एक पिन की नोक के बराबर के बिन्दु पर केंद्रित था। बिग बैंग कहलाने वाले इस माहविस्फोट के बाद इस बिन्दु में विस्तार होता चला गया जिसने अंतरिक्ष का आकार लिया। हमारा अंतरिक्ष अभी भी फैल रहा है। अंतरिक्षों के सृजन के साथ ही हिग्स बोसॉन अस्तित्व में आया जिससे नक्षत्रों, ग्रहों, आकाशगंगाओं और जीवन का भी सृजन संभव हो सका।



वेदों और उपनिषदों के बाद आए पुराणों में अंतरिक्ष के सृजन के सिद्धांत से आगे बढ़ते हुए युगों की शुरूआत और उनके खात्मे की जिक्र किया गया। पुराणों में ब्रह्मा के एक दिन को चार अरब 32 करोड़ वर्ष के बराबर बताया गया है जो एक महायुग और चार युगों के बराबर होता है। एक महायुग की समाप्ति के बाद प्रलय आती है और सबकुछ नष्ट हो जाता है और एक नई सृष्टि का सृजन होता है।
 



साभार : फेसबुक, रमण भारती 

7 comments:

  1. yh story jahan hai wahan hamne yh likha tha . Link par ja kar aap bhi dekh sakte hain.

    आपने कोई प्रमाण नहीं दिया और दावा कर सूक्त में इस तरह के कण का या बिग बैंग का कोई वर्णन ही नहीं है और अगर था तो दुनिया से पहले उसका लाभ खुद क्यों न उठा लिया ?

    http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-european-scientist-higs-boson-ved-book-39-39-241271.html

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    1. भाई साहब आपको कुछ सच्चाई से अलर्जी हैं क्या, या जान बूझकर सच्चाई स्वीकार नहीं करना चाहते हो. आपके पिछले कमेन्ट का मैंने जवाब दिया था, क्या बात आपने उसका कोई जवाब नहीं दिया

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    2. भाई प्रवीण जी ! सच हम सामने ले ही आये हैं. चाहे किसी को बुरा ही लगे.
      आपके घर में वेद होंगे नहीं और हमारे पास चारों हैं.
      नासदीय सूक्त में यह बताया गया है कि सृष्टि रचना से पहले क्या था ?
      उसमें हिग्स बोसोन या फर्मिऑन का कोई ज़िक्र नहीं है. अगर हो तो आप बता दीजिये भाई साहब ?

      भारतीय कालगणना का आरम्भ सृष्टि के प्रथम दिवस से माना जाता है । इसलिये इसे सृष्टि संवत कहते हैं । यह संवत 1975949112 एक अरब सत्तानबे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हजार, एक सौ बारह वर्ष पुराना है ।
      क्या आप जानते हैं कि वैदिक साहित्य के अनुसार सृष्टि संवत को २ अरब वर्ष भी नहीं हुए हैं जबकि आप खुद बता रहे हैं कि वैज्ञानिकों ने बताया है -"13.7 अरब वर्ष पहले समूचा अंतरिक्ष एक पिन की नोक के बराबर के बिन्दु पर केंद्रित था।"

      विज्ञानं की खोज को आप वेदों में कैसे ढूंढ़ पायेंगे ?

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    3. सबसे प्राचीन वेद 'ऋगवेद' में एक श्लोक आता है -'ईशावास्यम इदं सर्वं यद्किंच्याम जगत्यां जगत ' अर्थात –‘ईश्वर इस जग के कण--कण में विद्यमान हैं।’
      हिग्स बोसोन की थ्योरी भी यही बात बोलती है थोड़े से शाब्दिक परिवर्तन के साथ सिद्धांत कहता है सभी कणों का कुछ द्रव्यमान क्यों होता है ? किसी भी चीज को भार देने वाले अणुओं में अपना कोई भार नहीं होता, लेकिन यदि कणों में भार नहीं होता, तो कोई भी चीज यानी अणु-परमाणु या फिर यह ब्रह्मांड भी नहीं बन सकता था।‘न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चैन्नम
      हदा मनीषा मनसभि क्ल्रिप्तोये एतदिविदुरमृतास्ते भवन्ति ।।' (कठोपनिषद /अध्याय -2/बल्ली-3/श्लोक -9) अर्थात उस ईश्वरीय अनुभूति का दृश्य दृष्टि से परे है।उन ईश्वरीय कणों को देखने और अनुभव करने के लिए इन्द्र्यीतीत अनुभूति की आवश्यकता है।आँख ही क्या उस परम ऊर्जा के क्षेत्र को सामान्यता मानवीय अंगों से देखा जाना संभव नहीं है।उधर देखिये विज्ञान क्या कहता है - यूनिवर्सिटी ऑफ क्सफोर्ड के विज्ञानियों को 1980 में कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि ये कण होते हैं। 90 के दशक में साइंस पत्रिका 'नेचर' के हवाले से शोध के प्रमुख पीटर रेंटन ने यह स्पष्ट किया था कि मूलभूत कणों की करीब 10 खरब टक्करों में कोई एक मौका ऐसा आता है, जब बोसोन कणों की प्रतिच्छाया को पकड़ा जा सकता है। यह काम भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इसके अलावा, चूंकि ये कण अत्यधिक क्षणभंगुर होते हैं और पैदा होने के कुछ ही क्षणों में नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इन्हें देख तक पाना बेहद मुश्किल काम है। वेद कहता है-' न तस्य प्रतिमा अस्ति''.(यजुर्वेद /32/3)उस ईश्वर की प्रतिमापरिमाण ,उस के तुल्य अवधि का साधन भी नहीं है।इसी प्रकार से अन्यत्र 'यजुर्वेद''के 40 वें अध्याय के 8 वें मंत्र में पुनः कहा गया है कि ईश्वर 'अकाय 'है, यानी सूक्षम्तम
      कण और कारण शरीर शून्य है। वह प्रभु एक ''अणु '' है।अर्थात वह छिद्र रहित और अछेद है। वेदों में ईश्वरीय सत्ता को 'अस्नाविरम'' अर्थात नस नाड़ी से विमुक्त बताया गया है यही नहीं और आगे देखिये –''एष सर्वेषु भूतेषु गुढोत्मा न प्रकाशते दृश्यते त्वग्रयया बुद्ध्य सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभिः।।
      (कठोपनिषद /अध्याय-1/वल्ली-3/श्लोक-12)अर्थात सम्पूर्ण भूतों से छिपा हुआ वह परमात्मा प्रकाशमान नही होता . उस ईश्वरीय अनुभूति को सूक्ष्मदर्शी पुरुषों द्वारा अपनी तीव्र और सूक्ष्म बुद्धि से देखा जा स���ता है।इन शास्त्र वचनों से यह स्पष्ट है की वो परब्रह्म परमात्मा भौतिक आँखों से नहीं देखा जा सकता .कुछ लोग इस पर भी शंका कर सकते हैं कि आँखों से न दिखाई देने के कईं अन्य कारण भी हो सकते हैं , हो सकता है परमात्मा अँधेरे के कारण न दिखाई देता हो ? उससे हम सूर्य के, चाँद के,तारागण के ,बिजली के अथवा अग्नि के प्रकाश में देखने में समर्थ हो सकते हों.
      इन प्राथमिक शंकाओं के निर्मूलन भी शास्त्र में देखे जा सकते हैं .
      ' न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतो यमिग्न :
      तमेव भांतमनु भाति सर्वंतस्य भासा सर्वमिदं विभाति ।।' (कठोपनिषद /अध्याय -2/वल्ली -2/श्लोक -14) अर्थात उस आत्मलोक में सूर्य प्रकाशित नहीं होता ,चन्द्रमा और तारे भी नहीं चमकते और न ही वहां विद्युत का अस्तित्व है फिर अग्नि की तो बात ही करना व्यर्थ है ,इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि सब प्रकाशक पदार्थ उस परब्रह्म परमात्मा को प्रकाशित करने में असमर्थ हैं।उस परमात्मा का अंश अत्यंत सूक्ष्मतम है।उसके अस्तित्व से ही समस्त पदार्थों का अस्तित्व है।
      अब वैज्ञानिकों के निष्कर्ष देखें--'ऐसी ही अवस्था में वह गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोसोन कण उत्पन्न हो सकता है, जिसमें डार्क मैटर, डार्क एनर्जी, एक्सट्रा डायमेंशंस, पदार्थ की मूलभूत प्रकृति, स्पेस और टाइम से लेकर उन सभी गुत्थियों का रहस्य छिपा है, जो अभी तक अनसुलझी हैं।' मैं वेद और उपनिषद के अतिरिक्त पुराण,धम्मपद,गीता,गुरुग्रंथ साहिब,शिवसूत्र ,जिन-केवली , नक्षत्र दीपिका,दुर्गा सप्तशती ,राम शलाका,गौतम केवली , ग्रह सारावली ,फलदीपिका ,सर्वार्थ चिंतामणी ,जातक पारिजात ,वाराह संहिता ,यहाँ तक की 'कुरआन 'और 'बायबिल' तक में से ऐसे सैकड़ों उदाहरण आपको दे सकता हूँ जो इस तथ्य की पुष्टि करते हैं

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  2. यह है शुक्रवार की खबर ।

    उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।

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  3. चर्चा मंच पर है यह टिप्पणी -

    बंदा खड़ा फिजिक्स का, पढ़ा आप का लेख |
    वेद शास्त्र से जोड़ के, रहा खोज को देख ||

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